शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

2011 में बिज़नेस जगत

मारुति में हड़ताल
कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति के लिए साल 2011 काफी बुरा रहा। कंपनी की मनमानी की वजह से इस साल मारुति में कर्मचारियों ने चार बार हड़ताल किए। जिससे कंपनी को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। मारुति सुजुकी इंडिया इस साल हड़ताल के लिए सुर्खियों में रहा। कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी इस कंपनी में एक या दो बार नहीं बल्कि चार बार कर्मचारियों ने हड़ताल किए। कंपनी की मनमानी के विरोध में किए गए ये हड़ताल महीनों तक खिंची। 4 जून को हुई कर्माचारियों की हड़ताल 13 दिनों तक खिंची...जबकि 29 अगस्त हो हुई हड़ताल 33 दिनों तक चली..कंपनी के तानाशाही रवैए की वजह के 15 सितंबर को एक बार फिर से कर्मचारी हड़ताल पर चले गए..ये हड़ताल 2 दिनों तक चली..लेकिन आश्वासन के बावजूद कर्मचारियों की मांग नहीं माने जाने पर 1 अक्टूबर को फिर से हड़ताल हुई जो कि 14 दिनों तक चली। गुड़गांव के मानेसर प्लांट में हुए इन कुल चार हड़तालों की वजह से कंपनी को करीब 2000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। साथ ही कंपनी के मार्केट शेयर लुढ़क गए। जिसका फायदा देश की दूसरी कार बनाने वाली कंपनियों को हुआ।

स्टीव जॉब्स का निधन
स्टीव जॉब्स के निधन के रुप में इस साल उद्योग जगत को सबसे बड़ी क्षति हुई । लंबे समय से कैंसर से पीड़ित एप्पल के पूर्व सीईओ स्टीव का अक्टूबर में निधन हो गया। स्टीव ने कंम्प्यूटर के एक अलग लेवल तक पहुंचाया। स्टीव के आविष्कारों के दुनिया हमेशा उन्हें याद रखेगी।

कर्ज़ में डूबी एयर इंडिया
सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया के लिए भी ये साल बुरा साबित हुआ। हजारों करोड़ रुपए के घाटे ने महाराजा की कमर तोड़ कर रख दी। एयर इंडिया के पास अपने कर्मचारियों को पायलटों की सैलरी देते तक के पैसे खत्म हो गए।

सोना बना 29 हज़ारी
सोने के साल 2011 काफी सुहाना रहा। इस साल सोने की चमक लागातार बढ़ती रही। और सोने की कीमत अपने रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंची। सोना कितना सोना है...इसका सही अंदाजा साल 2011 में ही हो पाया। क्योंकि प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 29 हजार रुपए को पार कर गई। जनवरी में प्रति 10 ग्राम सोना मिल रहा था 19874 रुपए में...जो कि फरवरी में बढ़कर जा पहुंचा 20925 रुपए प्रति 10 ग्राम पर...मई की गर्मी में भी सोना नहीं पिघला और इसकी कीमत प्रति 10 पहुंच गई 22476 रुपए पर...जुलाई में सोने की प्रति 10 की कीमत थी 23130 रुपए..जोकि अगस्त में 27200 रुपए पर पहुंच गई और नवंबर में सोने की कीमत अपने रिकॉर्ड स्तर पर यानी 29111 पर बंद हुई। यूरोप के कई देशों के कर्ज संकट में फंसने और अमेरिका की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से सोने की कीमतों में पूरे साल तेजी बनी रही। क्योंकि दुनियाभर के शेयर बाजारों की स्थिति ज्यादा ठीक नहीं थी और ऐसे में निवेशक सुरक्षित निवेश के लिए सोने में जमकर खरीदारी की। इस वजह से सोने चमक लगातार बढ़ती रही।

महंगाई ने पूरे साल रुलाया
महंगाई दर ने इस साल आम लोगों को खूब रुलाया। साथ ही सरकार की नींद उड़ा दी। बढ़ती महंगाई के चलते देशभर में प्रदर्शन हुए। लेकिन साल के अंत तक महंगाई दर काबू में आ गई। इस साल जनवरी से महंगाई की मार शुरू हुई और नवंबर तक लोगों को परेशान करती रही। खाने-पीने के सामानों की लगातार बढ़ती कीमतों की गूंज संसद तक सुनई दी। देशभर में लोग लगातार बढ़ती महंगाई के विरोध में सड़कों पे उतर आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव को तिमाही दर तिमाही लोगो को आश्वासन देना पड़ा...कि महंगाई जल्द ही काबू में आ जाएगी। 16 जनवरी को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर 8.96 फीसदी थी। जो कि 10 सितंबर को खत्म हफ्ते में 10.05 फीसदी के पार पहुंच गई। ऐसा लगा की महंगाई रोकने के लिए उठाए गए सरकार की सारी कदम विफल साबित हो रही हो। क्योंकि 3 नवंबर को खत्म हफ्ते में खाद्य महंगाई दर 12.21 फीसदी पर जा पहुंची।लेकिन कर्ज दरों में बढ़तोरी और सप्लाई व्यास्था तंदुरुस्त होने का असर दिसंबर में दिखा। 22 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में खाद्य महंगाई दर घटकर 1.81 फीसदी पर लुढ़क गई। इस आंकड़े ने सरकार के साथ ही आम लोगों को राहत दी। क्योंकि महंगाई की वजह से ईएमआई में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी। साथ ही महंगे खाने-पीने के सामानों ने आम लोगों का पूरे साल बज़ट बिगाड़ कर रखा। लेकिन आने वाले साल में इससे कुछ राहत मिलने की उम्मीद जगी है।

दिवालिएपन की कगार पर किंगफिशर
किंग ऑफ गुड टाईम्स के नाम से मशहूर विजमाल्या के लिए साल 2011 ठीक नहीं रहा। क्योंकि इनकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस कर्ज के बोझ तले दबकर दिवालिएपन की कगार पर पहुंच गई। पैसे की कमी की वजह से किंगफिशर एयरलाइंस ने सैकड़ों फ्लाइट कैंसिल किए।

58 से 70 रुपए प्रति लीटर पहुंचा पेट्रोल
साल 2011 में पेट्रोल की कीमतों ने लोगों को खूब रुलाया। कच्चे तेल के महंगे होने की वजह से पेट्रोल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती रही। नवंबर तक पेट्रोल करीब 70 रुपए प्रति लीटर पर जा पहुंचा।
साल 2011 की शुरुआत होते ही पेट्रोल की कीमतों में आग लगनी शुरू हो गई। पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला महीने दर महीने बढ़ता ही गया। जनवरी 2011 को तेल मार्केटिंग कंपनियों ने प्रति लीटर पेट्रोल की कीमतों में 2 रुपए 52 पैसे की बढ़ोतरी कर दी। जिससे प्रति लीटर पेट्रोल पहुंच गया 58 रुपए 37 पैसे पर। इसके बाद सबसे बड़ी प्रति लीटर 5 रुपए की बढोतरी देखी गई मई महीने में। जिसने लोगों की कमर तोड़कर रख दी। मई में प्रति लीटर पेट्रोल पहुंच गया 63 रुपए 37 पैसे पर। सितंबर में एकबार फिर से पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी का ऐलान किया गया। 3 रुपए 14 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़कर हो गई 66 रुपए 84 पैसे। पेट्रोल की कीमतें इसके बाद भी स्थिर नहीं हुईं। नवंबर में एक बार फिर से पेट्रोल में 1 रुपए 82 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई। जिसके बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमतें बढ़कर अपने उच्चतम स्तर यानी 68 रुपए 64 पैसे प्रति लीटर पर पहुंच गई। पेट्रोल की बढ़ती कीमतों की वजह से लाखों लोगों के कार की सवारी का सपना इस साल अधूरा रह गया। इसका असर कारों की बिक्री पर देखने को मिला। कारों की बिक्री में लगातार गिरावट होने लगी। साथ ही लोगों को चार पहिया के बदले दो पहिए से ही संतोष करना पड़ा। तेल मार्केटिंग कंपनियां अपनी नुकसान की दुहाई दे देकर कीमतें बढ़ाती रहीं और लोग इस बढ़ती पेट्रोल की कीमतों की मार को सहने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

ईएमआई ने लोगों को खूब रुलाया
ईएमआई के फंदे ने इस साल लोगों को खूब परेशान किया। आरबीआई के सख्त तेबर ने कार और होम लोन लेने वालों के पसीने छुड़ा दिए। रिजर्व बैंक ने इस साल कुल सात बार कर्ज दरों में इजाफा किया।
घर और कार का सपना साकार करना इस साल लोगों के लिए महंगा साबित हुआ। क्योंकि ईएमआई महीने दर महीने सुरसा की भांति बढ़ती रही। इससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। रिजर्ब बैंक ने इस साल कुल 7 बार रेपो रेट में बढ़ोतरी की। जनवरी में रेपो रेट 6.5 फीसदी थी...जो कि मार्च में बढ़कर 6.7 फीसदी हो गई...मई में आरबीआई ने एक बार फिर से रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी..जिससे रेपो रेट बढ़कर 7.25 फीसदी पर जा पहुंची...जून में रेपो रेट बढ़कर 7.5 फीसदी पर पहुंच गई...जुलाई में आरबीआई ने फिर से 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी जिससे रेपो रेट 8 फीसदी पर पहुंच गई...सितंबर में रेपो रेट 8.25 फीसदी और अक्टूबर में अपने उच्चतम स्तर पर यानी 8.5 फीसदी पर जा पहुंची। हालांकि कर्ज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला साल के आखिर में जाकर थम गया। आरबीआई ने दिसंबर में हुए मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान कर्ज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की। दरअसल लगातार बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए आरबीआई ने ये कदम उठाए थे। लेकिन अब महंगाई दर में कुछ कमी आई है। खाद्य महंगाई दर चार सालों के अपने निचले स्तर पर जा पहुंची है। ऐसे में एक बार फिर से कर्ज सस्ता होने के आसार बनने लगे हैं।

ग्राहक ढ़ूंढती रही रियल एस्टेट कंपनियां
रियल एस्टेट कंपनियों को साल 2011 में पसीने छूट गए। रियल एस्टेट कंपनियां पूरे साल ग्राहक ढ़ूढती नज़र आई। साथ ही इन कंपनियों ने जो कर्ज ले रखा था उसका व्याज सातवें आसमान पर पहुंच गया।

नई पहचान मिलने के बावजूद रुपए में रिकॉर्ड कमज़ोरी
साल 2011 रुपए के प्रतीक चिन्ह के रुप में भा याद किया जाएगा। क्योंकि इसी साल रुपया अपनी नई प्रतीक चिन्ह के साथ बाजार में लांच हुआ। जो कि भारत की आर्थिक शक्ति को रेखांकित करता है। वहीं दूसरी ओर डॉलर की बढ़ती मांग की वजह इस साल रुपए अपने रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़क गया।
दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाले देशों में भारत दूसरे पायदान पर है। और भारत को एक आर्थिक शक्ति के रूप में पहचान दिलाने में रुपए की एक अहम भूमिका है। ऐसे में रुपए को अपना प्रतीक चिन्ह मिल जाना भारत के लिए गर्व की बात है। इसी साल अगस्त में रिजर्व बैंक ने रुपए के प्रतीक चिन्ह के साथ एक, दो, पांच और दस रुपए के सिक्के बाजार में लांच किए। फिलहाल दुनियाभर अमेरिका, ब्रिटेन सहित कुछ गिने-चुने देश ही हैं जिनकी करेंसी का अपना प्रतीक चिन्ह है। और इस लीग में अब भारत भी शामिल हो चुका है। जल्द ही रिजर्व बैंक रुपए के प्रतीक चिन्ह वाले कागज़ के 10 रुपए और 1000 रुपए के नोट बाजार में लांच करेगा। इसके साथ ही सरकार ने आईटी कंपनियों के संगठन नैसकॉम से कहा गया है कि वे सॉफ्टवेयर विकसित करने वाली कंपनियों के साथ मिलकर कर रुपए की प्रतीक चिन्ह को लोकप्रिय बनाए। जब तक की-बोर्ड पर इसे चिन्हित नहीं किया जाता है... तब तक कंपनियां अपने सॉफ्टवेयर में ये व्यवस्था करें कि इसे कंप्यूटर पर लिखा जा सके। अभी यूरो के प्रतीक चिन्ह के साथ भी ऐसा ही होता है। वहीं दूसरी ओर रुपए को इस साल एतिहासिक गिरावट का सामना करना पड़ा। दुनियाभर के देशों में डॉलर की बढ़ती मांग की वजह से रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर जा पहुंचा...और एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 54 रुपए के करीब जा पहुंची...ऐसे में आरबीआई को रुपए के बाचाव में उतरना पड़ा..जिससे साल के आखिर में रुपए में थोड़ी मज़बूती लौटी।

रतन टाटा को मिला उत्तराधिकारी
साल 2011 टाटा ग्रुप के लिए खास रहा। क्योंकि ग्रुप को रतन टाटा का उत्तराधिकारी मिल गया। शपूरजी पालोनजी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर साइरस मिस्त्री अगले साल से टाटा के एम्पायर को संभालेंगे।

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

मंदी की मार, सरकार गिरवी को तैयार

सरकार की आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैय्या

भारत सरकार की आर्थिक हालात बेहतर नहीं दिख रहे हैं। लगातार बढ़ रहे बजटीय घाटे को कम करने के लिए सरकार अपने शेयर और प्रॉपर्टी को गिरबी रखने के बारे में विचार कर रही है। इसके जरिए सरकार करीब 500 अरब रुपए के जुगाड़ करना चाह रही है।

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया के आधार पर सरकार काम कर रही है। एक के बाद एक वेलफेयर स्कीम्स का ऐलान किया जा रहा है। वजह साफ है अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करना। लेकिन इस मजबूती के चक्कर में सरकार का बजटीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। और अब उस नाजुक दौर में पहुंच चुका है.. जहां सरकार के पास अपनी प्रॉपर्टी और शेयर गिरवी रखने के बारे में सोचने पर मज़बूर होना पड़ रहा है।

सरकार के पास पैसे की कमी साफ झलक रही है। ऐसे में सरकार आईटीस, एल एंड टी और एक्सिस बैंक में अपने शेयर को बेचकर या गिरवी रखकर पैसे के बंदोबस्त करना चाह रही है। और उन पैसों से सरकार कंपनियों के शेयर खरीदना चाहती है। ताकी बाद में उन्हें बेचकर विनिवेश के लक्ष्य को हासिल किया जा सके और सरकारी खर्चे के लिए पैसे बचाया जा सके। सरकार ने इस वित्त वर्ष में 400 अरब रुपए के विनिवेश का लक्ष्य रखा है।

वर्ल्ड बैंक के अनुसार किसी भी देश के लिए 4 फीसदी से ज्यादा बजटीय घाटा सही नहीं माना जाता है। जबकि भारत का बजटीय घाट 6 फीसदी से ज्यादा है। यही नहीं अगर राज्यों के बजटीय घाटे से इसे जोड़ दिया जाए तो ये घाटा 10 फीसदी को पार कर जाएगा।

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ख़तरे में कॉल सेंटर की लाखों नौकरियां!

भारत में कॉल सेंटर पर गिरने वाली है गाज़। क्योंकि अमेरिका की नजर एक बार फिर भारत जैसे देशों में कॉल सेंटर खोलने वाली अमेरिकी कंपनियों पर टिक गई है। अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। जिसमें वैसी कंपनियों को सहायता नहीं देने की बात की गई जो भारत जैसे देशों में अपना काम आउटसोर्स कर रही हैं।

अमेरिका की संसद में कल कॉल सेंटर वर्कर एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट बिल पेश हुआ है। इस बिल में उन कंपनियों को सरकारी मदद या फिर सरकारी गारंटी वाले लोन नहीं देने की वकालत की गई है जो अमेरिका से बाहर कॉल सेंटर खोल रहे हैं। अगर इस बिल को कानूनी शक्ल मिल जाती है तो इन कंपनियों के अमेरिकी सरकार के कॉन्ट्रैक्ट भी छिन सकते हैं। बिल के मुताबिक आउटसोर्सिंग करने वाली कंपनियों को सरकारी मदद नहीं मिलेगी। ऐसे में सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन, अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी कई अमेरिकी कंपनियों को भारत में कॉल सेंटर चलाना महंगा पड़ सकता है। यही नहीं अमेरिकी कंपनी को विदेश में कॉल सेंटर खोलने से 120 दिन पहले सरकार को जानकारी देनी होगी। यानी कि अगर ये बिल कानून बनता है तो कई अमेरिकी कंपनियां अपना आउटसोर्सिंग का काम भारत से समेट सकती हैं।

भारत में आईटी और बीपीओ का 88 अरब डॉलर से ज्यादा का कारोबार है। और 59 फीसदी बीपीओ कारोबार अमेरिका से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। केवल नोएडा और गुड़गांव की 300 से अधिक कंपनियां हर साल 33 हजार करोड़ रुपए का कारोबार करती हैं। अगर इस सेक्टर में नौकरी की बात करें तो...पिछले साल अप्रैल से इस साल जून तक बीपीओ सेक्टर में 2.5 लाख नौकरियों के अवसर पैदा हुए हैं। ऐसे में अगर ये क़ानून बनता है तो भारत में लाखों लोगों की नौकरी पर बन आएगी। साथ ही आईटी कंपनियों की कमाई भी इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होगी। क्योंकि भारतीय आईटी कंपनियों की 50 फीसदी से ज्यादा कमाई अमेरिका से ही होती है।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

नहीं बढ़ेंगे पेट्रोल के दाम

तेल मार्केटिंग कंपनियां फिलहाल पेट्रोल की कीमतों में इज़ाफा नहीं करेंगी। पेट्रोल की कीमतों को लेकर शुक्रवार को हुई बैठक में दाम नहीं बढ़ाने का फैसला किया गया। इससे आम लोगों को कुछ राहत मिली है।

तेल मार्केटिंग कंपनियों ने डॉलर के मुकाबले रुपए की स्थिति में सुधार और सरकार के दबाव को देखते हुए फिलहाल पट्रोल के दाम में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया है। सरकारी तेल कंपनियों ने गुरुवार को भी कीमतों को लेकर एक बैठक की थी। हालांकि उस बैठक में कोई फैसला नहीं लिया जा सका था। दरअसल कंपनियों को तेल की कीमतें बढ़ाने के लिए सरकार से हरी झंडी मिलने की उम्मीद थी। लेकिन जानकारों का मानना है कि कई राज्यों में होने वाले चुनाव को देखते हुए सरकार कीमतें बढ़ाने पर अपनी हामी नहीं भर पाई। इससे कंपनियों को कीमतें नहीं बढ़ाने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

मज़बूर इसलिए...क्योंकि तेल मार्केटिंग कंपनियों की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। कंपनियों को अभी भी नुकसान सहना पड़ रहा है। वजह साफ है...अंतरराष्ट्री बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बनी हुई है। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत अभी भी 52 रुपए से ऊपर बरकरार है। हालांकि ये अलग बात है कि तेल कंपनियों को पेट्रोल की कीमत तय करने की आजादी है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि कीमतों पर मुहर लगाने से पहले..कंपनियों के लिए सरकार से सहमति लेना..जरुरत बन चुका है।

क्रेडिट पॉलिसी: कर्ज दरों में कोई बदलाव नहीं

लगातार कर्ज महंगा होने का सिलसिला थम गया है। आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने क्रेडिट पॉलिसी की तिमाही समीक्षा के दौरान अहम दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। यानी होम लोन, कार लोन सहित तमाम तरह के कर्ज दरों में कोई बदलाव नहीं होगा।

मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान रिजर्व बैंक ने कर्ज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। इससे लगातार बढ़ रहे कर्ज दरों पर विराम लग गया है। खाद्य महंगाई दर के कुछ हद तक काबू में आने की वजह से आरबीआई ने ये कदम उठाया है।
अहम दरों में बदलाव नहीं होने की वजह से रेपो रेट 8.5 फीसदी, रिवर्स रेपो रेट 7.5 फीसदी और सीआरआर 6 फीसदी पर बनी हुई है।

महंगाई पर लगाम लगाने आरबीआई ने पिछले करीब 20 महीनों में 13 बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी। जिसका बुरा असर उद्योगों पर साफ दिखने लगा है। इसके साथ ही अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में आई तेज गिरावट पर आरबीआई ने चिंता जताई है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि वे स्थिति पर नजदीक से नजर बनाए हुए है। ताकि परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर रुपए को सहारा देने के लिए उचित कदम उठाया जा सके। हालांकि रिजर्व बैंक ने ये नहीं साफ किया कि ब्याज दरों में कटौती कब से शुरू होगी। लेकिन इतना जरूर आश्वासन जरूर दिया कि आर्थिक तंत्र में नकदी की तंगी नहीं होने दी जाएगी।

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

पेट्रलो हो सकता है 2 रुपए तक सस्ता

पेट्रोल की ऊंची कीमतों से एकबार फिर लोगों को राहत मिलने वाली है। गुरुवार से पेट्रोल एक बार फिर सस्ता हो सकता है। पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर 2 रुपए तक कटौती हो सकती है।

पेट्रोल की कीमतों में दो हफ्ते में लगातार दूसरी बार ऐसी कटौती होगी। क्योंकि पिछले पखवाड़े की समीक्षा के बाद सिंगापुर में कच्चे तेल के भाव में गिरावट आई है। इससे पेट्रोल के दाम घटाए जा सकते हैं। भारतीय तेल मार्केटिंग कंपनियां सिंगापुर में कच्चे तेल के भाव के आधार पर ही कीमत तय करते हैं। मौजूदा भाव पर सरकारी तेल कंपनियों को तेल पर औसतन 8 डॉलर प्रति बैरल का मार्जिन मिल रहा है। जो कि मध्य नवंबर में यह 5.74 डॉलर प्रति बैरल था। मंगलवार को ब्रेंट क्रूड ऑयल यानी कच्चा तेल का भाव मामूली बढ़त के साथ 109.87 डॉलर प्रति बैरल चल रहा था।

घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव पर निर्भर करती है। हालांकि रुपए में गिरावट की वजह से पेट्रोल की कीमतों में कमी का पूरा लाभ ग्राहकों को नहीं मिल पा रहा है। अगर रुपए में मज़बूती आ जाए तो पेट्रोल की कीमतें और सस्ती हो सकती हैं। लगातार महंगे होते जा रहे पेट्रोल पर विपक्षी दलों ने विरोध जताया था। यूपीए के सहयोगी दलों ने भी पेट्रोल की बढ़ी कीमतों के रोलबैक के लिए दबाव बनाया था। पेट्रोल को नियंत्रण-मुक्त किए जाने के बाद पहली बार 16 नवंबर को इसके दाम में 2.22 रुपए प्रति लीटर की कमी की गई थी। कई राज्यों में होने वाले चुनावों का ही असर है कि सरकार बार-बार पेट्रोल की कीमतों में कमी की सोच रही है। नहीं तो कोई भी बहाना बना कर इसे टाल देती।

शनिवार, 26 नवंबर 2011

भारत में खुलेंगे दुनिया के नामी स्टोर

सिंगल ब्रांड रिटेल में एफडीआई की सीमा 51 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी करने के बाद दुनियाभर की कंपनियों में भारत में अपने स्टोर खोलने की होड़ लग चुकी है। आइए देखते हैं आने वाले दिनों में कौन-कौन से अमेरिकी ब्रांड भारतीय बाजारों में सबसे पहले नज़र आ सकते हैं।
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बाजार में अपना कारोबार करने के लिए कई अमेरिकी कंपनियां गिद्द की तरह अपनी नज़र गड़ाए हुईं थी। सिंगल ब्रांड में 100 फीसदी एफडीआई के बाद अब इन अमेरिकी कंपनियां का भारत में घुसना आसान हो जाएगा। आइए देखते हैं ऐसी पांच अमेरिकी कंपनियां जिनका शोरूम जल्द ही आपको देश के कोने-कोने में नज़र आ सकती हैं।
इन्हीं दिग्गज कंपनियों में एक है बर्गर किंग...ये एक अमेरिकन कंपनी है जिसे लोग बीके के नाम से भी जानते हैं...फ्लोरिडा स्थित इस फास्टफूड कंपनी का ग्लोबल चेन है..यानी कि दुनिया के कई देशों में इस कंपनी का कारोबार है..फ्लोरिडा की एक रेस्टोरेंट चेन ने इस कंपनी की शुरूआत 1953 में की थी।
अमेरिका की ही एक कंपनी है टिफ्फेनीज...जो अपना स्टोर भारत में खोलने को बेचैन है...टिफ्फेनीज एक ज्वैलरी और सिल्वरवेयर कंपनी है..इसकी स्थापना 1837 में न्यूयॉर्क में चार्ल्स ल्युइस टिफ्फेनी ने की थी।
तीसरी अमेरिकी कंपनी है विक्टोरियाज सीक्रेट जो कि भारत में अपना स्टोर खोलने को तैयार है....इस कंपनी वुमेन वीयर, लिंजरीज और व्यूटी प्रोडक्ट बनाती है..2006 में इस कंपनी ने 5 अरब डॉलर की बिक्री की थी साथ ही इस कंपनी का ऑपरेटिंग इनकम थी 1 अरब डॉलर।
अमेरिकन एपरल चौथी अमेरिकी कंपनी है जो भारत में अपना स्टोर खोलने के लिए बेताब है...ये कंपनी कपड़े का कारोबार करती है..जिसमें होलसेल, रिटले, डिजाइन, मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग शामिल है।
पांचवी अमेरिकी कंपनी है..ओल्ड नेवी...कैलफोर्निया की ये कंपी भी कपड़े का कारोबार करती है।
यूरोप और अमेरिका के कर्ज संकट में फंसने के बाद इन कंपनियों की कमाई पर असर पड़ा है। ऐसे में इनके लिए भारती बाजार का खुलना राहत की खबर है। वहीं भारती कंपनियों को इन कंपनियों के सामने टिकने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।

दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बाजार यानि कि भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए इटली की कई कंपनियां बेताब हैं। आइए देखते हैं ऐसी ही कुछ बड़ी इटैलियन कंपनियों को जो आने वाले दिनों में भारत के मेगामॉल और बड़े शहरों में दिखाई दे सकते हैं। इटली की कई कंपनियां दुनियाभर में अपने जलवे बिखेर रही हैं। इन्हीं में से कुछ इटली के दिग्गज ब्रांड अब भारत में दस्तक देने को तैयार है।
रोक्कोबारोक्को एक फैशन स्टोर चेन है। इस ब्रांड के तहत फैशनेवल कपड़े, हाईएंड एसेसरीज और परफ्यूम का कारोबार होता है। महिलाओं, बच्चों और पुरुषों के लिए रोक्कोबारोक्को के परफ्यूम काफी पॉपुलर हैं।
इटली के वारेसे स्थित फैशन ब्रांड मिशोनी भारत में अपना स्टोर चेन खोलने को तैयार बैठा है। मिशोनी को नाइटवेयर में महारत हासिल है। अलग-अलग फेबरिक्स और अपने कलरफुल पैटर्न की वजह से मिशोनी का दुनियाभर में नाम है।
इटली का ही एक फैशन हाउस है ब्लुफिन एसपीए। जो अपना स्टोर भारत में खोलने को लेकर काफी बेचैन दिख रहा है। ये कंपनी ब्लूमरीन ब्रांड के नाम से अपना कारोबार करती है। ब्लू मरीन वैसी महिलाओं के लिए अपना फैशन प्रोडक्ट बनाती है जो किसी कपड़े छोटा नहीं मानती और किसी डायमंड को बड़ा नहीं समझती। यानी कि इलीट क्लास के फैशन एसेसरीज का बिजनसे है इस कंपनी का।

भारतीय बाजार में सिंगल ब्रांड के लिए अब किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं रह गई है। क्योंकि कैबिनेट ने सिंगल ब्रांड में एफडीआई की सीमा 51 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी है। ऐसे में इटली की कई दिग्गज कंपनियां भारत बाजार को भुनाने की कोशिश में लग चुकी हैं।

भारत के विशाल बाजार देखकर कई सालों से दुनियाभर की कंपनियों का मन ललचा रहा था। लेकिन केवल 51 फीसदी एफडीआई के चलते वो भारत का रुख नहीं कर रहीं थी। लेकिन अब 100 फीसदी एफडीआई पर मुहर लगने के बाद दुनियाभर के कई दिग्गज ब्रांड भारत में अपने स्टोर खोलने की तैयारी में अपनी कमर कस चुके हैं।

अमेरिका और यूरोप की कई कंपनियों को एफडीआई पर भारतीय कैबिनेट के फैसले से राहत मिली है। क्योंकि इन कंपनियों की नज़र भारतीय बाजार पर कई वर्षों से टिकी थी। अपने-अपने ब्रांड के प्रति जुनून की हद तक जाने को तैयार इन कंपनियों को अब भारत में आने के लिए किसी दूसरे ब्रांड से गठज़ोर नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि सिंगल ब्रांड में 100 फीसदी एफडीआई की मंजूरी मिल चुकी है। ऐसे में फ्रांस, स्वीडन, स्पेन सहित दुनियाभर के कई ब्रांड भारत का रुख करने वाली हैं। और इन ब्रांड में शामिल हैं दुनिया के कई दिग्गज़ फैशन डिज़ायनर के स्टोर्स।
इमैन्युअल अंगारो फ्रांस का एक ऐसा फैशन ब्रांड है जो कि दुनियाभर में छाया हुआ है। फैशन डिज़ायनर इमैन्युअल अंगारो के नाम पर ही इस ब्रांड का नाम रखा गया है। और ये ब्रांड जल्द ही भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को बेचैन है।
भारत में अपना पैर जमाने के लिए लाइन में खड़ी है स्वीडन की एक कंपनी आईकिया...ये दुनिया की सबसे बड़ी फर्निचर रिटेलर कंपनी है...ये कंपनी कोई भी फर्निचर ऑन डिमांड असेंबल कर के ग्राहकों को मुहैया करा देती है...इस कंपनी की नींव 1947 में 17 साल के इंगवर कंप्राड ने रखी थी।
स्पेन की क्लोथिंग और एसेसरीज ब्रांड है ज़ारा..जो कि अपना स्टोर भारत में खोलने वाली है...स्पने की के इस नामी ब्रांड के जलवे दुनियाभर में हैं...1975 में इस ब्रांड की नींव डाली थी एमेन्सियो ऑर्टेगा ने...फिलहाल इस ब्रांड की उपस्थिति दुनिया के करीब 74 देशों में है।

2006 में भारत सरकार ने सिंगल ब्रांड में जब 51 फीसदी की एफडीआई सीमा तय की तो दुनिया के कुछ ब्रांड तो भारत जरूर आए। लेकिन ज्यादातर ब्रांड भारत से बचते रहे। क्योंकि उन्हें अपने काम में कोई भागीदार बनाना गवारा नहीं था। आईकिया और ज़ारा भी इसी इंतज़ार में बैठी रही। और अब इन कंपनियों में भारत का रुख करने की हलचल तेज हो गई है।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

मल्टीब्रांड रिटेल में 51% एफडीआई पर कैबिनेट की मुहर

सहयोगी दलों के तमाम विरोध के बावजूद कैबिनेट ने मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की मंज़ूरी दे दी है। साथ ही सिंगल ब्रांड में एफडीआई की सीमा 51 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी है।

2 वर्षों के लंबे इंतज़ार के बाद यूपीए सरकार ने रिटेल क्षेत्र सुधार लाने की मक़सद से एफडीआई की इज़ाजत दी है। कैबिनेट ने गुरुवार को एक लंबे दौर की बैठक के बाद रिटेल सेक्टर में एफडीआई पर मुहर लगा दी है। इसके साथ ही सिंगल ब्रांड में एफडीआई की सीम 51 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी है। यानी कि अब टैगह्युअर, एडीडैस, नाईकी जैसी कंपनियों को भारत में अपने स्टोर खोलने के लिए किसी के सहयोग की ज़रूरत नहीं होगी। साथ ही मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की मंज़ूरी के बाद वॉलमार्ट और टेस्को जैसे दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में अपना रिटेल स्टोर खोल पाएंगे।

कैश एंड कैरी कारोबार में 100 फीसदी एफडीआई निवेश की अनुमति देश में पहले से ही है। यानी की सामानों को लाने ले जाने से लेकर उसके स्टोरेज और बिक्री तक के कारोबार पर विदेशी कंपनियों का प्रभुत्व होगा। और देखते ही देखते आने वाले कुछ सालों में भारतीय रिटेल बाजार पर पूरी तरह से विदेशी कंपनियां छा जाएंगी। इसकी मार पड़ेगी गली नुक्कड़ के रिटले स्टोर्स पर। जो इन दिग्गज कंपनियों के सामने ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएंगी। और करोड़ों लोग धीरे-धीरे बेरोजग़ार हो जाएंगे।

बुधवार, 23 नवंबर 2011

मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई पर बैठक

कल होने वाली कैबिनेट की बैठक में मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी मिल सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी और सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी एफडीआई को मंज़ूरी मिल सकती है।

यूपीए सरकार ने काफी सालों बाद भारत के रिटेल क्षेत्र सुधार लाने के लिए कमर कस ली है। कल होने वाली कैबिनेट की बैठक में रिटेल क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश यानी एफडीआई की सीमा से जुड़े प्रस्तावों को मंजूरी मिल सकती है।
ऐसा अनुमान है कि कैबिनेट सिंगल ब्रांड में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दे सकती है। फिलहाल सिंगल ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की इज़ाजत है। वहीं मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई निवेश की मंजूरी मिलने की संभावना है। देश में वैसे तो होलसेल कैश एंड कैरी कारोबार में 100 फीसदी एफडीआई निवेश की अनुमति है। रिटले में एफडीआई की मंज़ूरी मिलने के बाद वॉलमार्ट और टेस्को जैसे दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में अपना रिटेल स्टोर खोल पाएंगे।

मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई पर वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंदर आने वाले औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग यानी डीआईपीपी ने इस संबध में अपना अंतिम सुझाव पिछले सप्ताह ही कैबिनेट के पास भेज दिया था। अलग-अलग मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद विभाग ने अपना सुझाव तैयार किया था। विपक्षी दलों के विरोध के कारण मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई पर फैसला पिछले 2 साल से अटका हुआ है।

टाटा ग्रुप को चलाएंगे मिस्त्री

टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा और उनका उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री

वर्षों की मशक्कत के बाद आखिरकार रतन टाटा का उत्तराधिकारी मिल ही गया। साइरस मिस्त्री संभालेंगे टाटा के एम्पायर को। मिस्त्री ने लंदन बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की है और फिलहाल शपूरजी पालोनजी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।

टाटा सन्स ने रतन टाटा के उत्तराधिकारी को ढ़ूंढ निकाला है। साइरस मिस्त्री अब टाटा ग्रुप के कारोबार को संभालेंगे। फिलहाल मिस्त्री को टाटा सन्स का डिप्टी चेयरमैन नियुक्त किया गया है। लेकिन साल 2012 के दिसंबर में जब टाटा सन्स के चेयरमैन रतन टाटा सेवानिवृत होंगे उसके बाद उनका स्थान साइरस मिस्त्री लेंगे। साइरस पालोनजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे हैं। पालोनजी मिस्त्री के पास टाटा सन्स के सबसे ज़्यादा शेयर हैं। रतन टाटा ने कहा है कि साइरस मिस्त्री इस पद के लिए बेहतरीन विकल्प हैं। मिस्त्री टाटा सन्स के बोर्ड में अगस्त 2006 से हैं।

रतन टाटा ने कहा कि मिस्त्री के काम ने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। सेलेक्शन कमेटी ने एकमत से साइरस मिस्त्री के नाम पर हामी भरी है। साइरस मिस्त्री के परिवार का टाटा सन्स में करीब 16.5 फीसदी की हिस्सेदारी है। रतन टाटा ने टाटा ग्रुप को एक अलग मुकाम तक पहुंचाया है। देश और दुनिया में टाटा के झंडे बुलंद किए हैं। लैंगरोवर, जगुआर, कोरस सहित एक के बाद एक कई विदेशी कंपनियों को खरीद लिया। दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो को हक़ीकत बनाकर दुनिया को रतन टाटा ने हतप्रभ कर दिया। एक साल के बाद जब साइरस मिस्त्री पूरी तरह से टाटा ग्रुप का कारोबार संभालेंगे उसके बाद उनकी असली काबिलियत का पता चलेगा। रतन टाटा की देश ही नहीं दुनिया में एक अलग पहचान है।

सेंसेक्स साढ़े पंद्रह हज़ार से नीचे

शेयर बाजार में आज मच गया हाहाकार। चौतरफा बिकवाली से बाजार 2 साल के अपने निचले स्तर पर पहुंच गया। हालांकि आखिरी कारोबार में बाजार में थोड़ा सुधार देखने को मिला।

शेयर बाजार में कारोबार शुरू होते ही बिकवाली हावी हो गई। जैसे जैसे कारोबार आगे बढ़ा बिकवाली भी बढ़ती गई। दिनभर के कारोबार के दौरान निफ्टी 4650 के नीचे पहुंच गया। वहीं सेंसेक्स भी 15500 के नीचे लुढ़क गया। हालांकि आखिरी कारोबार में निचले स्तर पर कुछ खरीदारी हुई। जिससे सेंसेक्स 365 अंक गिरकर 15699 पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी 105 अंक लुढ़ककर 4706 पर बंद हुआ। बैंक, रियल्टी और ऑयल एंड गैस शेयरों में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई। वहीं जेपी एसोसिएट्स के शेयर करीब 5 फीसदी लुढ़क गए।

यूरोप में कर्ज संकट का हल नहीं निकलने और रुपये में लगातार उतार-चढ़ाव की वजह से बाजार में बिकवाली देखी गई। ऐसे माहौल में फिलहाल छोटे निवेशकों को बाजार से दूर ही रहना चाहिए।

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढ़का रुपया

अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपए की कीमत अबतक के अपने सबसे निचले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। दिनभर के कारोबार के दौरान आज एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 52 रुए 73 पैसे तक जा पहुंची। रुपए की कमज़ोरी की वजह से कंज्युमर्स ड्यूरेबल्स और आयातित खाने के तेल महंगे हो चुके हैं।

रुपये के लगातार कमज़ोर होने से तेल का आयात और महंगा होता जा रहा है। साथ ही इससे महंगाई और वित्तीय घाटे के और अधिक बढ़ने का अंदेशा पैदा हो गया है। पिछले चार महीने में रुपए में 16 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है। जबकि इसी साल जनवरी में एक अमेरिकी डॉलर मिल रहा था 45 रुपए से भी कम के भाव में। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय अनिश्चितता के चलते रुपये में कमज़ोरी आई है और भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से कोई खास अंतर नहीं हो नहीं देखने को मिलेगा।

रुपए के कमज़ोर होने का असर दिखने लगा है कई कंपनियों ने कंज्युमर ड्यूरेबल्स के दाम बढ़ा दिए। आयातित खाने के तेल भी महंगे हो चुके हैं। साथ ही आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर भी इसका असर देखने मिल सकता है। क्योंकि डॉलर के मुक़ाबले 1 रुपए तक की कमज़ोरी से तेल मार्केटिंग कंपनियों को करीब 8000 करोड़ रुपए ज्यादा भुगतान करना पड़ता है। लेकिन सरकार खुद-ब-खुद रुपए में सुधार की उम्मीद लगाए बैठी है।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

सेंसेक्स 16 हज़ार के नीचे, निफ्टी 4800 के नीचे

भारतीय शेयर बाजार के लिए आज का दिन ब्लैक मंडे साबित हुआ। जबरदस्त बिकवाली के दबाव में बाजार में हाहाकार मच गया। सभी सेक्टर गिरावट से साथ बंद हुए। सेंसेक्स 16000 और निफ्टी 4800 से नीचे लुढ़क गया।

शुरुआती कारोबार से ही बाजार में बिकवाली शुरू हो गई। और जैसे-जैसे कारोबार आगे बढ़ा बिकवाली बढ़ती गई। बाजार बंद होने के समय सेंसेक्स 425 अंकों की भारी गिरावट के साथ 15946 पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी 127 अंक लुढ़ककर 4778 पर बंद हुआ। एक भी सेक्टर में बढ़त नहीं देखने को मिली। बीएसई का मेटल इंडेक्स 3.5 फीसदी गिरकर बंद हुआ। जबकि बैंक, रियल्टी, ऑटो, पावर और ऑयल एंड गैस सूचकांक 2.5 से 3 फीसदी लुढ़ककर बंद हुआ।

सेसा गोवा और सेल के शेयर 6 फीसदी से ज्यादा गिरकर बंद हुए। केयर्न इंडिया, टाटा मोटर्स और स्टरलाइट इंडस्ट्रीज के शेयर 5 फीसदी से ज्यादा गोता लगाकर बंद हुए। डॉलर के मुक़ाबले रुपए के लगातार कमज़ोर होने और दुनियाभर के बाजारों में आई गिरावट का असर भारतीय शेयर बाजार पर देखने को मिला। 1 अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले रुपया 32 महीनों के अपने निचले स्तर यानी कि 52 के पार जा पहुंचा। ऐसे में अनिश्चितता भले इस माहौल में फिलहाल छोटे निवेशकों को बाजार से दूर ही रहना चाहिए।

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

रुपए की कमज़ोरी से हिला शेयर बाजार

रुपए की कमज़ोरी से हिल गया शेयर बाजार। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया करीब तीन साल के अपने निचले स्तर पर आ चुका है। इससे शेयर बाजार में कई कंपनियों के शेयर अबतक के अपने निचले स्तर पर जा पहुंचा है। वहीं करीब साढ़े तीन सौ कंपनियों के शेयरों को गिरने से बचाने के लिए लोअर सर्किट लगाना पड़ा।

डॉलर के मुकाबले रुपया दिन ब दिन लुढ़कता जा रहा है। इससे ना केवल भारत में होने वाला आयात महंगा हो रहा है बल्कि शेयर बाजार में लिस्टेड कई कंपनियों के पसीने छूट रहे हैं। क्योंकि उन कंपनियों ने डॉलर में कर्ज ले रखे हैं। रुपए के कमज़ोर होने से ना केवल ब्याज बढ़ता है बल्कि कर्ज का बोझ भी बढ़ जाता है।

बीएसई में लिस्टेड करीब 137 कंपनियों के शेयर के भाव अबतक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचे। एनडीटीवी, नेटवर्क 18 और इंडियाबुल्स रियल एस्टेट के शेयर भी रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गए। इसके साथ ही 343 कंपनियों के शेयरों में इतनी गिरावट हुई कि लोअर सर्किट लगाकर उन कंपनियों के शेयरों में कारोबार को रोकना पड़ा। लोअर सर्किट लगने वाले शेयरों में शामिल हैं पार्श्वनाथ डेवलपर्स, पीपावाव डिफेंस, एसकेएस माइक्रोफाइनेंस, और क्वालिटी डेयरी। सबसे ज्यादा गिरने वाले शेयरों में अधिकतर मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर हैं।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का लुढ़कना जारी है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया 45 पैसे लुढ़ककर 32 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। जिससे एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 51 रुपए 34 पैसे पर जा पहुंची है। रुपए में गिरावट का असर भारत के आयात में भी देखने को मिल रहा है। खासकर कच्चे तेल के आयात पर। क्योंकि भारत अपनी जरूरत का करीब 70 फीसदी तेल आयात करता है। और रुपए में कुछ पैसे की गिरावट के चलते तेल मार्केटिंग कंपनियों को लाखों रुपए ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है। 31 मार्च 2009 के बाद पहली बार रुपया 51 के पार गया है। इस साल जनवरी में एक डॉलर की कीमत 45 रुपए से कम थी। मार्च 2009 में ही रुपए ने डॉलर के मुकाबले 52 रुपए 18 पैसे का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ था। एक ओर चीन की मुद्रा यूआन जहां मजबूत हो रही वहीं रुपए में लगातार गिरावट जारी है। जो कि एक चिंता की बात है। रुपया दुनिया में सबसे ज्यादा लुढ़कने वाली चौथी करेंसी है। जबकि एशिया में सबसे ज्यादा रुपए में ही कमज़ोरी देखी जा रही है।

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

डीजीसीए हवाई किरायों पर रखेगा नज़र

पिछले दो हफ्तों से हवाई किरायों में हो रहे भारी बढ़ोतरी पर एविएशन सेक्टर के रेग्युलेटर डीजीसीए ने एयरलाइंस कंपनियों को चेतावनी दी है। डीजीसीए ने कहा है कि एयरलाइंस कंपनियां एक निश्चित सीमा से ज्यादा हवाई किराए में बढ़ोतरी ना करे। हालांकि डीजीसीए ने ये साफ नहीं किया है कि ऐसा करने पर डीजीसीए क्या कार्रवाई करेगी।

किंगफिशर एयरलाइंस की सैकड़ों उड़ानें रद्द होने के बाद देश की दूसरी एयरलाइंस कंपनियों ने हवाई किराए मनमाने ढ़ंग के बाढाने शुरू कर दिए हैं। इसको गंभीरता से लेते हुए एविएशन सेक्टर के रग्युलेटर डीजीसीए ने एयरलाइंस कंपनियों को चेतावनी दी है। डीजीसीए ने कहा है कि एयरलाइंस कंपनियां एक सीमा तक ही किराए बढ़ा सकती हैं। क्योंकि हमने किरायों की सीमा निर्धारित कर रखी है। और उन सीमाओं के अनुसार एयरलाइंस कंपनियां फिलहाल उच्चतम निर्धारित किराए पर टिकट बेच रही हैं।

कर्ज में डूबी देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी किंगफिशर पिछले दो हफ्ते में 200 से ज्यादा उड़ानें रदद् चुकी है। जिसका फायदा उठाकर एयर इंडिया, जेट एयरवेज सहित दूसरी एयरलाइंस कंपनियों ने किराए में अचानक 20 से 30 फीसदी तक बढ़ोतरी कर दी है। इससे हवाई यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

इसके बावाजूद डीजीसीए ने ये नहीं बताया कि किराए की क्या सीमा है। साथ ही किराए बढ़ा चुकी एयरलाइंस कंपनियों पर वो क्या कार्रवाई करेगा। इससे यही लगता है कि सिर्फ चेतावनी देकर डीजीसीए ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। और यात्रियों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। इसके अलावा बिना नोटिस दिए किंगफिशर एयरलाइंस ने जो उड़ानें रद्द की हैं उसपर डीजीसीए की कार्रवाई पर पूछे गए सवालों पर भी डीजीसीए बगलें झांकती नज़र आई। डीजीसीए ने ये पूरा मामला सरकार की झोली में डालते हुए कहा कि इसका फैसला सरकार करेगी।

बुधवार, 16 नवंबर 2011

रुपए की गिरावट पर आरबीआई की नज़र

बढ़ती महंगाई के बाद अब रुपए की कमज़ोरी ने सरकार की नीदें उड़ा दी है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 32 महीनों के अपने निचले स्तर पर आ चुका है। इससे भारत में होने वाला आयात काफी महंगा हो गया है।

वित्त मंत्री मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लगातार कमज़ोर होते जा रहे रुपए पर चिंता जताते हुए कहा है कि रुपए की वैल्यू पर आरबीआई यानी रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया नज़र बनाए हुए है। आरबीआई ज़रुरत पड़ेने पर रुपए की मज़बूती के लिए कमद उठाएगा। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का लुढ़कना जारी है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया 24 पैसे लुढ़ककर 32 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। जिससे एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 50 रुपए 91 पैसे पर जा पहुंची है। सबसे ज्यादा लुढ़कने वाली करेंसी के मामले में रुपया दुनिया में चौथे पायदान पर आ चुका है। जबकि एशियाई करेंसी में सबसे ज्यादा कमज़ोरी रुपए में ही दर्ज की जा रही है।

रुपए में गिरावट का असर भारत के आयात पर देखने को मिल रहा है। खासकर कच्चा तेल के आयात पर। क्योंकि भारत अपनी जरूरत का करीब 70 फीसदी तेल आयात करता है। और रुपए में कुछ पैसे की गिरावट के चलते तेल मार्केटिंग कंपनियों को लाखों रुपए ज्यादा भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चा तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा भारत को कम हो पाता है।

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

2.22 रुपए प्रति लीटर सस्ता हुआ पेट्रोल

करीब तीन साल में पहली बार पेट्रोल की कीमतों में कमी की गई है। पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर दो रुपए बाइस पैसे की कमी की गई है। यूपीए के सहयोगी दलों के दबाव में ये फैसला लिया गया है। नई दरें आज रात बारह बजे के बाद लागू होंगी।

पेट्रोल के ग्राहकों को करीब 33 महीनों में पहली बार राहत मिली है। तेल मार्केटिंग कंपनियां बीपीसीएल, एचपीसीएल और आईओसी ने तेल की कीमतों में प्रति लीटर 2 रुपए 22 पैसे की कमी की है। दिल्ली में पेट्रोल अब प्रति लीटर 66 रुपए 42 पैसे में मिलेंगी। वहीं कोलकाता में कीमत होगी 70 रुपए 93 पैसे। जबकि मुंबई में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत होगी 71 रुपए 59 पैसे। और चेन्नई में प्रति लीटर पेट्रेल मिलेगा 70 रुपए 51 पैसे में।

हालांकि जिस अनुपात में पेट्रोल की कीमतें कम की गई हैं उस अनुपात में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी नहीं आई हैं। इससे ऐसा लगता है कि लगातार बढ़ रहे पेट्रोल की कीमतों से देशभर में फैल रहे लोगों के असंतोष और सहयोगी दलों के दबाव में आकर सरकार को ये फैसला लेना पड़ा है। हालांकि सरकार के इस फैसले से लोगों को महंगाई से थोड़ी राहत ज़रूर मिलेगी।

आइए एक नज़र डालते हैं पुरानी और नई कीमतों पर-

--------------पहले-----------------अब
दिल्ली----------68.64रु-------------64.42रु
कोलकाता-------73.15रु--------------70.93रु
मुंबई----------73.81रु--------------71.59रु
चेन्नई---------72.73रु---------------70.51रु

माल्या की परेशानी देश की परेशानी!?

अपनी परेशानी को देश की परेशानी बनाने की कोशिश लगे हैं किंगफिशर के चेयरमैन विजय माल्या। सीधे तौर पर वो सरकार से बेलआउट की मांग भले ही नहीं कर रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार और केंद्र सरकार सहित बैंकों से उन्हें बहुत कुछ चाहिए।

अगर नुकसान की बात करें तो किंगफिशर एयरलाइंस के मुक़ाबले जेट एयरवेज और स्पाइस जेट जैसे एयरलाइंस को भी काफी नुकसान हो रहा है। लेकिन ये एयरलाइंस किंगफिशर की तरह हायतौबा नहीं मचा रहे। किंगफिशर ने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींच लिया है। एक तरफ तो विजय माल्या कह रहे हैं कि उन्हें ना तो टैक्स पेयर्स के पैसे चाहिए और ना ही उन्होंने बेलआउट की कोई मांग की है। लेकिन दूसरी तर टैक्स में कमी की बात भी करते हैं।

पिछली मंदी में भी बेटआउट के तहत कई इंडस्ट्री के लिए टैक्स में कमी की गई थी। विजय माल्या भी वहीं मांग कर रहे हैं लेकिन इसे स्वीकार नहीं करना चाह रहे हैं। माल्या ने कहा कि उन्होंने घाटे में होते हुए भी यात्रियों को परेशानी नहीं होने दी।

अगर माल्या को यात्रियों की इतनी चिंता थी तो उन्हें डीजीसीए यानी डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी। जबकि कोई भी उड़ान रद्द करने या रुट बदलने के करीब हफ्ते भर पहले एयरलाइंस को ये जानकारी डीजीसीए को देनी होती है। माल्या को बेलआउट नहीं पर केंद्र और राज्य सरकारों से टैक्स में छूट चाहिए। बैंकों से वर्किंग कैपिटल चाहिए। एयरइंडिया की मांगों को लेकर और 42 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज पर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। लेकिन बिना बेलआउट मांगे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि किंगफिशर की समस्या पर वो विमानन मंत्री से बात करेंगे। ऐसे में दाल में कुछ काला लगना लाजिमी है।

माल्या को चाहिए केवल प्रॉफिट रुट

किंग ऑफ गुड टाइम्स विजय माल्या ने घाटे वाले रुटों पर उड़ान बंद करने का ऐलान कर दिया है। माल्या ने कहा है कि वो जानबूझकर घाटा नहीं सहेंगे। साथ ही माल्या ने अपनी बजट एयरलाइंस को बंद करने की घोषणा कर दी है।

अगर आप सस्ते में किंगफिशर एयरलाइंस में हवाई सफर करने की सोच रहे हैं तो अब ये संभव नहीं हो पाएगा। साथ ही आने वाले दिनों में सभी रूटों पर आपको किंगफिशर एयरलाइंस की सेवा नहीं मिलेगी। क्येंकि जहां प्रॉफिट नहीं वहां सर्विस नहीं की नीति पर उड़ने का फैसला किंगफिशर एयरलाइंस ने कर लिया है।किसी भी बिजनेस का अंतिम लक्ष्य होता है प्रॉफिट। विजय माल्या ने भी यही सोचकर सर्विस की शुरूआत की थी। लेकिन पिछले पांच सालों में उन्होंने इसका स्वाद नहीं चखा। वजह साफ है कमाई से ज्यादा अनाप शनाप के खर्चे। क्योंकि कंपनी खुद मानती है कि देश के एविएशन सेक्टर के एवरेज लोड फैक्टर से ज्यादा किंगफिशर एयरलाइंस का लोड फैक्टर रहा है।

जब लोड फैक्टर सबसे ज्यादा है यानी सबसे ज्यादा यात्री किंगफिशर को चुन रहे हैं फिर नुकसान क्यों हो रहा है। इसपर कंपनी को गौर करने की ज़रूरत है। कंपनी का नुकासन पिछले साल की दूसरी तिमाही के मुकाबले इस साल की दूसरी तिमाही में बढ़कर दोगुना हो चुका है। साथ ही आम लोगों को हवाई सफर कराने वाले डेक्कन एयर को भी विजय माल्या ने खरीद लिया है। लेकिन अब वो उन फ्लाइट्स पर आम लोगों को सफर नहीं कराएंगे। क्योंकि अब उन फ्लाईट्स को आम लोगों की बजाय खास लोगों के लिए तैयार किया जा रहा है।

शनिवार, 12 नवंबर 2011

किंगफिशर के लिए बात करेंगे पीएम

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि किंगफिशर को आर्थिक संकट से उबारने के लिए विमानन मंत्री से बात करेंगे। वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही किंगफिशर एयरलाइंस ने राहत के लिए सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। किंगफिशर एयरलाइंस पर पर हजारों करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किंगफिशर एयरलाइंस की समस्या पर विमानन मंत्री से बात करने का आश्वासन दिया है। इससे पहले किंगफिशर के मालिक विजय माल्या ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और एविएशन मंत्री वायलार रवि से कम ब्याज दरों पर बैंकों के जरिए मदद की गुहार लगाई थी। इसके अलावा किंगफिशर ने वे सभी रियायतों की मांग की थी जो एयर इंडिया को मिल रही हैं। हालांकि विमानन मंत्रालय ने कहा कि वो किसी एयरलाइंस को बेलआउट पैकेज नहीं दे सकते। लेकिन विमानन मंत्री ने कहा है कि सरकार नहीं चाहती थी कि किंगफिशर के विमान बंद हों। लिहाजा किंगफिशर की मदद के लिए वित्त मंत्रालय से अपील की गई है। ऐसे में आज प्रधानमंत्री के आश्वासन के बाद ऐसा लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से सोच रही है।

उधर किंगफिशर एयरलाइंस ने लगातार छठे दिन उड़ानों को रद्द करने का सिलसिला जारी रखा। शनिवार को करीब 40 उड़ाने रद्द की गईं जिसमें 9 मुबई से उड़ान भरने वाली थी और 8 चेन्नई से। खस्ता वित्तीय हालत की वजह से कंपनी के शेयर अबतक के निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं। कर्ज संकट की वजह से किंगफिशर एयरलाइंस के शेयर जनवरी से अबतक करीब 80 फीसदी लुढ़क चुके हैं। ऐसे में विजय माल्या ने कहा कि नुकसान वाले रूट्स पर उड़ान भरना ज़रूरी नहीं है। और इसीलिए उड़ानें रद्द की जा रही हैं। लेकिन इसकी खबर डीजीसीए को नहीं दी गई। इस वजह से हवाई यात्रियों को काफी परेशानी हो रही है। साथ ही उन्हें 20 से 40 फीसदी ज्यादा कीमत पर दूसरे एयरलाइंस की टिकटें खरीदने को मज़बूर होना पड़ रहा है।

क्यों लहूलुहान हैं भारतीय एयरलाइंस कंपनियां

देश के एविएशन इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। किंगफिशर एयरलाइंस के साथ ही देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस जेट एयरवेज का भी घाटा बढ़ता जा रहा है। सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया सहित देश की कई एयरलाइंस कंपनियां कर्ज से तबाह होने के करीब पहुंच चुके हैं।

एयलाइंस कंपनियां किराए में कितनी भी बढ़ोतरी कर लें लेकिन उनकी परेशानियां थमने वाली नहीं हैं। जानकारों के मुताबिक आने वाले दिनों में एविएशन सेक्टर के लिए और बुरे रहने वाले हैं। पूरे एविएशन सेक्टर की माली हालत इन दिनों बिगड़ती जा रही है। वहीं इसमें सुधार का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। किंगफिशर एयरलाइंस की हालत यहां तक पहुंच गई है कि एयरक्राफ्ट के लिए तेल खरीदने तक के पैसे नहीं रह गए हैं। वहीं देश में सबसे ज्यादा यात्रियों को लेकर उड़ान भरने वाले जेट एयरवेज की भी हालत पतली होती दिखाई दे रही है। जेट एयरवेज ने कहा है कि खाली होती तिजोरी को बचाने करीब 1 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकालना होगा। एयर इंडिया, जेट एयरवेज और किंगफिशर एयरलाइंस पर नजर डालें तो इन पर कुल मिलाकर 60 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा का कर्ज है। तो दूसरी ओर बढ़ती लागत के बावजूद कंपनियां किराया नहीं बढ़ाने को मजबूर हैं क्योंकि उन्हें गोएयर जैसे बजट एयरलाइंस से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। कड़ी प्रतिस्पर्धा की वजह से बढ़ाए गए किराए पर स्थिर नहीं रह पाते हैं बड़े एयरलाइंस। अनेकों बार कई रूट पर कंपनियों को लागत के 15 से 50 फीसदी तक कम कीमत पर टिकट बेचनी पड़ती है।

एयरलाइंस कंपनियों की सबसे बड़ी मुसीबत है एटीएफ यानी हवाई ईंधन की बढ़ती कीमत। जो कि एयरलाइंस की कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट का 40 फीसदी हिस्सा होता है। हवाई ईंधन 1 साल में करीब 45 फीसदी महंगा हो चुका है। इस हालात से निपटने के लिए कर्ज में डूबी कंपनियों के कुछ ज्यादा कदम उठाने की भी ज्यादा गुंजाइश नहीं है।

अकेले एयर इंडिया पर 42570 करोड़ रुपये का कर्ज है। जेटएयरवेज पर 13400 करोड़ रुएये और किंगफिशर पर करीब 7 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं एटीएफ पर राज्यों का टैक्स पूरी दुनिया में बांग्लादेश के बाद सबसे ज्यादा 24 फीसदी है। साथ ही एयरक्राफ्ट के रखरखाव पर कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट का 13 फीसदी खर्च करना पड़ता है। क्योंकि भारी टैक्स की वजह से देश में मैंटिनेंस और रिपेयरिंग सेंटर काफी कम और महंगे हैं।

चौतरफा परेशानियों का सामना कर रही एविएशन इंडस्ट्री को फिलहाल इससे उबरने का रास्ता नहीं दिख रहा है। और शायद यही कारण है कि एफआईआई यानी विदेशी संस्थागत निवेशक भी इनसे हाथ खींचने लगे हैं। जेट एयरवेज में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 5.7 फीसदी से घटकर 4.6 फीसदी पर पहुंच गई है। वहीं किंगफिशर एयरलाइंस में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 3 फीसदी से घटकर 2 फीसदी और स्पाइस जेट में 10.16 फीसदी से घटकर 6.17 फीसदी पर आ गई है। एविएशन कंपनियों की आखिरी उम्मीद इसपर टिकी है कि सरकार एविएशन सेक्टर में एफडीआई की सीमा 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दे। तभी विदेशी कंपनियां इस सेक्टर में ज्यादा से ज्यादा पैसे लगा पाएंगे।

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

दिवालिया हो सकता है किंगफिशर एयरलाइंस!

वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही किंगफिशर एयरलाइंस ने राहत के लिए सरकार से मदद की गुहार लगाई है। किंगफिशर के मालिक विजय माल्या ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और एविएशन मंत्री वायलार रवि से अपील की है कि कम ब्याज दरों पर बैंकों के जरिए मदद की जाए। इसके अलावा वे सभी रियायतें दी जाएं जो एयर इंडिया को मिल रही हैं। हालांकि विमानन मंत्रालय ने साफ कर दिया कि वो किसी भी एयरलाइंस को बेलआउट पैकेज नहीं दे सकती। लेकिन विमानन मंत्री ने कहा है कि सरकार नहीं चाहती थी कि किंगफिशर के विमान बंद हों। लिहाजा किंगफिशर की मदद के लिए वित्त मंत्रालय से अपील की गई है।

कंपनी ने शुक्रवार को लगातार पांचवें दिन उड़ानों को रद्द करना जारी रखा। खस्ता वित्तीय हालत की वजह से कंपनी के शेयर 19 फीसदी गिरकर अब तक के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया। कर्ज संकट की वजह से किंगफिशर एयरलाइंस के शेयर जनवरी से अबतक 80 फीसदी से ज्यादा लुढ़क चुके हैं। किंगफिशर एयरलाइंस को साल 2010-11 में 1027 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसके साथ ही कंपनी पर कर्ज का बोझ बढ़कर 7057 करोड़ रुपए हो गया है।

किंगफिशर के मुताबिक कंपनी रोजाना केवल 50 फ्लाइट रद्द कर रही है लेकिन अगर गुरुवार के कुल उड़ानों पर नजर डालें तो कंपनी ने कुल 36 फीसदी यानि 149 उड़ानें रद्द की हैं। और ये सिलसिला हर दिन जारी है। कंपनी की वित्तीय हालत खराब होने की वजह से कंपनी के विमान छिन सकते हैं। किंगफिशर को लीज पर विमान देने वाली कंपनियां अपने विमान वापस लेने की योजना बना रही हैं। क्योंकि किंगफिशर भुगतान में डिफॉल्ट कर चुकी है। कंपनी की खराब हालत को देखते हुए 130 पायलटों ने एयरलाइन से इस्तीफा दे दिया है। कर्ज की बोझ तले दबी कंपनी ने विमान के कई ऑर्डर भी रद्द कर दिए हैं। लेकिन कंपनी की मुश्किलें यहीं खत्म होने वाली हैं। एचपीसीएल के बाद अब बीपीसीएल और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने भी किंगफिशर को क्रेडिट पर ईंधन देने से इंकार कर दिया है।

औद्योगिक विकास का पहिया पड़ा सुस्त

औद्योगिक विकास दर 2 साल के अपने निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। मान्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ में आई भारी गिरावट के चलते सितंबर महीने में भारत की औद्योगिक विकास दर 2 फीसदी से भी नीचे लुढ़क गई। सरकार ने गिरती औद्योगिक विकास दर पर चिंता जताई है।

सरकार के तमाम दावों के बावजूद देश की आर्थिक स्थिति दिन ब दिन खस्ता होती जा रही है। जीडीपी का आईना समझे जाने वाले औद्योगिक विकास का पहिया सुस्त पड़ता जा रहा है। जिसने सरकार की नींद उड़ा दी है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के चलते सितंबर में औद्योगिक विकास दर घटकर 1.9 फीसदी पर आ गई। पिछले साल सितंबर में औद्योगिक विकास दर 6.1 फीसदी थी। इस वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर के तिमाही के दौरान आईआईपी की विकास दर 5 फीसदी रही जो कि पिछले साल इसी दौरान 8.2 फीसदी थी। वहीं इस साल अगस्त में औद्योगिक विकास दर 4.1 फीसदी थी।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विकास दर रही केवल 2.1 फीसदी जो कि पिछले साल सितंबर में 6.9 प्रतिशत थी। औद्योगिक विकास दर में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का 75 फीसदी से अधिक का योगदान रहता है। यानी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सुस्ती आते ही औद्योगिक विकास दर के आंकड़े तेजी से लुढ़क जाते हैं। सितंबर में माइनिंग सेक्टर में 5.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस सेक्टर में पिछले साल 4.3 फीसदी की तेजी देखी गई थी। ठीक ऐसे ही मशीनरी उत्पादन यानि कैपिटल गुड्स सेक्टर में सितंबर में 6.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। जिसमें पिछले साल सितंबर में 7.2 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी।
सरकार ने लगातार गिरते औद्योगिक विकास दर पर चिंत जताई है। जानकारों का मानना है कि औद्योगिक विकास दर में जान फूंकने के लिए आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक कदम उठा सकता है। पिछले साल मार्च से अबतक रजर्व बैंक ने 13 बार अहम दरों में इजाफा किया है। इससे कर्ज काफी महंगे हो गए हैं। जिसका असर औद्योगिक विकास दर पर दिखने लगा है। ऐसे में इस बार आरबीआई कर्ज को कुछ सस्ता कर सकता है। यानी कि अहम दरों में इजाफा करने के बदले उसमें कटौती की शुरूआत कर सकता है। क्योंकि आरबीआई के लिए महंगाई कम करना एक अहम मुद्दा था। और अब खाद्य महंगाई दरों में गिरावट की शुरूआत हो चुकी है। 29 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में खाद्य महंगाई दर घटकर 11.81 फीसदी पर पहुंच चुकी है। जो कि इससे पहले हफ्ते में 12.21 फीसदी थी। यानी कि आरबीआई के लिए कर्ज सस्ते करने का रास्ता साफ हो चुका है।

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

किंगफिशर एयरलाइंस को डीजीसीए का नोटिस

देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। उड़ाने रद्द करने के मामने में डीजीसीए ने एयरलाइंस को नोटिस भेजा है। क्योंकि डीजीसीए की इजाज़त के बगैर कंपनी ने उड़ाने रद्द कर दीं। जिससे यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।

उड़ाने रद्द करने के मामले को लेकर डीजीसीए यानी डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन ने किंगफिशर एयरलाइंस को नोटिस भेजा है। किंगफिशर एयरलाइंस ने पिछले कुछ दिनों में 80 उड़ाने रद्द की हैं। कंपनी ने दलील दी है कि वह कुछ विमानों में बिजनेस क्लास की सीटें जोड़ने के लिए उन्हें उड़ान से हटा रही है।

डीजीसीए ने किंगफिशर एयरलाइंस के बिना इजाजत लिए उड़ानें रद्द करने पर आपत्ति जताई है। कोई भी एयरलाइंस डीजीसीए की मंजूरी के बिना उड़ानों के शिड्यूल में बदलाव नहीं कर सकती हैं। डीजीसीए किंगफिशर एयरलाइंस को विमान नियम के नियम 140 ए के तहत नोटिस दिया है। नोटिस में किंगफिशर एयरलाइंस से पूछा गया है कि उसने अपने उड़ानों को रद्द करने के पहले इस नियम के तहत नियामक की मंजूरी क्यों नहीं ली। इस नियम के तहत एयरलाइन को कोई नया रूट शुरू करने या किसी उड़ान को बंद करने से कम से कम एक हफ्ते पहले डीजीसीए की मंजूरी लेनी होती है। डीजीसीए ने विजय माल्या के एयरलाइंस कंपनी से यह भी पूछा है कि उसने अभी तक उड़ानें रद्द होने की वजह से यात्रियों को टिकट के पैसे लौटाने या उनके लिए वैकल्पिक उड़ान का प्रबंध करने के बारे में क्या कदम उठाए हैं।

किंगफिशर एयरलाइंस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। कंपनी पर 6 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज बकाया है। किंगफिशर एयरलाइन्स को एचपीसीएल को 500 करोड़ रुपये और बीपीसीएल 250 करोड़ रुपये चुकाने हैं। इससे पहले अक्टूबर महीने में भी बकाया ना चुकाए जाने को लेकर तेल कंपनियों ने 1 दिन के लिए किंगफिशर एयरलाइन्स को एटीएफ देने से मना कर दिया था। जिसके चलते उड़ानों के परिचालन पर असर पड़ा था। किंगफिशर एयरलाइंस के शेयर जनवरी से अबतक 71 फीसदी लुढ़क चुके हैं।

बुधवार, 9 नवंबर 2011

सोना 29 हजारी, चांदी 58 हजारी

सोने और चांदी की कीमतों में लगातार तेजी बनी हुई है। प्रति किलो चांदी का भाव 58 हजार रुपए के पार पहुंच चुका है। जबकि प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 29 हजार रुपए से ज्यादा हो चुका है। यूरोपीय कर्ज संकट और भारत में विवाह के सीजन की शुरूआत की वजह से सोने-चांदी की मांग लगातार इजाफा हो रहा है।

शादी विवाह का सीजन शुरू होने की वजह से सोने और चांदी की मांग सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है। इससे सोने और चांदी की कीमतें लगातार चढ़ती जा रही हैं। दिल्ली सर्राफा बाजार में सोने की कीमत 400 रुपये से ज्यादा बढ़कर 29004 रुपये प्रति दस ग्राम हो गई। जबकि चांदी की कीमतों में 650 रुपये की तेजी दर्ज की गई है। इससे चांदी की कीमत प्रति किलो 58 हजार रुपये के पार पहुंच चुकी है।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे संकट और यूरोपीय कर्ज संकट का असर सोने और चांदी की कीमतों पर देखी जा रही है। विदेशी बाजारों में सोने के दामों में मजबूती देखी जा रही है। लंदन में कारोबार के दौरान सोने के दाम 41 डॉलर ब़ढ़कर 1795 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच चुके हैं। जानकारों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने के दाम 1830 डॉलर प्रति औंस तक जा सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चांदी की कीमतों में भी मजबूती बनी हुई है। जानकारों का ये भी कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था जबतक पटरी पर नहीं आती सोने और चांदी की कीमतों में तेजी बनी रहेगी। हालांकि बीच-बीच में इसमें मुनाफावसूली देखी जा सकती है।

10 साल में सबसे कम बिके कार

महंगाई और लगातार महंगे होते जा रहे ऑटो लोन का असर कारों की बिक्री पर दिखने लगा है। अक्टूबर महीने में कारों की बिक्री में करीब 24 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

महंगाई, गाड़ियों की बढ़ती कीमतों और ऊंची ब्याज दरों की मार कारों की बिक्री पर पड़नी शुरू हो गई है। पिछले साल के मुकाबले अक्टूबर में कारों की बिक्री 24 फीसदी घटकर महज़ 1,38,000 यूनिट पर पहुंच गई हैं। दिसंबर 2000 के बाद ये सबसे बड़ी महीने-दर-महीने की गिरावट है। ये लगातार चौथा महीना है जब कारों की बिक्री में गिरावट देखने को मिली है। अक्टूबर 2010 में 1,81,704 कारों की बिक्री हुई थी।

हालांकि अक्टूबर में मोटरसाइकिल की बिक्री 2 फीसदी की तेजी देखी गई है। अक्टूबर में बाइक की बिक्री 1.5 लाख के करीब पहुंच गई । इसके साथ ही कमर्शियल गाड़ियों की बिक्री में 18 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है।

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

निर्यात में कमी, बढ़ा व्यापार घाटा

व्यापार घाटा भारतीय सरकार के लिए एक चिंता का विषय बन गया है। निर्यात में हो रही कमी की वजह से व्यापार घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अक्टूबर महीने में ये घाटा बढ़कर करीब 20 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। क्योंकि भारत से होने वाला निर्यात दो साल के अपने निचले स्तर पर पहुंच चुका है।

भारत से होने वाले निर्यात में भारी कमी दर्ज की जा रही है। ऐसे में आयात और निर्यात के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। जिससे व्यापार घाटे में जबरदस्त उछाल आया है। अक्टूबर महीने में भारत से होने वाले निर्यात में महज़ 10.8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जो कि पिछले दो वर्षों का निचला स्तर है।

अक्टूबर महीने में केवल 19.9 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है। जबकि इसी महीने भारत के आयात में 21.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यानी केवल एक महीने में 39.5 अरब डॉलर का आयात किया गया है। इस वजह से अक्टूबर महीने में भारत को 19.6 अरब डॉलर का व्यापार घाटा सहना पड़ा है। यूरोपीय देशों के कर्ज संकट में फंसने की वजह से भारतीय निर्यात में कमी आई है।

ऐसे में सरकार को केवल चिंता करने के बदले एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए कुछ अहम कदम उठाने की ज़रूरत है। नहीं तो महंगाई की तरह व्यापार घाटा भी एक दिन सरकार के गले की फांस बन जाएगा।
राजीव रंजन, न्यूज़ एक्स्प्रेस, दिल्ली

शनिवार, 5 नवंबर 2011

लगातार 5 दिनों तक बंद रहेंगे SBI

देश के सबसे बड़े सरकारी बैंख एसबीआई यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में अगले पांच दिनों तक कामकाज ठप्प रहेगा। क्योंकि बैंक के अधिकारी अगले हफ्ते दो दिनों की हड़ताल पर जा रहे हैं। साथ ही अगले हफ्ते दो दिनों की सरकारी छुट्टी है।

एसबीआई के ग्राहकों को अगले 5 दिनों तक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई में अगले 5 दिनों तक कामकाज नहीं होगा। यानि ग्राहक किसी भी तरह का बैंकिंग ट्रांजेक्शन नहीं कर पाएंगे। क्योंकि वेतन, हफ्ते में पांच दिन काम और अन्य मुद्दों को लेकर बैंक के अधिकारियों ने 2 दिन की हड़ताल का ऐलान कर दिया है। ये हड़ताल मंगलवार और बुधवार को यानी 8 और 9 नवंबर को होगी। रविवार की छुट्टियों के बाद सोमवार को ईद और गुरुवार को गुरू नानक जयंती की सरकारी छुट्टियां है। यानि लगातार 5 दिन बैंक सेवाएं ठप रहेंगी।

अपने ग्राहकों को ज्यादा परेशानी ना हो इसको ध्यान में रखते हुए बैंक ने देश के ज्यादातर अखबारों में एक इस्तेहार दिया है। जिसमें ग्राहकों से आज ही सारे जरूरी ट्रांजेक्शन करने की अपील की है। इन हड़ताल और छुट्टियों की वजह से एसबीआई की एटीएम सर्विस भी प्रभावित होगी। हालांकि दूसरे बैंक के एटीएम से एसबीआई के ग्राहक पैसे निकाल पाएंगे।

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

राजू हुए रिहा

करीब 10 हज़ार करोड़ रुपए का घोटाला करने वाले रामालिंगा राजू को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई। आईटी कंपनी सत्यम के संस्थापक राजू के खिलाफ सीबीआई पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई। जिससे राजू सहित दो और आरोपी ज़मानत पर रिहा हो गए।

सुप्रीम कोर्ट ने करोड़ों रुपये के सत्यम घोटाले में कंपनी के फाउंडर और पूर्व चेयरमैन बी. रामालिंगा राजू, उनके भाई बी राम राजू और कंपनी के पूर्व सीएफओ वी. श्रीनिवास को जमानत दे दी। जस्टिस दलवीर भंडारी और जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने तीनों को दो लाख रुपये के निजी मुचलके के ज़मानत दे दी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें ट्रायल कोर्ट में पासपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है। इस मामले में कुल 10 आरोपी है। जिसमें से पांच लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 12 अक्टूबर को जमानत दे दी है।

साल 2009 के जनवरी में सत्यूम कंप्यू टर्स के अध्य।क्ष रामालिंगा राजू ने अपनी ही कंपनी में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले का खुलासा किया था। सत्यम घोटाले ने आईटी सेक्टर सहित पूरे शेयर बाजार को हिला कर रख दिया था।

घोटाले के आरोप में रामालिंगा राजू पिछले दो साल से ज्यादा समय जेल में थे। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ही राजू की जमानत अर्जी को खरीज कर दिया था। लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी सीबीआई पर्याप्त सबूत इक्ट्ठा नहीं कर पाई है। जिससे रामालिंगा राजू को दोषी साबित नहीं किया जा सका है। हालांकि सीबीआई ने ये दलील दी थी कि अगर राजू छूट जाएंगे तो अपने प्रभाव से सबूतों के साथ छेड़-छाड़ कर सकते हैं और गवाहों पर दबाव बना सकते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए रामालिंगा को ज़मानत दे दी।

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

खाद्य महंगाई दर 11% के पार

लागातर बढ़ रही महंगाई ने आम लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। खाद्य महंगाई दर 11 फीसदी के पार पहुंच गई है। जो कि छे महीनों का उच्चतम स्तर है। महंगाई को रोकने के लिए उठाई गई सरकार की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। खाने-पीने के सामानों की बेकाबू होती कीमतों पर लगाम लगाने में सरकार लागातार विफल साबित हो रही है।

महंगाई ने आम लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। खाने-पीने के सामानों की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। खाद्य महंगाई रुकने का नाम नहीं ले रही है।

15 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर बढ़कर 11.43 फीसदी पर पहुंच चुकी है। जो इससे पहले हफ्ते में 10.6 फीसदी थी। महंगाई पर लगाम नहीं लागाई जा सकी है। खाद्य महंगाई दर बढ़ने के पीछे सब्जियों और अनाज़ का महंगा होना एक बड़ी वजह मानी जा रही है।

सब्जियों की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं फल 11.96 फीसदी मंहगे हुए हैं। जबकि दूध की कीमत 10.85 फीसदी बढ़े हैं। मांस व मछली की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 12.82 फीसदी तेजी आई है। दालें 9.06 फीसदी मंहगी हुईं हैं। साथ ही अनाज की कीमतें 4.62 फीसदी बढ़ी हैं।

सरकार की लगातार कोशिशों के बावजूद महंगाई पर लगाम नहीं लागाई जा सकी है। ऐसे में कर्ज और महंगे होने की आशंका बढ़ गई है। आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए मार्च 2010 से अबतक 13 बार अहम दरों में बढ़ोतरी की है। लेकिन आरबीआई के इस कदम के बावजूद महंगाई रुकने के बजाए बढ़ती जा रही है। लगातार बढ़ रही रेपो रेट का उल्टा असर हो रहा है। यानी औद्योगिक विकास दर में लगातार कमी आ रही है। जीडीपी विकास दर का अनुमान लगातार नीचे फिसल रहा है। लेकिन महंगाई इससे बेखबर लगातार बढ़ती जा रही है।

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

मुहूर्त ट्रेडिंग में बढ़त के साथ बाजार बंद

भारतीय शेयर बाजार दीपावली के शुभअवसर पर मुहूर्त ट्रेडिंग के कुछ खास कारोबार नहीं हुआ। सेंसेक्स और निफ्टी मामूली बढ़त के साथ बंद हुए। पिछले साल के मुहूर्त ट्रेडिंग में सेंसेक्स 21 हजार के ऊपर और निफ्टी 6 हजार 3 सौ के ऊपर बंद हुए थे।

दीपावली के अवसर पर आज मुंबई शेयर बाजार और नेशनल स्टाक एक्सचेंज में मुहूर्त कारोबार की शुरूआत बहुत ज्यादा जोश भरी नहीं रही। पौने पांच से से छे बजे तक की इस स्पेशल मुहूर्त ट्रेडिंग में सेंसेक्स 33 अंक चढ़कर 17288 पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी 10 अंकों की बढ़त के साथ 5201 पर बंद हुआ। सबसे ज्यादा बढ़ने वाले शेयरों में शामिल हुए हिंडाल्को, सिप्ला, कोल इंडिया, एसबीआई और भारती एयरटेल। वहीं सेसा गोवा, विप्रो, आईसीआईसीआई बैंक, रिलायंस पावर और टाटा मोटर्स के शेयरों में सबसे ज्यादा बिकवाली देखी गई।

पिछले साल मुहूर्त कारोबार के दौरान सेंसेक्स 21 हजार अंक के स्तर से ऊपर 21004 पर बंद हुआ था। निफ्टी भी वर्ष के उच्चतम स्तर 6312 पर पहुंच गया था। लेकिन इस साल मुहूर्त ट्रेडिंग के दौरान ये तेजी नहीं देखी गई। क्योंकि दुनियाभर में छाई आर्थिक संकट और घरेलू स्तर पर मंहगाई की मार से शेयर बाजार से निवेशक दूर भाग रहे हैं। हालांकि पिछले 15 मुहूर्त ट्रेडिंग का बात करें तो इसमें से 13 बार दीपावली पर सेंसेक्स 1 फीसदी या उससे अधिक बढ़त के साथ बंद हुआ है।

हर साल दीपावली के साथ ही हिन्दू कारोबारी अपना नया बहीखाता शुरू करते हैं। कारोबार के लिए इस दिन को काफी शुभ माना जाता है। हालांकि दीपावली के दिन बाजार में अवकाश रहता है इसलिए इस दिन विशेष रूप से बाजार को कुछ समय के लिए मुहुर्त कारोबार के लिए खोला जाता है।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

होम लोन: गेन कम, पेन ज्यादा

आरबीआई ने रेपो रेट को बढ़ाकर जहां आम लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। वहीं बचत खाते पर ब्याज तय करने का अधिकार बैंकों को दे दिया है। इससे उन लोगों को कुछ राहत जरूर मिलेगी जिनके पास बजत लायक पैसे हैं। बचत खाते पर ब्याज तय करने का अधिकार बैंको को देना एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फै़सला माना जा रहा है।

आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा कि बैंक बचत खाते पर ब्याज दर अपने मन मुताबिक तय कर सकेंगे। हालांकि इसके लिए रिजर्व बैंक ने दो शर्तें रख दी हैं। बैंक ने कहा है कि हर बैंक को एक लाख रुपए तक निश्चित ब्याज दर सुनिश्चित करना होगा भले ही ये पैसा एक लाख से कम हो लेकिन ब्याज दर अलग-अलग नहीं होना चाहिए। ब्याज दरों को बैंकों पर छोड़ने की दूसरी शर्त ये होगी कि अगर पैसा एक लाख से ऊपर हुआ तो बैंक ब्याज की अलग-अलग दरें रख सकता है लेकिन अलग-अलग ग्राहकों के लिए अलग दरें नहीं हो सकतीं। औद्योगिक संकठनों ने आरबीआई के इस कदम का स्वागत किया है। लेकिन इन्ही संगठनों ने ब्याज दरें बढ़ाने को लेकर आरबीआई की कड़ी आलोचना की गई है।

होम लोन दरों में 25 बेसिस प्वाइंट यानी आधा फीसदी की बढ़ोतरी होने पर 20 साल के लिए गए 30 लाख रुपए के घर पर ईएमआई में 500 रुपए से ज्यादा का इजाफा हो जाएगा। साथ जिन लोगों ने 2009 में शुरू हुए टीजर लोन के जरिए घर बुक कराए हैं..अगले साल से उन्हें भी करीब 3 फीसदी तक ज्यादा ब्याज चुकाने पड़ सकते हैं। ऐसे में घरों की घटती मांग और रियल एस्टेट की खस्ता होती हालत और बढ़ती ईएमआई से परेशान लोगों पर मरहम लगाने के लिए सरकार ने कुछ दूसरे उपाय किए हैं।

देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआईन ने होम लोन की समय सीमा को 10 साल और बढ़ा दिया है। जिसके बाद बैंक से मिलने वाला होम लोन 20 साल की जगह 30 साल के लिए मिल पाएगा। इसके साथ ही सरकार ने 15 लाख तक के होमलोन पर ब्याज में एक फीसदी की सब्सिडी का फैसले को मंजूरी दे दी है। अभी तक केवल 10 लाख तक के होम लोन में 1 फीसदी की सब्सिडी मिलती है लेकिन अब सरकार ने इसका दायरा बढ़ाकर 15 लाख रुपए कर दिया है। यानी कि 20 लाख तक के मकान पर 10 लाख रुपए होम लोन लेने पर एक फीसदी की सब्सिडी के बदले अब बैंक 25 लाख तक के मकान पर 15 लाख रुपए होमलोन लेने पर एक फीसदी सब्सिडी देंगे। इन छोटे मोटे उपायों से लोगों के घर का सपना सच करना संभव नहीं दिख रहा है।

महंगाई पर लगाम के लिए फिर बढ़ा रेपो रेट

अगर आपर घर या कार खरीदने की सोच रहे हैं। तो अब आपको ज्यादा ब्याज देने पड़ेगे। क्योंकि आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान रेपो रेट में फिर से 25 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी करने का ऐलान किया है।

रिजर्व बैंक एक बार फिर से कर्ज महंगे कर दिए हैं। यानी कि जीने के लिए अगर आप कर्ज का सहारा लेने की सोच रहे हैं। तो भूल जाइए। क्योंकि अब कर्ज और महंगे हो जाएंगे। आपकी ईएमआई और बढ़ जाएगी।

महंगाई को कम करने के लिए रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान रेपो रेट को सवा 8 फीसदी से बढ़ाकर साढ़े 8 फीसदी कर दिया है...जबकि रिवर्स रेपो सवा 7 फीसदी से बढ़ाकर साढ़े 7 फीसदी कर दिया है...पिछले 19 महीनों में आरबीआई ने तरहवीं बार अहम दरों में इज़ाफा किया है। रेपो रेट के बढ़ने से होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन सहित हर तरह के कर्ज महंगे हो जाएंगे।

हालांकि रिजर्व बैंक ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए ये कमद उठाए हैं। लेकिन महंगाई है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। फिलहाला खाद्य महंगाई दर साढ़े दस फीसदी से ज्यादा है। जबकि होलसेल महंगाई दर दस फीसदी के करीब है...बार बार रेपो रेट बढ़ाने के परिणाम अभीतक ठाक की तीन पात ही रहे हैं। या कहें इसका उल्टा असर ज्यादा देखने को मिला है। क्योंकि आरबीआई के इस कदम से महंगाई तो कम नहीं हो सकी लेकिन देश की विकास में ज़रूर कमी होने लगी।

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

नोएडा एक्सटेंश पर हाईकोर्ट का फैसला

नोएडा एक्सटेंशन के जमीन अधिग्रहण पर फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन गांवों के अधिग्रहण को रद्द कर दिया है। जबकि बाकी के 60 गांवों में अधिग्रहण को कुछ शर्तों के साथ मंज़ूरी दे दी है। इससे जहां बिल्डर्स और इन इलाके में फ्लैट बुक करा चुके लोगों को राहत मिली है। वहीं किसान हाईकोर्ट के इस फैसले से खुश नहीं हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोयडा एक्सटेंशन के अंतर्गत आने वाले 63 गांवों पर फैसला सुनाते हुए तीन गांवों में ज़मीन अधिग्रहण रद्द कर दिया है। ये 3 गांव हैं असदुल्लापुर, देवला और शाहबेरी । इन गांवों में अथॉरिटी को ज़मीन लौटानी होगी। शाहबेरी में 7 बिल्डर्स के प्रोजेक्ट चल रहे थे। जबकि देवला और असदुल्लापुर में अभी कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं हुआ है। वहीं 60 गांवों में ज़मीन अधिग्रहण को कोर्ट ने सशर्त मंजूरी दे दी है। कोर्ट के आदेश के मुताबिक बाकी के 60 गांवों में किसानों को 64 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा और 10 फीसदी अतिरिक्त विकसित जमीन दिया जाए।

जिन तीन गांवों का जमीन अधिग्रहण रद्द हुआ वहां के किसान मुआवजा लौटाकर अपनी जमीन वापस ले सकते हैं। इन तीन गांवों के किसानों ने इस फैसले पर खुशी जताई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर किसानों, बिल्डरों, राज्य सरकार और थॉरिटी समेत फ्लैट बुक करा चुके लोगों की निगाहें लगी हुई थी। नोएडा एक्सटेंशन समेत ग्रेटर नोएडा के 40 गांवों के किसानों ने 491 याचिकाएं कोर्ट में डालीं थीं। नोएडा के भी 24 गांवों के किसानों ने अपनी अपनी याचिकाएं दायर की थी। जमीन अधिग्रहण का मामला कोर्ट में जाने से नोएडा एक्सटेंशन का विकास कार्य ठप हो गया था और फ्लैटों की बुकिंग बंद हो गई थीं।

15 दिन बाद मारुति हड़ताल खत्म

मारुति और सुजुकी के मानेसर प्लांट में पिछले 15 दिनों से जारी कर्मचारियों की हड़ताल ख़त्म हो गई...हरियाणा सरकार की मध्यस्थता में कर्मचारियों और कंपनी मैनेजमेंट के बीच समझौता हो गया है...जिसके तहत मैनेजमेंट 64 स्थाई कर्मचारियों और 1200 अस्थाई कर्मचारियों को काम पर वापस रखेगा।

मारुति कंपनी प्रबंधन, कर्मचारी और हरियाणा सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद मारुति और सुजुकी के कर्मचारियों की 15 दिन तक खिंची हड़ताल खत्म हो चुकी है। समझौते के मुताबिक मैनेजमेंट सस्पेंड किए गए 64 स्थाई कर्मचारियों को वापस लेने पर सहमत हो गया। लेकिन मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट के 30 कर्मचारियों और सुजुकी पावरट्रेन के 3 कर्मचारियों का निलंबन जारी रहेगा।

मारुति सुजुकी के मैनेजमेंट ने 1200 अस्थाई कर्मचारियों को बहाल करने की बात भी स्वीकार कर ली है। समझौते के मुताबिक़ कर्मचारियों को हड़ताल के दौरान काम नहीं करने पर वेतन का भुगतान नहीं किया जाएगा। इसके अलावा शिकायतों को दूर करने के लिए और श्रम कल्याण के लिए दो समितियों का गठन करने पर भी सहमति बनी है ताकि प्लांट में मैत्रीपूर्ण कार्य का वातावरण उपलब्ध कराया जा सके। पिछले पांच महीनों में तीसरी बार कर्मचारी हड़ताल पर थे। हालांकि जानकारों का मानना है कि पिछली बार की तरह इसबार भी पूरी तरह बात नहीं बनी है। क्योंकि सुजुकी के दो प्लांट के 33 कर्मचारी अभी भी सस्पेंड हैं। ऐसे में अगर फिर कंपनी अपने वायदे से मुकरती है तो उसे एकबार फिर से हड़ताल का सामना करना पड़ सकता है।

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

खाद्य महंगाई दर 10 के पार

खाने-पीने के सामान महंगे होते जा रहे हैं। जिसकी वजह से खाद्य महंगाई दर 10 फीसदी के पार पहुंच गई है। महंगाई को रोकने के लिए उठाई गई सरकार की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। खाने-पीने के सामानों की बेकाबू होती कीमतों ने आम लोगों के साथ ही सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। साथ ही विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा मिल गया है।

खाने-पीने के सामानों की बेकाबू होती कीमतों ने आम लोगों के साथ ही सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। महंगाई रुकने का नाम नहीं ले रही है। 8 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर बढ़कर 10.60 फीसदी पर पहुंच चुकी है। जो इससे पहले हफ्ते में 9.32 फीसदी थी। महंगाई पर लगाम नहीं लागाई जा सकी है। ऐसे में कर्ज और महंगे होने की आशंका बढ़ गई है। खाद्य महंगाई दर बढ़ने के पीछे सब्जियों और ईंधन का महंगा होना एक बड़ी वजह मानी जा रही है।

सब्जियों की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 17.59 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं फल 12.39 फीसदी मंहगे हुए हैं। जबकि दूध की कीमत 10.80 फीसदी बढ़े हैं। मांस व मछली की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 14.10 फीसदी तेजी आई है। दालें 7.42 फीसदी मंहगी हुईं हैं। साथ ही अनाज की कीमतें 4.73 फीसदी बढ़ी हैं।

सरकार ने बढ़ती खाद्य महंगाई दर पर चिंता जताई है। लेकिन सरकार की लगातार कोशिशों के बावजूद महंगाई पर लगाम नहीं लागाई जा सकी है। ऐसे में कर्ज और महंगे होने की आशंका बढ़ गई है। ऐसा माना जा रहा है कि महंगाई को बस में करने के लिए रिजर्व बैंक अपने अगले क्रेडिट पॉलिसी की समीक्षा में एक बार फिर से अहम दरों में करीब 25 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर सकता है। पिछले डेढ़ साल में आरबीआई ने एक दर्जन बार कर्ज दरों में बढ़ोतरी है। लगातार बढ़ रही रेपो रेट का असर तो ग्रोथ पर दिखा रहा है। यानी औद्योगिक विकास दर में लगातार कमी आ रही है। जीडीपी विकास दर का अनुमान लगातार नीचे फिसल रहा है। लेकिन महंगाई इससे बेअसर होकर बदस्तूर बढ़ती जा रही है।

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

पीएम के घर महंगाई पर माथापच्ची

महंगाई को लेकर राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर हलचल मच गई। दरअसर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आनन-फानन में एक बैठक बुलाई। जिसमें लगातार बढ़ रही महंगाई पर लगाम लगाने के लिए चर्चा की गई। इस बैठक में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन भी शामिल हुए।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने महंगाई पर लगाम लगाने के तरीके तलाशने के लिए प्रमुख आर्थिक नीति निर्माताओं के साथ दिल्ली में अपने निवास पर एक बैठक की। प्रधानमंत्री निवास पर बुलाई गई इस बैठक में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन, वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु और आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव शामिल हुए।

भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले 18 महीनों में 12 बार अहम दरों में बढ़ोतरी की है। इसके बावजूद महंगाई लगातार बढ़ रही है।महंगाई दर पिछले नौ महीनों से दहाई अंकों के आसपास बनी हुई है।सितम्बर में होलसेल कीमतों पर आधारित महंगाई दर 9.72 फीसदी रही। ऐसे में जानकारों का मानना है कि रिजर्व बैंक एक बार फिर 25 अक्टूबर को होने मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान रेपो रेट और सीआरआर में बढ़ोतरी का ऐलान सकता है।

विकास के मामले में सबसे आगे बिहार

कभी भारत के सबसे बीमारू राज्यों में शुमार होने वाला बिहार आज देश का सबसे सफलतम राज्य है। साल 2010-2011 में बिहार का जीडीपी विकास दर बढ़कर 14 फीसदी को पार कर चुका है। जो कि देश में किसी भी राज्य से ज्यादा है। बिहार में विकास की रफ्तार बढ़ाने के पीछे वहां के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का अहम योगदान माना जा रहा है।

देश के कई विकसित राज्य आज बिहार को एक मॉडेल राज्य की तरह देखने को मज़बूर हैं। क्योंकि विकास की रफ्तार में बिहार ने उन्हें पीछे छोड़ दिया है। यही नहीं कभी गरीब समझे जाने वाले बिहार में विकास की रफ्तार इतनी ज्यादा है कि वो इस दौर में गुजरात और केंद्र सरकार से भी काफी आगे निकल चुका है।

साल 2010-2011 में बिहार का जीडीपी विकास दर 14.15 फीसदी पर पहुंच गया। जबकि इस दौरान तमिलनाडु का विकास दर 11.74 फीसदी रहा। वहीं छत्तीसगढ़ का जीडीपी विकास दर रहा 11.57 फीसदी। महाराष्ट्र का विकास दर 10.47 फीसदी दर्ज किया गया। वहीं पिछले साल तक नंबर वन पर रहे गुजरात का जीडीपी साल 2010-2011 में रहा महज 10.23 फीसदी। पंजाब का विकास दर दहाई के आंकड़े से काफी नीच यानी केवल 7.21 फीसदी रहा।

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़ों के अनुसार साल 2004 से 2009 के बीच बिहार राज्य के जीडीपी में औसतन 11.03 प्रतिशत का सालाना इजाफा हुआ था। जो कि राष्ट्रीय औसत से ज्यादा था। पूरे देश में उस दौरान केवल गुजरात के जीडीपी के ग्रोथ रेट का औसत ही बिहार से थोड़ा अधिक 11.06 प्रतिशत था। दो साल पहले जहां दुनिया मंदी की मार को झेलने को मज़बूर थी उस दौरान भी बिहार में विकास तेजी से हो रहा था। और आज भी जब आनेवाली मंदी के भय से देश कपकपा रहा है। देश का विकास दर का अनुमान महीने दर महीने कम होता जा रहा है। ऐसे में नीतीश कुमार का बिहार गर्व से सिर ऊंचा कर लगातार आगे बढ़ता जा रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार को बिहार से कुछ सबक लेने की ज़रूरत है।