बुधवार, 24 अगस्त 2011

रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार का मारा

अन्ना के अनशन में हर वर्ग हर उम्र के लोग जुट रहे हैं। लेकिन इनका मकसद एक है। देश से भ्रष्टाचार को दूर करना। लेकिन इस भीड़ में कुछ वैसे भी लोग हैं जो लगातार कई वर्षों से भ्रष्टाचार की सीधी मार खाने को मजबूर हैं। और अब अन्ना के जरिए उन्हें भ्रष्टाचार से मुक्ति की उम्मीद जगी है। इसलिए सीधा अन्ना के अनशन स्थल यानी दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंच गए हैं। क्या बूढ़े क्या बच्चे अन्ना के अनशन में हर कोई शामिल है। और भ्रष्टाचार को दूर भगाने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान पुहंचे हैं। ताकि अन्ना के हौसले बुलंद रहे। हालांकि इनमें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके हौसले पस्त हो चुके हैं। भ्रष्टाचार के चक्कर में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते काटते उनके चप्पल घिस चुके हैं। माथे पर उम्र की लकीरें बढ़ती जा रही हैं। लेकिन उनकी समस्या जस की तस बरकरार है। पिछले 24 सालों से जसवंत सिंह विष्ट भ्रष्टाचार में पिस रहे हैं। इनकी पैकेजिंग कंपनी मेटल बॉक्स इंडिया को सरकार ने पहले बीमार घोषित किया उसके बाद उसे बंद कर दिया। कंपनी की प्रॉपर्टी भी बेच ली गई। इससे 1000 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। लेकिन तमाम वादों के बावजूद इन कर्मचारियों को कुछ नहीं मिला। इस लड़ाई को जसवंत दो दशक से ज्यादा से लड़ रहे हैं और अब अन्ना की शरण में पहुंच गए हैं। इनका मानना है कि जनलोकपाल होता तो इन्हें इतने साल तक नहीं भटकना पड़ता। दिल्ली के रामलीला मैदान में हाजारों लोगों के भीड़ में कई ऐसे लोग शामिल हैं जिन्हें भ्रष्टाचार ने बर्बाद कर दिया है। भ्रष्टाचार का मारा एक रिटायर्ड कर्मचारी आई घुंघराला भी अन्ना के इस अनशन में अपनी फरियाद लेकर आए हैं। जिन्हें सेवानिवृति के बाद ना तो सेवानिवृति फंड मिला और ना ही पेंशन। कुछ लोग तो अपने गांव की परेशानी लेकर अन्ना की शरण में आए हैं। उन्हें लगता है कि अन्ना के सामने अभी से अपनी फरियाद रख देंगे तो उन्हें आगे और भ्रष्टाचार की मार नहीं पड़ेगी। रामलीला मैदान में ऐसे ही एक बुजुर्ग मिले खुसाल सिंह जो कि अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। ये यहां अपनी शिकायत लेकर अन्ना के पास आए हैं। इनके गांव में सड़कें तीन तीन बार बनकर दिल्ली आ गईं लेकिन काग़ज पर। लेकिन हक़ीक़त में गांव मं कुछ नहीं बना। अनशन में हजारों लोग शामिल हो रहे हैं। लेकिन इन हजारों लोगों में से कुछ लोग वैसे हैं जो अभी भी हर दिन भ्रष्टाचार की चाबुक खाने पर मजबूर हैं। इस भीड़ में वैसे कई चेहरे दिख जाएंगे जो अभी भी एक दफ्तर से दूसरा दफ्तर चक्कर काट रहे हैं ताकि उनकी फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर पहुंच जाए।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

corruption ke maaron ke liye anna bhagwan se kam nahi.