शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

औद्योगिक विकास का पहिया पड़ा सुस्त

औद्योगिक विकास दर 2 साल के अपने निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। मान्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ में आई भारी गिरावट के चलते सितंबर महीने में भारत की औद्योगिक विकास दर 2 फीसदी से भी नीचे लुढ़क गई। सरकार ने गिरती औद्योगिक विकास दर पर चिंता जताई है।

सरकार के तमाम दावों के बावजूद देश की आर्थिक स्थिति दिन ब दिन खस्ता होती जा रही है। जीडीपी का आईना समझे जाने वाले औद्योगिक विकास का पहिया सुस्त पड़ता जा रहा है। जिसने सरकार की नींद उड़ा दी है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के चलते सितंबर में औद्योगिक विकास दर घटकर 1.9 फीसदी पर आ गई। पिछले साल सितंबर में औद्योगिक विकास दर 6.1 फीसदी थी। इस वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर के तिमाही के दौरान आईआईपी की विकास दर 5 फीसदी रही जो कि पिछले साल इसी दौरान 8.2 फीसदी थी। वहीं इस साल अगस्त में औद्योगिक विकास दर 4.1 फीसदी थी।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विकास दर रही केवल 2.1 फीसदी जो कि पिछले साल सितंबर में 6.9 प्रतिशत थी। औद्योगिक विकास दर में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का 75 फीसदी से अधिक का योगदान रहता है। यानी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सुस्ती आते ही औद्योगिक विकास दर के आंकड़े तेजी से लुढ़क जाते हैं। सितंबर में माइनिंग सेक्टर में 5.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस सेक्टर में पिछले साल 4.3 फीसदी की तेजी देखी गई थी। ठीक ऐसे ही मशीनरी उत्पादन यानि कैपिटल गुड्स सेक्टर में सितंबर में 6.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। जिसमें पिछले साल सितंबर में 7.2 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी।
सरकार ने लगातार गिरते औद्योगिक विकास दर पर चिंत जताई है। जानकारों का मानना है कि औद्योगिक विकास दर में जान फूंकने के लिए आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक कदम उठा सकता है। पिछले साल मार्च से अबतक रजर्व बैंक ने 13 बार अहम दरों में इजाफा किया है। इससे कर्ज काफी महंगे हो गए हैं। जिसका असर औद्योगिक विकास दर पर दिखने लगा है। ऐसे में इस बार आरबीआई कर्ज को कुछ सस्ता कर सकता है। यानी कि अहम दरों में इजाफा करने के बदले उसमें कटौती की शुरूआत कर सकता है। क्योंकि आरबीआई के लिए महंगाई कम करना एक अहम मुद्दा था। और अब खाद्य महंगाई दरों में गिरावट की शुरूआत हो चुकी है। 29 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते में खाद्य महंगाई दर घटकर 11.81 फीसदी पर पहुंच चुकी है। जो कि इससे पहले हफ्ते में 12.21 फीसदी थी। यानी कि आरबीआई के लिए कर्ज सस्ते करने का रास्ता साफ हो चुका है।

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