शनिवार, 12 नवंबर 2011

क्यों लहूलुहान हैं भारतीय एयरलाइंस कंपनियां

देश के एविएशन इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। किंगफिशर एयरलाइंस के साथ ही देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस जेट एयरवेज का भी घाटा बढ़ता जा रहा है। सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया सहित देश की कई एयरलाइंस कंपनियां कर्ज से तबाह होने के करीब पहुंच चुके हैं।

एयलाइंस कंपनियां किराए में कितनी भी बढ़ोतरी कर लें लेकिन उनकी परेशानियां थमने वाली नहीं हैं। जानकारों के मुताबिक आने वाले दिनों में एविएशन सेक्टर के लिए और बुरे रहने वाले हैं। पूरे एविएशन सेक्टर की माली हालत इन दिनों बिगड़ती जा रही है। वहीं इसमें सुधार का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। किंगफिशर एयरलाइंस की हालत यहां तक पहुंच गई है कि एयरक्राफ्ट के लिए तेल खरीदने तक के पैसे नहीं रह गए हैं। वहीं देश में सबसे ज्यादा यात्रियों को लेकर उड़ान भरने वाले जेट एयरवेज की भी हालत पतली होती दिखाई दे रही है। जेट एयरवेज ने कहा है कि खाली होती तिजोरी को बचाने करीब 1 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकालना होगा। एयर इंडिया, जेट एयरवेज और किंगफिशर एयरलाइंस पर नजर डालें तो इन पर कुल मिलाकर 60 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा का कर्ज है। तो दूसरी ओर बढ़ती लागत के बावजूद कंपनियां किराया नहीं बढ़ाने को मजबूर हैं क्योंकि उन्हें गोएयर जैसे बजट एयरलाइंस से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। कड़ी प्रतिस्पर्धा की वजह से बढ़ाए गए किराए पर स्थिर नहीं रह पाते हैं बड़े एयरलाइंस। अनेकों बार कई रूट पर कंपनियों को लागत के 15 से 50 फीसदी तक कम कीमत पर टिकट बेचनी पड़ती है।

एयरलाइंस कंपनियों की सबसे बड़ी मुसीबत है एटीएफ यानी हवाई ईंधन की बढ़ती कीमत। जो कि एयरलाइंस की कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट का 40 फीसदी हिस्सा होता है। हवाई ईंधन 1 साल में करीब 45 फीसदी महंगा हो चुका है। इस हालात से निपटने के लिए कर्ज में डूबी कंपनियों के कुछ ज्यादा कदम उठाने की भी ज्यादा गुंजाइश नहीं है।

अकेले एयर इंडिया पर 42570 करोड़ रुपये का कर्ज है। जेटएयरवेज पर 13400 करोड़ रुएये और किंगफिशर पर करीब 7 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं एटीएफ पर राज्यों का टैक्स पूरी दुनिया में बांग्लादेश के बाद सबसे ज्यादा 24 फीसदी है। साथ ही एयरक्राफ्ट के रखरखाव पर कुल ऑपरेटिंग कॉस्ट का 13 फीसदी खर्च करना पड़ता है। क्योंकि भारी टैक्स की वजह से देश में मैंटिनेंस और रिपेयरिंग सेंटर काफी कम और महंगे हैं।

चौतरफा परेशानियों का सामना कर रही एविएशन इंडस्ट्री को फिलहाल इससे उबरने का रास्ता नहीं दिख रहा है। और शायद यही कारण है कि एफआईआई यानी विदेशी संस्थागत निवेशक भी इनसे हाथ खींचने लगे हैं। जेट एयरवेज में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 5.7 फीसदी से घटकर 4.6 फीसदी पर पहुंच गई है। वहीं किंगफिशर एयरलाइंस में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 3 फीसदी से घटकर 2 फीसदी और स्पाइस जेट में 10.16 फीसदी से घटकर 6.17 फीसदी पर आ गई है। एविएशन कंपनियों की आखिरी उम्मीद इसपर टिकी है कि सरकार एविएशन सेक्टर में एफडीआई की सीमा 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दे। तभी विदेशी कंपनियां इस सेक्टर में ज्यादा से ज्यादा पैसे लगा पाएंगे।

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