शनिवार, 28 अप्रैल 2012

तेल और गैस महंगा करने की तैयारी


किरोसिन, एलपीजी, पेट्रोल और डीज़ल आने वाले दिनों में महंगे होने वाले हैं। प्रधानमंत्री ने इसके संकेत दे दिए हैं। ऐसे में आम लोगों को महंगाई से निजात मिलने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं।

एक ओर देश की आम जनता महंगाई से परेशान है। दूसरी ओर सरकार महंगाई कम करने के बजाए उसे बढ़ाने पर विचार कर रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि तेल पर दिए जाने वाली सब्सिडी का बेजा इस्तेमाल हो रहा है। क्योंकि तेल की कीमतें कम होने की वजह से लोग इसका दुरूपयोग कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा है कि जिन्हें सचमुच सब्सिडी की ज़रूरत है उनके लिए अलग तरह की व्यवस्था की जाएगी। यानी की उन्हें महंगे तेल और एलपीजी खरीदने के लिए अलग से पैसे दिए जाएंगे। ऑयल और गैस पर से सब्सिडी हटाने के बाद पेट्रोल 9.5 रुपए ज्यादा महंगा हो जाएगा। जबकि डीज़ल की कीमतें प्रति लीटर 15 रुपए बढ़ जाएंगी। किरोसीन 32 रुपए महंगा हो जाएगा। जबकि रसोई गैस की कीमतें प्रति सिलेंडर 550 रुपए बढ़ जाएंगी।

दरअसर सरकार का खजाना लगातार खाली होता जा रहा है। ऐसे में सरकार टैक्स कम करने के उपाय से कन्नी काटती नज़र आ रही है। और कीमतों की बोझ आम आदमी के माथे पर डालना चाह रही है।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

16 रुपए महंगा हो जाएगा डीज़ल!


महंगाई की मार बढ़ने वाली है। वित्त राज्य मंत्री नमोनारायण मीणा ने कहा है कि डीजल पर जल्द ही सरकारी नियंत्रण खत्म होगा। जिससे डीज़ल की कीमतों में करीब 16 रुपए की बढ़ोतरी संभव है।

वित्त राज्य मंत्री नमोनारायण मीणा ने राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा कि डीजल डिकंट्रोल करने का फैसला सैद्धांतिक रूप से हुआ है। यानी कि डीज़ल की कीमतें बाजार तय करेंगी। मीणा के इस बयान के बाद डीजल के दामों में प्रति लीटर करोब 16 रुपए का इजाफा लगभग तय माना जा रहा है।

अगर कीमतें बढ़ती हैं तो देश की चार महानगरों में डीजल की कीमतें आसमान पर पहुंच जाएंगी दिल्ली में प्रति लीटर डीज़ल की कीमत 40 रुपए 91 पैसे से बढ़कर 56 रुपए 91 पैसे पर पहुंच जाएंगी। जबकि कोलकाता में प्रति लीटर डीज़ल पहुंच जाएगी 43 रुपए 74 पैसे से बढ़कर 59 रुपए 74 पैसे पर। मुंबई में डीज़ल प्रति लीटर 45 रुपए 28 पैसे बढ़कर 61 रुपए 28 पर पहुंच जाएगी। वहीं चेन्नई में प्रति लीटर डीजल के भाव 43 रुपए 95 पैसे से बढ़कर 59 रुपए 95 पर पहुंच जाएगा। हालांकि विरोधी पार्टी और यूपीए टू के ज्यादातर सहयोगी दलों ने इसका विरोध किया है।

डीजल की कीमतों के बढ़ने से रोजमर्रा की ज़िंदगी पर इसका बुरा असर पड़ेगा। क्योंकि माल की ढ़ुलाई का खर्च बढ़ने से खाने-पीने से लेकर पहनने-ओढ़ने तक के सामान महंगे हो जाएंगे। और महंगाई से पहले से बुरी तरह कराह रही देश की जनता की स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।



खतरे में भारत की अर्थव्यवस्था: एस एंड पी

भारत की अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसा मानना है दुनिया की नामी रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर का। एस एंड पी ने भारत के आउटलुक को निगेटिव श्रेणी में डाल दिया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए समय अनुकुल नहीं है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने भारत के आउटलुक को नेगेटिव कर दिया है। हालांकि भारत की रेटिंग फिलहला बीबीबी माइनस बरकरार है। इससे पहले भारत का आउटलुक स्थिर श्रेणी में था।

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स का कहना है कि भारत में निवेश और विकास की रफ्तार सुस्त पड़ रही है। साथ ही करंट अकाउंट डिफेसिट बढ़ रहा है। एस एंड पी ने कहा है कि सरकार को आर्थिक सुधारों पर फैसला लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन वित्त मंत्री का मानना है कि भारती अर्थव्यस्था परेशानी की दौर से गुजर रही है लेकिन फिलहाल हताश होने की ज़रूरत नहीं है।

एसएंडपी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत का व्यापार घाटा बढ़ने, विकास की रफ्तार सुस्त पड़ने और आर्थिक सुधारों की ओर कदम न उठाए जाने पर भारत की ग्रेडिंग और नीचे की जा सकती है।

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

घर का सपना होगा सच!

घर का सपना सच करने का समय करीब आ चुका है। क्योंकि रियल स्टेट कंपनियों के फ्लैट्स मनमामी कीमतों पर नहीं बिक पा रहे हैं। जिससे इन कंपनियों पर दोहरी मार पर रही है। एक ओर इनपर कर्ज बढ़ता जा रहा है तो दूसरी ओर इनके शेयर धराशायी हो चुके हैं। इस विषम परिस्थिति से बचने के लिए इनके पास फ्लैट्स सस्ता करने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा है।

अगर आ घर खरीदना चाहते हैं और आसमान पर पहुंच चुकी कीमतों की वजह से घर नहीं ले पा रहे हैं। तो थोड़ा इंतजार कीजिए। आने वाले कुछ महीनों में फ्लैट्स की कीमतों में भारी गिरावट होने की संभावना है। क्योंकि भारत की रियल एस्टेट कंपनियां कर्ज से कराह रही हैं। इसके बावजूद फ्लैट्स की कीमतें कम करने का नाम नहीं ले रही हैं। रेग्युलेशन के अभाव में भारत में रियल एस्टेट कंपनियां मनमाना कीमत वसूलती हैं। लागत से कई गुना ज्यादा कीमत रखने की वजह से देश की कई रियल एस्टेट कंपनियों के फ्लैट्स धूल फांक रहे हैं। लेकिन वो कीमतें कम करने को तैयार नहीं हैं। इसका खामयाजा ये हो रहा है कि इन कंपनियों के कई प्रोजेक्ट शुरू ही नहीं हो पा रहे हैं। और बैंकों से जो लोन कंपनियों ने ले रखी है उसका ब्याज बढ़ता जा रहा है। जिसे चुकाने के लिए डीएलएफ, यूनिटेक, पार्श्वनाथ जैसी कंपनियों को अपना ज़मीन बेचना पड़ रहा है। दूसरी तरफ इन कंपनियों के शेयर लगातार लुढ़कते जा रहे हैं। देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के शेयर देश की सुपर 30 यानी सेंसेक्स के 30 दिग्गज शेयरों की लिस्ट से बाहर निकल चुकी है। साल 2008 के शुरुआत में डीएलएफ की कीमत यानी मार्केट वैल्यू 38 अरब 40 करोड़ डॉलर थी। जो अब लुढ़ककर 6 अरब 40 करोड़ डॉलर पर पहुंच गई है। यानी कंपनी के मार्केट वैल्यू में करीब 84 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

साल 2011 में रियल एस्टेट सेक्टर में 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। डीएलफ के सेंसेक्स से बाहर होने के बाद देश की 30 सबसे बड़ी कंपनियों की लिस्ट में एक भी रियल एस्टेट कंपनियां नहीं होंगी। डीएलएफ का जब ये हाल है तो छोटी कंपनियों का अंदाजा लगाया जा सकता है। रेपो रेट कम होने के बाद भी होम लोन ग्राहकों को मामूली फायादा हुआ है। ऐसे में फ्लैट्स की कीमतें कम करने के अलावा रियल एस्टेट कंपनियों के सामने कोई दूसरा उपाय नहीं है। तभी वो ग्राहकों को एकबार फिर से फ्लैट्स बेच पाने में सक्षम हो पाएंगे और अपने कर्ज का बोझ हल्का कर सकेंगी।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

महंगाई के बदले ग्रोथ को आरबीआई ने दी तरजीह

होम लोन, कार लोन, एजुकेशन लोन सहित हर तरह के कर्ज सस्ते होंगे। रिजर्व बैंक ने तीन साल में पहली बार रेपो रेट में पचास बेसिस प्वाइंट की कटौती का ऐलान किया है। औद्योगिक विकास की रफ्तार को तेज करने के रिजर्व बैंक ने कर्ज दरों में कटौती की है। हालांकि इसका साइड इफेक्ट महंगाई दर पर देखने को मिल सकता है।

करीब तीन साल से लगातार महंगे होते जा रहे कर्ज से आम लोगों को राहत मिलने की उम्मीद जगी है। औद्योगिक स्तर पर लगातार हिचकोले खा रही देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए रिजर्व बैंक ने आखिरकार कर्ज दरों में कटौती का फैसला कर लिया। रिजर्ब बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कर्ज दरों यानी रेपो रेट में आधा फीसदी की कटौती का ऐलान किया है। साथ ही रिवर्स रेपो रेट में भी आधा फीसीदी की कटौती की गई है। रेपो रेट 8.5 फीसदी से घटकर 8 फीसदी पर जा पहुंचा है। जबकि रिवर्स रेपो रेट 7.5 से घटकर 7 फीसद पर पहुंच गया है। जबिक कैश रिजर्व रेशियो यानी सीआरआर में कोई बदलाव नहीं किया गया है। और ये 4.75 फीसदी पर बरकरार है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के बादल पूरी तरह से अभी नहीं छटे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी दुनियाभर के देशों में चल रहे आर्थिक उठापटक और कर्ज संकट से पूरी तरह अवगत हैं। आर्थिक जगत के ये दोनों दिग्गज भारत पर इसके असर की भी पुष्टि कर चुके हैं। लगातार कम होती जा रही जीडीपी विकास दर इसका एक अहम उदाहरण है। जानकारों और औद्योगिक संस्थाओं ने कंज्युमर में विश्वास लौटाने के लिए कर्ज दरों में कटौती को जायज ठहराया है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। कर्ज दरों में कटौती से एक बार फिर से महंगाई में बढ़ोतरी हो सकती है। क्योंकि कर्ज दर कम होने से लोग फिर से ज्यादा कर्ज लेने लगेंगे। जब लोगों के पास पैसे ज्यादा आएंगे और सामन सीमित होंगे तो साफ है महंगाई बढ़ेगी। सात फीसदी के करीब महंगाई दर बनी हुई है। ऐसे में रिजर्व बैंक का ये कदम तलवार की धार पर चलने के बराबर है।

रेपो रेट वे दर है जिसपर देशभर के बैंक रिजर्व बैंक से लोन लेते हैं। और रिवर्स रेपो रेट वो दर है जिसपर रिजर्व बैंक देश के दूसरे बैंकों का पैसा लेता है।