अंतरराष्ट्रीय
बाजार में कच्चे तेल और रुपए की कमजोरी का नाम लेकर सरकार पेट्रोल की कीमतें
बढ़ाती जा रही हैं। लेकिन इसकी असली सच्चाई तो कुछ और ही है। केंद्र और राज्य
सरकारें पेट्रोल पर जो टैक्स वसूलती हैं दरअसल उसकी वजह से पेट्रोल की कीमतों में
इजाफा हुआ है।
केंद्र और राज्य सरकारें अपनी झोली भरने में लगे हैं। इन सरकारों को आम लोगों की कोई चिंता नहीं है। अगर ये सरकारें टैक्स पूरी तरह से खत्म कर दें तो आज से ही आप केवल 35 रुपए प्रति लीटर में पेट्रोल खरीद सकेंगे।
केंद्र और राज्य सरकारें अपनी झोली भरने में लगे हैं। इन सरकारों को आम लोगों की कोई चिंता नहीं है। अगर ये सरकारें टैक्स पूरी तरह से खत्म कर दें तो आज से ही आप केवल 35 रुपए प्रति लीटर में पेट्रोल खरीद सकेंगे।
जिस कीमत पर हम पेट्रोल खरीदते हैं उसका करीब 48 फीसदी हिस्सा ही सही मायने में पेट्रोल की कीमत होनी चाहिए। और इससे ज्यादा जो पैसे वसूले जाते हैं वो केंद्र और राज्य सरकार की जेबों में टैक्स के रूप में चले जाते हैं। पेट्रोल पर करीब 35 फीसदी एक्साइज ड्यूटी, 15 फीसदी सेल्स टैक्स, 2 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगाया जाता है। सेल्स टैक्स को कई राज्यों में वैट के रूप में भी वसूला जाता है।
अगर दिल्ली में बगैर
टैक्स के पेट्रोल बेची जाएगी तो उसका बेस प्राइस होगी 35 रुपए प्रति लीटर। जबकि
इसे 73.14 रुपए प्रति लीटर बेची जा रही है। तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, प्रॉसेसिंग चार्ज और कच्चे तेल को शोधित करने
वाली रिफाइनरियों का चार्ज शामिल होता है।
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