शनिवार, 26 मई 2012

तेल कंपनियां मस्त, लोग पस्त


भारतीय तेल मार्केटिंग कंपनियां देश ही नहीं दुनिया की दिग्गज कंपनियों में शुमार हैं। और इनके बैलेंसशीट में घाटे का कहीं नामो निशान नहीं है। लेकिन ये कंपनियां घाटे का रोना रोकर देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं और उनके माथे पर महंगे पेट्रोल का ठीकरा फोड़ रहे हैं।

भले ही महंगे पेट्रोल की वजह से आम लोग त्राहिमाम कर रहे हों लेकिन सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों की स्थिति और मजबूत होती जा रही है। भारत के 90  फीसदी तेल कारोबार पर सरकारी कंपनियों का नियंत्रण है। ये कंपनियां आम लोगों को मूर्ख बनाकर उनसे पैसे ऐंठती हैं। क्योंकि असल में भारत में तेल की रिटेल कीमत और अंतरराष्ट्रीय  बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में हमेशा आसमान ज़मीन का अंतर होता है। लेकिन जानबूझकर ये तेल मार्केटिंग कंपनियां ज्यादा महंगा कच्चा तेल का रोना रोकर कीमतें बढ़ाती हैं। पूरे साल कंपनियां घाटा-घाटा चिल्लाकर अपने पक्ष में माहौल तैयार करती हैं और समय देखकर कीमतें बढ़ा देती हैं। चूंकि ये कंपनियां सरकारी है इसीलिए सरकार का भी इन कंपनियों के साथ सहयोग होता है। तभी तो इतना घाटे का रोना रोने वाली कंपनियों के जब वार्षिक नतीजे आते हैं तो उनके बैलेंसशीट पर घाटे के बदले प्रॉफिट दिखाई देते हैं।

आईओसी को साल 2009 में 7210 करोड़ रुपए का कुल प्रॉफिट हुआ है। साल 2010 में 17333 करोड़ रुपए का लाभ और साल 2011 में 13642 करोड़ रुपए का लाभ हुआ है।
भारत पेट्रोलियम को साल 2009 में 2079 करोड़ रुपए का प्रॉफिट हुआ है। साल 2010 में 3608 करोड़ रुपए और साल 2011 में 4068 करोड़ रुपए का प्रॉफिट हुआ है।

ऐसा ही हाल हिंदुस्तान पेट्रोलियम का भी है। एचपीसीएल को साल 2009 में 1693 करोड़, साल 2010 में 3285 करोड़ और साल 2011 में 3768 करोड़ रुपए का प्रॉफिट हुआ है।
तभी तो ये कंपनियां दुनिया की 500 दिग्गज फॉर्च्यून कंनपियों में शुमार हैं।

दुनिया की दिग्गज कंपनियों की लिस्ट में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन का स्थान  98 वां है।  भारत पेट्रोलियम दुनिया की दिग्गज कंपनियो की लिस्ट में आज भी 271 वें नबंर पर है। हिंदुस्तान पेट्रोलियम का फॉर्च्यून 500 कंपनियों की लिस्ट में 335 स्थान पर काबिज हैं। 
दरअसल भारत में रोजाना 34 लाख बैरल तेल की खपत होती है और इसमें से 27 लाख बैरल तेल आयात किया जाता है। एक बैरल में 159 लीटर कच्चा तेल आता है। आयात किए गए कच्चे तेल को साफ करने के लिए रिफाइनरी में भेज दिया जाता है। तेल विपणन कंपनियों के कच्चा तेल खरीदने के समय और रिफाइनरी से ग्राहकों को मिलने वाले तेल के बीच की अवधि में तेल की कीमतें ऊपर-नीचे होती हैं। यहां कंपनियां अपना फायदा उठाती हैं। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 100  डॉलर प्रति बैरल है और अंडररिकवरी हमेशा मौजूदा कीमतों के आधार पर तय की जाती है। लेकिन कंपनियां 120 डॉलर प्रति बैरल के पुराने भाव से अंडररिकवरी की गणना करके भारी-भरकम आंकड़ों से जनता को छलती है। 

कंपनियों की रौनक साल दर साल बढ़ती जा रही हैं लेकिन आम लोगों के चेहरे साल दर साल पीले पड़ते जा रहे हैं। उनका बजट बिगड़ता जा रहा है। उनके सपने कुंद होते जा रहे हैं।


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