कंपनी - रिको ऑटो। सेक्टर - ऑटो पार्ट्स। एक साल का उच्चतम स्तर, 82 रुपए 90 पैसे। एक साल का न्यूतम स्तर 32 रुपए 45 पैसे। आज कीमत 36 रुपए 15 पैसे। यानी आपके पोर्टफोलियो के लिए द मोस्ट वांटेड स्टॉक। रिको ऑटो, देशी और विदेशी ऑटो कंपनियों को इंजन, ट्रांसमिशन, ब्रेकिंग और सस्पेंशन से जुड़े पार्ट्स सप्लाई करती है।
अगर इस कंपनी की ग्रोथ स्टोरी पर नजर डालें तो पता चलता है कि इसकी बिक्री केवल 6 वर्षों में पांच गुना से ज्यादा बढ़ी है। 1999 में बिक्री 3 करोड़ 40 लाख डॉलर थी जो कि 2005 में बढ़कर 15 करोड़ 70 लाख डॉलर पर पहुंच गई। वहीं मुनाफा 14 लाख डॉलर से बढ़कर 81 लाख डॉलर पर पहुंच गया।
रिको ऑटो का सबसे बड़ा कस्टमर हीरो होंडा है। जो कि देश में सबसे ज्यादा टू व्हीलर्स बेचती है। कंपनी कार और कमर्शियल वाहनों के लिए भी पार्ट्स सप्लाई करती है। अमेरिका और यूरोप में कंपनी की अच्छी पहुंच है।
एक समय था जब कंपनी की 60 परसेंट से ज्यादा की कमाई हीरो होंडा से होती थी। और जब हीरो होंडा कि बिक्री कम होती थी तो उसका असर कंपनी पर दिखने लगता था। इससे निजात पाने के लिए कंपनी ने अपना दरवाजा दूसरी कंपनियों के लिए भी खोल दी। आज टू व्हीलर सेग्मेंट में कंपनी की कस्टमर लिस्ट में बजाज, होंडा और सुजुकी का नाम भी शामिल है। यानी अब हीरो होंडा बिके या बजाज पल्सर फयादा रिको ऑटो को जरूर होगा।
पैसेंजर कार सेग्मेंट में कंपनी,मारुति सुजुकी,फोर्ड,जनरल मोटर्स,निसान,वोल्वो जगुआर, टाटा और लैंड रोवर को ऑटो पार्ट्स की सप्लाई करती है। वहीं कमर्शियल गाड़ी बनाने वाली कैटरपिलर्स,पर्किन्स जैसी कई बड़ी कंपनियों के नाम रिको ऑटो के कस्टमर लिस्ट में शामिल है।
इतना सब कुछ होते हुए भी कंपनी के शेयर पिछले कुछ दिनों में धाराशायी हो गए। जिसकी मुख्य वजह है रुपए का मजबूत होना। क्योंकि कंपनी के ज्यादातर ऑर्डर पुराने थे। साथ ही कंपनी पर ब्याज दर की भी मार पड़ी। ब्याज दर बढ़ने से गाड़ियों की बिक्री कम हुई। जिसका असर रिको ऑटो पर पड़ा।
लेकिन अब स्थिति बदल रही है। कंपनी अपना ध्यान यूरोपीय बाजारों पर बढ़ा रही है। ताकि डॉलर की मजबूती की मार से बचा जा सके। साथ ही देश में फेस्टिवल सीजन शुरू हो चुका है जिससे की गाड़ियों की बिक्री में तेजी आने का आनुमान है। कंपनी ने इसी साल दो ज्वाइंट वेंचर किए हैं। पहला ज्वांट वेंचर हाइड्रोलिक ब्रेक बनाने के लिए कांटिनेंटल ऑटोमोटिव सिस्टम के साथ तो दूसरा दोपहिया वाहनों के अल्यूमीनियम एलॉय व्हील बनाने के लिए जिनफेई चाइना के साथ।
रुपया अगर 2009 तक एक डॉलर के मुकाबले 32 रुपए पर भी पहुंच जाए। ऐसा कई अंतरराष्ट्रीय रिसर्च फर्म और बैंकों का मानना है। फिर भी रिको ऑटो को गम नहीं है। क्योंकि इस कंपनी में सस्ते ऑटो पार्ट्स बनाने की क्षमता है। और आने वाले दिनों में सस्ती कार (जो भी हो एक लाख या सवा लाख वाली) की जो आंधी देश में चलेगी। उसमें इस कंपनी की अहम भागीदारी होगी।
डिस्क्लेमर: रिको ऑटो के कुछ शेयर मैं भी होल्ड करता हूं।
1 टिप्पणी:
main bhi rico auto per sawar ho chuki hun..ab listing gain ka intezar hai! bahut badiya article hai, dhanyabad!
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