मंगलवार, 26 मई 2009

महामर्जर की तैयारी

भारत में 10 करोड़ से ज्यादा ग्राहक बना लेने के बाद भारती एयरटेल की नजर अब दुनिया के दूसरे बड़े बाजार पर टिकी है। वोडाफोन और चाइना मोबाइल के बाद अपनी जगह बनाने को बेताब है भारती एयरटेल। जी हां, टेकीकॉम सर्विस देने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी भारतीय एयरटेल और अफ्रीकी टेलीकॉम कंपनी एमटीएन के बीच विलय को लेकर एकबार फिर से बातचीत तेज हो गई है। और किसी भी क्षण इसके विलय का ऐलान हो सकता है। जानकारों के अनुसार 23 अरब डॉलर यानी करीब 1100 अरब रुपए इस मर्जर पर खर्च होंगे। ये डील ना केवल भारत में अबतक की सबसे बड़ी डील होगी बल्कि दुनियाभर में भारतीय कंपनियों ने अबतक जितने भी मर्जर एक्विजिशन किए हैं उनमें सबसे बड़ी होगी। दोनों कंपनियों कि तरफ से इस डील पर 23 अरब डॉलर खर्च किये जाएंगे। इससे पहले हुए टाटा-कोरस डील में 12.2 अरब डॉलर खर्च हुए थे। जबकि वोडाफोन-हच की डील 10 अरब डॉलर की थी। भारती एमटीएन के विलय के बाद एमटीन में 49 फीसदी हिस्सेदारी भारती एयरटेल की होगी और भारती एयरटेल में 36 फीसदी हिस्सेदारी एमटीएन और एमटीन के शेयर होल्डर्स की होगी। इसके साथ ही भारती एमटीएन ग्राहकों की संख्यां के हिसाब से वोडाफोन और चाइना मोबाइल के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन जाएगी। अफ्रीकी टेलीकॉम कंपनी एमटीएन करीब 24 देशों में अपनी सर्विस देती है। यानी कि इस मर्जर के बाद भारतीय एयरटेल की पहुंच दो दर्जन से ज्यादा देशों में हो जाएगी। साथ ही दुनियाभर में एमटीएन और भारती एयरटेल के 20 करोड़ से ज्यादा ग्राहक होंगे। इस डील के लिए भारती एयरटेल को करीब 4 अरब डॉलर कर्ज का बंदोवस्त करना होगा। क्योंकि कंपनी के पास पहले से ही 3.5 अरब डॉलर नगद मौजूद है। इस डील की खबर के बाद सोमवार को अफ्रीका में जहां एमटीएन के शेयर 8 फीसदी चढ़ गए वहीं भारतीय बाजार में भारती एय़रटेल के शेयरों में करीब 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि पिछले साल के मुकाबले काफी कम में जब ये डील हो जाएगी तो भारती एयरटेल के शेयरों में सुधार आने में देरी नहीं होगी। एक साल पहले भारती ने एमटीन के साथ विलय की कोशिश की थी। लेकिन तब बात नहीं बन पाई थी। साथ ही अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन ने भी एमटीएन के साथ मर्जर की काफी कोशिश की लेकिन डील के बीच मुकेश अंबानी के आ जाने की वजह से मामला कोर्ट तक पहुंच गया। और आरकॉम के साथ ये डील नहीं हो पाई। हालांकि उस समय आरकॉम या भारती के साथ एमटीएन का विलय ना हो पाना दोनों भारतीय कंपनियों के हित में ही रहा। क्योंकि तब मंदी का दौर शुरू नहीं हुआ था और ये डील जो कि अब 23 अरब डॉलर में सिमटने वाली है। एक साल पहले इसके लिए 45 से 60 अरब डॉलर खर्च करने होते। यानी कि भारती एयरटेल के लिए ये है एक सुनहरा मौका। और इससे पहले की बस फिर से छूट जाए सुनील भारती मित्तल इस मर्जर पर मुहर लगाने को बेताब दिख रहे हैं। 

शनिवार, 23 मई 2009

सरकार वही चुनौतियां नई

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दूसरी पाली आसान नहीं रहने वाली है। भले ही इस बार भी उनके मंत्रिमंडल में अर्थशास्त्री नेताओं की भरमार हो। लेकिन उनके पास चुनौतियों की भी कमी नहीं है। आर्थिक मोर्चे पर सबसे पहली चुनौती यूपीए सरकार के पास होगी दुनियाभर में छाई आर्थिक मंदी से भारत पर पड़ने वाले असर को कम करने की। इसके लिए हो सकता है सरकार को फिर से कोई स्टीमुलस या बेलआउट पैकेज का ऐलान करना पड़े। भारत में नौकरी के अवसर बढ़ने के बजाए पिछले कुछ महीनों से नौकरियां ज्यादा छूट रहे हैं। ऐसे में सरकार के सामने रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा करना एक बड़ी चुनौती होगी। आर्थिक क्षेत्र में बहुत काम होना बाकी है। ऐसा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी मानना है। इसीलिए लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने कहा कि देश में आर्थिक सुधार को और तेज करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। सरकार के सामने महंगाई का मुद्दा अभी भी बरकरार है। भले ही वो आसमान पर पहुंच चुकी महंगाई दर के आंकड़े पर काबू पाने में कामयाब रही हो। लेकिन सही मायने में महंगाई पर लगाम नहीं लगा पाई। इसलिए इस बार यूपीए सरकार के सामन खाने पीने  के सामानों के खुदरा मुल्य पर लगाम लगाने की एक बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए सरकार को डिमांड सप्लाई को सही तौर पर बनाए रखने के लिए और व्यापारियों की मिलीभगत और कालाबाजारी को रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे। साथ ही डिमांड में तेजी लाने के लिए सरकार को कई ठोस कदम उठाने की जरूरत है। क्योंकि डिमांड में कमी की वजह से औद्योगिक विकास दरों में भारी कमी आई है। और इसका असर कई सेक्टर्स पर देखा जा रहा है। मांग में कमी की वजह से कंपनियों के नतीजे खराब हो रहे हैं। इसके साथ ही एफडीई और विनिवेश के क्षेत्र में कई बड़े काम करने की चुनौती होगी। ताकी बीमा, नागरिक उड्डयन, बैकिंग और रिटेल जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई जा सके। इसके साथ ही सरकारी खजाने में पैसे की बढ़ोतरी करने की एक सबसे बड़ी चुनौती सरकार के पास होगी। क्योंकि किसानों के लिए 65000 करोड़ रुपए की कर्ज माफी और छठे वेतन आयोग के सिफारिशों को लागू करने से लेकर इनकम टैक्स की सीमा में छूट दिए जाने से सरकार के खजाने पर काफी बुरा असर पड़ा है। इसलिए  राजस्व घाटा यानी आमदनी और खर्चे के बीच का घाटा बढ़कर जीडीपी के 7 से 8 फीसदी के बीच पहुंच गया है। जबकि इसे 3 फीसदी के आस पास रहना चाहिए। यानी आसान जीत के साथ सरकार बना लेने के बाद अब यूपीए के सामने है कठिन और चुनौतीपूर्ण आर्थिक डगर।

बुधवार, 20 मई 2009

प्रॉपर्टी में निवेश का है ये सही समय

घर का सपना सच करने का है ये सही समय। क्योंकि पिछले कई महीनों से लगातार फ्लैट्स और प्रॉपर्टी की कीमतों में आर रही गिरावट का दौर अब खत्म हो सकता है। पिछले 6 महीनों में देशभर में फ्लैट्स की कीमतों में 25 से 50 फीसदी तक की कमी आई है। और ये कमी की है देश की बड़ी-बड़ी रियल्टी कंपनियों ने। दिल्ली में कुछ महीने पहले डीएलएफ के किसी प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक कराने के लिए 8500 रुपए प्रति वर्गफुट की दर से रुपए खर्च करने होते थे। जो कि अब घटकर 5000 रुपए प्रति वगर्फुट पर पहुंच चुका है। यानी फ्लैट्स की कीमतों में 41.2 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं यूनिटेक के गुड़गांव के प्रोजेक्ट में फ्लैट्स की कीमतों में  करीब 30 फीसदी की कमी आई है। पहले यूनिटेक 4500 रुपए प्रति वर्गफुट के हिसाब से फ्लैट्स बेचता था। जो कि अब घटकर 3200 रुपए प्रति वर्गफुट पर आ चुका है। यूनिटेक ने मुंबई के दादर में अपने फ्लैट्स की कीमतों में करीब 36 फीसदी की कमी  की है। एचडीआईएल ने मुंबई के कुर्ला में अपने फ्लैट्स की कीमतें 7500 रुपए प्रति वर्गफुट से घटाकर 5500 रुपए प्रति वर्गफुट कर दी है। यानी कि कीमतों में करीब 27 फीसदी की कटौती। साथ ही एचडीआईएल के अंधेरी में फ्लैट्स की कीमतों में 37.5 फीसदी की कमी की है। दक्षिण भारत में भी प्रॉपर्टी की कीमतों में भारी कमी देखी जा रही है। रियल एस्टेट डेवलपर पुर्वांकरा चेन्नई में 6 महीने पहले अपने फ्लैट्स 3500 रुपए प्रति वर्गफुट के हिसाब से बेच रहा था जो कि अब घटकर 1785 रुपए प्रति वर्गफुट पर पहुंच चुका है। यानी 49 फीसदी की गिरावट। सस्ते फ्लैट्स की वजह से रियल एस्टेट कंपनियों के कारोबार में धीरे धीरे सुधार होने लगा है। फ्लैट्स बुक कराने वालों की संख्यां में बढ़ोतरी देखी जा रही है। पिछले कुछ दिनों में लांच हुए सस्ते फ्लैट्स को लोगों ने हाथों हाथ लिया है। घर बुक करने के लिए अब लोगों को कम सोचना पड़ रहा है क्योंकि पहले से ही काफी कम हो चुकी होम लोन दरों और भी गिरावट के संकेत मिल रहे हैं। यानी अपने घर का सपना सच करने का हो सकता है ये एक सही समय। और अगर आप प्रॉपर्टी में निवेश करना चाहते हैं तो है ये आपके लिए बेहतर समय। क्योंकि शेयर बाजार की तरह कहीं ऐसा ना हो कि प्रॉपर्टी बाजार में भी आप निचले लेवल पर खरीदारी करने से चूक जाएं। क्योंकि होम लोन दरों में बहुत जल्द एक बार और कटौती होने वाली है। जिससे ज्यादा से ज्यादा कस्टमर घर को ओर भागेंगे। और ऐसे में कीमतें नीचे जाने के बदले ऊपर का रूख कर लेंगे। साथ ही यूपीए सरकार ने पहले ही जता दिया है कि बिना हाउसिंग सेक्टर्स में सुधार के इकॉनोमी में सुधार संभव नहीं है। क्योंकि इससे स्टील, सीमेंट सहित कई सेक्टर जुड़े हुए हैं।

मंगलवार, 12 मई 2009

बाजार में हरियाली के पीछे काला धन तो नहीं?

सावधान!इन पैसों के चक्कर में बुल भागेगा लेकिन इसपर चढ़ना नहीं। शेयर बाज़ार में पिछले साल के अक्टूबर महीने के मुकाबले आई रिकॉर्ड तेज़ी और सेंसेक्स के 12,000 के स्तर को पार करने के बाद अब जानकार इस बात की आशंका भी जता रहे हैं कि हो सकता है कि विदेशों के ज़रिए काला धन भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश किया जा रहा हो। जिसके चलते बाज़ार में तेज़ी आ रही है। मंदी के बादल अभी छंटे नहीं हैं लेकिन लगता है शेयर बाजार का बुल उठ खड़ा हुआ है। 5 मई को अचानक बाजार में 700 अंकों से ज्यादा की तेजी आ गई। और सेंसेक्स 12000 के पार चल गया। हालांकि उसके एक दो दिन बाद बाजार में थोड़ा मुनाफा वसूली देखी गई। लेकिन आज फिर से सेंसेक्स ने करीब 475 अंक की छलांग लगा दी। जानकारों का मानना है इस तेजी के पीछे ब्लैक मनी का हाथ हो सकता है। अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स रातों रात नहीं बदल सकते। साथ ही कंपनियों के नतीजे भी काफी बेहतर नहीं आ रहे हैं। यही नहीं आम चुनाव के बाद कोई दल पूरी बहुमत के साथ सरकार बना पाएगी बाजार को इसका भी भरोसा नहीं है। ऐसे में अचानक आई तेजी की कोई ठोस वजह नहीं दिखाई दे रही है। सेबी को फिलहाल इस मौके पर चौकन्ना होने की जरूरत है। ब्लैक मनी देश में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। विरोधी दलों के साथ अब कांग्रेस की सरकार ने भी स्वीस बैंकों में जमा 70 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के काले धन को वापस लाने पर गंभीर होती दिख रही है। ऐसे में ब्लैक मनी के मालिकों के बीच खलबली मच चुकी है। और ऐसे में ये आशंका जताई जा रही है कि वे अपने अपने ब्लैक मनी को स्वीस बैंकों से निकालकर दूसरे देशों और पी नोट्स के जरिए भारतीय बाजार में लगा रहे हैं। और अगर सचमुच ऐसा हो रहा है तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आम निवेशकों को उठाना पड़ सकता है। क्योंकि छोटे निवेशक तेजी में बाजार में घुस तो जाएंगे लेकिन फिर उन्हें बाजार से निकलने का मौका कम ही मिल पाएगा। ब्लैक मनी काफी सेंसिटिव होता है। पलक झपते ही दुनिया की कई सीमाएं लांघ जाता है। ऐसे में भारतीय बाजार में इसका लंबे समय तक बने रहना मुमकिन नहीं लग रहा है। दुनिया में जहां जहां नियमों में कुछ ढ़ील मिलती है वहां ये आराम से खिसक जाता है। ऐसे में बाजार की हरियाली में छोटे निवेशकों को फूंक फूंक कर कदम रखने की जरूरत है।

शनिवार, 9 मई 2009

नैनो की बुकिंग टांय टांय फिस्स

दुनिया की सबसे सस्ती लखटकिया कार की बुकिंग उत्साहजनक नहीं रही। इसे देखा करोड़ों लोगों ने लेकिन केवल दो लाख के करीब लोग ही इसकी बुकिंग की हिम्मत दिखा पाए। जी हां,17 दिनों की लंबी बुकिंग प्रक्रिया और देशभर में करीब 30000 आउटलेट खोलने के बावजूद सिर्फ 2 लाख 3 हजार नैनो की ही बुकिग हो पायी। इसके पीछे एक-दो नहीं बल्कि कई कारण हैं।  सबसे पहली और अहम वजह ये है कि नैनो को लॉटरी से दिया जाना।  यानी जिन लोगों ने खरीदारी का मन बना लिया उन्हें भी लॉटरी में अपने भाग्य का इंतजार करना होगा। ऐसे में ज्यादातर लोग नैनो की रेस से बाहर हो गए। 95000 से 1 लाख 40 हजार जैसे भारी भरमक बुकिंग अमाउंट ने भी लोगों को नैनो से दूर किया। यही वजह है 300 के फॉर्म कई लोगों ने खरीदे लेकिन उसे जमा किया बहुत कम लोगों ने। हर 6 में से केवल 2  लोग ही बुकिंग के लिए आगे आए। नैनो की कम बुकिंग की तीसरी वजह है टेस्ट ड्राईव के लिए इसका लोगों के हाथ नहीं आना। आमतौर पर कार खरीदने वाले ज्यादातर लोग कार खरीदने से पहले उसकी टेस्ट ड्राईव जरूर करना चाहते हैं। ताकि उन्हें फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस मिल सके। इसके अलावा ज्यादातर लोग ऑन रोड एक्सपीरियंस देखना चाहते हैं। नैनो की ज्यादा बुकिंग नहीं होने के पीछे एक और अहम वजह है ऑन रोड इसकी कीमत का ज्यादा होना। यही वजह है कि जिस दोपहिया चालकों को टार्गेट कर नैनो को लांच किया गया वही इसकी बुकिंग प्रक्रिया से दूर है। टाटा नैनो की बुकिंट ट्रेंड से ये साफ देखने को मिल रहा है। दो लाख से ज्यादा नैनो की बुकिंग हुई है और इसमें से 1 लाख से ज्यादा लग्जरी मॉडल यानी सीएक्स मॉडल लेना चाहते हैं। कंपनी को अब बस यही आस है कि जब नैनो सड़कों पर और गलियों में घूमेगी तो लोगों को ज्यादा से ज्यादा लुभा पाएंगे।