शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

2011 में बिज़नेस जगत

मारुति में हड़ताल
कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति के लिए साल 2011 काफी बुरा रहा। कंपनी की मनमानी की वजह से इस साल मारुति में कर्मचारियों ने चार बार हड़ताल किए। जिससे कंपनी को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। मारुति सुजुकी इंडिया इस साल हड़ताल के लिए सुर्खियों में रहा। कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी इस कंपनी में एक या दो बार नहीं बल्कि चार बार कर्मचारियों ने हड़ताल किए। कंपनी की मनमानी के विरोध में किए गए ये हड़ताल महीनों तक खिंची। 4 जून को हुई कर्माचारियों की हड़ताल 13 दिनों तक खिंची...जबकि 29 अगस्त हो हुई हड़ताल 33 दिनों तक चली..कंपनी के तानाशाही रवैए की वजह के 15 सितंबर को एक बार फिर से कर्मचारी हड़ताल पर चले गए..ये हड़ताल 2 दिनों तक चली..लेकिन आश्वासन के बावजूद कर्मचारियों की मांग नहीं माने जाने पर 1 अक्टूबर को फिर से हड़ताल हुई जो कि 14 दिनों तक चली। गुड़गांव के मानेसर प्लांट में हुए इन कुल चार हड़तालों की वजह से कंपनी को करीब 2000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। साथ ही कंपनी के मार्केट शेयर लुढ़क गए। जिसका फायदा देश की दूसरी कार बनाने वाली कंपनियों को हुआ।

स्टीव जॉब्स का निधन
स्टीव जॉब्स के निधन के रुप में इस साल उद्योग जगत को सबसे बड़ी क्षति हुई । लंबे समय से कैंसर से पीड़ित एप्पल के पूर्व सीईओ स्टीव का अक्टूबर में निधन हो गया। स्टीव ने कंम्प्यूटर के एक अलग लेवल तक पहुंचाया। स्टीव के आविष्कारों के दुनिया हमेशा उन्हें याद रखेगी।

कर्ज़ में डूबी एयर इंडिया
सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया के लिए भी ये साल बुरा साबित हुआ। हजारों करोड़ रुपए के घाटे ने महाराजा की कमर तोड़ कर रख दी। एयर इंडिया के पास अपने कर्मचारियों को पायलटों की सैलरी देते तक के पैसे खत्म हो गए।

सोना बना 29 हज़ारी
सोने के साल 2011 काफी सुहाना रहा। इस साल सोने की चमक लागातार बढ़ती रही। और सोने की कीमत अपने रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंची। सोना कितना सोना है...इसका सही अंदाजा साल 2011 में ही हो पाया। क्योंकि प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 29 हजार रुपए को पार कर गई। जनवरी में प्रति 10 ग्राम सोना मिल रहा था 19874 रुपए में...जो कि फरवरी में बढ़कर जा पहुंचा 20925 रुपए प्रति 10 ग्राम पर...मई की गर्मी में भी सोना नहीं पिघला और इसकी कीमत प्रति 10 पहुंच गई 22476 रुपए पर...जुलाई में सोने की प्रति 10 की कीमत थी 23130 रुपए..जोकि अगस्त में 27200 रुपए पर पहुंच गई और नवंबर में सोने की कीमत अपने रिकॉर्ड स्तर पर यानी 29111 पर बंद हुई। यूरोप के कई देशों के कर्ज संकट में फंसने और अमेरिका की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से सोने की कीमतों में पूरे साल तेजी बनी रही। क्योंकि दुनियाभर के शेयर बाजारों की स्थिति ज्यादा ठीक नहीं थी और ऐसे में निवेशक सुरक्षित निवेश के लिए सोने में जमकर खरीदारी की। इस वजह से सोने चमक लगातार बढ़ती रही।

महंगाई ने पूरे साल रुलाया
महंगाई दर ने इस साल आम लोगों को खूब रुलाया। साथ ही सरकार की नींद उड़ा दी। बढ़ती महंगाई के चलते देशभर में प्रदर्शन हुए। लेकिन साल के अंत तक महंगाई दर काबू में आ गई। इस साल जनवरी से महंगाई की मार शुरू हुई और नवंबर तक लोगों को परेशान करती रही। खाने-पीने के सामानों की लगातार बढ़ती कीमतों की गूंज संसद तक सुनई दी। देशभर में लोग लगातार बढ़ती महंगाई के विरोध में सड़कों पे उतर आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव को तिमाही दर तिमाही लोगो को आश्वासन देना पड़ा...कि महंगाई जल्द ही काबू में आ जाएगी। 16 जनवरी को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर 8.96 फीसदी थी। जो कि 10 सितंबर को खत्म हफ्ते में 10.05 फीसदी के पार पहुंच गई। ऐसा लगा की महंगाई रोकने के लिए उठाए गए सरकार की सारी कदम विफल साबित हो रही हो। क्योंकि 3 नवंबर को खत्म हफ्ते में खाद्य महंगाई दर 12.21 फीसदी पर जा पहुंची।लेकिन कर्ज दरों में बढ़तोरी और सप्लाई व्यास्था तंदुरुस्त होने का असर दिसंबर में दिखा। 22 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में खाद्य महंगाई दर घटकर 1.81 फीसदी पर लुढ़क गई। इस आंकड़े ने सरकार के साथ ही आम लोगों को राहत दी। क्योंकि महंगाई की वजह से ईएमआई में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी। साथ ही महंगे खाने-पीने के सामानों ने आम लोगों का पूरे साल बज़ट बिगाड़ कर रखा। लेकिन आने वाले साल में इससे कुछ राहत मिलने की उम्मीद जगी है।

दिवालिएपन की कगार पर किंगफिशर
किंग ऑफ गुड टाईम्स के नाम से मशहूर विजमाल्या के लिए साल 2011 ठीक नहीं रहा। क्योंकि इनकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस कर्ज के बोझ तले दबकर दिवालिएपन की कगार पर पहुंच गई। पैसे की कमी की वजह से किंगफिशर एयरलाइंस ने सैकड़ों फ्लाइट कैंसिल किए।

58 से 70 रुपए प्रति लीटर पहुंचा पेट्रोल
साल 2011 में पेट्रोल की कीमतों ने लोगों को खूब रुलाया। कच्चे तेल के महंगे होने की वजह से पेट्रोल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती रही। नवंबर तक पेट्रोल करीब 70 रुपए प्रति लीटर पर जा पहुंचा।
साल 2011 की शुरुआत होते ही पेट्रोल की कीमतों में आग लगनी शुरू हो गई। पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला महीने दर महीने बढ़ता ही गया। जनवरी 2011 को तेल मार्केटिंग कंपनियों ने प्रति लीटर पेट्रोल की कीमतों में 2 रुपए 52 पैसे की बढ़ोतरी कर दी। जिससे प्रति लीटर पेट्रोल पहुंच गया 58 रुपए 37 पैसे पर। इसके बाद सबसे बड़ी प्रति लीटर 5 रुपए की बढोतरी देखी गई मई महीने में। जिसने लोगों की कमर तोड़कर रख दी। मई में प्रति लीटर पेट्रोल पहुंच गया 63 रुपए 37 पैसे पर। सितंबर में एकबार फिर से पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी का ऐलान किया गया। 3 रुपए 14 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत बढ़कर हो गई 66 रुपए 84 पैसे। पेट्रोल की कीमतें इसके बाद भी स्थिर नहीं हुईं। नवंबर में एक बार फिर से पेट्रोल में 1 रुपए 82 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई। जिसके बाद दिल्ली में पेट्रोल की कीमतें बढ़कर अपने उच्चतम स्तर यानी 68 रुपए 64 पैसे प्रति लीटर पर पहुंच गई। पेट्रोल की बढ़ती कीमतों की वजह से लाखों लोगों के कार की सवारी का सपना इस साल अधूरा रह गया। इसका असर कारों की बिक्री पर देखने को मिला। कारों की बिक्री में लगातार गिरावट होने लगी। साथ ही लोगों को चार पहिया के बदले दो पहिए से ही संतोष करना पड़ा। तेल मार्केटिंग कंपनियां अपनी नुकसान की दुहाई दे देकर कीमतें बढ़ाती रहीं और लोग इस बढ़ती पेट्रोल की कीमतों की मार को सहने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

ईएमआई ने लोगों को खूब रुलाया
ईएमआई के फंदे ने इस साल लोगों को खूब परेशान किया। आरबीआई के सख्त तेबर ने कार और होम लोन लेने वालों के पसीने छुड़ा दिए। रिजर्व बैंक ने इस साल कुल सात बार कर्ज दरों में इजाफा किया।
घर और कार का सपना साकार करना इस साल लोगों के लिए महंगा साबित हुआ। क्योंकि ईएमआई महीने दर महीने सुरसा की भांति बढ़ती रही। इससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। रिजर्ब बैंक ने इस साल कुल 7 बार रेपो रेट में बढ़ोतरी की। जनवरी में रेपो रेट 6.5 फीसदी थी...जो कि मार्च में बढ़कर 6.7 फीसदी हो गई...मई में आरबीआई ने एक बार फिर से रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी..जिससे रेपो रेट बढ़कर 7.25 फीसदी पर जा पहुंची...जून में रेपो रेट बढ़कर 7.5 फीसदी पर पहुंच गई...जुलाई में आरबीआई ने फिर से 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी जिससे रेपो रेट 8 फीसदी पर पहुंच गई...सितंबर में रेपो रेट 8.25 फीसदी और अक्टूबर में अपने उच्चतम स्तर पर यानी 8.5 फीसदी पर जा पहुंची। हालांकि कर्ज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला साल के आखिर में जाकर थम गया। आरबीआई ने दिसंबर में हुए मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान कर्ज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की। दरअसल लगातार बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए आरबीआई ने ये कदम उठाए थे। लेकिन अब महंगाई दर में कुछ कमी आई है। खाद्य महंगाई दर चार सालों के अपने निचले स्तर पर जा पहुंची है। ऐसे में एक बार फिर से कर्ज सस्ता होने के आसार बनने लगे हैं।

ग्राहक ढ़ूंढती रही रियल एस्टेट कंपनियां
रियल एस्टेट कंपनियों को साल 2011 में पसीने छूट गए। रियल एस्टेट कंपनियां पूरे साल ग्राहक ढ़ूढती नज़र आई। साथ ही इन कंपनियों ने जो कर्ज ले रखा था उसका व्याज सातवें आसमान पर पहुंच गया।

नई पहचान मिलने के बावजूद रुपए में रिकॉर्ड कमज़ोरी
साल 2011 रुपए के प्रतीक चिन्ह के रुप में भा याद किया जाएगा। क्योंकि इसी साल रुपया अपनी नई प्रतीक चिन्ह के साथ बाजार में लांच हुआ। जो कि भारत की आर्थिक शक्ति को रेखांकित करता है। वहीं दूसरी ओर डॉलर की बढ़ती मांग की वजह इस साल रुपए अपने रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़क गया।
दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाले देशों में भारत दूसरे पायदान पर है। और भारत को एक आर्थिक शक्ति के रूप में पहचान दिलाने में रुपए की एक अहम भूमिका है। ऐसे में रुपए को अपना प्रतीक चिन्ह मिल जाना भारत के लिए गर्व की बात है। इसी साल अगस्त में रिजर्व बैंक ने रुपए के प्रतीक चिन्ह के साथ एक, दो, पांच और दस रुपए के सिक्के बाजार में लांच किए। फिलहाल दुनियाभर अमेरिका, ब्रिटेन सहित कुछ गिने-चुने देश ही हैं जिनकी करेंसी का अपना प्रतीक चिन्ह है। और इस लीग में अब भारत भी शामिल हो चुका है। जल्द ही रिजर्व बैंक रुपए के प्रतीक चिन्ह वाले कागज़ के 10 रुपए और 1000 रुपए के नोट बाजार में लांच करेगा। इसके साथ ही सरकार ने आईटी कंपनियों के संगठन नैसकॉम से कहा गया है कि वे सॉफ्टवेयर विकसित करने वाली कंपनियों के साथ मिलकर कर रुपए की प्रतीक चिन्ह को लोकप्रिय बनाए। जब तक की-बोर्ड पर इसे चिन्हित नहीं किया जाता है... तब तक कंपनियां अपने सॉफ्टवेयर में ये व्यवस्था करें कि इसे कंप्यूटर पर लिखा जा सके। अभी यूरो के प्रतीक चिन्ह के साथ भी ऐसा ही होता है। वहीं दूसरी ओर रुपए को इस साल एतिहासिक गिरावट का सामना करना पड़ा। दुनियाभर के देशों में डॉलर की बढ़ती मांग की वजह से रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर जा पहुंचा...और एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 54 रुपए के करीब जा पहुंची...ऐसे में आरबीआई को रुपए के बाचाव में उतरना पड़ा..जिससे साल के आखिर में रुपए में थोड़ी मज़बूती लौटी।

रतन टाटा को मिला उत्तराधिकारी
साल 2011 टाटा ग्रुप के लिए खास रहा। क्योंकि ग्रुप को रतन टाटा का उत्तराधिकारी मिल गया। शपूरजी पालोनजी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर साइरस मिस्त्री अगले साल से टाटा के एम्पायर को संभालेंगे।

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

मंदी की मार, सरकार गिरवी को तैयार

सरकार की आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैय्या

भारत सरकार की आर्थिक हालात बेहतर नहीं दिख रहे हैं। लगातार बढ़ रहे बजटीय घाटे को कम करने के लिए सरकार अपने शेयर और प्रॉपर्टी को गिरबी रखने के बारे में विचार कर रही है। इसके जरिए सरकार करीब 500 अरब रुपए के जुगाड़ करना चाह रही है।

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया के आधार पर सरकार काम कर रही है। एक के बाद एक वेलफेयर स्कीम्स का ऐलान किया जा रहा है। वजह साफ है अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करना। लेकिन इस मजबूती के चक्कर में सरकार का बजटीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। और अब उस नाजुक दौर में पहुंच चुका है.. जहां सरकार के पास अपनी प्रॉपर्टी और शेयर गिरवी रखने के बारे में सोचने पर मज़बूर होना पड़ रहा है।

सरकार के पास पैसे की कमी साफ झलक रही है। ऐसे में सरकार आईटीस, एल एंड टी और एक्सिस बैंक में अपने शेयर को बेचकर या गिरवी रखकर पैसे के बंदोबस्त करना चाह रही है। और उन पैसों से सरकार कंपनियों के शेयर खरीदना चाहती है। ताकी बाद में उन्हें बेचकर विनिवेश के लक्ष्य को हासिल किया जा सके और सरकारी खर्चे के लिए पैसे बचाया जा सके। सरकार ने इस वित्त वर्ष में 400 अरब रुपए के विनिवेश का लक्ष्य रखा है।

वर्ल्ड बैंक के अनुसार किसी भी देश के लिए 4 फीसदी से ज्यादा बजटीय घाटा सही नहीं माना जाता है। जबकि भारत का बजटीय घाट 6 फीसदी से ज्यादा है। यही नहीं अगर राज्यों के बजटीय घाटे से इसे जोड़ दिया जाए तो ये घाटा 10 फीसदी को पार कर जाएगा।

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ख़तरे में कॉल सेंटर की लाखों नौकरियां!

भारत में कॉल सेंटर पर गिरने वाली है गाज़। क्योंकि अमेरिका की नजर एक बार फिर भारत जैसे देशों में कॉल सेंटर खोलने वाली अमेरिकी कंपनियों पर टिक गई है। अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। जिसमें वैसी कंपनियों को सहायता नहीं देने की बात की गई जो भारत जैसे देशों में अपना काम आउटसोर्स कर रही हैं।

अमेरिका की संसद में कल कॉल सेंटर वर्कर एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट बिल पेश हुआ है। इस बिल में उन कंपनियों को सरकारी मदद या फिर सरकारी गारंटी वाले लोन नहीं देने की वकालत की गई है जो अमेरिका से बाहर कॉल सेंटर खोल रहे हैं। अगर इस बिल को कानूनी शक्ल मिल जाती है तो इन कंपनियों के अमेरिकी सरकार के कॉन्ट्रैक्ट भी छिन सकते हैं। बिल के मुताबिक आउटसोर्सिंग करने वाली कंपनियों को सरकारी मदद नहीं मिलेगी। ऐसे में सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन, अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी कई अमेरिकी कंपनियों को भारत में कॉल सेंटर चलाना महंगा पड़ सकता है। यही नहीं अमेरिकी कंपनी को विदेश में कॉल सेंटर खोलने से 120 दिन पहले सरकार को जानकारी देनी होगी। यानी कि अगर ये बिल कानून बनता है तो कई अमेरिकी कंपनियां अपना आउटसोर्सिंग का काम भारत से समेट सकती हैं।

भारत में आईटी और बीपीओ का 88 अरब डॉलर से ज्यादा का कारोबार है। और 59 फीसदी बीपीओ कारोबार अमेरिका से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। केवल नोएडा और गुड़गांव की 300 से अधिक कंपनियां हर साल 33 हजार करोड़ रुपए का कारोबार करती हैं। अगर इस सेक्टर में नौकरी की बात करें तो...पिछले साल अप्रैल से इस साल जून तक बीपीओ सेक्टर में 2.5 लाख नौकरियों के अवसर पैदा हुए हैं। ऐसे में अगर ये क़ानून बनता है तो भारत में लाखों लोगों की नौकरी पर बन आएगी। साथ ही आईटी कंपनियों की कमाई भी इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होगी। क्योंकि भारतीय आईटी कंपनियों की 50 फीसदी से ज्यादा कमाई अमेरिका से ही होती है।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

नहीं बढ़ेंगे पेट्रोल के दाम

तेल मार्केटिंग कंपनियां फिलहाल पेट्रोल की कीमतों में इज़ाफा नहीं करेंगी। पेट्रोल की कीमतों को लेकर शुक्रवार को हुई बैठक में दाम नहीं बढ़ाने का फैसला किया गया। इससे आम लोगों को कुछ राहत मिली है।

तेल मार्केटिंग कंपनियों ने डॉलर के मुकाबले रुपए की स्थिति में सुधार और सरकार के दबाव को देखते हुए फिलहाल पट्रोल के दाम में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया है। सरकारी तेल कंपनियों ने गुरुवार को भी कीमतों को लेकर एक बैठक की थी। हालांकि उस बैठक में कोई फैसला नहीं लिया जा सका था। दरअसल कंपनियों को तेल की कीमतें बढ़ाने के लिए सरकार से हरी झंडी मिलने की उम्मीद थी। लेकिन जानकारों का मानना है कि कई राज्यों में होने वाले चुनाव को देखते हुए सरकार कीमतें बढ़ाने पर अपनी हामी नहीं भर पाई। इससे कंपनियों को कीमतें नहीं बढ़ाने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

मज़बूर इसलिए...क्योंकि तेल मार्केटिंग कंपनियों की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। कंपनियों को अभी भी नुकसान सहना पड़ रहा है। वजह साफ है...अंतरराष्ट्री बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बनी हुई है। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत अभी भी 52 रुपए से ऊपर बरकरार है। हालांकि ये अलग बात है कि तेल कंपनियों को पेट्रोल की कीमत तय करने की आजादी है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि कीमतों पर मुहर लगाने से पहले..कंपनियों के लिए सरकार से सहमति लेना..जरुरत बन चुका है।

क्रेडिट पॉलिसी: कर्ज दरों में कोई बदलाव नहीं

लगातार कर्ज महंगा होने का सिलसिला थम गया है। आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने क्रेडिट पॉलिसी की तिमाही समीक्षा के दौरान अहम दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। यानी होम लोन, कार लोन सहित तमाम तरह के कर्ज दरों में कोई बदलाव नहीं होगा।

मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान रिजर्व बैंक ने कर्ज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। इससे लगातार बढ़ रहे कर्ज दरों पर विराम लग गया है। खाद्य महंगाई दर के कुछ हद तक काबू में आने की वजह से आरबीआई ने ये कदम उठाया है।
अहम दरों में बदलाव नहीं होने की वजह से रेपो रेट 8.5 फीसदी, रिवर्स रेपो रेट 7.5 फीसदी और सीआरआर 6 फीसदी पर बनी हुई है।

महंगाई पर लगाम लगाने आरबीआई ने पिछले करीब 20 महीनों में 13 बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी। जिसका बुरा असर उद्योगों पर साफ दिखने लगा है। इसके साथ ही अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में आई तेज गिरावट पर आरबीआई ने चिंता जताई है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि वे स्थिति पर नजदीक से नजर बनाए हुए है। ताकि परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर रुपए को सहारा देने के लिए उचित कदम उठाया जा सके। हालांकि रिजर्व बैंक ने ये नहीं साफ किया कि ब्याज दरों में कटौती कब से शुरू होगी। लेकिन इतना जरूर आश्वासन जरूर दिया कि आर्थिक तंत्र में नकदी की तंगी नहीं होने दी जाएगी।