गुरुवार, 22 मई 2008

ब्रांडेड तेल का खेल



अब भले ही तेल कंपनियों ने सिर्फ ब्रांडेड तेल बेचने के विचार को फिलहाल ठंढे बस्ते में डाल दिया है लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसा सोचने पर वो मजबूर क्यों हैं। अगर पेट्रोल और डीजल की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों देश के सभी मैट्रो सहित बैंगलुरू और पुणे जैसे कुछ 18 शहरों में केवल ब्रांडेड डीजल और पेट्रोल बेचती हैं तो जाहिर तौर पर उनका नुकसान थोड़ा कम होगा।
 
लेकिन ऐसा होने पर इन शहरों में रहने वाले लोगों को प्रति लीटर पेट्रोल पर तीन से चार रुपए ज्यादा खर्च करने होंगे। जबकि प्रति लीटर डीजल पर दो से सवा दो रुपए ज्यादा खर्च करने होंगे। सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का विचार है कि देश के प्रमुख शहरों में केवल ब्रांडेड पेट्रोल और डीजल पर ही जोर दिया जाए। ये कंपनियां ज्यादा से ज्यादा मात्रा में ब्रांडेड तेलों की सप्लाई इन शहरों में बढ़ा चुकी हैं।
 
डीजल के भाव (रु/लीटर)
----------साधारण ----------ब्रांडेड
दिल्ली---- 31.76--------- 35.76
कोलकाता- 33.92------ ---37.92
मुंबई- ----36.08--------- 40.08
चेन्नई --- 34.40-------- -38.40

पेट्रोल के भाव (रु/लीटर)
----------साधारण---------ब्रांडेड
दिल्ली- ---45.52---- ---47.52
कोलकाता- 48.95--- ----50.95
मुंबई----- 50.51--------52.51
चेन्नई---- 49.61------- 51.61


इंडियन ऑयल का ब्रांड है प्रीमियम, जबकि भारत पेट्रोलियम के ब्रांडेड तेल स्पीड के नाम से बिकते हैं। वहीं हिंदुस्तान पेट्रोलियम पॉवर ब्रांड के नाम से पेट्रोल और डीजल बेचती है। ऐसे में ब्रैंडेड तेल, जिनकी कीमतों की लगाम कंपनियों के हाथ में होगी, और समय पड़ने पर बिना सरकार को मुंत ताके कंपनियां इनकी दाम बढ़ा पाएंगीउनकी ज्यादा बिक्री से उनका नुकसान कम होगा क्योंकि हर लीटर साधारण पेट्रोल पर उन्हें 24 रुपए और साधारण डीजल पर 17 रुपए प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है। 

दुनिया जाए तेल लेने

बाइक की टंकी खाली पड़ी है...शायद इस ऑयल पेंटिंग को निचोड़ने से कुछ तेल निकल आए!

कच्चे तेल के लिए जल्द मारा मारी शुरू होने वाली है। जिस तरह तेल की कीमतों में आग लगी हुई है उससे तो ऐसा ही लग रहा है। अमेरिका में कच्चे तेल के भंडारण में कमी और यूरो के मुकाबले डॉलर की कमजोरी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 135 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। बढ़ती कीमतों की वजह से अमेरिका ने पिछले पांच महीनों सबसे कम तेल आयात किया है। जिससे उसकी भंडारण क्षमता में 54 लाख बैरल की कमी आई है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में केवल इस महीने तेल की कीमतों में 19 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि जनवरी से अबतक तेल की कीमतों में करबी 50 डॉलर का इजाफा हुआ है। 30 जनवरी को एक बैरल कच्चे तेल की कीमत थी 91 डॉलर। 22 फरवरी को कीमत 98 डॉलर पर पहुंच गई। 5 मार्च को सौ का आंकड़ा पार करते हुए प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 104 डॉलर पर पहुंच गई। जबकि 16 अप्रैल को प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत थी 114 डॉलर। जो कल यानी 21 मई को 135 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई।

बढ़ती तेल की कीमतों की वजह से सरकारी तेल कंपनियों को भारी नुकसान उठान पड़ रहा है। लेकिन केवल एक साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव और सहयोगी वामपंथी दलों के दवाव के कारण सरकार तेल की कीमत नहीं बढ़ा पा रही है। लेकिन दबाव लगातार बना हुआ है। आठ से ऊपर की ग्रोथ रेट वाले चीन और भारत जैसे देशों में सबसे ज्यादा तेल की खपत बढ़ रही है। भारत की तीन प्रमख तेल मार्केटिंग कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन यानी आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को हर दिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। लेकिन अगर सरकार चाहे तो उनकी परेशानी कम हो सकती है और आम लोगों को तेल की बढ़ती कीमतों की मार भी नही सहनी पड़े। इसके लिए कस्टम ड्यूटी को कम करना होगा। वामपंथी पार्टियां भी इसकी मांग कर रही हैं। लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम इस बात से सहमत नहीं हैं। क्योंकि वित्त मंत्रालय को कस्टम डयूटी से बहुत बड़ी रकम मिलती जो कि देश की बजट के लिए अहम है।

दुनिया के कुल तेल जरूरतों की 40 फीसदी तेल ओपेक(तेल उत्पादक देशों के संगठन) स्पलाइ करती है। लेकिन फिलहाल ओपेक ने भी उत्पादन बढ़ाने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। दुनियाभर में अफरा तफरी मची है लेकिन ओपेक ने अपना सिड्यूल बैठक समय से ही करने का यानी सितंबर में करने का फैसला किया है। अब उसी बैठक में सप्लाइ पर फैसला हो पाएगा।

एक जमाना था जब तेल के लिए अमेरिका किसी भी देश पर हमला कर देता था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। या हो सकता है अमेरिका अभी चुनावों में बिजी हो। लेकिन इतना तो तय है कि अब पहले वाली बात नहीं रहेगी। आजकल डॉलर अपनी चमक खोती जा रही है। तेल उत्पादक देश पहले जहां डॉलर के मुकाबले किसी दुसरी करेंसी में तेल नहीं बेचना चाहते थे। आज हंसी-खुशी यूरो में तेल बेच रहे हैं।

तेल की समस्या फिलहाल भारत के लिए काफी कस्टकर है। क्योंकि तेल की लगाम थामें बगैर विकास की रफ्तार नहीं पकड़ी जा सकती है। अब जरूरत आ गई है भारत-ईरान तेल पाइप लाईन की। सरकार को जल्द से जल्द इसपर फैसला लेना चाहिए। नहीं तो बैलगाड़ी के सहारे हम विकासशील से विकसित नहीं हो पाएंगे।

बुधवार, 21 मई 2008

ब्लॉग से करें कमाई



ज्यादा से ज्यादा लोंगों तक अगर अपनी बात सीधी पहुंचानी हो तो ब्लॉग से बेहतर कोई और दूसरा जरिया नहीं हो सकता। और तुरंत उसपर फर्स्टहैंड रिएक्शन भी मिल जाता है। आखिर क्या है ब्लॉगिंग?

इक्कीसवीं सदी के महानायक यानी बिग बी अमिताभ बच्चान हों या मिस्टर पर्फेक्शनिस्ट आमिर खान ब्लॉग की जादू से नहीं बच पाए। ब्लॉग कम्युनिकेशन का एक ऐसा जरिया है जिससे अपनी दिल की बात सीधा दूसरों के पास पहुंचाया जा सकता है। साथ ही दुनिया के किसी भी मुददे पर अपनी बेबाक राय रखी जा सकती है। क्योंकि ब्लॉग लिखने वाला खुद ही एडिटर होता है खुद ही मालिक होता है। इसलिए उसे अपनी स्टोरी पर कैंची चलने का डर नहीं सताता है। साथ ही वो दुनिया की किसी बुराई के खिलाफ खुलकर लिख सकता है।

दुनियाभर के फिल्मी हस्तियों के अलावे कई जाने माने पत्रकार अपनी ब्लॉग चलाते हैं। एक अमेरिकी पत्रकार ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के अत्याचार को जब अपने पोस्ट में प्रकाशित करना चाहा। तो उसे एडिटर के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद उसने नौकरी रिजाइन कर अपना ब्लॉग शुरू किया। जहां आज लाखों लोग विजिट करते हैं। यानी ब्लॉग की सच्चाई अब हर किसी को समझ में आने लगी है।

बिग ब्लॉगर

तभी तो सदी के महानायक हर दिन ब्लॉग लिख रहे हैं। और कुछ महीनों में ही बिग बी अमिताभ बच्चन ब्लॉग के भी बादशाह हो गए हैं। आज उनके ब्लॉग, ब्लॉग्स डॉट बिग अड्डा डॉट कॉम पर हर दिन लाखों लोग विजिट करने लगे हैं। 500 से हजार लोगों की तो कमेंट्स उन्हें हर दिन पढ़ने को मिल जाता है।

मल्लिका-ए-ब्लॉग

लेकिन ब्लॉग की मल्लिका कहा जाता है चीनी अभिनेत्री शू चिंगलइ को। शू चिंगलाइ चीनी भाषा में ब्लॉग लिखती हैं। वो मात्र 33 साल की हैं लेकिन अपने अभिनय, गायन,निर्देशन और बलॉगिंग के जरिए लाखों लोगों के दिलों पर राज करती हैं। केवल पौने दो सालों में शू के ब्लॉग को साढे 10 करोड़ लोगों ने पढ़ा है।

आजकल कई कंपनियां ब्लॉग के जरिए अपने उत्पादों को प्रमोट कर रही हैं। और बाकायदा ब्लॉग लिखने वालों को नौकरी पर रख रही हैं। दूसरी नौकरियों में भी ब्लॉग का बहुत अहम स्थान बना गया है। नौकरी की तलाश करने वाला कोई आदमी अगर ब्लॉग लिखता है तो एचआर डिपार्टमेंट ब्लॉग पढ़कर नौकरी पाने वालों की अच्छाई और बुराई को अच्छी तरह से जान लेता है। उसके बाद तय करता है कि नौकरी उसके लायक है या नहीं।

ब्लॉग कमाई का भी एक जरिया बन गया है। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने एड उन ब्लॉग को देते हैं जो ज्यादा से ज्यादा पढ़े जाते हैं। हालांकि कुछ लोग ब्लॉग को स्पॉयल कर भी कमाई कर रहे हैं। इस तरह की कमाई करने वाले लोगों को स्पलॉगर कहते हैं। स्पलॉगर वो होते है जो फर्जी नामों से हजारों ब्लॉग तैयार करते हैं और उनपर कहीं कहीं से चोरी कर अपना पोस्ट डालते रहते हैं। और उनपर आने वाले एड से लाखों की कमाई करते हैं। हालांकि हमलोग भी किसी आर्टिकल को अच्छी तरह लिखने के लिए इधर उधर से जानकारी जुटाते हैं। जैसा कि मैने इस लेख को लिखने के लिए कुछ जानकारी देश-दुनिया डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम से जुटाई है। लेकिन स्पलॉगर केवल कॉपी पेस्ट कर अपना काम चला लेते हैं।

आज ब्लॉग को कई तरह की भाषाओं में एक क्लिक मात्र से ट्रांसलेट किया जा सकता है। जिससे इसकी पहुंच कई गुणा बढ़ गई है। आपके ब्लॉग दुनिया के किस कोने में देखी जा रही है। इसे जानने के लिए भी कई फ्री टूल्स इंटरनेट पर उपलब्ध है। जिससे आपको ये अंदाजा लग जाएगा कि आपका ब्लॉग दुनिया के किस कोने तक पहुंच रखता है।

आज का जमाना पालतू लोगों के लिए बना है। जिसे आप फालतू भी कह सकते हैं। अगर आपको विश्वास न हो तो ऑफिस में अपनी चारों ओर नजर घुमा कर देख लीजिए। आपको लगेगा की हर कुर्सी से चिपका हुआ है एक पालतू आदमी। अपनी अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में। सही को गलत बोल रहा है। हंसी न आने पर भी हंस रहा है। क्योंकि उसका बॉस हंस रहा होता है। ऐसे में ब्लॉग एक क्रांति से कम नहीं है। कम से कम अपनी बात खुलकर यहां रखा तो जा ही सकता है। साथ ही अगर आप अच्छी बातें लिखते हैं तो इतना तय है कि आने वाले दिनों में आपकी कमाई भी होने लगेगी। क्योंकि आपके ब्लॉग पर होने वाली हर क्लिक को कोई देख रहा है। जो वहां अपना एड देने को बेताब है।

गुरुवार, 15 मई 2008

लाल हुआ पिंक सिटी



एक के बाद एक आठ बम धमाकों से राजस्थान की राजधानी जयपुर थर्रा उठा। पच्चास से ज्यादा बेकसूर लोग मारे गए। आतंकियों ने राजस्थान को इसलिए भी चुना क्योंकी दुनिया की ज्यादातर देशों में लोग जयपुर को जानते हैं। वर्ल्ड टूरिज्म में जयपुर की अलग पहचाना है। देश में होने वाली टूरिज्म की कुल कमाई का एक बड़ा हिस्सा जयपुर से आता है। साथ ही जयपुर में ऐसी बहुत सी इंडस्ट्री है जिसके सुस्त पड़ जाने या बंद हो जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ झटका लग सकता है।पहड़ी किलों से घिरा राजस्थान की राजधानी जयपुर का देश के टूरिज्म इंडस्ट्री में अहम स्थान है। इसलिए इसे गोल्डेन ट्रेंगल का हिस्सा बनाया गया है। जहां हर साल लाखों की संख्यां में सैलानी आते हैं। जो राज्य सरकार की कमाई का एक बहुत बड़ा जरिया है। इसके अलावे जयपुर में कई इंडस्ट्री भी हैं।

बड़े और मध्यम स्तर की यहां 48 कंपनियां हैं। जबकि छोटे स्तर की 19544 कंपनियां हैं। जो कि जयपुर की 19 इंडस्ट्रीयल एरिया में फैली हुई हैं। जयपुर में 1300 करोड़ रुपए के महंगे पत्थरों का कारोबार हर साल होता है। केवल पन्ना की कटिंग और पॉलिसिंग से जयपुर को हर साल 300 करोड़ रुपए कीकमाई होती है।

जयपुर के मुख्य इंडस्ट्रीयल प्रोडक्ट हैं
ग्रेनाइट स्लेब्स और टाइल्स, लकड़ी के सामान, पॉटरी, डाइंग और प्रिटिंग, हाथ से बना पेपर, हैंडीक्राफ्ट, हैलोजन ऑटो बल्ब, पर्फ्युम्स, पीवीसी फुटवीयर,कैनवस शूज,पोर्टलैंड सीमेंट, रेडीमेड कपड़े, सिंथेटिक शूटिंग एंड शर्टिंग,रिफाइंड तेल, वनस्पति घी, सूजी, गेहूं का मैदा, सिंथेटिक लेदर।

जयपुर से निर्यात किए जाते हैं
पीतल के समान, जेम्स एंड ज्वैलरी, ग्रेनाइट टाइल्स, हैंडलूम, मार्बल, टेक्सटाइल और प्रिंडेट कपड़े, रेडीमेड कपड़े और वूलेन कार्पेट।

धमाके के बाद कई टूरिस्टों ने अपनी टिकट कैंसिल करा ली। जिससे राज्य के राजस्व पर नाम मात्र का ही असर होगा। धमाके के दो दिन बाद ही आम जिंदगी पटरी आ गयी है। जससे लगता है कि उद्योग धंधों को ज्यादा नुकसान होने की गुंजाइश नहीं है। लेकिन लोगों की अमूल्य जिंदगी की शायद ही भरपाई हो पाएगी। अब सरकार को चाहिए की हर धमाके के बाद किसी संदिग्ध की स्केच बनाकर उनकी लकीरों पर रोटी न सेंकते हुए कोई ठोस कदम उठाए। और एक के बाद एक धमाके के लिए किसी राज्य या किसी खुफिया तंत्र की नाकामी पर कीचर उठाने की बजाए एक अलग पर मजबूत फेडरल सिस्टम की गठन की सोचे।

दवा के रूप में ज़हर

डी फॉर ड्रग्स डी फॉर डेंजर?

दवा जब काम न करे तो दुआ काम करती है। लेकिन जरा सोचिए अगर दवा ही जहर बन जाए तो क्या दुआ काम करेगी। जी हां यही है हकीकत...भारत में बिकने वाली हर पांच दवाओं में से एक नकली है। जो या तो बेअसर है या एकदम उल्टा असर करता है। एसोचैम की एक सर्वे में ये बात सामने आई है। सबसे ज्यादा नकली दवाओं का करोबार देश की राजधानी दिल्ली से सटे राज्यों में हो रहा है। सर्वे के अनुसार गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव और सोनीपत नकली दवा बनाने का गढ़ बन गया है। यहां बनने वाली दवाओं से न केवल मरीजों को अपनी जीवन से खेलना पड़ रहा है। बल्कि असली दवा कंपनियों की कमाई में भी 25 फसीदी की सेंध लगा रहा है। ज्यादा पॉपुलर और अधिक बिकने वाली दवाएं ही नकली फैक्ट्रियों में तैयार की जा रही हैं। इन दवाओं में क्रोसिन,वोवेरन, बीटाडीन, कैल्सियम की इंजेक्शन, कोसाविल सिरप शामिल हैं। एनसीआर में ड्रग इंस्पेक्टरों की संख्या काफी कम हैं। जबकि वहां करीब 3300 केमिस्ट की दुकानें हैं। जिसमें से 30 फीसदी दुकाने एनसीआर के छोटे-छोटे इलाकों में हैं। जिससे यहां बड़ी तेजी से नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है।

भारत में नकली दवाओं का कारोबार 4000 करोड़ रुपए का है जो हर साल 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि दुनियाभर में जो नकली दवाएं मौजूद हैं उसमें से तीन चौथाई दवाएं भारत में बनी हैं। नौ कैटेगरी में 68 नामी-गिरामी दवाओं का सर्वे करने के बाद ये बातें सामने आई है। ज्यादातर नकली दवाएं ट्यूबरकुलोसिस, एलर्जी, डायबिटीज, दिल से जुडी बीमारी और मलेरिया के हैं। भारत की फार्मा इंडस्ट्री 6 अरब डॉलर की है। जो कि हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। वहीं ग्लोबल फार्मा इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट है केवल 7 फीसदी। लेकिन आश्चर्य इस बात की है कि भारत में 1 फीसदी से भी कम दवाओं को सरकार टेस्ट कर पाती है। 26 सरकारी लैब्स में हर साल केवल 2500 सैम्पल्स को ही चेक किया जाता है। नई दवाओं को चेक कराने के लए 6 से 7 महीनों का लंबा इंतजार करना होता है।

इस आंकड़ों को देखकर ड्रग कंट्रोलर जनरल की ऑफिस में खलबली मच गई। और आनन-फानन में ड्रग कंट्रोलर जनरल ने नकली दवाओं का कितना बड़ा बाजार है इसका पता लगाने के लिए दुनिया में अबतक का सबसे बड़ा सर्वे कराने का फैसला कर लिया है। जो कि जल्द शुरू होगा। और इसमें 50 लाख रुपए खर्च होंगे। और इस सर्वे का नतीजा 6 महीनों बाद सामने आएगा। इस सर्वे के लिए ड्रग इंस्पेक्टर मरीज बनकर दवाएं खरीदेंगे। कुल 31 हजार दवाओं के सैम्पल्स जमा किए जाएंगे। और तब जो रिपोर्ट आएगी उसके ऊपर कार्रवाई की जाएगी।

एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल 200 कंपनियां नकली दवा कारोबार में लगी हैं। जिनमें से कई कंपनियों के मालिकों के सर राजनेताओं का हाथ है। इसलिए दवा के रूप में ज़हर बेचने वालों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। नकली दवाओं पर बनी माशेलकर कमेटी ने तो मौत के सौदागरों के लिए मौत की सजा की बात कही थी। लेकिन इसे अभीतक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।

सोमवार, 12 मई 2008

बुरे समय में किंग ऑफ गुड टाइम !

खेल का बिजनेस खेल नहीं !

विजय माल्या जिसे किंग ऑफ गुड टाइम कहा जाता है। जो एक पार्टी में उतने पैसे उड़ा देते हैं जितना कोई जिंदगीभर में नहीं कमा पाता है। लेकिन लक्ष्मी हमेशा से उनपर मेहरवन रही है। वो जितना खर्च करते हैं इससे ज्यादा फायदा उन्हें मिल जाता है। लेकिन फिलहाल उनका बुरा फेज चल रहा है। आईपीएल की उनकी टीम रॉयल चैलेंजर्स को लगातार मुंह की खानी पड़ रही है। एक के एक हार ने उन्हें हिला कर रख दिया है। ठीक ऐसा ही हाल एफ वन रेस में भी उनकी टीम की हो रही है।

लेकिन खेल के बिजनेस के अलावे उनका दूसरा बिजनेस काफी चकाचक चल रहा है। विजय माल्या ने 1983 में यूबी ग्रुप यानी यूनाइटेड ब्रुअरीज की कमान अनपे हाथ में ली। तब से लेकर अबतक कंपनी अपनी विस्तार की बदौलत एक मल्टीनेशनल कंपनी का दर्जा हासिल कर चुकी है। इस ग्रुप के अंदर आज एग्रीकल्चर, लाइफ साइंस,केमिकल, आईटी, इंजीनियरिंग और एविएशन जैसी करीब साठ कंपनियां काम कर रही हैं। जिसका टर्नओवर अरबों डॉलर में है। इसके बाद भी कंपनी का अधिग्रहण नहीं रुका है। पिछले साल मई में ही विजय माल्या ने प्रीमियम व्हिस्की बनाने वाली दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कंपनी स्कॉटलैंड की व्हाइट एंड मैके को करीब 5 हजार करोड़ रुपए में खरीदा है। माल्या ने 2005 में किंगफिशर एयरलाइंस की शुरूआत की। इसके साथ ही यूरोपियन कंपनी एयरबस को एक साथ 50 एयरक्राफ्ट का अबतक का सबसे बड़ा ऑर्डर दिया। जहाजों का बेड़ा बढ़ाने और ज्यादा जगहों पर पहुंच बनाने के लिए माल्या ने लो कॉस्ट एयरलाइंस एयर डेक्कन को करीब 1000करोड़ रुपए में खरीद लिया।

लेकिन खेल की बात ही कुछ अलग है। स्पीड के दीवाने विजय माल्या ने फॉर्मुला वन रेसिंग टीम स्पाइकर की स्टीयरिंग 8.8 करोड़ यूरो देकर अपने हाथ में ले ली। जिसका नाम बाद में बदलकर फोर्स इंडिया कर दिया। यानी अब एफ वन रेस में एक इंडियन टीम भी हवा से बातें करते हुए दिखने लगी हैं। लेकिन बिजनेस के खिलाड़ी विजय माल्या को खेलों में मुंह की खानी पड़ रही है। स्पेन में हुए एफ वन रेस में उनकी टीम शुरूआती झटके खाने के बाद 10 नंबर पर रही। जबकि आईपीएल में उनकी चेन्नई टीम लगातार हिचकोले खा रही है। यानी विजय माल्या को आज ये कहावत बिल्कुल सही लग रही होगी। मनी केन बाइ हैप्पीनेस, लेकिन पैसे से खेल और प्यार को नहीं जीता जा सकता है।

गुरुवार, 8 मई 2008

भारत में 50 लाख की बाइक !

भारत में बढ़ रहे हैं रफ्तार के दीवाने

बाइक बनाने वाली दुनियाभर की दिग्गज कंपनियों ने भारतीय बाजार में धूम मचाने की ठान ली है। तेजी से तरक्की की राह पर चलने वाले भारत में स्पीड के दीवानों की संख्यां बढ़ती जा रही है। साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाइक का बाजार है और इसे कंपनियां नजरअंदाज नहीं करना चाहतीं। और यही वजह है कि यमाहा, हार्ले डेविडसन के बाद अब इटली की कंपनी दुकाती ने अपनी पच्चास लाख की बाइक भारतीय बाजार में लांच की है। दुकाती की बाइक की इंजन 200 हॉर्स पॉवर की है । दुकाटी दुनिया भर से साठ देशों में छे सेग्मेंट में अपनी बाइक बेचती है। इसकी पावर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछली 17 वर्ल्ड सुपर बाइक चैंपियनशिप में से 14 इसने जीती है।

आइए अब नजर डालते हैं दुनियाभर की कुछ और महंगी बाइक्स पर। जो महंगी तो हैं पर इनकी तूफानी स्पीड को पकड़ने वाला कोई नहीं है।
सुजुकी हायाबुसा

सबसे पहले बात जापानी कंपनी सुजुकी की। जिसकी बाइक हायाबुसा ने पूरी दुनिया तूफान उठा दिया। जी हां प्रति घंटे इसकी स्पीड है 319 किलोमीटर। ताकत है 171 हॉर्स पावर की । 2001 में हुए एक टेस्ट में इस बाइक ने दुनिया की सबसे तेज चलनेवाली बाइक का खिताब जीता है। इसमें 1340 सीसी की इंजन है। 16 वाल्व हैं। यूरो थ्री स्टैंडर्ड का प्रमाण इसे मिला हुआ है। इसे 1999 में लांच किया गया। और तब से पिछले साल तक 1 लाख बाइक बिक चुकी है। कीमत मात्र 5 लाख रुपए हैं। लेकिन 100 फीसदी से ज्यादा कस्टम ड्यूटी अलग से देनी होगी।

यामाहा YZF-R1

इसके बाद बारी आती है यामाहा के yzf-r 1 की। जिसमें 998 सीसी की इंजन लगी है। 16 वाल्व इसमें भी हैं। कीमत है साढ़े चार लाख रुपए। कस्टम ड्यूटी अलग से।

होंडा सीबीआर 1000 आरआर

तूफान से बातें करने में होंडा की cbr1000 rr भी पीछे नहीं है। इसमें 599 सीसी की इंजन लगा है। 16 वाल्व हैं। ताकत है 124 एचपी। इसे 1992 में लांच किया गया। कीमत साढ़े चार लाख के करीब। कस्टम ड्यूटी अलग से।

कावासाकी निंजा

कावासाकी की निंजा बाइक भी दुनियाभर में काफी पॉपुलर है। क्योंकि ये थोड़ी इकॉनोमिकल है। इसमें 4 stroke649 सीसी की इंजन लगी है। 8 वाल्व हैं। यानी दूसरी गाड़ियों के चार सिलंडर के मुकाबले इसमें केवल दो सिलंडर लगे हैं। हर सिलंडर में चार वाल्व लगे हैं। गाड़ी को अच्छी तरह कंट्रोल में करने के लिए इसमें ट्रिपल petal डिजाइन ब्रेक डिस्क लगाया गया है। कीमत है करीब 3 लाख रुपए। कस्टम ट्यूटी एक्सट्रा।

बुधवार, 7 मई 2008

ओके टाटा : हॉर्न प्लीज : हर सेग्मेंट में मिलेंगे

ऑटो सम्राट टाटा

कभी दुनियाभर में धूम मचा देने वाली कंपनी लैंडरोवर और जगुआर आखिरकार अगले महीने पूरी तरह टाटा की झोली में आ जाएगी। टाटा मोटर्स ने कार बनाने वाली ब्रिटेन की कंपनी जगुआर और लैंड रोवर को खरीद लिया है। टाटा ने इन कंपनियों को फोर्ड मोटर्स से खरीदा है। क्योंकि अमेरिकी मोटर कंपनी फोर्ड के हाथों में इसका मालिकाना हक था। टाटा को इस बड़ी शॉपिंग के लए 2.3 अरब डॉलर खर्च करने पड़े । अगले महीने तक इस डील की प्रक्रिया को पूरा कर ली जाएगी। फोर्ड को टाटा से मिलने वाली रकम में से 60 करोड़ रुपए लैंड रोवर और जगुआर के पेंशन फंड को देने होंगे। फोर्ड ने करीब 20 साल पहले 2.5 अरब डॉलर में जगुआर को और 8 साल पहले 2.7 अरब डॉलर में लैंड रोवर को खरीदा था। पिछले एक साल से जेएलआऱ(जगुआर- लैंड रोवर) के पीछे टाटा मोटर्स हाथ धो कर पड़ी थी। और इस रेस में टाटा ने भारतीय कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा सहित दुनिया की कई कंपनियों को पीछे छोड़ दिया। जगुआर पिछले कई सालों से नुकसान में चल रहा है जबकि लैंड रोवर का मुनाफा भी नाममात्र है। इसलिए फोर्ड ने इनदोनों कंपनियों को बेच दिया। इसके बदले मिले पैसे से फोर्ड दुनयाभर में अपनी ब्रांड को और मजूबत करेगी।
टाटा : द ऑटो किंग

उधर टाटा इन दोनों कंपनियों के साथ ही ऑटो इंडस्ट्री की लगभग सभी सेग्मेंट में अपनी पैठ बना लेगी। चाहे लखटकिया नैनो हो या इंडिका या सूमो या एवियो या ट्रक या बस या हवा से बातें करने वाली लैंड रोवर और जगुआर। कमर्शिय गाड़ियों में पहले से ही देश में धाक जमा चुकी टाटा ने कोरियाई कंपनी देवु की कमर्शियल गाड़ियों को खरीदकर दुनिया में अपनी पहचान बना ली है। यानी चाहे भारी समान ढ़ोना हो या हवा से बातें करना आप टाटा को टाटा कर आगे नहीं निकल सकते।

क्या है लैंड रोवर?
हवा से बातें करने वाली रैंज रोवर और डिस्कवरी जैसी स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हेकिल बनाने वाली कंपनी लैंड रोवर की जन्म इंग्लैंड के गायदोन में 30 अप्रैल 1948 में हुआ। लैंड रोवर एलआर टू जैसी छोटी कार भी बनाती है। साथ ही मल्टी पर्पस व्हेकिल यानी एमयूवी के क्षेत्र में भी इसका बोलवाला है। ये कंपनी प्रॉफिट में है लेकिन इतना कम कि किसी प्रोडक्ट रिन्यूअल प्रोग्राम को फाइनेंस करना भी इसके बूते में नहीं है। पिछले साल कंपनी की बिक्री में 2006 के मुकाबले 18 फीसदी का इजाफा हुआ है। और इसकी बिक्री बढ़कर सवा दो लाख गाड़ियों तक पहुंच चुकी है। इस कंपनी की शुरूआत रोवर नाम से हुई। साथ ही इसकी गिनती एसयूवी बनाने वाली सबसे पुरानी कंपनियों में होती है।

क्या है जगुआर?
जगुआर का नाम लग्जरी स्पोर्ट्स सेडान बनाने वाली कंपनी की तौर पर जाना जाता है। इसकी लिटिल एक्स टाईप सेडान कार ने 2001 में लांच होते ही पूरी दुनिया में धूम मचा दी थी। और इसकी बिक्री एक साल में 1.5 लाख कार तक पहुंच गई। जबकि जगुआर की कुल कारों की बिक्री 2 से 3 लाख कारें ही थी। जानकार लिटिल एक्स टाईप सेडान कार में काफी पोटेंशियल देख रहे है। आने वाले दिनों में ये कार बीएमडब्ल्यू थ्री सीरीज को टक्कर दे सकती है। इसके बाद कंपनी ने एस टाईप कार लांच की। जिसको बाद में बदलकर एक्स एफ कर दिया गया। और पूरी दुनिया में एक साथ इसे लांच किया गया। लेकिन जापानी और जर्मन कारों मर्सीडीज, बीएमडब्ल्यू, ऑडी और तो और लेक्सस से भी इसे कड़ी टक्कर मिल रही है। जगुआर को 1922 में स्वैलो साईडकार कंपनी की तौर पर लांच किया गया था। 1945 में इसका नाम बदल कर जगुआर कर दिया गया। 2006 के मुकाबले पिछली साल कंपनी 16 फीसदी कम यानी केवल 60,485 कारें बेची हैं। और फिलहाल ये कंपनी नुकसान में चल रही है। फोर्ड ने 1989 में इसे 2.5 अरब डॉलर में खरीदा। और तब से फोर्ड को 10 अरब डॉलर की नुकसान हो चुकी है।