बाइक की टंकी खाली पड़ी है...शायद इस ऑयल पेंटिंग को निचोड़ने से कुछ तेल निकल आए!
कच्चे तेल के लिए जल्द मारा मारी शुरू होने वाली है। जिस तरह तेल की कीमतों में आग लगी हुई है उससे तो ऐसा ही लग रहा है। अमेरिका में कच्चे तेल के भंडारण में कमी और यूरो के मुकाबले डॉलर की कमजोरी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 135 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। बढ़ती कीमतों की वजह से अमेरिका ने पिछले पांच महीनों सबसे कम तेल आयात किया है। जिससे उसकी भंडारण क्षमता में 54 लाख बैरल की कमी आई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में केवल इस महीने तेल की कीमतों में 19 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि जनवरी से अबतक तेल की कीमतों में करबी 50 डॉलर का इजाफा हुआ है। 30 जनवरी को एक बैरल कच्चे तेल की कीमत थी 91 डॉलर। 22 फरवरी को कीमत 98 डॉलर पर पहुंच गई। 5 मार्च को सौ का आंकड़ा पार करते हुए प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 104 डॉलर पर पहुंच गई। जबकि 16 अप्रैल को प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत थी 114 डॉलर। जो कल यानी 21 मई को 135 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई।
बढ़ती तेल की कीमतों की वजह से सरकारी तेल कंपनियों को भारी नुकसान उठान पड़ रहा है। लेकिन केवल एक साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव और सहयोगी वामपंथी दलों के दवाव के कारण सरकार तेल की कीमत नहीं बढ़ा पा रही है। लेकिन दबाव लगातार बना हुआ है। आठ से ऊपर की ग्रोथ रेट वाले चीन और भारत जैसे देशों में सबसे ज्यादा तेल की खपत बढ़ रही है। भारत की तीन प्रमख तेल मार्केटिंग कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन यानी आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को हर दिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। लेकिन अगर सरकार चाहे तो उनकी परेशानी कम हो सकती है और आम लोगों को तेल की बढ़ती कीमतों की मार भी नही सहनी पड़े। इसके लिए कस्टम ड्यूटी को कम करना होगा। वामपंथी पार्टियां भी इसकी मांग कर रही हैं। लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम इस बात से सहमत नहीं हैं। क्योंकि वित्त मंत्रालय को कस्टम डयूटी से बहुत बड़ी रकम मिलती जो कि देश की बजट के लिए अहम है।
दुनिया के कुल तेल जरूरतों की 40 फीसदी तेल ओपेक(तेल उत्पादक देशों के संगठन) स्पलाइ करती है। लेकिन फिलहाल ओपेक ने भी उत्पादन बढ़ाने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। दुनियाभर में अफरा तफरी मची है लेकिन ओपेक ने अपना सिड्यूल बैठक समय से ही करने का यानी सितंबर में करने का फैसला किया है। अब उसी बैठक में सप्लाइ पर फैसला हो पाएगा।
एक जमाना था जब तेल के लिए अमेरिका किसी भी देश पर हमला कर देता था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। या हो सकता है अमेरिका अभी चुनावों में बिजी हो। लेकिन इतना तो तय है कि अब पहले वाली बात नहीं रहेगी। आजकल डॉलर अपनी चमक खोती जा रही है। तेल उत्पादक देश पहले जहां डॉलर के मुकाबले किसी दुसरी करेंसी में तेल नहीं बेचना चाहते थे। आज हंसी-खुशी यूरो में तेल बेच रहे हैं।
तेल की समस्या फिलहाल भारत के लिए काफी कस्टकर है। क्योंकि तेल की लगाम थामें बगैर विकास की रफ्तार नहीं पकड़ी जा सकती है। अब जरूरत आ गई है भारत-ईरान तेल पाइप लाईन की। सरकार को जल्द से जल्द इसपर फैसला लेना चाहिए। नहीं तो बैलगाड़ी के सहारे हम विकासशील से विकसित नहीं हो पाएंगे।
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