गुरुवार, 15 मई 2008

दवा के रूप में ज़हर

डी फॉर ड्रग्स डी फॉर डेंजर?

दवा जब काम न करे तो दुआ काम करती है। लेकिन जरा सोचिए अगर दवा ही जहर बन जाए तो क्या दुआ काम करेगी। जी हां यही है हकीकत...भारत में बिकने वाली हर पांच दवाओं में से एक नकली है। जो या तो बेअसर है या एकदम उल्टा असर करता है। एसोचैम की एक सर्वे में ये बात सामने आई है। सबसे ज्यादा नकली दवाओं का करोबार देश की राजधानी दिल्ली से सटे राज्यों में हो रहा है। सर्वे के अनुसार गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव और सोनीपत नकली दवा बनाने का गढ़ बन गया है। यहां बनने वाली दवाओं से न केवल मरीजों को अपनी जीवन से खेलना पड़ रहा है। बल्कि असली दवा कंपनियों की कमाई में भी 25 फसीदी की सेंध लगा रहा है। ज्यादा पॉपुलर और अधिक बिकने वाली दवाएं ही नकली फैक्ट्रियों में तैयार की जा रही हैं। इन दवाओं में क्रोसिन,वोवेरन, बीटाडीन, कैल्सियम की इंजेक्शन, कोसाविल सिरप शामिल हैं। एनसीआर में ड्रग इंस्पेक्टरों की संख्या काफी कम हैं। जबकि वहां करीब 3300 केमिस्ट की दुकानें हैं। जिसमें से 30 फीसदी दुकाने एनसीआर के छोटे-छोटे इलाकों में हैं। जिससे यहां बड़ी तेजी से नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है।

भारत में नकली दवाओं का कारोबार 4000 करोड़ रुपए का है जो हर साल 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि दुनियाभर में जो नकली दवाएं मौजूद हैं उसमें से तीन चौथाई दवाएं भारत में बनी हैं। नौ कैटेगरी में 68 नामी-गिरामी दवाओं का सर्वे करने के बाद ये बातें सामने आई है। ज्यादातर नकली दवाएं ट्यूबरकुलोसिस, एलर्जी, डायबिटीज, दिल से जुडी बीमारी और मलेरिया के हैं। भारत की फार्मा इंडस्ट्री 6 अरब डॉलर की है। जो कि हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। वहीं ग्लोबल फार्मा इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट है केवल 7 फीसदी। लेकिन आश्चर्य इस बात की है कि भारत में 1 फीसदी से भी कम दवाओं को सरकार टेस्ट कर पाती है। 26 सरकारी लैब्स में हर साल केवल 2500 सैम्पल्स को ही चेक किया जाता है। नई दवाओं को चेक कराने के लए 6 से 7 महीनों का लंबा इंतजार करना होता है।

इस आंकड़ों को देखकर ड्रग कंट्रोलर जनरल की ऑफिस में खलबली मच गई। और आनन-फानन में ड्रग कंट्रोलर जनरल ने नकली दवाओं का कितना बड़ा बाजार है इसका पता लगाने के लिए दुनिया में अबतक का सबसे बड़ा सर्वे कराने का फैसला कर लिया है। जो कि जल्द शुरू होगा। और इसमें 50 लाख रुपए खर्च होंगे। और इस सर्वे का नतीजा 6 महीनों बाद सामने आएगा। इस सर्वे के लिए ड्रग इंस्पेक्टर मरीज बनकर दवाएं खरीदेंगे। कुल 31 हजार दवाओं के सैम्पल्स जमा किए जाएंगे। और तब जो रिपोर्ट आएगी उसके ऊपर कार्रवाई की जाएगी।

एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल 200 कंपनियां नकली दवा कारोबार में लगी हैं। जिनमें से कई कंपनियों के मालिकों के सर राजनेताओं का हाथ है। इसलिए दवा के रूप में ज़हर बेचने वालों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। नकली दवाओं पर बनी माशेलकर कमेटी ने तो मौत के सौदागरों के लिए मौत की सजा की बात कही थी। लेकिन इसे अभीतक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।

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