शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

सत्यम के पैसे मेटास की झोली में

पापा आपने ही SATYAM का उल्टा नाम MAYTAS रखा था मेरी कंपनी का...और ये देखो, मैंने आज आपको उल्टा कर दिया रामालिंगा राजू के बेटे ने सत्यम से उलट नाम की तरह ही सत्यम से उलट काम भी करना शुरू कर दिया। और सत्यम के सारे पैसे आंखें बंद कर अपनी कंपनी की झोली में पलटने लगा। यानी सत्यम का खून चूस चूसकर उसे बर्बादी की कगार पर ला दिया। लेकिन सरकार की सहयोग से अब लगता है कि सत्यम की नैया पार हो जाएगी। और हो भी क्यों नहीं। सही माएने में सत्यम काफी मजबूत कंपनी है। अगर नहीं होती तो सरकार इसमें सटती ही नहीं। सत्यम के दुनियाभर में ऐसे ऐसे दिग्गज क्लाइंट हैं जिसके लिए आज भी विप्रो, महिंद्रा टेक, इंफोसिस जैसी कंपनियां तरसती हैं। जी हां,फॉरच्युन फाइव हंड्रेड कंपनियों में से एक और दो नहीं करीब 28 कंपनियां सत्यम की क्लाइंट हैं। और उनमें से कई कंपनियों के साथ सत्यम के रिश्ते काफी मजबूत हैं, अभी भी। और ये यूं ही नहीं हो पाया है। सत्यम इनमें से कई कंपनियों को करीब 10 से 15 सालों से सेवा दे रही है। सत्यम के बैलेंस शीट में भले धांधली हुई हो लेकिन सत्यम के काम पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई। सत्यम को किश्ती तो वहां डूबी जहां पानी कम था। यानी अपने ही घर में। अपने ही बेटे की मोह में। जब रियल एस्टेट सेक्टर में मंदी ने सबसे पहले दस्तक दी। तो बड़ी बड़ी कंपनियों के आंखों के सामने तारे दिखाई देने लगे। और अभी तक दिखाई दे रहे हैं। चाहे वो देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ हो या यूनिटेक या पार्श्वनाथ। रियल एस्टेट की बड़ी बड़ी मछलियां तो इस तूफान को झेल रही हैं। लेकिन छोटी कंपनियों के लिए ये बस की बात नहीं थी। और वो भी मेटास जैसी कंपनी के लिए। जिसने केवल आंध्र प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपने पांव पसार लिए थे। मेटास को शुरूआत में बैंक से आसानी से कर्ज मिल जाया करता था। लेकिन बाद में स्थिति बदल गई। और तब प्रोजेक्ट को जारी रखने से लेकर कर्ज चुकाने तक के लिए राजू को अपने बेटे की मदद करनी पड़ी। लेकिन राजू ने मदद का जो रास्ता चुना वो सही नहीं था। राजू की इस गलती को जिसने भी पकड़ा वो भी मालामाल होता चला गया। और बेटा बाप का यानी मेटास सत्यम का खून चूसता रहा। लेकिन सरकार को लगता है कि वो सत्यम से चूसे गए खून के एक-एक कतरे का हिसाब ले लेगी। शायद यही वजह से कि सत्यम के पुराने अधिकारियों पर भी सरकार का शिकंजा कसता जा रहा है। अगर सरकार सत्यम के मामले में आखिर तक न्याय के साथ खड़ी रहती है तो इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले दिनों में सत्यम के शेयर धारकों को मेटास इफ्रा से शेयर भी मिल जाएं। हालांकि फिलहाल तो यही कहने का मन होता है..कि..फिल्म अभी बाकी है।

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

सत्यम का बिकना लगभग तय

टूट के बिखर चुकी इस कंपनी को पहले बोरे में तो समेट लूं..उसके बाद ही किसी मजबूत हाथों में इसे दूंगा। सत्यम को खरीदने वालों की लाइन लग चुकी है। इससे निवेशकों को राहत मिल सकती है। एल एंड टी, एस्सार ग्रुप, पट्टनी कम्पयुटर्स सहित कई संस्थागत निवेशकों ने सत्यम में अपना विश्वास दिखाया है। एल एंड टी ने कहा है कि सत्यम के बोर्ड में रहने की बजाए वो सत्यम को खरीदना पसंद करेगी। उधर अनिल अंबानी भी सत्यम पर नजर गड़ाए हुए हैं। सत्यम को आने वाले दिनों में राहत मिल सकती है। क्योंकि देश की एक बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी एल एंड टी ने सत्यम में अपना विश्वास जताया है। एल एंड टी ने एक महीने पहले ही सत्यम के करीब 4 फीसदी से ज्यादा शेयर खरीदे थे। लेकिन धांधली की खबर आने के बाद एल एंड टी ने कोई शेयर नहीं लिया है। हालांकि कंपनी ने उनके शेयर बेचे भी नहीं है। कंपनी ने कहा कि अगर सत्यम के सारे नुकसान का एक बार पता चल जाए। तो उसके खरीदने में एल एंड टी को कोई परेशानी नहीं होगी।  एलएंडटी के इस इस बयान के बाद सत्यम के शेयरों में कुछ सुधार दखने को मिला। पिछले दो दिनों से सत्यम के शेयरों में तेजी देखी जा रही है। उधर एस्सार ग्रुप ने सत्यम के बीपीओ बिजनेस को खरीदना चाहती है। यही नहीं पटनी कम्पयुटर्स सहित कई विदेशी संस्थागत निवेशकों ने सत्यम में मालिकाना हक के सरकार से बात की है। जिससे निवेशकों के सेंटिमेंट्स में इजाफा हुआ है। यही नहीं सत्यम से आंध्र प्रदेश सरकार के भी सेंटिमेंट्स जुड़े हुए हैं। इसलिए राज्य सरकार भी सत्यम को खरीदने के लिए लाइन में खड़ी है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में आध्र प्रदेश  को पहचान दिलाने वाली कंपनियों में सत्यम पहले नंबर पर आती है। हैदराबाद से सटे साइबराबाद को दुनिया के नामी आईटी सिटी में गिना जाता है। और इसके पीछे सत्यम का बड़ा हाथ है। लेकिन फिलहाल सत्यम दलदल में फंस चुकी है। और जबतक सत्यम में हुई पूरी धांधली और कंपनी को हुए असली नफे-नुकसान की बात सामने नहीं आ जाती। तबतक निवेशकों को इसके शेयर से दूर रहने की बात ज्यादातर लोग कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से सरकार ने सत्यम को संभालने की शुरूआत की है। और इसके बोर्ड में देश के दिग्गज लोगों को शामिल किया है। उससे तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में सत्यम की नींव को फिर से दुरूस्त कर दी जाएगी। और हो सकता उसके बाद सरकार इसे किसी मजबूत हाथों में बेच दे। लेकिन फिलहाल तो सत्यम के सच और सत्यम के झूठ के बीच जंग जारी है और इसके बीच पिस रहे हैं बेचारे निवेशक। बस इस बात की उम्मीद लिए कि इसे कोई दिग्गज कंपनी जरूर खरीद लेगी।

बुधवार, 21 जनवरी 2009

बाजार में लौटने का आ गया समय

बहुत कठिन है शेयर बाजार में निवेश की डगर..दलाल स्ट्रीट पर इतने गड्ढ़े पहले कभी नहीं थे। महंगाई दर 5 के करीब, विकास दर 7 के करीब, और सेंसेक्स 9000 के नीचे। तो किस बात का है इंतजार। हो जाइए तैयार। आ गया है बाजार से मुनाफा कमाने का समय। हालांकि इस बार स्थिति थोड़ी ज्यादा कठिन है। पहले जैसी स्थिति नहीं है। जब सेंसेक्स केवल ऊपर ही चढ़ रहा था। और निवेशक किसी भी शेयर पर सवारी कर मुनाफा कमा रहे थे। अब मुनाफा कमाने के लिए आपको हमेशा आंखें खुली रखनी पड़ेगी। क्योंकि दलाल स्ट्रीट अब पिछले साल जैसा नहीं रहा। दलाल स्ट्रीट पर खतरे बढ़ गए हैं। बाजार में कोई भी लांग टर्म या शॉर्ट टर्म नहीं होता। ये टर्म केवल टर्म ही हैं। मुनाफे से इसका कोई लेना-देना नहीं होता है। केवल निवेशकों को मुनाफा देखना चाहिए। लांग टर्म के चक्कर में कई निवेशकों के पैसे पलीत हुए हैं। क्योंकि तीन साल पहले उन्होंने जो शेयर खरीदा थे वो अब उससे भी नीचे के भाव पर मिल रहे हैं। बाजार अब इंटेलिजेंटली निवेश करने की जरूरत है। और समय-समय पर मुनाफा काटकर दूर से बाजार को देखने की जरूरत है। ये जरूरी नहीं कि आपके पास पैसे हैं तो उसे बाजार में किसी लेवल पर डाल दें। आप कैश पर बैठ सकते हैं। और हर गिरावट में बाजार में घुसकर हर तेजी में बाहर आ सकते हैं।

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

ओबामा आएगा मंदी भगाएगा ?

1.कितना प्यारा बच्चा है..एक साथ मां-बाप का नाम ले रहा है। 2.गलत सोच रहे हो..मंदी की वजह से मां बाप ने इसे सड़क पर छोड़ दिया है इस लिए ये ओबामा को पुकार रहा है। अमेरिकी प्रेसिडेंट आज जितने पॉपुलर हो रहे हैं उतना पहले कभी नहीं थे। इसकी एक वजह ये है कि ओबामा पहले ब्लैक प्रेसिडेंट हैं। दूसरी वजह है कि वो बराक हुसैन ओबामा हैं। और तीसरी लेकिन सबसे बड़ी वजह ये है कि आज अमेरिका की वजह से पूरी दुनिया में मंदी का आलम है। अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ओबामा भले ही दुनिया के सबसे ताकतवर आदमी में शुमार हो जाएंगे। लेकिन उनके सामने चुनौती भी उतनी ही बड़ी होगी। आर्थिक मंदी से अमेरिका को बाहर निकालने की चुनौती किसी भी अमेरिकी प्रेसिडेंट के लिए पिछले 80 सालों में सबसे बड़ी चुनौती है। और इसपर दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई हैं। क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। और अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान होता है तो उसका खामियाजा जापान, जर्मनी, चीन और भारत सहित दुनियाभर के देशों को भुगतना पड़ता है। इस मंदी की शुरूआत भी अमेरिका से ही हुई है। जिसने धीरे-धीरे यूरोप, एशिया सहित पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में कसना शुरू कर दिया। लेकिन जानकारों का मानना है कि ओबामा के पदभार संभालते ही स्थिति में सुधार होने लगेगा। क्योंकि ओबामा कि इकॉनोमिक पॉलिसीज में काफी दम है। ओबामा वैसे एसेट्स को खरीदने पर विचार कर सकते हैं जो कि टॉक्सिक है..यानी दिवालिया हो चुकी या होने वाली कंपनियों की हैं।  इसके अलावे ओबामा इसी हफ्ते 350 अरब डॉलर दूसरे बेलआउट पैकेज का ऐलान कर सकते हैं। और अगर इससे भी बात नहीं बनी तो ओबामा 825 अरब डॉलर के एक पैकेज की तैयारी कर चुके हैं। ओबामा ने ये वादा किया है कि वो ना केवल नौकरी के अवसर बढ़ाएंगे बल्कि उनकी भी मदद करेंगे जिनकी नौकरी चली गई है साथ ही उस परिवार की भी देखभाल करेंगे जिसपर मंदी की मार पड़ी है। यानी कि एकबार फिर से अमेरिकी में लगातार बढ़ रही बेरोजगारी दर पर लगाम लगाई जा सकेगी। जिससे लोगों के पॉकेट में फिर से पैसे आएंगे। जिससे वो खरीदारी कर पाएंगे। और अगर लोग खरीदारी करेंगे तो वहां कि कंपनियों के नतीजे सुधरेंगे। जिसका असर अमेरिकी शेयर बाजार पर देखने को मिलेगा। और एक बार अमेरिकी कंपनियां और बाजार पटरी पर आ गए तो दुनिया के बाकी देशों की आर्थिक स्थिति में खुद ब खुद सुधार होने लगेगा। यानी ओबामा और उनकी आर्थिक पॉलिसी पर टिकी हुई है कई देशों की अर्थव्यवस्था औऱ उनके बाजारों की नींव। अगर ओबाम अमेरिका को पिछले अस्सी सालों के इस संकट से निकाल ले जाते हैं। तो पूरी दुनिया अमेरिका के इस पहले ब्लैक राष्ट्रपति की ताकत को हमेशा सलाम करेगी।