मंगलवार, 30 अगस्त 2011

मारुति के मानेसर प्लांट में हड़ताल जारी

कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट के कर्मचारियों की हड़ताल आज दूसरे दिन भी जारी है। कर्मचारी संगठनों और कंपनी के मैनेजमेंट की बीच राजनीति अपने चरम पर है। कंपनी कह रही है कि कर्मचारी जानबूझ कर ठीक काम नहीं कर रहे हैं। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि काम का बहाना बनाकर मैनेजमेंट कर्मचारियों पर नकेल कसना चाह रही है। मारुति के मैनेजमेंट ने अनुशासन तोड़ने और जानबूझकर खराब काम करने के आरोप में आज 7 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया। मैनेजमेंट के कड़े रुख को देखते हुए लगता है कि मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में एकबार फिर हड़ताल लंबा खिंच सकता है। इस प्लांट के कर्मचारियों ने पिछले तीन महीनों में तीसरी बार हड़ताल पर हैं। कर्मचारियों का कहना है कि मैनेजमेंट तानाशाही का रास्ता अख्तियार कर चुकी है। 3 महीने पहले कर्मचारियों ने जब नए कर्मचारी संगठन बनाने के लिए हड़ताल की थी तो वो करीब 13 दिनों तक खिंची थी। और वो हड़ताल हरियाणा सरकार के बीच में आने की वजह से खत्म हो पाई थी। लेकिन नए संगठन को मान्यता नहीं मिल पाई। मारुति सुजुकी एम्प्लॉयज यूनियन का कहना है कि आचरण बांड के जरिए मैनेजमेंट कर्मचारियों को पूरी तरह अपने बस में करना चाह रही है। ताकी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर अपनी आवाज बुलंद नहीं पाए। ये वही यूनियन है जिसकी मान्यता के लिए मानेसर प्लांट में हड़ताल हुई थी। और कंपनी को करीब 630 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा था। मारुति सुजुकी के मैनेजमेंट ने मानेसर प्लांट के कर्मचारियों के लिए कारखाने में प्रवेश से पहले बेहतर आचरण बांड पर दस्तखत करना अनिवार्य कर दिया है। साथ ही कल 15 कर्मचारियों को सस्पेंड और 6 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था। जिसके विरोध में कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं। मानेसर प्लांट के कर्मचारियों का आरोप है कि मैनेजमेंट कर्मचारियों को तोड़ने की कोशिश कर रही है। और पुरानी हड़ताल का बदला चुका रही है। वहीं मैनेजमेंट ने दलील दी है कि कर्मचारी जानबूझकर ढ़ीला काम कर रहे हैं। जिससे ना केवल प्रोडक्शन कम हो रहा है बल्कि क्वालिटी के स्तर पर भी बहुत गाड़ियां फेल हो रही हैं। इससे कंपनी हर दिन करीब 25 से 30 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। मैनेजमेंट अब कांट्रैक्ट पर बाहर से वर्कर लाने पर विचार कर रही है।

सोमवार, 29 अगस्त 2011

निजी बैंकों के लिए RBI का दिशा-निर्देश

आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने निजी क्षेत्र में नए बैंकिंग लाइसेंस देने के लिए दिशा निर्देशों का एक मसौदा अपनी अपनी वेबसाइट पर जारी किया है। इसके लिए बैंक ने सभी लोगों से 31 अक्तूबर तक सुझाव मंगाए हैं। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों तक बैंकों की पहुंच बनाने के लिए नया लाइसेंस जारी करने वाली है। रिजर्व बैंक के अनुसार मौजूदा ग़ैर बैंकिंग कंपनियां यानी एनबीएफसी भी बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती हैं। वहीं पहले पांच वर्षों तक बैंक में विदेशी निवेश की सीमा 49 फीसदी होगी। बैंकों को दो साल के भीतर शेयर बाजार में लिस्ट करना होगा। साथ ही लाइसेंस मिलने के एक साल के भीतर बैंक खोलना होगा। आवेदन करने वाली कंपनी के पास कम से कम 500 करोड़ रूपए की पूंजी होनी चाहिए। इसके अलावा बैंक के प्रोमोटरों का कम से कम 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड होना चाहिए।

मारुति मानेसर प्लांट में फिर हड़ताल

कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट के कर्मचारी एक बार फिर हड़ताल पर चले गए हैं। कर्मचारी संगठन और कंपनी के मैनेजमेंट की बीच राजनीति अपने चरम पर है। जिससे प्रोडक्शन पर असर पड़ रहा है। भारत में कार बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजुकी मैनेजमेंट और कर्मचारी संगठन की राजनीति में पिसती जा रही है। मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट के कर्मचारी आज एकबार फिर हड़ताल पर चले गए हैं। इस प्लांट के कर्मचारियों ने पिछले तीन महीनों में तीसरी बार हड़ताल किया है। मारुति सुजुकी के मैनेजमेंट ने मानेसर प्लांट के कर्मचारियों के लिए कारखाने में प्रवेश से पहले बेहतर आचरण बांड पर दस्तखत करना आज से अनिवार्य कर दिया है। जिसके विरोध में कर्मचारी हड़ताल चले गए हैं। मानेसर प्लांट के कर्मचारियों का आरोप है कि मैनेजमेंट कर्मचारियों को तोड़ने की कोशिश कर रही है। वहीं मैनेजमेंट ने दलील दी है कि कर्मचारी जानबूझकर ढ़ीला काम कर रहे हैं। जिससे ना केवल प्रोडक्शन कम हो रहा है बल्कि क्वालिटी के स्तर पर भी बहुत गाड़ियां फेल हो रही हैं। इससे पहले कंपनी 21 कर्मचारियों को सस्पेंड कर चुकी है।

सेंसेक्स 600 अंक चढ़ा, निफ्टी 4900 पार

हफ्ते के पहले कारोबारी दिन भारतीय शेयर बाजार में आज जबरदस्त तेजी देखने को मिली। दिनभर के कारोबार के दौरान सेंसेक्स ने 600 अंकों से ज्यादा की छलांग लगा दी। वहीं निफ्टी भी पौने दो सौ अंकों की बढ़त के साथ 4900 के अहम स्तर को पार करने में कामयाब हुआ है। बाजार बंद होने के समय सेंसेक्स और निफ्टी करीब 4 फीसदी की शानदार तेजी बनाने में कामयाब हुए। जिससे सेंसेक्स 567 अंकों की उछाल के साथ 16416 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी 172 अंकों की बढ़त के साथ 4919 के स्तर पर बंद हुआ। आईटी, रियल्टी, कैपिटल गुड्स, मेटल्स, बैंक सहित लगभग सभी सेक्टर 4 से 5 फीसदी की बढ़त के साथ बंद हुए। सबसे ज्यादा बढ़ने वाले शेयरों में टीसीएस, एचसीएल टेक, इंडियाबुल्स, यूनिटेक शामिल हुए। अनिल अंबानी की कंपनियों के शेयरों में भी जबरदस्त तेजी रही। रिलायंस कैपिटल 10 फीसदी चढ़ा। वहीं रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस पावर 7 फीसदी मजबूती के साथ बंद हुए। एशियाई और यूरोपीय बाजारों में आई तेजी का असर भारतीय शेयर बाजार में देखने को मिला।

बुधवार, 24 अगस्त 2011

रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार का मारा

अन्ना के अनशन में हर वर्ग हर उम्र के लोग जुट रहे हैं। लेकिन इनका मकसद एक है। देश से भ्रष्टाचार को दूर करना। लेकिन इस भीड़ में कुछ वैसे भी लोग हैं जो लगातार कई वर्षों से भ्रष्टाचार की सीधी मार खाने को मजबूर हैं। और अब अन्ना के जरिए उन्हें भ्रष्टाचार से मुक्ति की उम्मीद जगी है। इसलिए सीधा अन्ना के अनशन स्थल यानी दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंच गए हैं। क्या बूढ़े क्या बच्चे अन्ना के अनशन में हर कोई शामिल है। और भ्रष्टाचार को दूर भगाने के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान पुहंचे हैं। ताकि अन्ना के हौसले बुलंद रहे। हालांकि इनमें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके हौसले पस्त हो चुके हैं। भ्रष्टाचार के चक्कर में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते काटते उनके चप्पल घिस चुके हैं। माथे पर उम्र की लकीरें बढ़ती जा रही हैं। लेकिन उनकी समस्या जस की तस बरकरार है। पिछले 24 सालों से जसवंत सिंह विष्ट भ्रष्टाचार में पिस रहे हैं। इनकी पैकेजिंग कंपनी मेटल बॉक्स इंडिया को सरकार ने पहले बीमार घोषित किया उसके बाद उसे बंद कर दिया। कंपनी की प्रॉपर्टी भी बेच ली गई। इससे 1000 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। लेकिन तमाम वादों के बावजूद इन कर्मचारियों को कुछ नहीं मिला। इस लड़ाई को जसवंत दो दशक से ज्यादा से लड़ रहे हैं और अब अन्ना की शरण में पहुंच गए हैं। इनका मानना है कि जनलोकपाल होता तो इन्हें इतने साल तक नहीं भटकना पड़ता। दिल्ली के रामलीला मैदान में हाजारों लोगों के भीड़ में कई ऐसे लोग शामिल हैं जिन्हें भ्रष्टाचार ने बर्बाद कर दिया है। भ्रष्टाचार का मारा एक रिटायर्ड कर्मचारी आई घुंघराला भी अन्ना के इस अनशन में अपनी फरियाद लेकर आए हैं। जिन्हें सेवानिवृति के बाद ना तो सेवानिवृति फंड मिला और ना ही पेंशन। कुछ लोग तो अपने गांव की परेशानी लेकर अन्ना की शरण में आए हैं। उन्हें लगता है कि अन्ना के सामने अभी से अपनी फरियाद रख देंगे तो उन्हें आगे और भ्रष्टाचार की मार नहीं पड़ेगी। रामलीला मैदान में ऐसे ही एक बुजुर्ग मिले खुसाल सिंह जो कि अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। ये यहां अपनी शिकायत लेकर अन्ना के पास आए हैं। इनके गांव में सड़कें तीन तीन बार बनकर दिल्ली आ गईं लेकिन काग़ज पर। लेकिन हक़ीक़त में गांव मं कुछ नहीं बना। अनशन में हजारों लोग शामिल हो रहे हैं। लेकिन इन हजारों लोगों में से कुछ लोग वैसे हैं जो अभी भी हर दिन भ्रष्टाचार की चाबुक खाने पर मजबूर हैं। इस भीड़ में वैसे कई चेहरे दिख जाएंगे जो अभी भी एक दफ्तर से दूसरा दफ्तर चक्कर काट रहे हैं ताकि उनकी फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर पहुंच जाए।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

सेंसेक्स 16000 के नीचे, RIL तीसरे नंबर पर

भारतीय शेयर बाजार में आज एकबार फिर हाहाकार मच गया। जबरदस्त बिकवाली की वजह से सेंसेक्स और निफ्टी में जबरदस्त गिरावट देखी गई। दिनभर के कारोबार के दौरान सेंसेक्स करीब 500 अंक लुढ़क गया। वहीं निफ्टी ने 150 अंकों से ज्यादा का गोता लगा दिया। जापान में सुनामी की आशंका की वजह से जापान के बाजार में भारी गिरावट दर्ज की गई। निक्केई 200 अंकों से ज्यादा फिसल गया। वहीं अमेरिका में जॉब के खराब आंकड़े आने की वजह से कल डाओ जोंस में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। जिसका असर भारतीय बाजार पर देखने को मिला। हालांकि आखिरी घंटे के कारोबार में कुछ खरीदारी लौटी। जिससे गिरावट में कुछ कमी आई। बाजार बंद होते समय सेंसेक्स 328 अंकों की गिरावट के साथ 16141 पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी 98 अंक लुढ़ककर 4845 पर बंद हुआ। बाजार में आई गिरावट की वजह से बीएसई की करीब 133 कंपनियों के शेयरों के भाव अपने निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं। जिसमें सरकारी कंपनी एमटीएनएल और अनिल अंबानी की कंपनी आरकॉम शामिल है। जबकि पहले से दूसरे नंबर पर पहुंच चुकी मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज अब मार्केट कैपिटलाइजेशन के मामले में तीसरे नंबर पर पहुंच चुकी है। पहले कोल इंडिया लिमिटेड ने रिलायंस इंडस्ट्रीज को पहले नंबर से बेदखल किया। और अब सरकारी कंपनी ओएनजीसी ने आरआईएल को दूसरे नंबर से बेदखल कर दिया है।

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

निफ्टी साल के निचले स्तर पर

भारतीय शेयर बाजार आज जबरदस्त गिरावट के साथ बंद हुए। आखिरी घंटे में आई बिकवाली से सेंसेक्स और निफ्टी ने गोता लगा दिया। लगभग सभी सेक्टर लुढ़ककर बंद हुए। सबसे ज्यादा मार आईटी सेक्टर पर देखी गई। सेंसेक्स की शुरूआत आज मामूली गिरावट से हुई। लेकिन दिनभर के कारोबार के दौरान इसमें गिरावट बढ़ती ही गई। सेंसेक्स 371 अंक गिरकर 16469 पर बंद हुआ। जबकि निफ्टी 112 अंक लुढ़ककर 4944 पर बंद हुआ। जो कि 8 जून 2010 के बाद सबसे निचला स्तर है। आईटी और बैंकिंग सेक्टर के शेयरों में 4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। जबकि मेटल शेयरों में ढ़ाई फीसदी से ज्यादा गिरावट रही। वहीं पावर, हेल्थकेयर, ऑयल एंड गैस और ऑटो शेयरों में करीब 2 फीसदी तक गिरावट देखी गई। भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट की सबसे बड़ी वजह एशियाई और यूरोपीय बाजारों में गिरावट रही। सुबह से ही एशियाई बाजारों में गिरावट देखी जा रही थी। दोपहर बाद यूरोपीय शेयर खुलते ही लुढ़क गए। जिससे भारतीय बाजार में गिरावट तेज हो गई।

बुधवार, 17 अगस्त 2011

सभी राजनीतिक दल बनाम अन्ना

अन्ना हज़ारे के पीछे देश के करोड़ों लोग हैं। क्योंकि हर कोई भ्रष्टाचार में पिस रहा है। और हर किसी को भ्रष्टाचार से आजादी चाहिए। लेकिन अन्ना और उनकी टीम को फूंक फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। तभी भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। क्योंकि सरकार की बातों से लगता है कि किसी भी कीमत पर सरकार झुकने को तैयार नहीं है। 64 सालों से सरकार की रगों में भ्रष्टाचार का खून दौड़ रहा है। और इसे एक झटके में निकाल पाना संभव नहीं है। कोई भी दल का अन्ना को समर्थन नहीं है। बीजेपी की सुषमा स्वाराज ने कहा कि उन्हें भी अन्ना के जन लोकपाल बिल पर आपत्ति है। वो तो बस मानवाधिकार के लिए अन्ना के साथ हैं। लगभग यही रवैया देश के दूसरे दलों का भी है। राजद सुप्रीमो लालू यादव ने तो यहां तक कह दिया की फौज और पुलिस उनके साथ है। और वो संसद में ताला लगने नहीं देंगे। लेकिन संसद में ताला लगाना कौन चाहता है। देश की जनता तो केवल संसद में पहुंच चुके भ्रष्टाचार के दीमकों को हटाना चाह रही है। नहीं तो ये दीमक इस देश को चाटकर खोखला कर देगी। अन्ना के इस आंदोलन को धीरे-धीरे विकराल रूप देने की जरूरत है। तभी इन नेताओं को समझ में आएगी की कि जिस संसद की दंभ वो भर रहे हैं। वो हमारे आपके जैसे आम लोगों के दम पर वहां पहुंचे हैं। और हमारा हित करने के लिए ये वहां पहुंचे हैं। अगर वो ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं तो उन्हें वहां से उखाड़ फेंका जा सकता है। अन्ना और उनके टीम को अब आगे की रणनीति पर विचार करने की ज़रूरत है। और शुद्धीकरण के इस बयार को तूफान का रुप देने की ज़रूरत है। इसके लिए उन्हें कुछ बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत होगी। एक बड़ा टीम बनाने की ज़रूरत है। जो कि देशभर में फैली हो। हर राज्य हर जिले में एक मुख्यालय बनाकर इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के अधिकारी नियुक्त करने होंगे। और इसके लिए लोगों की कमी नहीं है। क्योंकि देशभर में लोग अपना काम धंधा छोड़कर सबसे पहले और सबसे अहम इस काम यानी भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए सिर पर कफ़न बांध कर तैयार हैं। बस उन्हें चुनकर कर उनके कंधों पर ज़िम्मेदारी देने भर की ज़रूरत है। उसके बाद खुद ब खुद ये आंदोलन अपना रास्ता बना लेगी।

रविवार, 14 अगस्त 2011

अन्ना को जिन्ना समझ रही है सरकार!

अन्ना हमारे देश के नागरिक है। एक समाजसेवी हैं। उनका आंदोलन हमारे-आपके और आने वाली पीढ़ियों के हित में है। लेकिन सरकार उनके साथ बहुत ही सख्ती से पेश आ रही है। जो कि बिल्कुल ग़लत है। यूपीए की सरकार उनके साथ जिन्ना जैसा बर्ताव कर रही है। जो कि एक शर्म की बात है। हम आज आजादी की 64वीं सालगिरह मना रहे हैं। लेकिन हमारी जनता आज भी भूखमरी और बेरोजगारी से त्रस्त है। भ्रष्टाचार की वजह से मुट्ठी भर लोगों के पास संपत्ति बढ़ती ही जा रही है। जबकि करोड़ों लोग भूखे पेट इस देश में सो रहे हैं। घोटालों की संख्या और घोटालों की रकमत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। आज जितने भी घोटाले सामने आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर हज़ारों करोड़ रुपए के हैं। 74 साल के अन्ना को सरकार आंख दिखा रही है। उन्हें डराने की कोशिश कर रही है। प्रणब मुखर्जी,कपिल सिब्बल,अंबिका सोनी लगातार अन्ना के खिलाफ आग ऊगल रहे हैं। उम्र की इस दहलीज़ पर आकर भी अन्ना हमारे-आपके लिए अपनी जान न्योछावर करने को तैयार हैं। वो ये लड़ाई अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं बल्कि हमारे और आपके लिए लड़ रहे हैं। ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम उनका मनोबल नहीं गिरने दें। और उनका पूरी तरह से सपोर्ट करें। हमारे आस पास ही चीन आजाद हुआ और आज इतनी बड़ी ताक़त बन गया कि अमेरिका की आंख में आंख डालकर बात कर रहा है। वहीं दूसरी ओर हमारी सरकार अमेरिका के तलबे चाट रही है। करीब 5 दशक से ज्यादा कांग्रेस ने ही इस देश में राज किया है। और भ्रष्टाचार को अपने साथ ढ़ोता रहा है। हमारे देश में अगर भ्रष्टाचार नहीं होता तो आज पाकिस्तान या चीन को सबक सिखाने के लिए हमें किसी दूसरे देश का मुंह नहीं ताकना पड़ता। लेकिन देर से सही लेकिन अब हमें जागना होगा। तभी हम अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का भला कर पाएंगे। आप जिस किसी क्षेत्र में हैं प्रोफेशन में हैं एक दिन अन्ना के नाम कर दें। आपका एक दिन हो सकता है देश की तक़दीर पलट दे। और ये एक दिन आपकी ज़िंदगी के सबसे सफ़ल दिनों में शुमार हो सकता है। इस देश में ना केवल आम लोग,ग़रीब लोग भ्रष्टाचार में पिस रहे हैं बल्कि कई होनहार आईएएस, आईपीएस, इंजीनियर, डॉक्टर, पत्रकार, कल-कारखानों में काम करने वाले मज़दूर और मिडिल क्लास खून की घूंट पीकर इस भ्रष्टाचार को झेल रहे हैं। अन्ना अनशन करेंगे उसके बाद अगर वो जेल में रहें या अस्पताल में हमें इस अनशन को आगे बढ़ाना है। और देश में जनलोकपाल लाना है। आप किसी भी जाती के हों या किसी भी धर्म के हों आपके ऊपर भ्रष्टाचार की बराबर मार पड़ती है। क्योंकि भ्रष्टाचार बड़ा सेक्युलर है। एडमिशन के लिए रकम फिक्स होता है। सरकारी दफ्तर में काम करने की रकम फिक्स है। फाइल को एक टेबल से दूसरे टेबल पर ले जाने की रकम फिक्स है। इसलिए जाती-धर्म से ऊपर उठकर हमें अन्ना का साथ देने की ज़रुरत है।

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

बढ़ा देश का औद्योगिक विकास दर

सरकार के लिए कुछ राहत की खबर काफी दिनों बाद आई है। देश का औद्योगिक विकास दर में इजाफा हुआ है। जून महीनें में देश का औद्योगिक विकास दर बढ़कर 8.8 फीसदी पर पहुंच गया है। इससे पहले महीने में ये 5.6 फीसदी था। जो कि 9 महीनों का निचला स्तर था। हालांकि औद्योगिक विकास दर की इस तेजी का असर ब्याज दरों पर देखा जा सकता है। इससे आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक बार फिर से कर्ज महंगा कर सकता है। क्योंकि महंगाई लगतार बढ़ रही है। अगली मिड-टर्म क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान 16 सितंबर को होने वाली है। लेकिन एचएसबीसी की प्रमुख नैनालाल किदवई इससे इत्तेफाक नहीं रखती हैं। नैना का मानना है कि ब्याज दरें अपने उच्चतम स्तर के करीब पहुंच चुकी हैं। और आने वाले दिनों में इसमें गिरावट ही देखने को मिल सकती है। अगर मैन्युफैक्चरिंग विकास दर की बात करें तो ये भी उत्साहजनक रहा है। जून महीने में मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ 10 फीसदी रहा जो कि मई महीने में 5.6 फीसदी था। अमेरिका और यूरोप की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए देश के औद्योगिक संगठन फिक्की कर्ज सस्ते करने की मांग कर रही है। लेकिन खाद्य महंगाई दर के फिर से करीब 10 फीसदी पर पहुंच जाने से ऐसा लगता नहीं कि आरबीआई क्रेडिट पॉलिसी में कुछ नर्मी फिलहाल दिखाएगी।

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

SBI ने फिर महंगा किया कर्ज

देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कर्ज महंगा कर दिया है। एसबीआई ने बेस रेट में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर दी है। यानी अब बेस रेट साढ़े नौ फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी पर पहुंच गया है। नई दरें 13 अगस्त से लागू होंगी। ऐसे में होम लोन, कार लोन, कॉरपोरेट लोन सहित हर तरह के कर्ज महंगे हो जाएंगे। बैंक के इस कदम से जहां नए ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा हो जाएगा। वहीं फ्लोटिंग रेट पर कर्ज लेने वाले ग्राहकों की ईएमआई बढ़ जाएगी। होम लोन दरों में 50 बेसिस प्वाइंट यानी आधा फीसदी की बढ़ोतरी होने पर 20 साल के लिए लिए गए 30 लाख रुपए के होम लोन पर हर महीने ईएमआई में 1000 रुपए से ज्यादा का इजाफा हो जाएगा। इस वित्त वर्ष में देश के सबसे बडे़ बैंक एसबीआई ने कर्ज की ब्याज दरों में चौथी बार इजाफा किया है। एसबीआई से पहले करीब दो दर्जन बैंक अपने कर्ज महंगे कर चुके हैं। रिजर्व बैंक ने पिछले डेढ़ साल में 11 बार अहम दरों में बढ़ोतरी की है।

आगे महंगाई की मार पीछे मंदी की तलवार

महंगाई की मार लगातार लोगों पर बढ़ती जा रही है। 30 जुलाई को खत्म हुए हफ्ते में खाद्य महंगाई दर 9.9 फीसदी पर पहुंच गई। जो कि साढ़े चार महीनों का उच्चतम स्तर है। इससे पहले हफ्ते में ये दर 8.04 फीसदी थी। प्राइमरी आर्टिकल्स यानी आवश्यक वस्तुओं की महंगाई दर 12.22 फीसदी पर पहुंच चुकी है। जो 23 जुलाई को खत्म हुए हफ्ते में 10.22 फीसदी थी। जबकि फ्यूअल और पावर की महंगाई दर मामूली इजाफा हुआ है। महंगाई पर लगाम लगाने की सरकार की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। आने वाले दिनों में सरकार की मश्किलें और बढ़ने वाली हैं। क्योंकि एक तरफ लगातार महंगाई बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था पर मंदी की तलबार लटक रही है। क्योंकि देश में लगातार डिमांड में कमी होती जा रही है। अगर सरकार डिमांड बढ़ाने की कोशिश करती है तो महंगाई और बढ़ेगी। दूसरी ओर अगर सरकार महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश में कर्ज और महंगी करती है तो डिमांड और गिरेगी। यानी सरकार के सामने आगे खाई है और पीछे कुआं।

शनिवार, 6 अगस्त 2011

अमेरिकी साख पर लगा धब्बा

अमेरिका की आर्थिक स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। जिससे चलते दुनिया की एक प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग गिरा दी है। दुनिया की सबसे बड़ी और मज़बूत अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका पर ये दाग इससे पहले कभी नहीं लगा था। स्टैंडर्ड एंड पूअर्स यानी एसएंडपी ने अमरीका के बढ़ते बजट घाटे की चिंताओं के चलते उसकी लंबी अवधि की क्रेडिट रेटिंग, ट्रिपल ए से घटाकर डबल ए प्लस कर दिया है। अमेरिका के इतिहास में पहली बार क्रेडिट रेटिंग घटाई गई है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स का कहना है कि अमेरिका के सरकारी बॉन्ड अब सुरक्षित निवेश का जरिए नहीं रहे हैं। इसलिए अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटाना जरूरी था। यानी पहले की तरह अब दुनिया के दूसरे देशों का भरोसा अमेरिका पर नहीं रहेगा। और वे अमेरिका में निवेश करने से बचेंगे। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के मुताबिक अमेरिकी सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ रहा है और सरकार के खर्चों को लेकर चिंता बढ़ गई है। इसी हफ्ते अमेरिकी सरकार लंबी राजनीतिक रस्साकशी के बाद कर्ज सीमा बढ़ाने में कामयाब रही थी। अमेरिका की ही प्रमुख रेटिंग एजेंसियों में से एक स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने दलील दी है कि संसद ने कर्ज़ सीमा बढ़ाने वाला जो विधेयक पारित किया वो सरकार के मध्यम अवधि के कर्ज़ प्रबंधन को स्थिर करने के लिए पर्याप्त नहीं है। एसएंडपी ने चेतावनी दी है कि अगर अगले दो साल में बजट घाटा कम करने की दिशा में उठाए गए कदमों का नतीजा नहीं दिखा तो वे अमरीका की क्रेडिट रेटिंग एए से भी नीचे कर सकती है। एजेंसी मानती है कि कर्ज़ की सीमा बढ़ाने के लिए जो विधेयक पारित किया गया उसमें राजस्व जुटाने के पर्याप्त उपाय नहीं बताए गए हैं। हालांकि बराक ओबामा कुछ टैक्स बढ़ाना चाहते थे लेकिन विरोधी रिपब्लिकन पार्टी ने ऐसा करने का विरोध किया था। अमरीका की क्रेडिट रेटिंग घटने से दुनिया भर के निवेशकों का भरोसा दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर घट सकता है। साथ ही अमेरिकी सरकार को अब कर्ज लेने के लिए ज्यादा ब्याज देने पड़ सकते हैं। और डॉलर की ताकत में भी कमी आ सकता है।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

लुढ़क गए दुनियाभर के बाजार

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका में मंदी की आशंका से दुनिया भर के बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली। अमेरिकी बाजारों की बात करें तो डाओ जोंस में दिसंबर 2008 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। अमेरिका में अभी 2 दिन पहले कर्ज सीमा को बढ़ाने के बिल को मंजूरी मिली है लेकिन महज उस बिल के पास हो जाने से अमेरिका की चिंता खत्म होती नहीं दिख रही है। गुरुवार के कारोबारी सत्र में डाओ जोंस 500 अंक से ज्यादा लुढ़ककर 11,383 पर बंद हुआ। 21 जुलाई 2011 के बाद से डाओ जोंस में 1200 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। दिसंबर 2008 के बाद यानी की पिछली मंदी के बाद अमेरिकी बाजार में ये एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है।आज अमेरिका में बेरोजगारी के आंकड़े जारी होने वाले हैं। लेकिन आंकड़ों से पहले बाजार में जो बिकवाली देखी गई। उससे लगता नहीं है ये आंकड़े अच्छे नहीं रहने वाले हैं। डॉलर की कमी और दुनियाभर में आर्थिक मंदी की खबरों का डर अमेरिका के बाजारों पर साफ नजर आ रहा है। नैस्डेक 136 अंक यानि 5 फीसदी की भारी गिरावट के साथ 2556 के स्तर पर बंद हुआ। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था वाले देश के बाजरों में हुए इस उथल-पुथल का असर दुनियाभर के दूसरे बाजारों पर भी देखना को मिला। चीन, हांगकांग, सिंगापुर, जापान सहित पूरे यूरोप के बाजार धाराशायी हो गए। इससे दुनियाभर में निवेशकों को अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा।

सरकारी बैंकों में रहा काम-काज ठप्प

आज देशभर के सरकारी और कुछ निजी बैंकों में कामकाज ठप्प रहा। बैंकिंग रिफॉर्म के विरोध में करीब 10 लाख बैंककर्मियों की हड़ताल के कारण देश भर में बैंकिंग कामकाज प्रभावित हुआ। इस हड़ताल की वजह से लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों की हड़ताल की वजह से आज देशभर में बैंकिंग सेवा बुरी तरह प्रभावित रही। सरकारी बैंकों के अलावा निजी और विदेशी बैंकों के करीब 10 लाख कर्मचारियों ने कामकाज रोक दिया। इस हड़ताल का राष्ट्रव्यापी असर हुआ। चेक क्लियरिंग कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित रहा। पांच बैंक कर्मचारी और चार बैंक अधिकारी संगठनों को मिलाकर यूनाईटेड फोरम ऑफ़ बैंक यूनियंस यानी यूएफबीयू का गठन किया गया है। यूएफबीयू ने ये हड़ताल अपनी 21 सूत्री मांगों को लेकर की थी। इन मांगों में सरकारी क्षेत्र के बैंकों का विलय रोकना, स्थाई बैंकिंग नौकरियों का निजी बैंकों से आउटसोर्सिग रोकना, खाली पदों को भरना, मुआवजे के आधार पर पारिवार के सदस्य को नौकरी और आवास, कार और अन्य ऋणों के लिए निशा-निर्देश तय करना शामिल है। प्राइवेट बैंकों में इसका ज्यादा असर नहीं देखने को मिला क्योंकि कुछ पुरानी और छोटे प्राइवेट बैंक ही इस संगठन के सदस्य हैं। आईसीआईसीआई बैंक और एचडीएफसी बैंक में बिना किसी रुकावट के काम-काज होता रहा। राज्यसभा में वाम दलों सहित विभिन्न दलों के सदस्यों ने बैंक हड़ताल का मुद्दा उठाते हुए सरकार से सरकारी बैंकों का निजीकरण नहीं करने और इस संबंध में बयान देने की मांग की।

भारतीय बाजार में हाहाकार

अमेरिका में वित्तीय संकट गहराने से दुनिया भर में एक बार फिर आर्थिक मंदी की आशंका तेज हो गई। इसी अटकलों ने शेयर बाजार को पूरी तरह झकझोर दिया है। भारतीय बाजार के लिए आज का दिन ब्लैक फ्राइडे साबित हुआ। सेंसेक्स और निफ्टी भारी गिरावट के साथ बंद हुए।अमेरिकी बाजार में आई तूफान का असर भारती बाजार में देखा गया। भारतीय बाजार में दिनभर जबरदस्त बिकवाली छाई रही। दिनभर के कारोबार के दौरान सेंसेक्स 700 अंक लुढ़क गया। वहीं निफ्टी ने 200 अंकों से ज्यादा का गोता लगा दिया। जिससे सेंसेक्स 17 हजार और निफ्टी 5 हजार दो सौ के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़कर नीचे फिसल गया। अमेरिका में वित्तीय संकट गहराने की आशंका से विदेशी निवेशक अफरा-तफरी में भारतीय बाजार से पैसे निकालने लगे। इसके चलते बाजार लुढ़क गया। माना जा रहा है कि अमेरिका में सरकारी खर्च चलाने के लिए सरकार के पास पैसा ही नहीं बचा है। इसके लिए अमेरिकी सरकार ने कांग्रेस में कर्ज की सीमा और बढ़ाने का विधेयक पास कराया। लेकिन कर्ज की सीमा बढ़ाए जाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं दिख रहा है और सरकार के समक्ष वित्तीय संकट मुंह बाये खड़ा है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की इस स्थिति में पहुंचने के चलते पूरी दुनिया के बाजारों में खलबली मची हुई है। और इसका ही इसर भारतीय बाजार पर दिखा है। बैंक,ऑटो,आईटी,मेटल,ऑयल और गैस सेक्टर सहित लगभग सभी सेक्टर में दिनभर बिकवाली हावी रही। लेकिन आखिरी घंटों में कुछ खरीदारी लौटी जिससे बाजार में कुछ सुधार दिखा। बाजार बंद होने के समय सेंसेक्स 387 अंक लुढ़ककर 17305 पर और निफ्टी 120 अंक फिसलकर 5211 पर बंद हुआ। आइए अब एक नज़र डालते हैं सेंसेक्स में अबतक की दस सबसे बड़ी गिरावट पर 1.January 21, 2008 --- 1,408 points 2.Oct 24, 2008---1070 points 3.March 17, 2008 --- 951 points 4.July 6, 2009 --- 870 points 5.January 22, 2008 --- 857 points 6.February 11, 2008 --- 833 points 7.May 18, 2006 --- 826 points 8.October 10, 2008 --- 800 points 9.March 13, 2008 --- 770 points 10.December 17, 2007 --- 769 points

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

महंगाई पर वित्त मंत्री का जवाब

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने महंगाई पर जवाब देते हुए कहा कि महंगाई पर काबू पाने के लिए विपक्ष का सहयोग ज़रूरी है। मुखर्जी ने महंगाई और विकास के दुनियाभर के आंकड़े गिना दिए। लेकिन वो महंगाई को विपक्ष के सहयोग से किस तरह से काबू में करेंगे इसपर कुछ नहीं बोल पाए। महंगाई पर हुए चर्चा के बाद जवाब देते हुए वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि महंगाई का विकास के साथ कोई संबंध नहीं है। और महंगाई को विकास के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि महंगाई तो मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ने से बढ़ती है। क्योंकि विकास तो बढ़ती महंगाई के साथ भी हो सकता है। हालांकि वित्त मंत्री ने महंगाई पर काबू पाने के उपायों की किसी तरह की घोषणा नहीं की। साथ ही ये भी नहीं बता पाए कि लोगों को कबतक महंगाई से निजात मिलेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि विकास होना चाहिए लेकिन महंगाई दर को मध्यम स्तर पर सीमित रखते हुए। हालांकि देश में इस समय महंगाई दर काफी ऊंची है। पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर मुखर्जी ने कहा कि वर्ष 1998 में कच्चे तेल का दाम 12 डॉलर प्रति डॉलर था। जो कि 2004 में बढ़कर 36 डॉलर प्रति बैरल हो गया और आज यह 117 डॉलर प्रति डॉलर हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत 75 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में पेट्रोल और डीजल पदार्थो के दाम कम रखना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि सरकारी तेल कंपनियों को इस वक्त 1 लाख 22 हजार करो़ड रूपए का घाटा हो रहा है। इसे ध्यान में रखना जरूरी है। डीज़ल पर से सब्सिडी हटाने पर उन्होंने कहा कि केवल कारों के इस्तेमाल पर ही यह तरीका अपनाया जा सकता है। कारों का खपत महज 15 फीसदी है इससे सीमित फायदा ही होगा। डीजल की खपत की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि भारत का उद्योग जगत 10 फीसदी, रेलवे 6 फीसदी, कृषि 12 फीसदी, पावर 8 फीसदी, निजी कारें 15 फीसदी, बसें 12 फीसदी और ट्रक 30 फीसदी डीजल इस्तेमाल करते हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर प्रणब ने कहा कि यदि दुनियाभर में इनकी कीमतें बढ़ती हैं तो भारत में इन्‍हें कम नहीं रखा जा सकता है। हालांकि उन्‍होंने भरोसा दिलाया कि वैश्विक वित्‍तीय संकट से भारत ज्यादा प्रभावित नहीं होगा।

बुधवार, 3 अगस्त 2011

मुश्किल में महाराजा

सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया को साल 2009-2010 में जबरदस्त घाटा हुआ है। भारी आर्थिक तंगी झेल रही सरकारी एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया की हालत दिनोंदिन पतली होती जा रही है। आलम यह है कि इस कंपनी के पास अपने कर्मचारियों को सैलरी देने के भी पैसे नहीं हैं। ऐसे में एयर इंडिया ने मदद के लिए प्रधानमंत्री मनमोहान सिंह से गुहार लगाई है। सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया को साल 2009-2010 में 5500 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। सरकारी एयरलाइंस कंपनी एयर इंडिया भारी घाटे में उड़ान भर रही है। कंपनी के पास अपने कर्मचारियों को सैलरी देने के पैसे तक नहीं हैं। एयर इंडिया ने अपने कर्मचारियों को पिछले दो महीनों से सैलरी नहीं दी है। और जुलाई महीने की सैलरी पर भी असमंजस बरकरार है। इस सिलसिले में एयर इंडिया मैनेजमेंट की तरफ से प्रधानमंत्री कार्यालय को एक चिठ्ठी भेजी गई है। इस चिठ्ठी में यह कहा गया है कि सरकार एयर इंडिया को वीवीआईपी फ्लाइट्स पर खर्च किए गए 1220 करोड़ रुपये की रकम का भुगतान जल्दी से जल्दी कर दे। एयरइंडिया की तरफ से यह भी कहा गया है कि अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो एयरलाइन को मजबूरी में उड़ानों पर ब्रेक लगाना पड़ेगा। वीवीआईपी फ्लाइट्स के लिए एयर इंडिया की तरफ से 5 बोइंग विमानों का इस्तेमाल किया जाता है। और इसी वीवीआईपी फ्लाइट्स के इस्तेमाल पर सरकार के पास एयर इंडिया के करीब 1220 करोड़ रुपए बकाया हैं। जिसकी मांग अब सीधे पीएमओ से की गई है। ताकि इस पैसे के मिलने पर कर्मचारियों को सैलरी दी जा सके। एयर इंडिया में कमांडर्स की सैलरी 4 लाख से 7 लाख 50 हजार रुपए के बीच है। वहीं को पायलट की सैलरी 2 लाख से 5 लाख रुपए की बीच है। जबकि मैंटेनेंस इंजीनियर की सैलरी 1 लाख 30 हजार से 1 लाख 75 हजार रुपए के बीच है। लोकसभा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आश्वासन दिया है कि एयर इंडिया के कर्मचारियों को वेतन का भुगतान सीघ्र किया जाएगा।

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार बैकफुट पर

देश में आर्थिक रिफॉर्म लाने वाले वित्त मंत्री आज हमारे देश के प्रधानमंत्री है। फिर भी आर्थिक मोर्चे पर देश की स्थिति दिन ब दिन नाजुक होती जा रही है। 8.5 और 9 फीसदी ग्रोथ का असर दूर दराज इलाकों में कम ही देखने को मिल रहा है। ये ग्रोथ एक खास तबके तक सिमट कर रह गया है। और अब तो स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। पहले किए गए सरकार के तमाम दाबों के बावजूद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद यानी पीएमईएसी को चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटाने पर मज़बूर होना पड़ रहा है। भ्रष्टाचार में आरोपों में घिरी सरकार को आर्थिक क्षेत्र में भी मुंह की खानी पड़ रही है। कभी 9 फीसदी आर्थिक विकास का दावा करने वाली यूपीए टू सरकार बगलें झांक रही है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने चालू वित्त वर्ष यानी साल 2011-2012 के दौरान आर्थिक विकास दर के अनुमान को 9 फीसदी से घटाकर 8.2 फीसदी कर दिया है। 2008 की मंदी से अलग इसबार आर्थिक फ्रंट पर दुनियाभर में छाई अनिश्चितताओं का असर भारत में शुरूआत में ही दिखने लगा है। निवेश की बिगड़ती हालत से अब सरकारी खेमा भी परेशान होने लगा है। वित्त मंत्री आनन-फानन में देश के उद्योगपतियों के साथ बैठक कर रहे हैं। सरकार का कहाना है मौजूदा वैश्विक हालात में इस 8.2 अनुमानित विकास दर को भी अच्छा मानना चाहिए। यानी सरकार अपनी पीठ खुद थपथपाना चाह रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार लोगों को आने वाले दिनों में और कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहने की भी हिदायत दे रही है। सरकार का कहाना है कि निकट भविष्य में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय हालात सुधरने की उम्मीद कम है। ऐसे में साल 2011-2012 की पहली तिमाही की ऊंची निर्यात दर को बरकरार रखना मुश्किल होगा। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी रंगराजन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बढ़ती महंगाई से भी फिलहाल लोगों को राहत नहीं मिलने वाली है। क्योंकि अक्टूबर तक महंगाई दर 9 फीसदी के उच्च स्तर पर बनी रहेगी। साथ ही इस साल सामान्य मानसून के अनुमान के बावजूद कृषि विकास दर पिछले साल के 6.6 फीसदी के मुकाबले आधा से भी कम यानी 3 फीसदी हो सकती है। साथ ही विदेशी संस्थागत निवेश यानी एफआईआई भी इस साल घटकर आधा रह सकता है। पिछले साल एफआईआई ने करीब 30 अरब डॉलर देश में लगाए थे। लेकिन 2011-2012 में ये सिर्फ 14 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में विकास दर,निर्यात,कृषि,एफआईआई सहित ज्यादातर अहम आर्थिक क्षेत्रों में इस साल गिरावट का अनुमान लगाया गया है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार किस तरह से नाकाम साबित हो रही है।

उद्योगपतियों की गोद में सरकार

आर्थिक सीमा पर लगातार मात खा रही सरकार को आखिरकार उद्योगपतियों की शरण में जाना पड़ा। औद्योगिक विकास में तेजी लाने के लिए के लिए सरकार को उद्योगपतियों के सामने घुटने टेकने पड़े। आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए आनन-फानन में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने देश के दिग्गज उद्योगपतियों के साथ मुलाकात की। और सुधार के उपायों पर चर्चा की। लगातार हो रही मांग में कमी और देश में एक और मंदी की लटक रही तलबार से निजात पाने के लिए वित्त मंत्री को देश के उद्योगपतियों की शरण में जाना पड़ा। इंफोसिस के चीफ मेंटर नारायण मूर्ति, रतन टाटा, अनिल अंबानी, आनंद महिंद्र और सुनील भारती मित्तल सहित करीब दर्जन भर देश के दिग्गज उद्योगपतियों के सामने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने देश की समस्या को रखा। और इसे दूर की सलाह मांगी। उद्योगपतियों से 5 सुझाव मांगे गए हैं। और इसके लिए उन्हें 4 हफ्ते का समय दिया गया है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इंडस्ट्री ने सकारात्मक उपाय सुझाए हैं..और सरकार उद्योगपतियों के साथ मिलकर सभी सम्याओं को दूर कर लेगी। औद्योगिक विकास में हो रही लगातार कमी सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। इसके साथ ही जीडीपी विकास दर को भी 8 फीसदी से नीचे खिसकने की आशंका सरकार को सता रही है। ऐसे में सरकार उद्योग में तेजी लाने के लिए उद्योगपतियों से अपील कर करी है। भारतीय एयरटेल के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने कहा कि सभी मुद्दों पर सरकार ने पारदर्शिता के साथ बात की है..और सरकार भारतीय उद्योग के साथ है...अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने उद्योग में तेजी लाने की मांग की है। महिंद्रा एंड महिंद्रा के एमडी आनंद महिंद्रा ने कहा कि सरका उद्योगपतियों एक साथ मिलकर दूसरे रिफॉर्म की तैयारी में हैं। लेकिन भ्रष्टाचार,महंगाई जैसे कैई फ्रंट पर चित हो चुकी सरकार दूसरा रिफॉर्म कैसे लाएगी फिलहाल इसका कोई उपाय नहीं बताया है। क्योंकि महंगाई और तेजी से बढ़ते ब्याज दरों की वजह से ऑटो, हाउसिंग, सहित दूसरे तमाम इंडस्ट्रीज़ उत्पादों की मांग में जबरदस्त कमी आई है। जिससे ना केवल रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। बल्कि देश की ग्रोथ रेट पर भी इसका असर पड़ रहा है।

सोमवार, 1 अगस्त 2011

मारुति की बिक्री में जबरदस्त गिरावट

मारुति की बिक्री की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है। पिछले महीने में मारुति सुजुकी की बिक्री में करीब 25 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। मारुति सुजुकी ने जुलाई महीने में कुल 75,300 गाड़ियां बेची हैं। वहीं पिछले साल जुलाई में कंपनी ने 1 लाख से ज्यादा गाड़ियां बेची थी। पिछले महीने के मुकाबले मारुति सुजुकी की बिक्री में 6 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। जून महीने में कंपनी ने 80,298 गाडियों की बिक्री की थी। दरअसल जुलाई महीने में कंपनी के मानेसर प्लांट में चली 13 दिनों की हड़ताल की वजह से कंपनी की बिक्री में गिरावट आई है। कंपनी के एक्सपोर्ट में 18.12 प्रतिशत की गिरावट आई और वह पिछले साल की इसी अवधि के 10,743 से गिरकर 8,796पर जा पहुंचा। कंपनी की छोटी कारों की बिक्री में 15.62 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मारुति के सेल्स के आंकड़े आने के बाद कंपनी के शेयर पर इसका असर देखने को मिला। मारुति के शेयर एक फीसदी से ज्यादा लुढ़क गए।