भारत में कॉल सेंटर पर गिरने वाली है गाज़। क्योंकि अमेरिका की नजर एक बार फिर भारत जैसे देशों में कॉल सेंटर खोलने वाली अमेरिकी कंपनियों पर टिक गई है। अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। जिसमें वैसी कंपनियों को सहायता नहीं देने की बात की गई जो भारत जैसे देशों में अपना काम आउटसोर्स कर रही हैं।
अमेरिका की संसद में कल कॉल सेंटर वर्कर एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट बिल पेश हुआ है। इस बिल में उन कंपनियों को सरकारी मदद या फिर सरकारी गारंटी वाले लोन नहीं देने की वकालत की गई है जो अमेरिका से बाहर कॉल सेंटर खोल रहे हैं। अगर इस बिल को कानूनी शक्ल मिल जाती है तो इन कंपनियों के अमेरिकी सरकार के कॉन्ट्रैक्ट भी छिन सकते हैं। बिल के मुताबिक आउटसोर्सिंग करने वाली कंपनियों को सरकारी मदद नहीं मिलेगी। ऐसे में सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन, अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी कई अमेरिकी कंपनियों को भारत में कॉल सेंटर चलाना महंगा पड़ सकता है। यही नहीं अमेरिकी कंपनी को विदेश में कॉल सेंटर खोलने से 120 दिन पहले सरकार को जानकारी देनी होगी। यानी कि अगर ये बिल कानून बनता है तो कई अमेरिकी कंपनियां अपना आउटसोर्सिंग का काम भारत से समेट सकती हैं।
भारत में आईटी और बीपीओ का 88 अरब डॉलर से ज्यादा का कारोबार है। और 59 फीसदी बीपीओ कारोबार अमेरिका से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। केवल नोएडा और गुड़गांव की 300 से अधिक कंपनियां हर साल 33 हजार करोड़ रुपए का कारोबार करती हैं। अगर इस सेक्टर में नौकरी की बात करें तो...पिछले साल अप्रैल से इस साल जून तक बीपीओ सेक्टर में 2.5 लाख नौकरियों के अवसर पैदा हुए हैं। ऐसे में अगर ये क़ानून बनता है तो भारत में लाखों लोगों की नौकरी पर बन आएगी। साथ ही आईटी कंपनियों की कमाई भी इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होगी। क्योंकि भारतीय आईटी कंपनियों की 50 फीसदी से ज्यादा कमाई अमेरिका से ही होती है।
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