मंगलवार, 12 मई 2009
बाजार में हरियाली के पीछे काला धन तो नहीं?
सावधान!इन पैसों के चक्कर में बुल भागेगा लेकिन इसपर चढ़ना नहीं।
शेयर बाज़ार में पिछले साल के अक्टूबर महीने के मुकाबले आई रिकॉर्ड तेज़ी और सेंसेक्स के 12,000 के स्तर को पार करने के बाद अब जानकार इस बात की आशंका भी जता रहे हैं कि हो सकता है कि विदेशों के ज़रिए काला धन भारतीय शेयर बाज़ार में निवेश किया जा रहा हो। जिसके चलते बाज़ार में तेज़ी आ रही है।
मंदी के बादल अभी छंटे नहीं हैं लेकिन लगता है शेयर बाजार का बुल उठ खड़ा हुआ है। 5 मई को अचानक बाजार में 700 अंकों से ज्यादा की तेजी आ गई। और सेंसेक्स 12000 के पार चल गया। हालांकि उसके एक दो दिन बाद बाजार में थोड़ा मुनाफा वसूली देखी गई। लेकिन आज फिर से सेंसेक्स ने करीब 475 अंक की छलांग लगा दी। जानकारों का मानना है इस तेजी के पीछे ब्लैक मनी का हाथ हो सकता है।
अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स रातों रात नहीं बदल सकते। साथ ही कंपनियों के नतीजे भी काफी बेहतर नहीं आ रहे हैं। यही नहीं आम चुनाव के बाद कोई दल पूरी बहुमत के साथ सरकार बना पाएगी बाजार को इसका भी भरोसा नहीं है। ऐसे में अचानक आई तेजी की कोई ठोस वजह नहीं दिखाई दे रही है। सेबी को फिलहाल इस मौके पर चौकन्ना होने की जरूरत है।
ब्लैक मनी देश में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। विरोधी दलों के साथ अब कांग्रेस की सरकार ने भी स्वीस बैंकों में जमा 70 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के काले धन को वापस लाने पर गंभीर होती दिख रही है। ऐसे में ब्लैक मनी के मालिकों के बीच खलबली मच चुकी है। और ऐसे में ये आशंका जताई जा रही है कि वे अपने अपने ब्लैक मनी को स्वीस बैंकों से निकालकर दूसरे देशों और पी नोट्स के जरिए भारतीय बाजार में लगा रहे हैं। और अगर सचमुच ऐसा हो रहा है तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आम निवेशकों को उठाना पड़ सकता है। क्योंकि छोटे निवेशक तेजी में बाजार में घुस तो जाएंगे लेकिन फिर उन्हें बाजार से निकलने का मौका कम ही मिल पाएगा।
ब्लैक मनी काफी सेंसिटिव होता है। पलक झपते ही दुनिया की कई सीमाएं लांघ जाता है। ऐसे में भारतीय बाजार में इसका लंबे समय तक बने रहना मुमकिन नहीं लग रहा है। दुनिया में जहां जहां नियमों में कुछ ढ़ील मिलती है वहां ये आराम से खिसक जाता है। ऐसे में बाजार की हरियाली में छोटे निवेशकों को फूंक फूंक कर कदम रखने की जरूरत है।
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2 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही कह रहे हैं। तेजी का कोई ठोस कारण नहीं दिखता।
घुघूती बासूती
औद्योगिक विकास दर के आंकड़े भी जमीन पर आ चुके हैं..ऐसे में तेजी बुलबुला ही लग रहा है।
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