शनिवार, 23 मई 2009

सरकार वही चुनौतियां नई

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दूसरी पाली आसान नहीं रहने वाली है। भले ही इस बार भी उनके मंत्रिमंडल में अर्थशास्त्री नेताओं की भरमार हो। लेकिन उनके पास चुनौतियों की भी कमी नहीं है। आर्थिक मोर्चे पर सबसे पहली चुनौती यूपीए सरकार के पास होगी दुनियाभर में छाई आर्थिक मंदी से भारत पर पड़ने वाले असर को कम करने की। इसके लिए हो सकता है सरकार को फिर से कोई स्टीमुलस या बेलआउट पैकेज का ऐलान करना पड़े। भारत में नौकरी के अवसर बढ़ने के बजाए पिछले कुछ महीनों से नौकरियां ज्यादा छूट रहे हैं। ऐसे में सरकार के सामने रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर पैदा करना एक बड़ी चुनौती होगी। आर्थिक क्षेत्र में बहुत काम होना बाकी है। ऐसा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी मानना है। इसीलिए लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के तुरंत बाद उन्होंने कहा कि देश में आर्थिक सुधार को और तेज करना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। सरकार के सामने महंगाई का मुद्दा अभी भी बरकरार है। भले ही वो आसमान पर पहुंच चुकी महंगाई दर के आंकड़े पर काबू पाने में कामयाब रही हो। लेकिन सही मायने में महंगाई पर लगाम नहीं लगा पाई। इसलिए इस बार यूपीए सरकार के सामन खाने पीने  के सामानों के खुदरा मुल्य पर लगाम लगाने की एक बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए सरकार को डिमांड सप्लाई को सही तौर पर बनाए रखने के लिए और व्यापारियों की मिलीभगत और कालाबाजारी को रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे। साथ ही डिमांड में तेजी लाने के लिए सरकार को कई ठोस कदम उठाने की जरूरत है। क्योंकि डिमांड में कमी की वजह से औद्योगिक विकास दरों में भारी कमी आई है। और इसका असर कई सेक्टर्स पर देखा जा रहा है। मांग में कमी की वजह से कंपनियों के नतीजे खराब हो रहे हैं। इसके साथ ही एफडीई और विनिवेश के क्षेत्र में कई बड़े काम करने की चुनौती होगी। ताकी बीमा, नागरिक उड्डयन, बैकिंग और रिटेल जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई जा सके। इसके साथ ही सरकारी खजाने में पैसे की बढ़ोतरी करने की एक सबसे बड़ी चुनौती सरकार के पास होगी। क्योंकि किसानों के लिए 65000 करोड़ रुपए की कर्ज माफी और छठे वेतन आयोग के सिफारिशों को लागू करने से लेकर इनकम टैक्स की सीमा में छूट दिए जाने से सरकार के खजाने पर काफी बुरा असर पड़ा है। इसलिए  राजस्व घाटा यानी आमदनी और खर्चे के बीच का घाटा बढ़कर जीडीपी के 7 से 8 फीसदी के बीच पहुंच गया है। जबकि इसे 3 फीसदी के आस पास रहना चाहिए। यानी आसान जीत के साथ सरकार बना लेने के बाद अब यूपीए के सामने है कठिन और चुनौतीपूर्ण आर्थिक डगर।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

वामपंथी और ग्रोथ दोनों नदी का दो किनारा हैं..वाम दलों का साथ छूटना यानी नदी के दूसरे किनारे यानी ग्रोथ की पटरी पर आ जाना..ऐसे में सरकार को इन चुनौतियों से निकलने में ज्यादा कठिनाई नहीं होनी चाहिए।