बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

कार्बन क्रेडिट: धुंए का पैसा


जब प्रकृति का डंडा चलने लगता है तो कोई नहीं बच पाता है। चाहे वो भूकंप हो या सुनामी। इससे बचाव के लिए कोई मिसाइल डिफेंस सिस्टम या एटम बम काम नहीं आते हैं। जबकि ये प्राकृतिक आपदाएं ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रकोप के लाखवें हिस्से से भी कम हैं। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग का क्या असर हो सकता है। अगर ग्लोबल वॉर्मिंग को नहीं रोका गया तो सैकड़ों देशों को जल समाधि लेने को मजबूर होना पड़ेगा। और फिर एक दिन ये धरती आग के गोले में तब्दील हो जाएगी। इसका अंदाजा हमें और अमेरिका, ब्रिटेन, जापान जैसे उन देशों को भी है जिन्होंने पर्यावरण को इस दहलीज पर लाने में सबसे अहम योगदान किया है। केवल अमेरिका ही एक तिहाई ग्लोबल वॉर्मिंग का जिम्मेदार है।

आज विकसित देशों के पास सबकुछ है। यहां तक की उनके स्लम्स एरिया (झुग्गी बस्ती) के मकानों में भी सेंटरलाइज एसी होते हैं। जो कि दिन दोगुनी रात चौगुनी ग्रीन हाउस गैस उगलती रहती हैं। लेकिन अब विकसित देशों को इस बात का डर है कि कहीं उनका ऐशो आराम, हराम में न बदल जाए। और ये तभी होगा जब भारत और चीन जैसे देश विकसित बनने के लिए उनका रास्ता अपनाएंगे। क्योंकि उन्होंने विकास के क्रम में ग्रीन हाउस गैसों और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकने के लिए कुछ नहीं किया था। आज विकसित देशों के पास सबकुछ है लेकिन गर्दन पर ग्लोबल वॉर्मिंग की तलबार भी लटक रही है।

ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से बचने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में हुए वर्ल्ड अर्थ समिट में से क्योटो प्रोटोकॉल निकलकर सामने आया। आज इसके 150 से ज्यादा देश सदस्य हैं। इन देशों ने मिलकर 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 5.2 फीसदी नीचे लाने का लक्ष्य रखा है। इसी क्योटो प्रोटकॉल में कार्बन क्रेडिट का जन्म हुआ।

कार्बन क्रेडिट यानि प्रकृति को डॉलर में तौलना। इसे ऐसे समझना बेहतर होगा। भारत, चीन, ब्राजील या तीसरी दुनिया के किसी देश में अगर कोई प्रदूषण फैला रहा है। हालांकि वो देश अनजाने में, अपने लोगों के जीवन यापन के लिए ऐसा कर रहे हों। पर उसका नुकसान पूरी दुनिया को हो रहा है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा दुख विकसित देशों को हो रहा है क्योंकि इसे रोकने के लिए उनका कोई भी ताकत काम नहीं आ रहा है।

अब ये विकसित देश, तीसरी दुनिया के देशों को ये समझाने में जुट गए हैं कि प्रदूषण से सभी का नाश हो जाएगा। जो कि बिल्कुल सच है। लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि जो किसान जंगल काटकर लकड़ी बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं। अगर उन्हें दूसरा सहारा नहीं मिला और उसने लकड़ी काटना भी छोड़ दिया तो वे तो आज ही मर जाएंगे। जबकि ग्लोबल वॉर्मिंग से मरने में उसे कुछ वर्ष लगेंगे या शायद इस जनम में ग्लोबल वार्मिंग से न भी मरें।

इसी का उपाय कार्बन क्रेडिट में ढूंढा गया है। यानि अगर आप कार्बन डाइऑक्साइड का कम उत्सर्जन करेंगे तो आपको इसके बदले कार्बन क्रेडिट दिए जाएंगे। जिसे बेचकर आप पैसे कमा सकते हैं। यूनाइटेड नेशन की देखरेख में सदस्य देशों और उनके संस्थानों को कार्बन क्रेडिट इश्यू किया जाता है। ये क्रेडिट क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म(CMD)के जरिए तय किया जाता है। अगर किसी कंपनी ने कार्बन डाइऑक्साइड घटाने के लिए अच्छी तकनीक का सहारा लिया है। तो उसके बदले उसे कितना कार्बन क्रेडिट मिलना चाहिए ये फैसला सीएमडी के जरिए ही होता है। साथ ही सीएमडी के तहत ही ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाली कंपनियां भी कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपना उत्पादन जारी रख सकती हैं। स्टील,चीनी,सीमेंट और फर्टिलाइजर बनाने वाली कंपनियां ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं।

डॉक्टर साहब,कार्बन क्रेडिट के चक्कर में मेरे बेटे ने सांस छोड़ना ही बंद कर दिया!

अगर कोई कंपनी एक टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम कर रही हैं तो उसे एक कार्बन क्रेडिट मिलेगा। और एक कार्बन क्रेडिट की कीमत इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 20 डॉलर चल रहा है। फिलहाल अमेरिका में शिकागो क्लाइमेट एक्सचेंज और ब्रिटेन में यूरोपियन क्लाइमेट एक्सचेंज में कार्बन क्रेडिट का कारोबार होता है। लेकिन बहुत जल्द ही इसका कारोबार भारत के मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज यानी एमसीएक्स में शुरू होने का अनुमान है।

फिलहाल विश्व में 30 अरब डॉलर का कार्बन क्रेडिट का बाजार है। जिसका अगले कुछ सालों में 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इतने बड़े बाजार में भारत की 30 परसेंट की भागीदारी हो सकती है।

2 साल पहले भारत में कार्बन क्रेडिट का लेन-देन शुरू हो चुका है। और इन दो सालों में घरेलू कंपनियों ने कार्बन क्रेडिट बेचकर 50 करोड़ डॉलर कमाए हैं। अभी हाल ही में जेएसडब्ल्यू स्टील के एक प्रोजेक्ट को 40 लाख का कार्बन क्रेडिट मिला है। जो कि भारत में अबतक का सबसे बड़ा कार्बन क्रेडिट है।

कुल मिलाकर कार्बन क्रेडिट की कहानी यही है कि हर देश के लिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की एक सीमा तय कर दी गई है। अमेरिका और यूरोप के कई देश इस सीमा से ऊपर चल रहे हैं। इसलिए उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करनी है। नहीं तो फैक्ट्री चलाते रहने के लिए उन्हें हर साल कार्बन क्रेडिट खरीदने होंगे। और ये क्रेडिट भारत और चीन जैसे देशों से ही वो खरीदेंगे। क्योंकि भारत और चीन के लिए जो उत्सर्जन की सीमा तय की गई है। उससे ये दोनों देश काफी कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कर रहे हैं। भारत अगर अभी से सचेत तरीके से औद्योगिकीकरण की गाड़ी आगे बाढ़ाता है। और सही तकनीक का उपयोग करता है। तो हमेशा इस देश में कार्बन क्रेडिट की बौछार होती रहेंगी। और पर्यावरण को भी फायदा पहुंचता रहेगा।

हो सकता है कुछ लोगों को ये अटपटा सा लगे। और वो सोचें कि जब अमेरिका और यूरोप का विकास हो रहा था तो उनपर कोई लगाम नहीं था। और अब जब हमारी बारी आई तो उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए कार्बन क्रेडिट का लोभ दिया जा रहा है।

लेकिन ऐसा नहीं है। हमेशा अपनी लगती से ही सीख लेना अच्छी बात नहीं है। आज हमें दूसरों की गलती से सीख लेनी चाहिए। हम आज वो सबकुछ कर रहे हैं और करेंगे जो विकसित देशों ने कभी किया था। लेकिन उनसे बेहतर रूप में। हम वैसी अच्छी तकनीक का उपयोग करेंगे जो प्रदूषण कम फैलाएगा। हम जंगलों को बचाएंगे। ताकि विकसित होने के बाद हम जीत का जश्न मना सकें। क्योंकि विकसित देशों की नकल और अंध औद्योगिकीकरण के बल पर अगर हम आगे निकल भी गए तो तपती धरती पर हमारे अगले जेनरेशन को सर छुपाने की जगह नहीं मिलेगी।

10 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

ढेर सारी जानकारी वाला बढिया लेख । । कार्बन क्रेडिट का आयडिया सचमुच अच्छा है ।

बेनामी ने कहा…

sir, you have really written an article with a very understanding and knowledgeable manner to make the world aware about the hot topic of today's most focussing issue. all the very best........ANKU.......YOURS GREAT ADMIRER..

Sagar Chand Nahar ने कहा…

कार्बन क्रेडिट के बारे में बहुत सुना था पर आपने बिल्कुल सही तरीके से समझा दिया।
इतनी बढ़िया जानकारी को इतने आसान तरिके से समझाने के लिये धन्यवाद।

॥दस्तक॥
गीतों की महफिल

बेनामी ने कहा…

कार्बन क्रेडिट की जटिलताओं और इससे होने वाले उजाले को सरल शब्दों में लिखना काबिले तारीफ है। शुक्रिया!

बेनामी ने कहा…

बहुत बढ़िया आप चित्र बहुत सुंदर बनाते हैं..

बेनामी ने कहा…

Indeed an informational piece of writing.. Very Well Written... Just one point addition here! You did touch upon it, But would certianly want to bring this to your and everybody else's attention! We Indians continue to pay for the luxuries of the Western World! We continue to do so by dragging water out of our wells and not using the ultra modern methods, Carbon Credits are indeed going to get lots of money for us Indians. And most of the amount would be raked in by the emerging breed of consultants.. Who are already making it a big business... Forget imagining what this would be like in the years to come.. But who would end up working for it ! Who would end up feeling exhausted at the end of the day ! The common 'Indian Man'. This sector certainly needs Government Intervention.. regulation.. UN is a US Borugeois Body, which certainly does some philatrophic work but takes away all the credits... May be more credit that what it deserves... So We need to also address that the common Subaltern Man would be the worst hit!

sanjay bhagat ने कहा…

hi
ढेर सारी जानकारी वाला बढिया लेख । । कार्बन क्रेडिट का आयडिया सचमुच अच्छा है कार्बन क्रेडिट के बारे में बहुत सुना था पर आपने बिल्कुल सही तरीके से समझा दिया।
इतनी बढ़िया जानकारी को इतने आसान तरिके से समझाने के लिये धन्यवाद।

बेनामी ने कहा…

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