सोमवार, 30 जून 2008

महंगी हुई पढ़ाई - नहीं मिलेगा भाई

पापा एक मिनट...हमें लैपटॉप नहीं एक बहना ला दो

महंगाई ने बिगाड़ कर रख दिया है बच्चों का गणित...पैरेंट्स की कमाई जिस अनुपात से बढ़ रही है उससे कई गुना तेजी से बढ़ रहा बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च। लग जाता है पैरेंट्स की कमाई का 65 फीसदी एक बच्चे की पढ़ाई में। ऐसे में दूसरे बच्चे की नहीं आ रही है बारी। पैरेंट्स कह रहे हैं..बच्चा एक ही अच्छा।

महंगाई की मार इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब लोगों को समय से पहले परिवार नियोजन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। महंगाई की वजह से अब लोग दो बच्चों के बदले एक बच्चा को तरजीह दे रहे हैं। ये बात एसोचैम के एक सर्वे में सामने आई है। अब शायद ही मुन्नी को उसका भाई मिल पाएगा या गुल्लू को बहन। क्योंकि इनके माता पिता इनकी पढ़ाई पर होने वाले खर्चे से इतना परेशान हैं कि घर में दूसरा बच्चा लाने की नहीं सोच रहे।

बच्चों की स्कूली शिक्षा ले लिए माता पिता को परिवार के कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा मुहैया करना पड़ रहा है। जिसकी वजह है लगातार बढ़ती जा रही महंगाई। और इस वजह से लोग एक बच्चे से ज्यादा पैदा नहीं करना चाह रहे हैं। ये बात सामन आई एसोचैम के एक सर्वे में।
 
एसोचैम ने दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, देहरादून, पुणे, और बैंगलुरू जैसे शहरों में 2000 वर्किंग पैरेन्ट से बात कर इस नतीजे पर पहुंचा है। कि अब माता पिता महंगाई की वजह से बच्चे पैदा करने में कोताही बरतने लगे हैं। क्योंकि महंगाई के इस दौर में आज पैरेन्ट्स अपने टेक होम सैलरी का 65 फीसदी अपने बच्चों पर खर्च कर देते हैं। जिससे उनका फैमिली बजट बिगड़ने लगा है।
 
 
पैरेन्ट्स को साल 2000 में एक बच्चे की पढ़ाई पर साल भर 25000 रु खर्च करना पड़ता था जो कि अब बढ़कर 65000 रु पर पहुंच गया है। जबकि इस दौरान पैरेंट्स की कमाई में महज 28 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है। यही वजह है अब पैरेट्स को एक बच्चे से ही संतोष करना पड़ रहा है।
हम दो हमारा एक...महंगाई की मार के बाद जनहित में जारी 

अगर बच्चों के स्कूल खर्चे की बात करें तो उनके जूते का खर्च उनकी किताबों से ज्यादा आता है। जूतों पर हर साल 3500 रु खर्च होते हैं जबकि टैक्स्ट बुक पर केवल 3000 रु खर्च होते हैं। बैग और बोटल्स में हर साल 1500 रुपए खर्च होते हैं। स्पोर्ट्स किट पर 2000 रु और स्कूल ट्रिप्स पर हर साल 2500 रु खर्च होते हैं। स्कूल क्लब पर 1500 और टेक्नोलॉजी पर 1500 रुपए खर्च होते हैं। खर्च का एक बड़ा हिस्सा  करीब 32800 रु जाता है पैक लंच, ट्रांसपोर्ट और ट्यूशन पर। बिल्डिंग फंड के लिए हर बच्चे से 1000 रुपए लगते हैं। जबिक दूसरे किरए के लए 3000 रु और स्टेशनरी और न्यूज पेपर के लिए 3000 रुपए खर्च करने होते हैं।  
 
महंगाई की आड़ में महंगाई से दो गुना महंगी होती जा रही पढ़ाई से पैरेंट्स परेशान हैं। 60 फीसदी पैरेंट्स की शिकायत है कि एजुकेशन आज कमर्शियल बिजनेस बन चुका है।
 
एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में करीब 3 करोड़ बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। और डे स्कूल के हर बच्चे पर  हर साल 60000 रु पैरेंट्स को खर्च करना पड़ रहा है।  जबकि 3 से 5 साल के बच्चों पर पर पैरेंट्स को हर साल 25000 रु खर्च करना पड़ रहा है। जिसने न्यूक्लियस फैमली की नींव हिला कर रख दी है। ऐसे में अब पैरेंट्स एक बच्चे से आगे परिवार बढ़ाने के  बारे में सोच भी नहीं पर रहे हैं। मजबूरी में ही सही पर कहना पड़ रहा है..एक बच्चा सबसे अच्छा।
 
 
 

शुक्रवार, 27 जून 2008

बिल की विदाई

दुनिया को ज्ञान की खिड़की दिखाने वाले आज खिड़की से बाहर कूदे

दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल गेट्स आज माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन का पद छोड़ेंगे। दुनिभर में आईटी क्रांति लाने वाले बिल गेट्स इस पद पर भले ही ना रहें लेकिन उन्हें लोग हमेशा याद करेंगे।

आज दुनिया के 90 फीसदी से भी ज्यादा डेस्कटॉप पर होने वाला काम माइक्रोसॉफ्ट विंडो में होता है। और दुनिया की लगभग सभी वर्ड प्रोसेसिंग डॉक्यूमेंट्स, स्प्रीडशीट्स माइक्रोसॉफ्ट सॉफ्टवेयर पर काम करता है। और इनसब के पीछे जिसका हाथ है उसका नाम है बिल गेट्स।
 
अपनी कंपनी को बुलंदी पर पहुंचाने वाले बिल गेट्स ने 1975 में माइक्रोसॉफ्ट की शुरूआत अपने दोस्त  पाउल ऐलेन के साथ मिलकर की। उस समय बिल गेट्स की उम्र 20 साल थी और वो हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में फेल कर गए थे। इसलिए उन्हें यूनिवर्सिटी से बाहर होना पड़ा था।
 
बिल गेट्स ने अपने दोस्त पाउल के साथ मिलकर शुरुआती बेसिक प्रोग्रामिंग ऑल्टेयर 8800 माइक्रोकम्प्यूटर के लिए की। बेसिक के साथ दो और प्रोग्रामिंग के जरिए शुरूआती तीन सालों में ही बिल गेट्स ने अपनी पहली  मिलियन डॉलर की कमाई की।
 
1994 तक बिल गेट्स 9 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति के साथ अमेरिका के सबसे अमीर आदमी बन गए। और तब उन्होंने डलास में रहने वाली मिलिंडा से शादी की।  और अगले ही साल इनकी संपत्ति में करीब 4 अरब डॉलर का इजाफा हो गया और ये दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए।
 
बिल गेट्स 2005 में भारत आए औऱ यहां करीब 13 अरब डॉलर की निवेश का ऐलान किया।
 
आज बिल गेट्स के पास 58 अरब डॉलर की संपत्ति है। लेकिन इसे वो अपने बच्चों को नहीं देकर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए बनाए गए बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन को देने का ऐलान किया है। गेट्स ने कहा कि वो अपनी संपत्ति को फिर से उस सोसाइटी में बांट देना चाहते हैं जहां उसका ज्यादा असर हो पाए।
 
साल 2006 में  बिल गेट्स ने घोषणा की थी कि वो दो साल बाद  माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन पद छोड़ देंगे। और आज 52 साल की आयु में वो पद से सदा के लिए दूर हो जाएंगे। उनका स्थान लेंगे स्टीव वाल्मर।
 
आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट को हर हफ्ते मुनाफा होता है 40 अरब रुपए। जो कि आईटी की सेक्टर की एक बड़ी कंपनी गूगल से चार गुणा ज्यादा है।
 
दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनाने वाला, दुनिया का सबसे अमीर आदमी और चैरिटी में दुनियाभर में सबसे ज्यादा पैसा देने वाले बिल गेट्स आज भले ही माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन का पद छोड़ देंगे। लेकिन दुनियाभर में लोग शायद उन्हें कभी नहीं भुला पाएंगे। क्योंकि दुनियाभर में छा जाने वाली आईटी क्रांति बिल गेट्स के बगैर संभव नहीं थी।
 

गुरुवार, 19 जून 2008

होंडा की हाइड्रोजन कार

एफसीएक्स क्लेरिटी

पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में बढ़ोतरी के बाद आपका कार चलना और महंगा भले ही हो गया हो। लेकिन इससे आपको निजात मिल सकती है। हम बात कर रहे हैं एक ऐसी कार की जो पेट्रोल और डीज़ल से नहीं चलेगी यानी आपकी जेब पर नहीं भारी पड़ेगी। जी हां, होंडा ने नेक्टक्स जेनरेशन कार बनाने में बाजी मार ली है। जापानी कंपनी होंडा ने एक ऐसी कार बनाई है जो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी। क्योंकि इस गाड़ी से कार्बन डायऑक्साइड या कोई ग्रीन हाउस गैस नहीं निकलती है। क्योंकि ये गाड़ी हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिसिटी पर चलती है। इस गाड़ी से पानी का इमिशन होता है। होंडा ने इस गाड़ी का नाम एफसीएक्स क्लेरिटी दिया है। हाइड्रोजन कार की लांच पर होंडा मोटर्स के प्रेसिडेंट ताकियो फुकू ने कहा-
'पर्यावरण फ्रेंडली कार बनाने हमने काफी मेहनत की है..क्योंकी आज प्रदूषण एक अहम मुद्दा है।...नई तकनीक पर ही ऑटो इंडस्ट्री का भविष्य टिका है। और हम इसमें सबसे आगे रहना चाहते हैं।'

होंडा के इस नेक्सट जेनेरेशन कार एफसीएक्स क्लेरिटी को खरीदने का मौका फिलहाल कुछ ही लोगों को मिला है। जिसमें हॉलीवुड के कई नाम शामिल हैं। और उसी में एक नाम शामिल है अभिनेत्री लॉरा हैरिक की। लॉरा हैरिस ने हाइड्रोजन कार मिलने पर खुशी जताते हुए कहा-
'मुझे ट्रांसपोर्टिंग के नए विकल्प की तलाश काफी दिनों से थी।...इसलिए मैने ये कार खरीदी है...ये अद्भुत है और इसे चलाने में भी काफी मजा आता है।'

हाइड्रोजन की एक टैंक फुल करा देने पर ये कार 270 मील तक चलेगी। एक गैलन गैस में ये 74 मील की दूरी तक करेगी। होंडा की इस एफसीएक्स क्लेरिटी की स्पीड 100 मील प्रति घंटा है। जापान और अमेरिका में पहले तीन साल तक होंडा अपनी इस 200 कार को लीज पर चलाएगी। और इसके बदले करीब 25 हजार रुपए महीना लेगी।

दुनिया की सबसे बड़ी कार बनाने वाली कंपनी जेनरल मोटर्स को पीछे छोड़ते हुए जापानी कंपनी होंडा ने एक सफल हाइड्रोजन कार बनाने में बाजी मार ली है। हालांकि इस कार को भारत आने में अभी समय लगेगा। क्योंकि होंडा ने अभी हाइड्रोजन कार से कुछ कदम पीछे की हाइब्रिड कार ही भारतीय बाजार में लांच किया है।

बुधवार, 18 जून 2008

हाय ! हाइब्रिड कार...वेलकम टू इंडिया

होंडा की हाइब्रिड कार

लगातार महंगी होती जा रही पेट्रोल और डीजल पर से निर्भरता कम करने और ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए कार कंपनियां हाइब्रिड कार बनाने पर जोर दे रही हैं। भारत में आज पहली हाइब्रिड कार लांच हो गई। जिसे लांच किया किया है जापान की कंपनी होंडा ने। इसकी कीमत है साढ़े इक्कीस लाख रुपए।

कार बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी टोयोटा सहित दुनियभर की ज्यादातर कंपनियों में हाइब्रिड कार बनाने की होड़ में लगी हुई है। और कुछ कंपनियों की हाइब्रिड कारें तो दुनियाभर में काफी पॉपुलर हो चुकी हैं। टोयोटा प्रियस के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। जिसकी कीमत है करीब नौ लाख रुपए हैं। ये कीमत विदेशों में है भारत आने पर इसकी कीमत करीब 100 फीसदी बढ़ जाएगी। प्रियस एक सेडान हाइब्रिड कार है। जिसकी माइलेज है 46 मील प्रति गैलन। यानी करीब 20 किलोमीटर प्रति लीटर। इसका स्पीडोमीटर जीरो से 60 किलोमीटर की स्पीड केवल 10 सेकेंड में पकड़ती है।

होंडा सिविक हाइब्रिड कार की भारत से बाहर कीमत है करीब साढ़े नौ लाख। माइलेज है 18 किमी प्रति घंटा। इंजन की ताकत है 110 हॉर्स पॉवर। निसान अल्टीमा के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। ये भी एक सेडान कार है। जिसकी दूसरी देशों में कीमत है करीब सवा दस लाख रुपए। जानकार इसे टोयोटा हाइब्रिड कार की निसान की पैकेजिंग मानते हैं। इसकी माइलेज है 15किमी प्रति लीटर।

फोर्ड स्केप के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। ये एक स्पोर्ट यूटिलिटी व्हेकिल है। जिसकी माइलेज है 14 किलोमीटर प्रति लीटर।
लैक्सस आरएक्स 400 एच के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। जिसकी कीमत है करीब 17 लाख रुपए। भारत में ये कीमत करीब दोगुनी हो जाएगी टैक्स की वजह से। माइलेज है करीब 9 किलोमीटर प्रति लीटर। ये एक एसयूवी है।

कार कंपनियों का मानना है कि आने वाला जमाना हाइब्रिड कारों का है। इसलिए कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। कार कंपनियों की इस होड़ से पेट्रोल और डीजल पर निर्भरता कुछ कम होगी। साथ सड़कों पर धूम मचाते हुए लोग शुद्ध हवा में सांस ले पाएंगे।

अब जानते हैं हाइब्रीड की परिभाषा। आखिर हाइब्रिड है क्या।..दो या दो से अधिक एनर्जी से चलने वाले मोटर्स को हाइब्रीड कहते हैं। हमलोगों ने कहीं न कहीं हाइब्रीड गाड़ी जरूर देखा होगा। याद कीजिए मोपेड को। ये भी एक हाइब्रीड गाड़ी है। मोपेड यानी मोटोराइज्ड पैडल बाइक। जिसमें पेट्रोल और पैडल की एनर्जी का यूज होता है। इसी तरह विदेशों में बड़ी बड़ी कमर्शियल गाड़ियां और बसें हाइब्रीड सिस्टम पर चलती हैं। यानी उसमें डीजल और इलेक्ट्रिक पॉवर साथ साथ रहता है। जहां तक बिजली की तार मिलती है वहां तक बसें बिजली से चलती हैं और जहां बिजली खत्म होती है वहां से डीजल से चलने लगती है। ठीक ऐसे ही अगर कोलकाता के ट्रॉम की इंजन हाइब्रिड कर दी जाए तो उसका दायरा और बढ़ जाएगा। समुद्र में चलने वाली ज्यादातर सबमरीन भी हाइब्रीड इंजन से चलती हैं। क्योंकि उसमें न्यूक्लियर पॉवर और इलेक्ट्रिक पॉवर का यूज होता है।

आखिर क्यों जरूरत हुई हाइब्रिड कार की। प्रति लीटर पेट्रोल भराने के लिए कभी आपको 30 रुपए खर्च करने होते थे। जो अब 35 रुपए 40 रुपए से आगे निकल 50 रुपए पर जा पहुंचा है। साथ ही इससे निकले बाले धूएं से पर्यावण को नुकसान होता है सो अलग। ऐसे में कार बनाने वाली दुनियाभर की कंपनियों ने हाइब्रिड कार की ओर रुख कर लिया है। कुछ कंपनियां केवल इलेक्ट्रिक कार भी बना रही हैं। लेकिन इलेक्ट्रिक कारों को ज्यादा सफलता नहीं मिल पाईं हैं। क्योंकि 80 से 161 किलोमीटर चलने के बाद इलेक्ट्रिक कार को चार्ज करना पड़ता है। और इसकी चार्ज करने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। स्पीड कम होने की वजह से ट्रैफिक में तालमेल बिठाने की समस्या होती है। हालांकि इससे प्रदूषण नहीं फैलता है।

जबकि एक ट्रेडिशनल कार की टैंक एक बार फुल कराने पर करीब 500 किलोमीटर के लिए आप निश्चिंत हो जाते हैं। साथ ही इसकी री फ्युलिंग काफी आसान है। और ट्रैफिक में तालमेल भी अच्छा है। हालांकि ये ज्यादा तेल पीती हैं और धुआं भी उगलती हैं। ऐसे में ऑटो कंपनियों को हाइब्रिड कार में फ्यूचर दिख रहा है। क्योंकि हाइब्रिड इंजन फ्यूल के साथ ही इलेक्ट्रिक से भी चलता है। और एक बार टैंक फुल करने पर 700 किलोमीटर के बाद ही री फ्यूलिंग की जरूरत होती है । साथ ही इससे पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी और पर्यावरण भी कम दूषित होगा। यानी कम पैसे में कम धुआं लेकिन ज्यादा दूर तक सवारी भला किसे पसंद नहीं आएगा।

शनिवार, 14 जून 2008

एमटीएन-आरकॉम के बीच आरआईएल



अनिल अंबानी के रिलायंस कम्युनिकेशंस और दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के बीच करार को लेकर चल रही बातचीत के चलते रिलायंस इंडस्ट्रीज और आरकॉम के बीच तलवारें खिंच गई हैं। अनिल अंबानी की कंपनी आरकॉम ने आरोप लगाया है कि एमटीएन के साथ चल रही उनकी डील में मुकेश अंबानी की कंपनी आरआईएल टांग अड़ा रही है। अफ्रीकी कंपनी एमटीएन और आरकॉम के बीच मर्जर को लेकर एक्सक्लुसिव बात चीत चल रही है। जिसमें एमटीएन आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी लेने पर विचार कर रही है।

लेकिन इस बीच आरआईएल ने एमटीएन को ये जानकारी दी कि आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी बेचने से इंकार करने का पहला अधिकार उनके पास है। आरकॉम ने आरआईएल के इस दावे को बेबुनियाद कहा है। और इसे एमटीएन-आरकॉम डील के बीच रोड़े अटकाने की कोशिश कहा है। अनिल अंबानी के एडीएजी ग्रुप के अनुसार आरकॉम की तरक्की को आरआईएल नहीं पचा पा रही है। इसलिए इस डील को किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहते हैं।

अनिल-मुकेश आमने-सामने
- अनिल ने मुकेश पर लगाया आरकॉम-एमटीएन डील में टांग अड़ाने का आरोप
- आरआईएल ने एमटीएन को कहा वो आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी नहीं ले सकती
- आरआईएल ने कहा कि आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी बेचने से इंकार करने का पहला अधिकार उनके पास है
- आरकॉम ने आरआईएल के दावे को बेबुनियाद करार दिया
- एडीएजी के अनुसार आरकॉम की तरक्की से जल रहे हैं मुकेश अंबानी
- दोनों भाइयों में बंटवारे से पहले आरकॉम आरआईएल के अधीन था
- 12 जनवरी 2006 को मुकेश ने आरकॉम में मालिकाना हक बेचने से इंकार करने का अधिकार अपने पास रख लिया
- हालांकि बांबे हाईकोर्ट ने 15 अक्टूबर 2006 को आरआईएल अधिकार को खारिज कर दिया
- आरकॉम में अनिल अंबानी और प्रोमोटरों की 66 फीसदी हिस्सेदारी
- आरकॉम-एमटीएन मर्जर के बाद दुनिया 6 सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में शुमार हो जाएगी
- एमटीएन-आरकॉम के पास 11 करोड़ 60 लाख कस्टमर्स


दोनो भाइयों में बंटवारे से पहले आरकॉम में मालिकाना हिस्सेदारी बेचने या ना बेचने का अधिकार आरआईएल ने अपने पास रख लिया था। और 12 जनवरी 2006 को एक दस्तावेज पर इससे जुड़े लोगों के हस्ताक्षर ले लिए थे। क्योंकि उस समय आरकॉम पर मालिकान हक आरआईएल का हुआ करता था। हालांकि बांबे हाई कोर्ड ने 15 अक्टूबर 2006 को आरआईएल के इस समझौते को गलत करार कर दिया था। फिलहाल आरकॉम में अनिल और प्रोमोटरों की हिस्सेदारी 66 फीसदी है। अगर आरकॉम-एमटीएन मर्ज होती है तो ये दुनिया की छठी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन जाएगी। और इसके कस्टमर्स की संख्यां करीब 12 कोरड़ तक पहुंच जाएगी।

सूत्रों के अनुसार रिलायंस कम्युनिकेशन और एमटीएन के बीच डील पर समझौता लगभग हो चुका है। और बहुत जल्द इसका ऐलान किया जाना था। अनिल अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन को अफ्रीकी टेलीकॉम कंपनी एमटीएन का सब्सिडियरी बनाने पर सहमति दे दी है।

रिलायंस कम्युनिकेशन एमटीएन सौदा तय ?
- सूत्रों के अनुसार अनिल अंबानी ने आरकॉम को एमटीएन की सब्सिडी बनाने पर सहमति दे दी है
- अनिल आरकॉम में अपनी दो तिहाई शेयर एमटीएन को सौपेंगे
- अलग से 5 अरब डॉलर कैश एमटीएन को देने होंगे
- अनिल को एमटीएन की करीब 40 फीसदी शेयर मिलेंग
- रिलायंस कंम्युनिकेशन का करीब 25 फीसदी शेयर भी अनिल अंबानी के पास होगा
- बहुत जल्द इस सौदे का ऐलान हो सकता है


इसके लिए अनिल अंबानी को रिलायंस कम्युनिकेशन में अपनी दो तिहाई हिस्सेदारी एमटीएन को देनी होगी। और इसके अलावे 4 से 5 अरब डॉलर कैश भी एमटीएन को देना होगा। तब अनिल अंबानी एमटीएन में करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी ले पाएंगे। इसके साथ ही अनिल अंबानी के पास रिलायंस कम्युनिकेशन में भी सबसे बड़ी हिस्सेदारी बरकरार रहेगी। लेकिन आरकॉम पर मालिकाना हक एमटीएन का होगा। हालांकि मुकेश अंबानी के इस मर्जर के बीच कूद जाने से आरकॉम-एमटीएन सौदे में काफी मुश्किलें सामने आ सकती हैं।