मंगलवार, 31 मार्च 2009
जी 20-20 का है ये मैच
दुनिया से मंदी भगाने से पहले..आउटसोर्सिंग, सुरक्षात्म ट्रेड प्रैक्टिस जैसे मुद्दों पर आपस में निबटना जरूरी है!
दुनिया की हर दिग्गज इकॉनोमी के पसीने छूट रहे हैं। मंदी की सबसे ज्यादा मार विकसित और यूरोपीय देशों पर ही पड़ रही है। भारत, चीन और ब्राजील जैसे कुछ दूसरे विकासशील देशों पर इसका कम असर हुआ है। हालांकि कुछ अफ्रीकी देश काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
लेकिन अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसी दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लहूलुहान हो चुकीं है। ऐसे में विकसित देशों की नजर अब जी 20 की बैठक पर टिकी हुई है। क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि जी 20 के देश अगर चाहेंगे तो पूरी दुनिया को मंदी की तूफान से बचा सकते हैं। जी 20 देशों की अर्थव्यवस्था का हिस्सा दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में 80 फीसदी है। और यही वजह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा बार-बार कह रहे हैं कि जी 20 देशों को साथ मिलकर कदम उठाने की जरूरत है।
वैसे भी सबसे खराब स्थिति अमेरिका की है। अमेरिका की कई कंपनियां दम तोड़ चुकी है और कई दम तोड़ने की कगार पर हैं। कार बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी जनरल मोटर्स भी अमेरिका की ही है। जिसे दिवालिया होने से बचाने के लिए सरकार एड़ी-चोटी का पसीना बहा रही है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा लोगों के पैसे को कार कंपनियों पर खर्च करने के पक्ष में नहीं हैं।
अमेरिका से बेहतर स्थिति जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और दूसरे यूरोपीय देशों की नहीं है। ऐसे में जी लंदन में 20 की बैठक पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। यूरोपीय देशों का मानना है कि बेलआउट या स्टिमुलस पैकेज से ज्यादा जरूरी है ज्यादा मजबूत वित्तीय कानून।
इस बैठक में शामिल होने से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के दिग्गज उद्योगपतियों से मुकालात की। और जानने की कोशिश की, इस मंदी से इंडस्ट्री को किस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही विकसित देशों की नीतियों कैसे उद्योग को प्रभावित कर रही है। इस सभी मुद्दों को प्रधानमंत्री जी 20 की बैठक में सामने रखेंगे। लंदन के लिए रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से फंड्स का बहाव विकासशील देशों की तरफ कम होने की बजाए बढ़ना चाहिए।
1933 में भी महामंदी से निपटने के लिए भी 66 देशों के प्रतिनिधि लंदन में जमा हुए थे। लेकिन उस समय कुछ बेहतर नतीजा नहीं निकल पाया था। क्योंकि अमेरिका की स्थिति उस समय स्पष्ट नहीं थी।
अगर जानकारों की मानें तो इस बार भी जी 20 की बैठक से कुछ खास नतीजा निकलने की उम्मीद कम ही है। क्योंकि अमेरिका जहां सभी देशों को जबरदस्त स्टीमुलस पैकेज देने पर जोर दे रहा है। वहीं यूरोपीय देश स्टीमुलस पैकेज के बदले वित्तीय नियम को सख्त करने के पक्ष में है। और विकासशील देश विकसित देशों की ट्रेड के प्रति सुरक्षात्मक रवैये से परेशान है। ऐसे में मंदी से पार पाने के लिए मिलकर रास्ता निकालने की राह मुश्किल ही लग रही है।
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1 टिप्पणी:
मंदी से अमेरिका को हम बाहर निकालेंगे सुनने में अजीब लगता है पर ये सच है..हमारे लिए ये गर्व की बात है।
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