रविवार, 10 जून 2007

बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया

महंगाई कम हो रही है और रुपया फिर से कमजोर हो रहा है। ये किसी जादू से कम नहीं है। क्योंकि अबतक ऐसा लग रहा था कि आरबीआई को फिर से पांच- दस और बीस पैसे के सिक्के जारी करने पड़ेंगे। क्योंकि लगातार कई हफ्तों से महंगाई दर कम हो रही थी और रुपया लगातार मजबूत हो रहा था। लेकिन शायद अब ऐसा न करना पड़े क्योंकि रुपए में गिरावट शुरू हो चुकी है। साथ ही महंगाई के मामले में सरकार ने सिक्सर लगा दी है। क्योंकि महंगाई दर लगातार छे हफ्तों से गिरते-गिरते 4.85 पर आ गई है। जो कि आरबीआई की लक्ष्य से केवल 0.35 परसेंट ही आगे है। और जनवरी से 8 परसेंट मजबूत हो चुके रुपए में केवल एक दिन(हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन) में 43 पैसे की भारी गिरावट आ गयी। और ये डॉलर के मुकाबले गिरकर 41.13 पर पहुंच गया है। जिससे निर्यातकों ने राहत की सांस ली है। लेकिन ये राहत लंबे समय के लिए नहीं लग रही है।

क्योंकि रुपए की इस गिरावट में सरकार की कोशिशों से ज्यादा बाजार में गिरावट का हाथ है। क्योंकि इस हफ्ते विदेशी संस्थागत निवेशकों(एफआईआई) ने जमकर बिकवाली की है। और भारी तादाद में डॉलर लेकर अपने अपने देश चले गए हैं। साथ ही महंगे होते कच्चे तेल ने भी रुपए को राहत पहुंचाई है। क्योंकि फिर से करीब 67 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुके कच्चे तेल की कीमतों को देखते हुए। तेल कंपनियों ने अपना डॉलर का खजाना बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर डॉलर की खरीदारी की है। यानी सिस्टम में यकायक बड़े पैमाने पर डॉलर की मांग बढ़ी जिससे रुपया कमजोर हो गया।


ऐसा नहीं है कि आरबीआई हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। पूरे हफ्ते आरबीआई रुपए को राहत देने के लिए बाजार से डॉलर बटोरती रही। लेकिन हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन डॉलर की अचानक मांग बढ़ने से आरबीआई को डॉलर बाजार में छोड़ना पड़ा। ताकि रुपए में एक हद से ज्यादा उतार-चढ़ाव एक दिन में न हो पाए। फिर भी पूरे हफ्ते डॉलर की अंधाधुंध खरीदारी की वजह से केवल इसी हफ्ते देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 3.5 अरब डॉलर और जुड़ गया। जो कि पिछले सात हफ्तों में सबसे अधिक है। और ये बढ़कर 208 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है। आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि पिछले सात हफ्तों से विदेशी मुंद्रा भंडार में 1 अरब डॉलर से भी कम रकम जुड़ते रहे हैं।

हालांकि आरबीआई के लिए लिक्विडिटी को कंट्रोल में रखते हुए रुपए पर लगाम लगाना काफी कठिन काम है। क्योंकि लिक्विडिटी की मार से बचने के लिए ही ज्यादातर बैंक डॉलर बेचते हैं। जिससे बाजार में डॉलर की बाढ़ आ जाती है और रुपया भाव खाने(मजबूत होने) लगता है। जिसके बाद आरबीआई हरकत में आता है लेकिन एक सीमा तक ही डॉलर की खरीदारी कर पाता है। क्योंकि ज्यादा खरीदारी करने से बाजार में फिर रुपए की बाढ़ आ जाएगी। और लिक्विडिटी पर से आरबीआई का कंट्रोल खत्म होने लगेगा। जिससे महंगाई बढ़ने लगेगी। और महंगाई ने केंद्र की यूपीए सरकार को कई राज्यों के चुनाव में धूल चटवाई है। इसलिए सरकार की अब पहली प्राथमिकता महंगाई बन गई है। उसके बाद ही रुपए की मजबूती का नंबर आता है।


एक्सपोर्टरों की समस्या का फिलहाल कोई स्थाई निदान नहीं निकल पाया है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में रुपया और मजबूत होगा। और पहले से ही रो रहे हैंडीक्राफ्ट, टेक्सटाइल, लेदर, जेम्स और ज्वेलरी, कैमिकल, आईटी उद्योगों को और परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि इनकी ज्यादातर कमाई डॉलर में होती है। और डॉलर को जब ये रुपया में बदलते हैं तो इन्हें उतना रुपया नहीं मिल पाता जितना छे महीने पहले मिलता था। फिर भी इनमें से जेम्स एंड ज्वेलरी जैसे उन उद्योगों को ज्यादा परेशानी नहीं है जो कच्चा माल का आयात करते हैं। क्योंकि रुपया मजबूत होने से आयात सस्ता हो जाता है। लेकिन जो यहीं कच्चा माल खरीदते हैं उन्हें ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। आईटी कंपनियों में भी आलम कुछ ऐसा ही है लोगों की सैलरी आसमान छू चुकी है। साथ ही एट्रिशन से बचने के लिए उनका अप्रेजल भी सही समय पर करना होता है। जिससे कंपनी का मार्जिन कम हो रहा है। रुपए की कीमत के अनुसार एक्सपोर्टर अपनी कीमत बढ़ा नहीं पाते हैं। क्योंकि विदेशी बाजार में तगड़ा कंपीटीशन है। अगर एक्सपोर्टर अपने सामान की कीमत बढ़ाएंगे तो खरीदार बांग्लादेश, चीन, फीलिपींस जैसे देशों के सस्ते सामान की ओर रुख कर लेंगे।


एक्सपोर्टरों के हितों को सरकार किस तरह देख रही है। ये अभी तय नहीं हो पाया है। क्योंकि वाणिज्य मंत्री कमलनाथ कभी कहते हैं एक्सपोर्टरों को हो रहे नुकसान के लिए उनका कंपीटीटिव नहीं होना जिम्मेदार है। और उन्हें रुपए की मजबूती का ख्याल छोड़कर आज के बाजार में टिके रहने के लिए कंपीटीटिव होना होगा। जबकि वाणिज्य राज्य मंत्री जयराम रमेश एक्सपोर्टरों को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए करों में कुछ छूट की बात करते हैं।



सबसे बड़ी समस्या शेयर बाजार के सामने आ सकती है। क्योंकि मार्क फेबर जैसे बड़े निवेश गुरूओं की राय यही है कि भारतीय बाजार ओवर वैल्यूड है। साथ ही चीनी बाजार में आए भारी करेक्शन से अभी सेंटिमेंट भी खराब है। ऐसे में पहले से ही शेयर बाजार में मोटी कमाई पर बैठे एफआईआई को अगर मजबूत रुपए का साथ मिल जाता है। तो उनके लिए सोने पे सुहागा होगा। क्योंकि बाजार से निकलने पर उन्हें एक डॉलर अपने घर ले जाने के लिए पहले 45-47 रुपए खर्चने पड़ते थे। जो कि घटकर 40-41 रु पर आ गया है। अगर ये और कम होता है तो आंधी की तरह ज्यादातर एफआईआई इस बाजार से बाहर हो जाएंगे। और तब शेयर बाजार में ऐतिहासिक गिरावट को कोई नहीं रोक पाएगा।

2 टिप्‍पणियां:

sharad ने कहा…

bazar me nivesh karne ke pahle bazar ki sachai ko janana bahut jaroori hai, khaskar bazar par asar dalne wale tathyo par. dollar, ruppee, inflation share market ki neev hain! is analysis ko padhane ke bad rs ki sachai ko jana ja sakta hai, long term ke liye rananiti banayi ja sakti hain. last para me FII aur rs ke khel ko badhiya se samjha ja sakta hai. sharad rai

Smriti ने कहा…

Nice article. Just a wee bit too long.