एक कहावत है कि एक साथ दो नाव की सवारी नहीं करनी चाहिए। ऐसा एक- दो बार नहीं बल्कि कई बार हम सुनते आए हैं। जब भी कोई गलती करते हैं तब। लेकिन महान लोग ऐसा नहीं सोचते। अब शराब सम्राट विजय माल्या को ही लीजिए। इन्होंने तो नाव से भी आगे बढ़कर दो हवाई जहाज की सवारी एक साथ करने की ठान ली है। इनकी हिम्मत की तो दाद देनी होगी। क्योंकि इन्होंने जो दूसरा हवाई जहाज सवारी के लिए चुना है। वो पहले से बिल्कुल अलग है। या कह सकते हैं कि दूसरी दिशा में उड़ रहा है। पहला जहां एशो आराम और अमीरी की बुलंद ऊंचाई पर है। वहीं दूसरा, मध्य वर्गीय यात्रियों को बिना खाना-पानी पूछे उसके डेस्टिनेशन पर पहुंचाता है। पर एक समानता है जिसके आधार पर चाहें तो माल्या अपना बैलेंस बना सकते हैं। ये दोनों एयरलाइंस घाटे में उड़ रही हैं।
एक (किंगफिशर) में चढ़ते ही स्वर्ग जैसी अनुभूति होती है। छोटे- छोटे कपड़ों में अप्सराएं घूमती नजर आती हैं। जिनके चेहरे पर कई इंच लंबी प्लास्टिक की मुस्कान होती है। वहीं दूसरे (एयर डेक्कन) पर चढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि हम किसी ट्रेन की बॉगी में आ गए हों। वही जाना पहचाना सा चेहरा। जमीन से जुड़े लोग । जैसे ट्रेन में मूंगफली बेचने वाले घूमते हैं। वैसे ही वहां एयर हॉस्टेस ट्रॉली घसीटते हुए कुरकुरे और बोतलबंद पानी बेचती नजर आती हैं। सीट पर बैठे ज्यादातर चेहरों पर चमक होती है। क्योंकि वो जीवन में पहली बार बादलों को इतने करीब से देख रहे होते हैं।
पर अब ये चमक शायद न देखने को मिले। क्योंकि एयर डेक्कन और किंगफिशर की शादी (मर्जर, एक्विजिशन) हो चुकी है। लेकिन ये कैसी शादी है। बिल्कुल असमान जोड़ी। ये लव मैरिज तो एकदम नहीं है। दोनों पक्षों में से किसी एक ने समझौता किया है। लोग तो यही कहते हैं परिस्थिति (कर्ज का बोझ, घाटा) ने एयर डेक्कन को इस शादी के लिए मजबूर किया है। लेकिन शादी कहीं और (एडीएजी के यहां) भी हो सकती थी ? लेकिन लेन- देन को लेकर शायद बात नहीं बन पाई। और केके यानी किंग और कैप्टन संबंधी बन गए। शायद ऐसा इसलिए भी हो गया कि दोनों दक्षिण भारत (बैंगलोर) के हैं, पड़ोसी हैं, दोनों के रीति- रिवाज एक जैसे हैं।
शायद वर पक्ष (किंग) बहुत पहले से कन्या पक्ष (कैप्टन) के यहां संबंध बनाना चाहता था। और इसीलिए कन्या (एयर डेक्कन) के 2004 में पैदा होने के एक साल बाद जब वर (किंगफिशर) पैदा हुआ। तो किंग ने अपने बच्चे को वैसी ही थाली में खाना खिलाया जिसमें कन्या खाया करती थी। भले ही थाली में रोटी के बदले पकवान पड़ोसे जाते रहे हों। लेकिन थाली वैसा ही रखा (एयरबस फ्लीट, इंजन ब्रेक्स, एटीआर, एविओनिक्स, रोटेबल्स, लुफ्तहांसा टेक्निक्स से मेंटेनेंस) जैसा कन्या के पास था। ताकि बाद में दोनों एक साथ एक ही थाली (हवाई रूट) से काम चला सकें। और थाली के रख रखाव में भी अलग से खर्च ना करना पड़े।
इस शादी के सहारे किंग निकल पड़े हैं दो हवाई जहाज के सवारी पर। लेकिन क्या वो बैलेंस बना पाएंगे। क्या ये शादी एयर फ्रांस और नीदरलैंड के केएलएम की शादी की तरह सफल हो पाएगी। क्योंकि ये दुनिया की सबसे से ज्यादा कमाई करने वाली एयरलाइंस बन चुकी है।
अगर एयर डेक्कन और किंगफिशर मिलकर घाटे से भी जल्द उबर जाएं तो बड़ी बात होगी। क्योंकि दोनों का वर्क कल्चर अलग है। एयर डेक्कन का केबिन क्रू, एयर होस्टेस और स्टाफ सरकारी बसों और लोकल ट्रेनों से सफर करते हैं। तो पायलट होटल की बजाए गेस्ट हाऊसों में रुकते हैं। वहीं किंगफिशर अपने स्टाफ को वो सारी सुविधाएं मुहैया कराती हैं। जो एक इंटरनेशनल एयरलाइंस देती हैं। यानी दोनों का कल्चर मिलने पर या तो एयर डेक्कन का स्तर ऊपर उठेगा। जिससे किराया बढ़ेगा (वैसे भी माल्या को लो कॉस्ट पर भरोसा नहीं है)। या किंगफिशर का स्तर नीचे आएगा। जिससे जेट एयरवेज को फायदा होगा। हालांकि ऐसा नहीं लगता की कभी किंग दूसरे ऑप्शन पर विचार भी करेंगे। जो भी हो ये दोनों ही ऑप्शन नए लोगों को हवाई सफर के लिए तैयार करने के लिए नाकाफी है।
यानी किंग को मुनाफा कमाने के लिए कोई तीसरा तरीका अपनाना होगा। और ये तीसरा तरीका लो कॉस्ट को बढ़ावा देना हो सकता है। तभी ज्यादा से ज्यादा लोग हवाई सफर कर पाएंगे। और तभी कंपनी टर्न अराउंड जल्दी से कर पाएगी। नहीं तो महंगे एटीएफ, और रूला देने वाले कंजेशन चार्ज सहित खाली उड़ानों के लिए कंपनी को बाध्य होना पड़ेगा। जिससे ना तो कंपनी का भला होगा और ना ही लोगों का।
जेट-सहारा, किंगफिशर-एयर डेक्कन, इंडियन- एयर इंडिया की हवाई शादी के बाद गो एयर, स्पाइस जेट जैसे लो कॉस्ट एयरलाइंस में अफरा-तफरी मची है। जल्द ही ये भी किसी एयरलाइंस से मिलने को आतुर दिख रहे हैं। ऐसे में सरकार को कुछ पहल करने की जरूरत है। सरकारी महकमे में घरेलू एयरलाइंस की हिस्सेदारी विदेशी एयरलाइंसों के हाथों बेचे जाने की इजाजत दिए जाने की चर्चा गरम है। हालांकि विमानन मंत्रालय इसके पक्ष में फिलहाल नहीं है। लेकिन वित्त मंत्रालय ऐसा चाहती है।
जो भी हो इतना तो तय है कि जबतक हवा में कंपीटिशन है। तभी तक लोगों को सस्ता सफर का मजा मिल सकता है। सस्ता की चाहत में ही लाखों लोग एयरपोर्ट की ओर रुख करेंगे और जब लोग आएंगे तभी नए नए एयरपोर्ट और डेस्टिनेशन आस्तित्व में आ पाएंगे। और ये सेक्टर देश की ग्रोथ के साथ ताल में ताल मिलाकर आगे बढ़ पाएगा।
यानी कंपीटिशन बनाए रखने के लिए सरकार को एविएशन पॉलिसी पर गंभीर विचार करने की जरूरत है। टैक्सों के जरिए अपना खजाना भरने के साथ ही सरकार को लोगों और घाटे में लहूलुहान हो रही कंपनियों का भी ख्याल रखना होगा।
6 टिप्पणियां:
बढ़िया विश्लेषण है. लेख के साथ कार्टून जमता है. कार्टून आर्थिक विषयों के लेखों को रोचक बनाने में सहायक होता है.
Good peice of writing, detailed info on KK merger and so on.. but focus should have neen on aviation scenario in the industry. as spicejet and go air willing to sell some stake. south indian carrier paramount is expanding. nad lastly what is the way ahead...
हिन्दी में अच्छी सूचना है।
GUD ARTICLE... THE CARTOON WAS GUD, N THE MARRIAGE KAHANI WAS NICELY OR I SHOULD SAY KI AAPNE SHAADI ME PANDIT KI BHUMIKA ACHHI TARAH NIBHAIII.. BUT PLZ TRY 2 MAKE IT A LITTLE SHORT.. AADMI BORE NA HO JAYE...
Kahani mat samjha bhai,write in nutshell.for example you can refer www.joinsandeep.blogspot.com.
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