मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

महंगाई के बदले ग्रोथ को आरबीआई ने दी तरजीह

होम लोन, कार लोन, एजुकेशन लोन सहित हर तरह के कर्ज सस्ते होंगे। रिजर्व बैंक ने तीन साल में पहली बार रेपो रेट में पचास बेसिस प्वाइंट की कटौती का ऐलान किया है। औद्योगिक विकास की रफ्तार को तेज करने के रिजर्व बैंक ने कर्ज दरों में कटौती की है। हालांकि इसका साइड इफेक्ट महंगाई दर पर देखने को मिल सकता है।

करीब तीन साल से लगातार महंगे होते जा रहे कर्ज से आम लोगों को राहत मिलने की उम्मीद जगी है। औद्योगिक स्तर पर लगातार हिचकोले खा रही देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए रिजर्व बैंक ने आखिरकार कर्ज दरों में कटौती का फैसला कर लिया। रिजर्ब बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कर्ज दरों यानी रेपो रेट में आधा फीसदी की कटौती का ऐलान किया है। साथ ही रिवर्स रेपो रेट में भी आधा फीसीदी की कटौती की गई है। रेपो रेट 8.5 फीसदी से घटकर 8 फीसदी पर जा पहुंचा है। जबकि रिवर्स रेपो रेट 7.5 से घटकर 7 फीसद पर पहुंच गया है। जबिक कैश रिजर्व रेशियो यानी सीआरआर में कोई बदलाव नहीं किया गया है। और ये 4.75 फीसदी पर बरकरार है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों पर मंडरा रहे आर्थिक संकट के बादल पूरी तरह से अभी नहीं छटे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी दुनियाभर के देशों में चल रहे आर्थिक उठापटक और कर्ज संकट से पूरी तरह अवगत हैं। आर्थिक जगत के ये दोनों दिग्गज भारत पर इसके असर की भी पुष्टि कर चुके हैं। लगातार कम होती जा रही जीडीपी विकास दर इसका एक अहम उदाहरण है। जानकारों और औद्योगिक संस्थाओं ने कंज्युमर में विश्वास लौटाने के लिए कर्ज दरों में कटौती को जायज ठहराया है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। कर्ज दरों में कटौती से एक बार फिर से महंगाई में बढ़ोतरी हो सकती है। क्योंकि कर्ज दर कम होने से लोग फिर से ज्यादा कर्ज लेने लगेंगे। जब लोगों के पास पैसे ज्यादा आएंगे और सामन सीमित होंगे तो साफ है महंगाई बढ़ेगी। सात फीसदी के करीब महंगाई दर बनी हुई है। ऐसे में रिजर्व बैंक का ये कदम तलवार की धार पर चलने के बराबर है।

रेपो रेट वे दर है जिसपर देशभर के बैंक रिजर्व बैंक से लोन लेते हैं। और रिवर्स रेपो रेट वो दर है जिसपर रिजर्व बैंक देश के दूसरे बैंकों का पैसा लेता है।

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