बुधवार, 24 सितंबर 2008

अमेरिका में बन चुका है फाइनेंस का बुलबुला

करेंसी हटी दुर्घटना घटी?! मकान के लिए सस्ता लोन बांटने के चलते अमेरिका की चौथी सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट बैंक लीमन ब्रदर्स दिवालियापन की चौखट पर खड़ी है। क्योंकि इस बैंक को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है। पिछली एक तिमाही में ही लीमन ब्रदर्स को 17500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इससे निवेशकों में अफरा तफरी मच गई है। अमेरिका सहित दुनियाभर के बाजारों में इसका असर देखा जा रहा है। भारी नुकसान को देखते हुए लीमन  ब्रदर्स ने अपने दिवालियापन की अर्जी अमेरिकी बैंकरप्सी कोर्ट में दी है। क्योंकि लेहमैन ब्रदर्स को दिवालिएपन से बचाने की सभी कोशिशें नाकाम रही। बार्कलेज बैंक और बैंक ऑफ अमेरिका ने लीमन ब्रदर्स को खरीदने की कोशिश जरूर की लेकिन अमेरिकी सरकार की ओर से सहायता के आश्वासन न मिलने की वजह से बात नहीं बन पाई।  दूसरी ओर दुनिया की सबसे बड़ी ब्रोकरेज फर्म मेरिल लींच की तकदीर कुछ अच्छी थी। क्योंकि पिछली तिमाही में 4.5 अरब डॉलर से भी ज्यादा नुकसान के बावजूद बैंक ऑफ अमेरिका ने मेरिल लींच को खरीदकर उसे डूबने से बचा लिया। इसके बावजूद इन बैंकों में काम करने वाले लोगों के भविष्य पर अभी भी सवालिया निशान लगा हुआ है। मेरिल लींच और लीमन ब्रदर्स में काफी संख्यां में भारत के प्रोफेशनल्स काम करते हैं। यही नहीं अमेरिकी बैंक लीमन ब्रदर्स और दुनिया की सबसे बड़ी ब्रोकरेज फर्म मेरिल लींच की फाइनेंशियल हालत पतली होने से भारत में कम से कम 25000 नौकरियों पर असर पड़ने का अनुमान है।   अमेरिकी के फाइनेंशियल जगत में हुई हलचल का असर अमेरिका सहित पूरी दुनिया में देखा गया। अमेरिकी बाजार 4 फीसदी लुढ़क गया जिससे पेंशन फंड, रिटायरमेंट प्लान्स और पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट कंपनियों को 32 लाख करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। एआईजी के शेयर होल्डरों को 20 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। यही नहीं एआईजी के बेलआउट में यानी इसको दिवालियापन से बचाने के लिए अमरीकी सेंट्रल बैंक को अरबों रुपए खर्च करने पड़े। यूरोपीयन बैंक को स्थिति संभालने के लिए सिस्टम में 70 अरब यूरो डालने को मजबूर होना पड़ा। अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने भी  स्थिति को संभालने के लिए दो दिनों में 120 अरब डॉलर सिस्टम में डाल दिया। इस वजह से अगले ही दिन अमरीकी बाजार हल्की बढ़त बनाने में कामयाब रहा। हालांकि जानकार अमरीकी बाजार में बड़ी गिरावट की आशंका जता रहे हैं। अमेरिकी फाइनेंशियल अनिश्चितता से उठे तूफान को कम करने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड को 20 अरब पाउंड बाजार में उतारना पड़ा। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान ने अपने बाजार को संभालने के लिए 14 अरब डॉलर सिस्टम में डाल दिए। ऑस्ट्रेलिया और भारत को करीब 3 अरब डॉलर सिस्टम में उतारने पर मजबूर होना पड़ा। वहीं चीन ने 2002 के बाद पहली बार इंटरेस्ट रेट कट किया और इंडोनेशिया ने भी आनन फानन में रेपो रेट में कटौती का ऐलान कर डाला। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तक फाइनेंशियल जगत में एक देश दूसरे से जुड़े हैं। ऐसे में अमेरिका में अगर फिर से कोई बैंक डूबता है या वहां के फाइनेंशियल सेक्टर में कोई उठा पटक होती है तो वो सुनामी बनकर पूरी दुनिया के फाइनेंशियल जगत को हिला कर रख देगा। यानी पूरी दुनिया की नजर अब अमेरिकी बेलआउट पर टिकी है। यानी किस तरह से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था सबप्राइम क्राइसिस से बने फाइनेंशियल बुलबुले को पैसे बहाकर बचाने में कामयाब होती है। या बचा भी पाती है या नहीं ? 

2 टिप्‍पणियां:

manvinder bhimber ने कहा…

this writeup is full of information....thanx 4 this

Vivek Gupta ने कहा…

सुंदर आलेख | हर ऊपर जाने वाली वस्तु नीचे ज़रूर आती है |