देश की आर्थिक स्थिति बहुत की नाजुक दौर से गुजर रही है। सरकार किसी
गंभीर स्थिति से बचने के लिए आनन फानन में फैसले ले रही है। पेट्रोल के बाद सरकार
कुछ और गंभीर फैसले ले सकती है। जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतने के लिए तैयार
रहना होगा।
लाखों करोड़ रुपए के घोटाले और वेलफेयर स्कीम्स के नाम पर अरबों रुपए
का बंदरबांट और खरबों रुपए की ब्लैक मनी ने यूपीए टू सरकार की कमर तोड़ कर रख दी
है। ऐसे में सरकार खुद को संभालने के लिए आम लोगों की कमर तोड़ने में जुट गई है।
आने वाला दिन और भयावह होने वाला है। क्योंकि देश की आर्थिक स्थिति चरमराने लगी
है।
जीडीपी की बात करें तो साल दर साल इसमें कमी आ रही है। साल 2010-11 में
जीडीपी विकास दर 8.3 फीसदी थी जो कि 2011-12 में घटकर 6.9 फीसदी पर पहुंच गई। और 2012
में जीडीपी विकास दर के लुढककर 7 फीसदी के करीब रहने का अनुमान है।
एक्सपोर्ट लागातर कम हो रहा है। जबकि आयात बढ़ता ही जा रहा है। इससे व्यापार
घाटा माइनस में पहुंच चुका है। अप्रैल 2011 में औद्योगिक विकास दर 5.3 फीसदी थी।
जो कि मार्च 2012 में घटकर माइनस 3.5 फीसदी पर पहुंच गई।
शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेश तेजी से पैसे निकाल रहे हैं।
इसका असर शेयर बाजार में देखा जा रहा है। 1 अप्रैल 2011 को सेंसेक्स 19420 पर था
जो कि 25 मई 2012 को लुढ़ककर 16218 पर पहुंच गया।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी भारी कमी आई है। अप्रैल 2011 में 3.1
अरब डॉलर का एफडीआई देश में आया। जबकि मार्च 2012 में एफडीआई घटकर महज 1.6 अरब
डॉलर रह गया।
रिटेल महंगाई दर दहाई अंकों में पहुंच चुकी है। खाने पीने के सामान
दिन ब दिन महंगे होते जा रहे हैं। रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। सैलरी में
इजाफा नहीं हो पा रहा है। इस आर्थिक अनिश्चितता के दौर में देश की जनता की नींदे
उड़ी हुई हैं। लेकिन सरकार देश की जनता की सहायता करने की बजाए भ्रष्टाचार के
मामलों की लीपापोती अपनी गद्दी बचाने में लगी है।
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