भारत का जीडीपी विकास दर करीब 10 सालों के अपने निचले स्तर पर पहुंच
चुकी है। औद्योगिक विकास दर लुढ़ककर माइनस में पहुंच गई है। व्यापार घाटा
महीने-दर-महीने बढ़ता ही जा रहा है। रिटेल महंगाई दर 10 के पार पहुंच गई है। अर्थशास्त्री
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा
चुकी है। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के होते हुए भी ऐसा लगने लगा है कि भारत की
आर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुंच चुकी है। अर्थव्यवस्था से जुड़ी कोई भी तथ्य या
आंकड़े ऐसे नहीं हैं जिसे सुनकर हमें खुशी हो या जिसपर हम गर्व कर सकें।
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- वित्त वर्ष 2011-2012 की चौथी तिमाही में जीडीपी विकास दर गिरकर 5.3 फीसदी पर पहुंच गई। जो कि करीब 10 सालों में सबसे कम है। इससे पहले 2003 में जनवरी से मार्च की तिमाही में जीडीपी विकास दर 3.6 फीसदी पर लुढ़क गई थी।
- साल 2010-11 में जीडीपी विकास दर 8.3 फीसदी थी जो कि 2011-12 में घटकर 6.5 फीसदी पर पहुंच गई। जिस तेजी से देश में आयात बढ़ रहा है उस तेजी से निर्यात नहीं बढ़ रहा है। इस वजह से भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। पिछले वित्त वर्ष में व्यापार घाटा 185 अरब डॉलर के अपने रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचा है।
- औद्योगिक विकास में भी सुस्ती छाई हुई है। अप्रैल 2011 में औद्योगिक विकास दर 5.3 फीसदी थी। जो कि मार्च 2012 में घटकर माइनस 3.5 फीसदी पर पहुंच गई।
- शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेश तेजी से पैसे निकाल रहे हैं। इसका असर शेयर बाजार में देखा जा रहा है। अप्रैल 2011 को सेंसेक्स 19 हजार के करीब था जो कि मई 2012 में लुढ़ककर 16 हजार के करीब जा पहुंचा है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी भारी कमी आई है। अप्रैल 2011 में 3.1 अरब डॉलर का एफडीआई देश में आया। जबकि मार्च 2012 में एफडीआई घटकर महज 1.6 अरब डॉलर रह गया।
- महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। अप्रैल में रिटेल महंगाई दर बढ़कर 10.4 फीसदी पर पहुंच चुकी है।
- केवल इस साल रुपए की कीमत में 14 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का भाव 56 रुपए 50 पैसे के अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर जा पहुंचा है।
- देश का राजकोषीय घाटा पिछले वित्त वर्ष में 92.53 अरब डॉलर पर पहुंचा गया है। जोकि देश के जीडीपी का 5.9 फीसदी है।
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