जी हां सही सुना आपने, आजकल फॉग का नहीं नेचुरल गैस की चर्चा पूरी दुनिया में चल रही है। नेचुरल गैस की कमी से यूरोपीय देश कराह रहे हैं। नेचुरल गैस के चारों ओर यूरोप की इकॉनोमी का तानाबाना बुना हुआ है। नेचुरल गैस की किल्लत से यूरोपीय देश मंदी की कगार पर खड़े हैं। विंटर सीजन आते आते वहां स्टोरेज शुरू हो जाती है जिससे वहां गैस का डिमांड और बढ़ जाता है। ऐसे में जहां अभी यूरोप को नेचुरल गैस की सप्लाई बढ़नी चाहिए थी लेकिन हो रहा है इसका बिल्कुल उल्टा, वहां गैस की भारी किल्लत बनी हुई है। यही वजह है कि पिछले एक साल में वहां नेचुरल गैस की कीमतों में 700 परसेंट से ज्यादा की तेजी आ चुकी है। यही नहीं फिलहाल इसकी कीमतों में कोई नरमी के भी संकेत नहीं दिख रहे हैं।
रूस ने यूरोप को होने वाली गैस सप्लाई में कटौती कर दी है। इसके साथ ही वो जर्मनी को जिस नोर्ड स्ट्रीम से गैस की सप्लाई करता है उसे 11 जुलाई से मेंटेनेंस के नाम पर
बंद कर है। इससे जर्मनी के पसीने छूट रहे हैं। जर्मनी को ये डर है कि मेंटेनेंस के नाम पर सप्लाई रोकने के बाद शायद
रूस फिलहाल इसे शुरू न करे। दुनिया के सुपर सात देशों में गैस को लेकर माथापच्ची जारी है लेकिन कोई रास्ता निकलता नहीं दिखाई दे रहा है।
पिछले दिनों एक ब्लास्ट की वजह से अमेरिका के टेक्सस स्थित नेचुरल गैस टर्मिनल पर काम ठप है। जिससे यूरोप में एलएनजी की भारी किल्लत हो रही है। क्योंकि इसी टर्मिनल से अमेरिका यूरोप को गैस सप्लाई करता है। इस टर्मिनल को इस साल के आखिर तक फिर से शुरू किया जा सकेगा। ऐसे में इस नए जमाने के कोल्ड वार में नेचुरल गैस एक अहम भूमिका निभा रहा है। और इस मामले में रूस को अपर हैंड मिला हुआ है। कच्चे तेल की कीमतों में भी नरमी नहीं देखी जा रही है। ब्रेंट का भाव अभी 110 डॉलर के ऊपर बरकरार है।
ऐसे में यूरोप के बाद दूसरे नंबर पर एशिया ही प्रभावित हो रहा है और भारत सहित कई एशियाई
देशों पर इसका असर देखने को मिल रहा है। भारत अपनी ज़रूरतों का करीब 80 फीसदी
कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। ऐसे में भारत को अपनी जरूरतों को पूरा करने
के लिए पेट्रोल-डीजल-एटीएफ एक्सपोर्ट पर लगाम और विंडफॉल टैक्स के साथ साथ दूसरे विकल्पों पर भी
ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
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