गुरुवार, 7 जुलाई 2022

महंगाई, मंदी और स्टैगफ्लेशन में क्या है सबसे ज्यादा खतरनाक

 


कोरोना के दो साल की भयावह स्थिति के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनियाभर की अर्थव्यव्स्था को नुकसान पहुंचाया है। कोरोना काल में जहां फैक्ट्री प्रोडक्ट दुकानों में जस के तस पड़े रह गए थे। दुनियाभर के देशों की जीडीपी विकास दर माइनस में चली गई थी। दुनियाभर में जीवन की चिंता अर्थव्यवस्था से बड़ी हो गई थी। लेकिन कोरोना की तीन लहरों के बाद दुनियाभर की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगी थी। वैक्सीनेशन ने जीवन के लिए कवच का काम किया। फैक्ट्रियां धीरे- धीरे खुलने लगी। लोगों को रोजगार वापस मिलने लगा लेकिन इसी बीच रूस-यूक्रेन युद्ध ने स्थिति को एकबार फिर से बैकट्रैक पर ढ़केल दिया। अब स्थिति ये है दुनिया ग्लोबल मंदी की ओर  बढ़ती दिखने लगी है।

 

इन्फेलशन और रिसेशन के साथ ही एक और शब्द स्टैगफ्लेशन की चर्चा आजकल जोरों पर। स्टैगफ्लेशन यानी महंगाई और मंदी साथ-साथ यानी कि आम लोगों पर दोहरी मार। एक ओर महंगाई की वजह से बैंकों ने ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू कर दिया है जिससे आम लोगों पर ईएमआई का बोझ बढ़ने लगा है। वहीं महंगाई की वजह से खाने-पीने के सामान के साथ ही ईंधन और दूसरी ज़रूरत के सामान महंगे हो चुके हैं।

 

IMF प्रमुख Kristalina Georgieva ने अगले साल ग्लोबल मंदी की आशंका जताई है। आईएमएफ का मानना है कि इस साल अप्रैल से दुनियाभर के कई दिग्गज देशों के इकोनॉमी में सुस्ती आई है। 2022 का ग्लोबल इकोनॉमी ग्रोथ 3.6% के अनुमान से और नीचे फिसल सकता है। यूक्रेन-रूस युद्ध का असर बढ़ता जा रहा है। अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर तो यूरोप में 20 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। भारत में भी होलसेल महंगाई दर एक दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। 1 परसेंट महंगाई बढ़ने से जितना नुकसान लोगों को होता है उसके करीब पांच गुना नुकसान एक परसेंट बेरोजगारी दर बढ़ने से होता है। ऐसे में अगर मंदी या स्टैगफ्लेशन आई तो लोगों का रोजगार छूटेगा। फैक्ट्रियां बंद होने लगेंगी, शोरूम का किराया निकालना मुश्किल हो जाएगा। बाजार में सामान तो होंगे लेकिन लोगों के पास उसे खरीदने के लिए पैसे नहीं होंगे।

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