मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

बजट 2012-13: चार चुनौतियां

सरकार ने 16 मार्च को बजट पेश करने का ऐलान किया है। हालांकि सरकार के सामने इस बार चुनौतियां ज्यादा हैं। मंदी की चंगुल में फंसता जा रहा है देश। अमेरिका और यूरोपीय देशों के आर्थिक संकट में फंसने का साफ असर भारत पर दिखने लगा है। आर्थिक ग्रोथ रेट का अनुमान कम हो चुका है। साथ ही स्टैडर्ड एंड पुअर्स ने एक बार फिर से भारत की रेटिंग कम करने की चेतावनी दी है।

ऐसे में वित्त मंत्री जब 16 मार्च को बजट पेश करेंगे तो उनके सामने कई चुनौतियां होगीं। सबसे बड़ी चुनौती होगी सरकारी खर्चे को कम करने की। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की नीतियों पर काम करने की वजह से आज भारत के हर नागरिक पर 30000 रुपए से ज्यादा का कर्ज चढ़ चुका है। और इस खर्चे में साल दर साल बढ़ोतरी होती ही जाएगी। क्योंकि सरकारी खर्चे हर साल करीब 3 लाख करोड़ रुपया बढ़ रहा है। जिसके लिए सरकार को विदेशी संस्थाओं और बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है।

अगर खर्चे में कटौती नहीं हुई तो इसका खामयाजा देश को भुगतना होगा। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने भारत सरकार को आगाह किया है कि अगर सरकार खर्चे पर लगाम नहीं लगाती तो भारत की इन्वेस्टमेंट रेटिंग निगेटिव की जा सकती है। फिलहाल भारत की रेटिंग बीबीबी माइनस है जो कि स्टेबल यानी स्थिर श्रेणी में आता है।
इसके अलावा सरकार के सामने जीडीपी ग्रोथ को बढ़ाने का एक बड़ा दबाव होगा। क्योंकि सीएसओ यानी सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि भारत की आर्थिक विकास दर साल 2011-2012 में 6.9 फीसदी तक रह सकती है। जो कि पिछले तीन सालों में सबसे कम है। विकास दर में गिरावट की मुख्य वजह है मैन्युफैक्चरिंग, एग्रिकल्चर और माइनिंग सेक्टर की ग्रोथ में गिरावट की वजह से आर्थिक विकास दर में गिरावट आई है। सरकार ने पिछले बजट में 9 फीसदी आर्थिक विकास दर का लक्ष्य रखा था।

बजटीय घाटे को कम करना सरकार के लिए एक और सबसे बड़ी चुनौती है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार किसी भी देश के लिए 4 फीसदी से ज्यादा बजटीय घाटा सही नहीं माना जाता है। जबकि भारत का बजटीय घाट 6 फीसदी से ज्यादा है। यही नहीं अगर राज्यों के बजटीय घाटे से इसे जोड़ दिया जाए तो ये घाटा 10 फीसदी को पार कर जाएगा।

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