दिल्ली में रहने वाले लोगों की कमाई भले ही देश के दूसरे राज्यों से ज्यादा हो। लेकिन ये कमाई उनका बैंक बैलेंस नहीं बन पा रहा है। क्योंकि ना चाहते हुए भी कमाई का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा और रेंट पर उन्हें खर्च करना पड़ता है।
दिल्ली में परिवार साल दर साल छोटा होता जा रहा है। लेकिन उनके खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि ज्यादा कमाई करने के बावजूद दिल्ली के लोग खर्चे से परेशान रहते हैं। कमाई का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली में रहने वालों को हॉस्पिटल, बच्चों के ट्यूशन फीस, रेंड और फूड पर खर्च करना पड़ता है। प्रदूषण, मिलावटी खाद्य पदार्थों और गलत लाइफ स्टाइल ने दिल्लीवासी का हॉस्पिटल बिल बढ़ा दिया है। पिछले 6 सालों में महंगाई ने दिल्ली वालों की कमर तोड़ दी है।
- हॉस्पिटल बिल 240 फीसदी बढ़ा है।
- दबाईयां और हॉस्पिटल के बाहर टेस्ट के खर्चे में 129 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
- मकान किराए में 186 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- बच्चों की पढ़ाई और ट्यूशन फीस 126 फीसदी बढ़ा है।
दिल्ली वालों को कमाई का 36 फीसदी खान-पान पर खर्च करना पड़ता है। वो भी तब...जब दिल्ली में परिवार सिकुरते जा रहे हैं। एक परिवार में लोगों की औसत संख्या घटकर 4.5 लोगों की रह गई है। ऐसे में भले ही सरकार ही दिल्लीवालों की बढ़ती कमाई का ढ़िढोरा पीट रही हो। लेकिन सच्चाई ये है कि बढ़ती कमाई के बावजूद दिल्लीवालों को महीने के आखिर तक कुछ नहीं बचता।
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