मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

भारत-ईरान बनाम भारत-अमेरिका

अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत ईरान पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाह रहा। यही नहीं इस्राइल और यूरोपीय देशों की नाराज़गी को दरकिनार करते हुए भारत ईरान के साथ अपने रिश्ते और मज़बूत करने की कोशिश में लग गया है। भारत और ईरान के बीच आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करने के लिए इस महीने के आखिर में वाणिज्य मंत्रालय की एक टीम तेहरान रवाना होगी।

भारत की विदेश नीति अब ठीक उसी राह पर निकल चुका है। जिसपर हमेशा से अमेरिका अपना उल्लू सीधा करता रहा है। यानी दो देशों के बीच खटास पैदा करो और अपना व्यापार बढ़ाते रहो। भारत के साथ दशकों से ऐसा होता आ रहा है। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर कभी कोई ठोस बयान अमेरिका की तरफ से नहीं आया। क्योंकि अमेरिका को दोनों देशों के यहां अरबों डॉलर के हथियार, फाइटर प्लेन और दूसरे रक्षा उपकरण बेचने होते थे। और अगर अमेरिका के बीच बचाव से दोनों देशों में शांति आ जाती तो भला उनके हथियार कौन खरीदता। अब कुछ ऐसा ही मौक भारत के हाथ लगा है।

अमेरिका और यूरोपीय देश ईरान पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। लेकिन वो दबाव बना रहे हैं कि भारत भी ऐसा करे। लेकिन भारतीय विदेश नीति अब करबट ले चुकी है। भारत भी अब ईरान के साथ ज्यादा से ज्यादा व्यापार बढ़ाना चाह रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देशों की ईरान में अनुपस्थिति का बेहतर फायादा भारत उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रहा है। और इन्हीं संभावनाओं को तलाशने के लिए इस महीने के आखिर में वाणिज्य मंत्रालय की एक टीम तेहरान रवाना हो रही है। भारत ने दो टूक शब्दों में अमेरिका को बता दिया है कि वो सुनेगा सबकी लेकिन करेगा अपनी। भारतीय गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि इस्राइली दूतावास की एक कार में हुए विस्फोट के लिए जिम्मेदार कौन है इसका फैसला इस्राइल नहीं बल्कि भारत करेगा। और जबतक जांच में पता नहीं चल जाता कि इसमें किसका हाथ है तबतक ईरान या किसी देश को इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। फ्रांस के साथ हुए 15 अरब डॉलर का डिफेंस डील इसका एक और उदाहरण है।

ऐसे भी भारत ईरान से अपने रिश्ते खराब करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि भारत करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है। जिसमें से 12 फीसदी हिस्सेदारी ईरान की है। और अगर ईरान से तेल की सप्लाई रुक गई तो भारत में ईंधन की एक बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी।

भारत को हमेशा अमेरिका का एक ऑप्शन तैयार रखना चाहिए। क्योंकि भारत की विदेश नीति पर अमेरिका बौखला चुका है। ऐेसे में एक बार फिर से सीआईए पाकिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सह दे सकता है। हालांकि ओशामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तान में फिलहाल अमेरिका के लिए माकूल माहौल नहीं है। साथ ही पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता की वजह से अमेरिका वहां अपना मनमानी करने में फिलहाल सक्षम नहीं है। नहीं तो पाकिस्तान के जरिए भारत को परेशान करने में वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। बचा चीन जहां अमेरिका की दाल नहीं गलती। लेकिन आने वाले दिनों में कश्मीर की तरह अरुणाचल के मुद्दे पर अमेरिका यू-टर्न ले सकता है। ऐसे में भारत को रुस के साथ याराना बढ़ाना चाहिए। क्योंकि पुतिन के सत्ता में आते ही रूस की स्थिति बदलेगी। और उस स्थिति में भारत रुस के साथ मिलकर ना केवल पाकिस्तान बल्कि चीन और साउथ ईस्ट एशिया की समस्या से आसानी से दो-दो हाथ कर सकता है। और प्रगति की राह पर बिना रुकाबट के आगे बढ़ सकता है।

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