शनिवार, 23 जुलाई 2011
63 लाख बनाम 10 लाख नौकरियां
यूपीए वन के कार्यकाल में नौकरियों के अवसर में जबरदस्त कमी आई है। सरकारी संस्था नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी एनएसएसओ की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। ये रिपोर्ट सरकार के गले में अटक गई है। ना तो उसे ये उगलने में बन रहा है और ना ही निगलने में। बीजेपी सहित तमाम विरोधी दलों ने इस मुद्दे को कैश करना शुरू कर दिया है।
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स के तहत आने वाली सरकारी संस्था नेशनल सैंपल सर्वे ने एक रिसर्च रिपोर्ट जारी कर यूपीए सरकार के पैरों तले से ज़मीन सरकार दी है। इस रिपोर्ट में ये खुलासा किया गया है कि यूपीए वन के कार्यकाल यानी 2004 से 2009 के दौरान केवल 10 लाख नौकरियों के अवसर पैदा हुए। जबकि एनडीए के कार्यकाल यानी 1999 से 2004 के दौरान कुल 63 लाख लोगों को नौकरियां मिली। एनएसएसओ की ये रिपोर्ट विरोधी पार्टियों के लिए सरकार के खिलाफ बैठे बिठाए एक और मुद्दे के तौर पर मिल गया। जिसे एनडीए कैश कराने से नहीं चूकना चाह रही है।
जानकारों का मानना है कि मनरेगा और दूसरी योजनाओं के होते हुए भी रोजगार में कमी एक चिंता का विषय है। तेजी से बढ़ते जडीपी के बावजूद अगर रोजगार कम हुए हैं तो जरूर सरकार की आर्थिक नीतियों में कहीं ना कहीं चूक हुई है। और ये देश के लिए ठीक नहीं है।
बीजेपी सहित दूसरे दलों के लोगों ने भी सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया है। यूपीए वन के कार्यकाल के दौरान हर साल केवल 2 लाख लोगों को नौकरी मिली जबकि एनडीए के कार्यकाल में रोजगार कि संख्यां प्रति वर्ष 12 लाख को पार कर गईं थी। जानकार इसकी वजह इकॉनोमी की संरचना में गलत बदलाव को दे रहे हैं।
एनएसएसओ की ये रिपोर्ट सरकार के लिए एक नयी मुसीबत लेकर आई है। पहले से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पूरी तरह घिर चुकी यूपीए टू सरकार को अब यूपीए वन के रिपोर्ट कार्ड का सामना करना पड़ रहा है। मनरेगा और दूसरे रोजगार के अवसर को मुद्दा बनाकर कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार यूपीए वन से यूपीए टू तक भले ही पहुंच गई हो लेकिन सच्चाई के सामने आने पर उसके पास जवाब नहीं मिल रहा है।
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1 टिप्पणी:
UPA ke paas iska koi jawab nahi hai...
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