शनिवार, 30 जुलाई 2011
संकट में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
अमेरिका कर्ज संकट के मुहाने पर खड़ा है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था डिफाउटर बनने की कगार पर है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराम ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी कर्ज सीमा बढ़ाना चाहती है। जबकि विपक्षी दल यानी रिपब्लिकन इसका विरोध कर रहे हैं। अमरीकी सीनेट कर्ज सीमा को बढ़ाने वाले एक बिल को ख़ारिज कर दिया है। इससे पहले इस बिल अमरीकी के हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटिव यानि प्रतिनिधि सभा ने पास कर दिया था।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर कर्ज के बादल मंडरा रहे हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुमत वाली सीनेट में कर्ज सीमा बढ़ाने वाला बिल पास नहीं हो पाया। इस बिल के गिरने की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी। दरअसर रिपब्लिकन पार्टी की बहुमत वाली प्रतिनिधि सभा ने सरकारी खर्चे में कटौती की शर्त पर कर्ज की सीमा बढ़ाने वाली बिल पर मुहर लगाई थी। लेकिन इसपर डेमोक्रेटिक पार्टी की बहुमत वाली सीनेट में सहमति नहीं मिल पाई। और इस बिल सीनेट में दम तोड़ दिया। अब दो अगस्त इसपर बातचीत होगी।
अगर दो अगस्त तक ये मसला नहीं सुलझता है तो अमरीका में नकदी की समस्या पैदा हो जाएगी। इसके साथ ही कर्ज़े लौटाने की अमेरिका की रेटिंग भी प्रभावित होगी। कर्ज सीमा बढ़ाने वाले बिल को लेकर अमेरिका के दोनों राजनीतिक दलों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी में भारी मतभेद रहे हैं। रिपब्लिकन पार्टी चाहती है कि कम अवधि के कर्ज की सीमा 900 बिलियन डॉलर तक ही की जाए। लेकिन डेमोक्रेट्स इस सीमा को और अधिक करने के पक्ष में हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अगर राजनीतिक दलों ने देश के कर्ज़ संकट को निबटाने के उपाय के बारे में जल्दी समझौता नहीं किया तो सारे अमरीकी लोगों को इससे परेशान होना पड़ेगा। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अगर डिफाउल्टर हो जाती है तो इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिलेगा। अमेरिका में सरकार कानूनी रूप से एक सीमा तक ही कर्ज ले सकती है। यह सीमा फिलहाल 14.3 खरब डॉलर की है। लेकिन अमेरिकी सरकार मई में ही इस सीमा तक पहुंच चुकी है। यानी अब अगर यह सीमा नहीं बढ़ाई जाती है तो सरकार के पास भुगतान के लिए पैसा नहीं होगा।
अमेरिका के पास कर्ज सीमा बढ़ाने के लिए मंगलवार तक का वक्त है। और अगर कर्ज बढ़ाने पर सहमति नहीं हो पाती है तो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला ये देश अपने सभी भुगतान करने की काबिलियत खो बैठेगा। और इसका असर दुनियाभर में दिखाई देगा।
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