गुरुवार, 7 जुलाई 2011
चावल-गेहूं एक्सपोर्ट करने की तैयारी
कृषि मंत्री शरद पवार पहले चावल और गेहूं के निर्यात पर हामी भर रहे थे। लेकिन अब उन्होंने अपना रुख बदल दिया है। अब पवार इन खाद्यानों ने निर्यात का विरोध कर रहे हैं। जबकि खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने निर्यात की वकालत की है।
कृषि और खाद्य मंत्रालय में टकराव के चलते सरकार गेहूं और चावल के निर्यात पर फैसला नहीं कर पा रही है। खाद्य मंत्रालय का कहना है कि निर्यात न होने से जहां एक ओर खुले में रखा अनाज सड़ेगा वहीं दूसरी तरफ इसका खामियाजा किसानों को भी उठाना पड़ेगा।
गैर बासमती चावल के निर्यात पर अप्रैल 2008 से और गेहूं के निर्यात पर फरवरी 2007 से रोक लगी हुई है। कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि हम निर्यात शुरू करने की स्थिति में नहीं हैं। क्योंकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक अभी पारित नहीं हुआ है। यह विधेयक आगामी मानसून सत्र में संसद में पेश किया जा सकता है। तब ये पता चल पाएगा कि इसके लिए कितने अन्न की जरुरत होगी।
वहीं दूसरी ओर खाद्य मंत्रालय ने 40 लाख टन गेहूं और गैरबासमती चावल के निर्यात का प्रस्ताव रखा है। इस मामले पर 11जुलाई को खाद्य मामलों से जुड़े मंत्रियों की बैठक में फैसला हो सकता है। अन्न के निर्यात को पवार और थामस के राजनीतिक टकराव के रूप में देखा जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूक्रेन, रूस और ऑस्ट्रेलिया के गेहूं की भारी आपूर्ति से कीमतें नीचे आ गई हैं। ऐसे में खाद्यान्न निर्यात का फैसला व्यावहारिक नहीं होगा। इसीलिए पवार ने खाद्य सुरक्षा विधेयक की आड़ लेकर निर्यात के फैसले से खुद को अलग कर लिया है। जबकि पवार पिछले एक महीने से सरकार पर गेहूं व चावल निर्यात के लिए दबाव बनाए हुए थे।
वहीं के वी थॉमस स्टोरेज समस्या को लेकर परेशान हैं। क्योंकि पिछले दो से तीन सालों से एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगने के बाद
सरकारी गोदामों में जगह नहीं बची है। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी एफसीआई के पास 6 करोड़ 20 लाख टन अनाज रखने की जगह है इसके बावजूद एफएओ ने 6 करोड़ 50 लाख टन अन्न जमा कर रखा है। और जब खरीफ फसल आएगी को सरकार उसे कहां रखेगी।
जाहिर है आनन फानन में ये फैसला लिया जा सकता है कि अन्न का एक्सपोर्ट करो नहीं तो अनाज़ सड़ जाएंगे। लेकिन सरकार चाहे तो दूसरा बंदोबस्त कर सकती है। एक ओर जहां सरकार अरबों रुपए का फूड सिक्योरिटी बिल लाने जा रही है। वहीं दूसरी ओर फूड को सिक्योर करने के लिए सरकार के पास जगह नहीं है।
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