बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

जीडीपी विकास दर में भारी गिरावट

बजट से ठीक पहले जीडीपी के आंकड़े ने सरकार की नींद उड़ा दी है। भारत की जीडीपी विकास दर 33 महीनों के अपने निचले स्तर पर जा पहुंचा है। निवेश में कमी और महंगाई में बढ़ोतरी की वजह से जीडीपी विकास दर में ये गिरावट देखने को मिली है।

नौ फीसदी की विकास दर का सपना देखने वाले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को अब महज़ 7 फीसदी जीडीपी विकास दर हासिल करने के लिए भी एड़ी चोटी का पसीना बहाना पड़ रहा है। अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में भारत की जीडीपी विकास दर लुढ़ककर 6.1 फीसदी पर जा पहुंची। जो कि करीब तीन साल का सबसे निचला स्तर है। जुलाई से सिंतबर की तिमाही में जीडीपी विकास दर 6.9 फीसदी थी। पिछले लगातार 7 तिमाही से जीडीपी विकास दर में गिरावट जारी है। इसके कई कारण हैं। कच्चे सामानों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की वजह से इंडस्ट्री में होने वाले निवेश में कमी आई है। जिससे मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले 5 वर्षों में पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की तेज़ रफ्तार के लिए तरसती नज़र आने लगी है। और इस स्थिति के लिए ग्लोबल परिस्थितियों के साथ ही सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं।

साल 2007 से साल 2009 तक भारत की आर्थिक विकास दर औसतन 9.5 फीसदी थी। जबकि पिछले 2 साल में भारतीय अर्थव्यवस्था औसतन 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी है। ऐसे में सरकार को एक बार फिर से रिफॉर्म तेज़ करने की ज़रूरत है। नहीं तो डबल डिजिट में विकास दर हासिल करने का सपना कभी साकार नहीं हो पाएगा।

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

कल होगी महा-हड़ताल

देशभर में कल होने वाली है महा-हड़ताल। बैंक, सरकारी और निजी फैक्ट्री में काम नहीं करेंगे मज़दूर। ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन भी हड़ताल में हैं शामिल। देश के ज्यादातर मज़दूर और कर्मचारी यूनियनों ने कई सूत्री मांगों को लेकर एक दिन की हड़ताल का ऐलान किया है।

कल एक जगह से दूसरी जगह जाने के में हो सकती है परेशानी। क्योंकि ऑटो टैक्सी और ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन रहेंगे हड़ताल पर। सरकारी और निजी बैंकों में भी काम-काज रहेगा ठप्प। बढ़ती बेरोजगारी, कमरतोड़ महंगाई, घोटालों, भ्रष्टाचार, श्रम नियमों को लागू करने और आम आदमी के दमन के विरोध में देश के ज्यादातर ट्रेड यूनियंस और दूसरे संगठनों ने 28 फरवरी को राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने का फैसला किया है। इस दौरान देशभर में मज़दूर और कर्मचारी संगठनों ने जुलुस और चक्का जाम का प्लान बनाया है।
हड़ताल की वजह से 28 फारवरी को सरकारी, निजी सहित ग्रामीण बैंकों में भी कामकाज ठप्प रहेगा।देश के कई ट्रांसपोर्ट एसोसिएशनों भी हड़ताल में शामिल होंगे। जिससे यातायात व्यवस्था पर असर पड़ेगा। रिटेल क्षेत्र में एफडीआई का विरोध कर रही स्वदेशी जागरण मंच ने भी हड़ताल का समर्थन करने का फैसला किया है।

केन्द्र सरकार की कर्मचारी विरोधी नितियों के चलते केन्द्रीय श्रम संगठनों और कई फेडरेशन ने एकजुट होकर भारतीय इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हड़ताल पर जा रहे हैं। इसलिए इसका असर देशभर में देखने को मिल सकता है।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

5.5 लाख की कमाई टैक्स नेट से बाहर !

इस बजट में इनकम टैक्स भरने वाले मिडिल क्लास को कुछ राहत मिल सकती है। क्योंकि सरकार टैक्स छूट की सीमा 3 लाख रुपए तक करने पर विचार कर रही है। फिलहाल टैक्स छूट की सीमा 1 लाख 80 हज़ार रुपए है। साथ ही निवेश पर टैक्स छूट ढ़ाई लाख रुपए की जा सकती है।

टैक्स छूट की सीमा 3 लाख रुपए तक बढ़ सकती है। क्योंकि डायरेक्ट टैक्स कोड यानी डीटीसी पर बनी संसदीय समिति ने बजट 2012 में टैक्स छूट की सीमा को बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने की सिफारिश की है। डीटीसी पर बनी समिति के अध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने नए प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। हालांकि इस पर अंतिम फैसला वित्त मंत्रालय को लेना है। फिलहाल 1 लाख 80 हजार रुपए कमाने वाले टैक्स नेट से बाहर हैं। साथ ही यादि कोई व्यक्ति इससे ज्यादा कमाई करता है तो उसे भी 1 लाख 80 हजार रुपए की कमाई पर टैक्स नहीं देना पड़ता है।

ऐसे में अगर ये छूट 3 लाख रुपए तक कर दी जाती है तो इससे आम लोगों को काफी राहत मिलेगी। क्योंकि उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा फिलहाल टैक्स में चला जाता है। इसके साथ ही सरकार दूसरे निवेश पर टैक्स छूट की सीमा 1 लाख 55 हजार रुपए से बढ़ाकर ढ़ाई लाख रुपए करने पर विचार कर रही है। यानी की निवेश और बचत को जोड़कर कुल साढ़े पांच लाख रुपए की कमाई करने वाले लोग इनकम टैक्स नेट से बच सकते हैं।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

3 साल के एफडी पर टैक्स में छूट

पांच साल के बदले 3 साल के बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट पर टैक्स छूट देने पर सरकार विचार कर रही है। इसका ऐलान आगामी आम बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कर सकते हैं। इससे टैक्स भरने वाले मिडल क्लास को कुछ राहत मिल सकती है।

टैक्स बचत के लिए अब ज्यादा समय तक अपने पैसे बैंकों में जमा करने की ज़रूरत नहीं होगी। क्योंकि टैक्स में छूट के लिए बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट की सीमा 3 साल की जा सकती है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी 16 मार्च को बजट पेश करने के दैरान इसका ऐलान कर सकते हैं। यानी कि आने वाले वर्षों में 80 सी के तहत टैक्स सेविंग के लिए बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट एक बेहतरीन विकल्प बनने वाला है। क्योंकि इसके अलावे जो दूसरे टैक्स सेविंग प्रोडक्ट हैं वो इतने प्रभावी नहीं है।

- पीपीएफ यानी पब्लिक प्रोविडेंट फंड में 15 साल का लॉकिन पीरियड है। हालांकि 7 साल बाद निवेशक चाहे तो पैसे निकाल सकता है। इसपर 8.6 फीसदी रिटर्न मिलता है। जो कि टैक्स फ्री है।
- जबकि एनएससी यानी नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट में लॉकिन पीरियड 6 साल का है। जिसपर 8 फीसदी रिटर्न मिलता है। हालांकि इसपर टैक्स लगता है।
- इएलएसएस यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम में 3 साल का लॉकिन पीरियड है। लेकिन इसपर रिटर्न की कोई गारंटी नहीं है। शेयर बाजार की स्थिति ठीक रहने पर इसपर बेहतर रिटर्न मिल सकता है। जो कि टैक्स फ्री होगा।
- फिलहाल बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट के लिए 5 साल का लॉकिन पीरियड है। और इसपर 8.75 फीसदी का रिटर्न मिलता है।

दरअसल ऊंची ब्याज दर का दौर आने वाले दिनों में खत्म होने वाला है। ऐसे में लोग पांच साल के लिए अपना पैसा बैंकों में फंसाना नहीं चाहेंगे। और ऐसा होने पर लिक्विडिटी और बैड लोन की समस्य से जूझ रहे बैंकों की स्थिति और नाजुक हो सकती है। ऐसे में सरकार टैक्स सेविंग के लिए बैंक एफडी की सीमा कम कर आम लोगों के साथ ही बैंकों को राहत पहुंचा सकती है।

दिल्ली में कमाई से ज्यादा खर्चे बढ़े

दिल्ली में रहने वाले लोगों की कमाई भले ही देश के दूसरे राज्यों से ज्यादा हो। लेकिन ये कमाई उनका बैंक बैलेंस नहीं बन पा रहा है। क्योंकि ना चाहते हुए भी कमाई का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा और रेंट पर उन्हें खर्च करना पड़ता है।

दिल्ली में परिवार साल दर साल छोटा होता जा रहा है। लेकिन उनके खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि ज्यादा कमाई करने के बावजूद दिल्ली के लोग खर्चे से परेशान रहते हैं। कमाई का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली में रहने वालों को हॉस्पिटल, बच्चों के ट्यूशन फीस, रेंड और फूड पर खर्च करना पड़ता है। प्रदूषण, मिलावटी खाद्य पदार्थों और गलत लाइफ स्टाइल ने दिल्लीवासी का हॉस्पिटल बिल बढ़ा दिया है। पिछले 6 सालों में महंगाई ने दिल्ली वालों की कमर तोड़ दी है।

- हॉस्पिटल बिल 240 फीसदी बढ़ा है।
- दबाईयां और हॉस्पिटल के बाहर टेस्ट के खर्चे में 129 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
- मकान किराए में 186 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- बच्चों की पढ़ाई और ट्यूशन फीस 126 फीसदी बढ़ा है।

दिल्ली वालों को कमाई का 36 फीसदी खान-पान पर खर्च करना पड़ता है। वो भी तब...जब दिल्ली में परिवार सिकुरते जा रहे हैं। एक परिवार में लोगों की औसत संख्या घटकर 4.5 लोगों की रह गई है। ऐसे में भले ही सरकार ही दिल्लीवालों की बढ़ती कमाई का ढ़िढोरा पीट रही हो। लेकिन सच्चाई ये है कि बढ़ती कमाई के बावजूद दिल्लीवालों को महीने के आखिर तक कुछ नहीं बचता।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

नई टेलीकॉम पॉलिसी का ऐलान


सरकार ने टेलिकॉम सेक्टर के लिए नई पॉलिसी का ऐलान कर दिया है। इसके तहत अब कंपनियों को स्पेक्ट्रम और लाइसेंस अलग-अलग लेना होगा। और स्पेक्ट्रम की तरह ही लाइसेंस की नीलामी की जाएगी।

सरकार स्पेक्ट्रम और लाइसेंस अब एक साथ नहीं देगी। सभी लाइसेंस की नीलामी होगी। लाइसेंस के लिए एक समान 8 फीसदी की फीस ली जाएगी। इसके अलावा सरकार ने ये भी साफ कर दिया है कि 3जी स्पेक्ट्रम को कंपनियां आपस में शेयर नहीं कर पाएंगी। टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि नया लाइसेंस 10 साल के लिए रिन्यू होगा। फिलहाल पूरे देश के लिए 1 लाइसेंस पर फैसला नहीं किया गया है। सरकार ने ग्रामीण इलाकों में सेवा देने के लिए सीधी मदद का प्रस्ताव रखा है। जबकि टेलिकॉम कंपनियों को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम लौटाने को कहा गया है।

इसके साथ ही सरकार ने साफ कर दिया है कि यूनिफाइड लाइसेंस में शिफ्ट होने के लिए कंपनियों को भुगतान करना होगा। लेकिन नीलामी के जरिए एक्सट्रा स्पेक्ट्रम लिया जा सकेगा। कपिल सिब्बल के मुताबिक टेलिकॉम विलय के नए नियमों के तहत विलय या अधिग्रहण के लिए मार्केट शेयर ग्राहक और कमाई के आधार पर तय किया जाएगा। लेकिन इसके साथ सरकार ने साफ कर दिया है कि विलय या अधिग्रहण के बाद बनी नई कंपनी का मार्केट शेयर पैंतीस फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। नई टेलीकॉम पॉलिसी से ग्राहकों को फायदा होग। ज्यादा से ज्यादा स्पेक्ट्रम का उपयोग होने से उन्हें बेहतर सुविधाएं कम दरों पर मिल सकेंगे।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

भारत-ईरान बनाम भारत-अमेरिका

अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत ईरान पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाह रहा। यही नहीं इस्राइल और यूरोपीय देशों की नाराज़गी को दरकिनार करते हुए भारत ईरान के साथ अपने रिश्ते और मज़बूत करने की कोशिश में लग गया है। भारत और ईरान के बीच आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करने के लिए इस महीने के आखिर में वाणिज्य मंत्रालय की एक टीम तेहरान रवाना होगी।

भारत की विदेश नीति अब ठीक उसी राह पर निकल चुका है। जिसपर हमेशा से अमेरिका अपना उल्लू सीधा करता रहा है। यानी दो देशों के बीच खटास पैदा करो और अपना व्यापार बढ़ाते रहो। भारत के साथ दशकों से ऐसा होता आ रहा है। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर कभी कोई ठोस बयान अमेरिका की तरफ से नहीं आया। क्योंकि अमेरिका को दोनों देशों के यहां अरबों डॉलर के हथियार, फाइटर प्लेन और दूसरे रक्षा उपकरण बेचने होते थे। और अगर अमेरिका के बीच बचाव से दोनों देशों में शांति आ जाती तो भला उनके हथियार कौन खरीदता। अब कुछ ऐसा ही मौक भारत के हाथ लगा है।

अमेरिका और यूरोपीय देश ईरान पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। लेकिन वो दबाव बना रहे हैं कि भारत भी ऐसा करे। लेकिन भारतीय विदेश नीति अब करबट ले चुकी है। भारत भी अब ईरान के साथ ज्यादा से ज्यादा व्यापार बढ़ाना चाह रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देशों की ईरान में अनुपस्थिति का बेहतर फायादा भारत उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रहा है। और इन्हीं संभावनाओं को तलाशने के लिए इस महीने के आखिर में वाणिज्य मंत्रालय की एक टीम तेहरान रवाना हो रही है। भारत ने दो टूक शब्दों में अमेरिका को बता दिया है कि वो सुनेगा सबकी लेकिन करेगा अपनी। भारतीय गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि इस्राइली दूतावास की एक कार में हुए विस्फोट के लिए जिम्मेदार कौन है इसका फैसला इस्राइल नहीं बल्कि भारत करेगा। और जबतक जांच में पता नहीं चल जाता कि इसमें किसका हाथ है तबतक ईरान या किसी देश को इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। फ्रांस के साथ हुए 15 अरब डॉलर का डिफेंस डील इसका एक और उदाहरण है।

ऐसे भी भारत ईरान से अपने रिश्ते खराब करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि भारत करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है। जिसमें से 12 फीसदी हिस्सेदारी ईरान की है। और अगर ईरान से तेल की सप्लाई रुक गई तो भारत में ईंधन की एक बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी।

भारत को हमेशा अमेरिका का एक ऑप्शन तैयार रखना चाहिए। क्योंकि भारत की विदेश नीति पर अमेरिका बौखला चुका है। ऐेसे में एक बार फिर से सीआईए पाकिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सह दे सकता है। हालांकि ओशामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तान में फिलहाल अमेरिका के लिए माकूल माहौल नहीं है। साथ ही पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता की वजह से अमेरिका वहां अपना मनमानी करने में फिलहाल सक्षम नहीं है। नहीं तो पाकिस्तान के जरिए भारत को परेशान करने में वो कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। बचा चीन जहां अमेरिका की दाल नहीं गलती। लेकिन आने वाले दिनों में कश्मीर की तरह अरुणाचल के मुद्दे पर अमेरिका यू-टर्न ले सकता है। ऐसे में भारत को रुस के साथ याराना बढ़ाना चाहिए। क्योंकि पुतिन के सत्ता में आते ही रूस की स्थिति बदलेगी। और उस स्थिति में भारत रुस के साथ मिलकर ना केवल पाकिस्तान बल्कि चीन और साउथ ईस्ट एशिया की समस्या से आसानी से दो-दो हाथ कर सकता है। और प्रगति की राह पर बिना रुकाबट के आगे बढ़ सकता है।

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

आरआईएल-डेस्सल्ट करार पर सवाल

रिलायंस इंडस्ट्रीज अब डिफेंस सेक्टर में भाग्य आजमाने को तैयार है। इसके लिए कंपनी फ्रांस की डेस्सल्ट एविएशन के साथ करार किया है। डेस्सल्ड वही कंपनी है जिसको इंडियन एयरफोर्स से 15 अरब डॉलर का कांट्रैक्ट मिला है। आनन-फानन में हुए दोनों कंपनियों के डील से कुछ सवाल पैदा होना लाजिमी हैं।

देश की सबसे दिग्गज कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज अब डिफेंस कारोबार में हाथ आजमाएगी। देर से ही सही लेकिन कंपनी ने अरबों डॉलर की क्षमता वाली डिफेंस सेक्टर में कूदने का ऐलान कर दिया है। इसके लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज ने फ्रांस की डेस्सल्ट एविएशन के साथ करार किया है। दो हफ्ते पहले ही डेस्सल्ट एविएशन ने इंडियन एयरफोर्स को 126 कॉम्बेट एयर क्राफ्ट की सप्लाई के लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय के साथ 15 अरब डॉलर का करार किया है। दोनों कंपनियां भारत के रक्षा क्षेत्र में कारोबार के मौके तलाशेंगी। इतनी बड़ी डील के केवल 15 दिनों के अंदर रिलायंस इंडस्ट्री का फ्रेंच कंपनी डेस्सल्ट के साथ करार कई सवाल पैदा करते हैं। क्योंकि देश के कई बड़े घोटाले इस क्षेत्र में हो चुके हैं।

क्या डेस्सल्ट और आरआईएल के बीच पहले से ही कोई समझौता था। क्या डेस्सल्ट ने ये शर्त रखी थी कि भारत सरकार के साथ डील के बाद ही वो रिलायंस के साथ करार करेगी। क्या फ्रेंच कंपनी को कांट्रैक्ट दिलाने में रिलायंस इंडस्ट्रीज का कोई हाथ था।

भारत में डिफेंस सेक्टर एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें कमाई के अकूत अवसर हैं। जिसे कैश कराने में भारत की दिग्गज कंपनियां कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहतीं। टाटा और महिंद्रा पहले से इस क्षेत्र में मौजूद है। और देर से ही सही अब देश की सबसे बड़ी दिग्गज कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने भी भारतीय डिफेंस सेक्टर में दस्तक दे दी है।

होम लोन ब्याज पर 3 लाख तक कर छूट

होम लोने के ब्याज पर आयकर छूट की सीमा तीन लाख रुपए हो सकती है। हाउसिंग सेक्टर को दुरुस्त करने के लिए सरकार आगामी बजट में इसका ऐलान कर सकती है। इससे घर खरीदने वाले लोगों को कुछ राहत ज़रुर मिलेगी।

सरकार बजट 2012 में होम लोन पर कर कटौती की सीमा बढ़ाकर ग्राहकों को राहत दे सकती है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इसका ऐलान बजट पेश करते समय यानी 16 मार्च को कर सकते हैं। सरकार के इस कदम से रियल एस्टेट सेक्टर को खस्ता हालत से उबरने का कुछ मौका मिलेगा।

सरकार होम लोन के लिए दिए गए ब्याज पर आयकर छूट की सीमा को 1.5 लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपये कर सकती है। इसके अलावा लोन लेकर घर खरीदने वाले ग्राहकों को मूलधन के भुगतान पर भी एक लाख की सीमा तक कर छूट मिलती है। हालांकि ये एक लाख रुपये की सालाना कर बचत पर मिलने वाली छूट का ही हिस्सा है।

साल दर साल घर का सपना महंगा होता जा रहा है। मकान की कीमतें बढ़ती जा रही है साथ ही ब्याज दरें भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं। ऐसे में इस साल लाखों लोगों के घर का सपना सपना ही बना रहा। वो ऊंची बिल्डिंगों को बस दूर से ही देखते रहे। इसका असर रियल एस्टेट सेक्टर पर साफ दिखा। ज्यादातर रियल एस्टेट कंपनियों कर्ज तले दब गईं। ऐसे में होम लोन पर कर छूट की सीमा को तीन लाख रुपए तक बढ़ाने से ना केवल ग्रहकों को फायदा होगा बल्कि घरों की मांग बढ़ने से रियल एस्टेट सेक्टर को भी राहत मिलेगी।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

बजट 2012-13: चार चुनौतियां

सरकार ने 16 मार्च को बजट पेश करने का ऐलान किया है। हालांकि सरकार के सामने इस बार चुनौतियां ज्यादा हैं। मंदी की चंगुल में फंसता जा रहा है देश। अमेरिका और यूरोपीय देशों के आर्थिक संकट में फंसने का साफ असर भारत पर दिखने लगा है। आर्थिक ग्रोथ रेट का अनुमान कम हो चुका है। साथ ही स्टैडर्ड एंड पुअर्स ने एक बार फिर से भारत की रेटिंग कम करने की चेतावनी दी है।

ऐसे में वित्त मंत्री जब 16 मार्च को बजट पेश करेंगे तो उनके सामने कई चुनौतियां होगीं। सबसे बड़ी चुनौती होगी सरकारी खर्चे को कम करने की। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की नीतियों पर काम करने की वजह से आज भारत के हर नागरिक पर 30000 रुपए से ज्यादा का कर्ज चढ़ चुका है। और इस खर्चे में साल दर साल बढ़ोतरी होती ही जाएगी। क्योंकि सरकारी खर्चे हर साल करीब 3 लाख करोड़ रुपया बढ़ रहा है। जिसके लिए सरकार को विदेशी संस्थाओं और बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है।

अगर खर्चे में कटौती नहीं हुई तो इसका खामयाजा देश को भुगतना होगा। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने भारत सरकार को आगाह किया है कि अगर सरकार खर्चे पर लगाम नहीं लगाती तो भारत की इन्वेस्टमेंट रेटिंग निगेटिव की जा सकती है। फिलहाल भारत की रेटिंग बीबीबी माइनस है जो कि स्टेबल यानी स्थिर श्रेणी में आता है।
इसके अलावा सरकार के सामने जीडीपी ग्रोथ को बढ़ाने का एक बड़ा दबाव होगा। क्योंकि सीएसओ यानी सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि भारत की आर्थिक विकास दर साल 2011-2012 में 6.9 फीसदी तक रह सकती है। जो कि पिछले तीन सालों में सबसे कम है। विकास दर में गिरावट की मुख्य वजह है मैन्युफैक्चरिंग, एग्रिकल्चर और माइनिंग सेक्टर की ग्रोथ में गिरावट की वजह से आर्थिक विकास दर में गिरावट आई है। सरकार ने पिछले बजट में 9 फीसदी आर्थिक विकास दर का लक्ष्य रखा था।

बजटीय घाटे को कम करना सरकार के लिए एक और सबसे बड़ी चुनौती है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार किसी भी देश के लिए 4 फीसदी से ज्यादा बजटीय घाटा सही नहीं माना जाता है। जबकि भारत का बजटीय घाट 6 फीसदी से ज्यादा है। यही नहीं अगर राज्यों के बजटीय घाटे से इसे जोड़ दिया जाए तो ये घाटा 10 फीसदी को पार कर जाएगा।

आर्थिक विकास दर में सुस्ती

सरकार ने 16 मार्च को बजट पेश करने का ऐलान किया है। हालांकि सरकार के सामने इस बार चुनौतियां ज्यादा हैं। मंदी की चंगुल में फंसता जा रहा है देश। अमेरिका और यूरोपीय देशों के आर्थिक संकट में फंसने का साफ असर भारत पर दिखने लगा है। आर्थिक ग्रोथ रेट का अनुमान कम हो चुका है। साथ ही स्टैडर्ड एंड पुअर्स ने एक बार फिर से भारत की रेटिंग कम करने की चेतावनी दी है।

रेटिंग ऐजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने भारत सरकार को आगाह किया है कि अगर सरकार खर्चे पर लगाम नहीं लगाती। तो भारत की इन्वेस्टमेंट रेटिंग निगेटिव की जा सकती है। फिलहाल भारत की रेटिंग बीबीबी माइनस है जो कि स्टेबल यानी स्थिर श्रेणी में आता है। भारत का व्यापार घाटा, राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा और बजटीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसी तमाम परेशानियों से सरकार कैसे निबटेगी इसका फैसला बजट 2012-2013 में होगा।

कई राज्यों में हो रहे चुनावों की वजह से वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इसबार 16 मार्चे को आम बजट पेश करेंगे।भारत की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती दिख रही है। आर्थिक विकास दर में भारी गिरावट की संभावना जताई जा रही है। भारत की आर्थिक विकास दर साल 2011-2012 में 6.9 फीसदी तक रह सकती है। जो कि पिछले तीन सालों में सबसे कम है। सरकारी आंकड़ों में ये बात सामने आई है। सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑर्गेनाइजेशन यानी सीएसओ के आंकड़ों में ये बात कही गई है। विकास दर में गिरावट की मुख्य वजह है मैन्युफैक्चरिंग, एग्रिकल्चर और माइनिंग सेक्टर की ग्रोथ में गिरावट की वजह से आर्थिक विकास दर में गिरावट आई है।

पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर 8.4 फीसदी थी। कृषि क्षेत्र में विकास दर 2011-12 में घटकर 2.5 फीसदी रहने का अनुमान है। जबकि 2010-11 में ये 7 फीसदी थी। विनिर्माण क्षेत्र में विकास दर घटकर 3.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जो कि पिछले वित्त 7.6 प्रतिशत थी। सीएसओ का जीडीपी विकास दर का अनुमान रिजर्व बैंक के अनुमान से कम है। रिजर्व बैंक ने पिछले महीने मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा में आर्थिक विकास दर 7 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। वहीं सरकार ने पिछले वर्ष फरवरी में बजट से पूर्व समीक्षा में आर्थिक विकास दर 9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। कुंद हो रही देश की आर्थिक दशा को अगर समय रहते नहीं संभाला गया तो देश एकबार फिर बुरी तरह मंदासुर की जाल में फंस सकता है। जिससे निकले में इसे वर्षों लग जाएंगे।

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

एसबीआई के डिफाउल्टर होंगे बेनक़ाब

देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक स्टेट बैंक इंडिया अब अपने डिफाउल्टरों के फोटो अखबार में छापवाने पर विचार कर रहा है। ताकि लोन ना चुकाने वालों पर उसे वापस करने का दबाव बनाया जा सके। एसबीआई से लोन लेकर उसे नहीं चुकाने वालों में कई बिजनेसमैन शामिल हैं। बैंक के बैड लोन में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कॉरपोरेट लोन की ही है। हालांकि फोटो छापने से पहले बैंक लोन ना चुका पाने वालों को नोटिस भेजेगा। ग्यारह सितंबर 2011 तक बैंक का कुल बैड लोन 33946 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। जो कि एक साल पहले तक 23205 करोड़ रुपए था। ऐसे में बड़ी-बड़ी कारों में चलने वाले और आलीशान बंगलो में रहने वालों के फोटो और नाम आने वाले दिनों अखबारों में डिफाउल्टर की मुहर के साथ दिखना आम हो जाएगा। और अगर इस बदनामी की बड़े लोगों या बिजनेसमैन को चिंता होगी तो वो समय पर ज़रुर अपना लोन देंगे या जानबूझकर डिफाउल्टरों में शुमार होने से बचेंगे। एसबीआई फिलहाल ऐसा ही सोच रही है। लेकिन ये देखने वाली बात होगी कि आज के बिजनेसमैन में बदनामी को लेकर किस तरह की भावना है।

पिरामल खरीदेगी वोडाफ़ोन में 5.5% हिस्सेदारी

पिरामल ग्रुप वोडाफोन इंडिया में 5.5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। पिरामल हेल्थकेयर के अनुसार इस हिस्सेदारी के लिए उसे 3007 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। कंपनी ये हिस्सेदारी एस्सार से खरीदेगी। इसके बाद वोडाफोन में एस्सार की हिस्सेदारी खत्म हो जाएगी। जबकि पिरामल की हिस्सेदार बढ़कर 11 फीसदी तक पहुंच जाएगी। पिरामल ग्रुप ने पिछले साल वोडाफोन-एस्सार ज्वाइंट वेंचर में से एस्सार की 5.5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। जबकि वोडाफोन ने एस्सार की 22 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। पिरामल के पास फिलहाल 100 अरब डॉलर से ज्यादा की कैश रकम है। जो कि कंपनी को अपनी दबाई बिजनेस अमेरिकी कंपनी एबोट को बेचने से मिली है।

सोने और चांदी की चमक फ़ीकी

अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमती धातुओं की चमक फीकी पड़ती जा रही है। जबरदस्त बिकवाली के दबाव में दिल्ली में सोना 600 रुपए लुढ़क गया। जिससे दिनभर के कारोबार के दौरान प्रति 10 ग्राम सोने का भाव 28040 रुपए पर जा पहुंचा। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने की कीमतों में गिरावट का असर भारतीय सर्राफा बाजार में देखने को मिल रहा है। चांदी की कीमतों पर भी बिकवाली की मार साफ दिखाई दे रही है। स्टॉकिस्टों ने चांदी में आज जमकर मुनफावसूली की। जिससे दिल्ली के सर्राफा बाजार में चांदी 1590 रुपए लुढ़क गया। बिकवाली के दबाव में प्रति किलो चांद का भाव 55650 रुपए पर जा पहुंचा।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

1 फैसले ने छीन ली 9 कंपनियों की 122 लाइसेंस!

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से टेलीकॉम कंपनियों को जरूर झटका लगा है। लेकिन टेलीकॉम रेग्युलेटर ट्राई का कहना है कि इसका असर ग्राहकों पर कम ही देखने को मिलेगा। क्योंकि जिन कंपनियों के 122 टूजी लाइसेंस रद्द हुए हैं उनके पास केवल 5 फीसदी ग्राहक हैं।

टेलीकॉम रेग्युलेटर ट्राई का कहा है कि देशभर के टेलीकॉम ग्राहकों को ज्यादा घबराने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के 122 टूजी लाइसेंस रद्द करने के फैसले से ज्यादातर ग्राहकों पर असर नहीं पड़ेगा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने जो लाइसेंस रद्द किए हैं वो 9 टेलीकॉम कंपनियों के हैं। जिनके पास केवल 5 फीसदी ग्राहक हैं। और बाकी के 95 फीसदी ग्राहक उन टेलीकॉम ऑपरेटर्स के हैं जिन्होंने 2008 से पहले 2जी लाइसेंस लिए हैं।

जिन कंपनियों के लाइसेंस रद्द हुए हैं उनके नाम हैं यूनिटेक वायरलेस (22 लाइसेंस),लूप टेलीकॉम(21 लाइसेंस),एस श्याम(21 लाइसेंस), टाटा टेली(3 लाइसेंस), एतिस्लत डीबी(15 लाइसेंस), एस टेली(6 लाइसेंस), वीडियोकॉन(21 लाइसेंस), आइडिया(9 लाइसेंस), और स्पाइस(4 लाइसेंस)। पहले आओ पहले पाओ के आधार पर इन कंपनियों को ये लाइसेंस का बंदरबांट किया गया था।

ट्राई ने कहा है कि जिस सर्किल में इन कंपनियों के पांच फीसदी ग्राहक हैं उन्हें एमएनपी का ऑप्शन होगा। यानी कि वे ग्राहक मोबाइल नंबर पोर्टेब्लिटी के जरिए एयरटेल, वोडाफोन या दूसरे ऑपरेटर में शिफ्ट करते हैं। और इसके लिए ग्राहकों को विज्ञापनों के जरिए जानकारी दी जाएगी।