शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

मारुति हड़ताल: सरकार भी कंपनी के साथ

कार बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजूकी के मानेसर प्लांट में एक बार फिर से कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं। हरियाणा के श्रम एवं रोजगार मंत्री शिवचरण लाल शर्मा ने कर्मचारियों पर कंपनी प्रबंधन के साथ किए गए समझौते का उल्लंघन करने आरोप लगाया है।

मारुति की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। कंपनी के मानेसर प्लांट में फिर हड़ताल हो गई है। इस बार सस्पेंड अस्थायी कर्मचारियों को वापस नहीं लेने पर बात बिगड़ गई है। कंपनी ने कहा है कि हड़ताल के चलते एक यूनिट में काम बंद है जिससे प्रोडक्शन पूरी तरह ठप्प हो गया है। पिछले 2 महीनों में ये दूसरा मौका है जब मारुति के मानेसर प्लांट में हड़ताल हुई है। कंपनी के इसी प्लांट में पहले भी हड़ताल हुई थी। लेकिन हरियाणा सरकार के दखल के बाद मजदूर काम पर लौट आए थे। इससे पहले मानेसर प्लांट में हुई हड़ताल 34 दिनों तक चली थी।

एक अक्टूबर को संयंत्र के कर्मचारी प्रबंधन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने को राजी हुए जिससे 29 अगस्त से शुरू हुई हड़ताल खत्म हो गई। समझौते के मुताबिक, मारुति सुजुकी इंडिया उन 18 प्रशिक्षुओं को सशर्त कंपनी में वापस रखने को सहमत हुई जिन्हें निलंबित किया गया था। हालांकि, कंपनी ने 44 नियमित कर्मचारियों की नौकरी बहाल करने से इनकार कर दिया। इन कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए इन्हें निलंबित कर दिया गया था। समझौते में कर्मचारी बेहतर आचरण के बांड पर दस्तखत करने को राजी हो गए थे जिसके तहत उन्हें अनिवार्य तौर पर यह घोषणा करनी थी कि वे धीमी गति से काम नहीं करेंगे, काम को बीच में नहीं रोकेंगे, हड़ताल से दूर रहेंगे और किसी ऐसी तोड़फोड़ गतिविधि में शामिल नहीं होंगे जिससे सामान्य उत्पादन बाधित हो।

हरियाणा श्रम विभाग की एक टीम ने मानेसर प्लांट के कर्मचारियों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि 14 अक्टूबर तक अस्थायी कर्मचारियों को कंपनी में वापस रख लिया जाएगा। जबकि कर्मचारी अस्थाई कर्मचारियों की तुरंत बहाली चाहते हैं। क्योंकि महीने भर से ज्यादा चली हड़ताल के बाद उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी है।

हरियाणा के श्रम और रोजगार मंत्रालय को कर्मचारियों का साथ देना चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि वो भी कंपनी मैनेजमेंट के साथ खड़ी है। इस देश में एक कड़े श्रम कानून की जरूरत है जो कि मज़दूरों का भला कर सके। नहीं तो कंपनियां उनका खून पीती रहेंगी। क्योंकि मारुति ने ही ऐसे-ऐसे नियमों पर कर्मचारियों की हस्ताक्षर ली है। जिसके तहत वो समय-समय पर उनपर चाबुक बरसाते रहने में कामयाब हो पाए। और उन्हें नौकरी से निकालने के लिए उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़े।

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