रुपए की कमज़ोरी से हिल गया शेयर बाजार। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया करीब तीन साल के अपने निचले स्तर पर आ चुका है। इससे शेयर बाजार में कई कंपनियों के शेयर अबतक के अपने निचले स्तर पर जा पहुंचा है। वहीं करीब साढ़े तीन सौ कंपनियों के शेयरों को गिरने से बचाने के लिए लोअर सर्किट लगाना पड़ा।
डॉलर के मुकाबले रुपया दिन ब दिन लुढ़कता जा रहा है। इससे ना केवल भारत में होने वाला आयात महंगा हो रहा है बल्कि शेयर बाजार में लिस्टेड कई कंपनियों के पसीने छूट रहे हैं। क्योंकि उन कंपनियों ने डॉलर में कर्ज ले रखे हैं। रुपए के कमज़ोर होने से ना केवल ब्याज बढ़ता है बल्कि कर्ज का बोझ भी बढ़ जाता है।
बीएसई में लिस्टेड करीब 137 कंपनियों के शेयर के भाव अबतक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचे। एनडीटीवी, नेटवर्क 18 और इंडियाबुल्स रियल एस्टेट के शेयर भी रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गए। इसके साथ ही 343 कंपनियों के शेयरों में इतनी गिरावट हुई कि लोअर सर्किट लगाकर उन कंपनियों के शेयरों में कारोबार को रोकना पड़ा। लोअर सर्किट लगने वाले शेयरों में शामिल हैं पार्श्वनाथ डेवलपर्स, पीपावाव डिफेंस, एसकेएस माइक्रोफाइनेंस, और क्वालिटी डेयरी। सबसे ज्यादा गिरने वाले शेयरों में अधिकतर मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर हैं।अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का लुढ़कना जारी है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया 45 पैसे लुढ़ककर 32 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। जिससे एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 51 रुपए 34 पैसे पर जा पहुंची है। रुपए में गिरावट का असर भारत के आयात में भी देखने को मिल रहा है। खासकर कच्चे तेल के आयात पर। क्योंकि भारत अपनी जरूरत का करीब 70 फीसदी तेल आयात करता है। और रुपए में कुछ पैसे की गिरावट के चलते तेल मार्केटिंग कंपनियों को लाखों रुपए ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है। 31 मार्च 2009 के बाद पहली बार रुपया 51 के पार गया है। इस साल जनवरी में एक डॉलर की कीमत 45 रुपए से कम थी। मार्च 2009 में ही रुपए ने डॉलर के मुकाबले 52 रुपए 18 पैसे का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ था। एक ओर चीन की मुद्रा यूआन जहां मजबूत हो रही वहीं रुपए में लगातार गिरावट जारी है। जो कि एक चिंता की बात है। रुपया दुनिया में सबसे ज्यादा लुढ़कने वाली चौथी करेंसी है। जबकि एशिया में सबसे ज्यादा रुपए में ही कमज़ोरी देखी जा रही है।
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