अपनी परेशानी को देश की परेशानी बनाने की कोशिश लगे हैं किंगफिशर के चेयरमैन विजय माल्या। सीधे तौर पर वो सरकार से बेलआउट की मांग भले ही नहीं कर रहे हैं। लेकिन राज्य सरकार और केंद्र सरकार सहित बैंकों से उन्हें बहुत कुछ चाहिए।
अगर नुकसान की बात करें तो किंगफिशर एयरलाइंस के मुक़ाबले जेट एयरवेज और स्पाइस जेट जैसे एयरलाइंस को भी काफी नुकसान हो रहा है। लेकिन ये एयरलाइंस किंगफिशर की तरह हायतौबा नहीं मचा रहे। किंगफिशर ने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींच लिया है। एक तरफ तो विजय माल्या कह रहे हैं कि उन्हें ना तो टैक्स पेयर्स के पैसे चाहिए और ना ही उन्होंने बेलआउट की कोई मांग की है। लेकिन दूसरी तर टैक्स में कमी की बात भी करते हैं।
पिछली मंदी में भी बेटआउट के तहत कई इंडस्ट्री के लिए टैक्स में कमी की गई थी। विजय माल्या भी वहीं मांग कर रहे हैं लेकिन इसे स्वीकार नहीं करना चाह रहे हैं। माल्या ने कहा कि उन्होंने घाटे में होते हुए भी यात्रियों को परेशानी नहीं होने दी।
अगर माल्या को यात्रियों की इतनी चिंता थी तो उन्हें डीजीसीए यानी डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी। जबकि कोई भी उड़ान रद्द करने या रुट बदलने के करीब हफ्ते भर पहले एयरलाइंस को ये जानकारी डीजीसीए को देनी होती है। माल्या को बेलआउट नहीं पर केंद्र और राज्य सरकारों से टैक्स में छूट चाहिए। बैंकों से वर्किंग कैपिटल चाहिए। एयरइंडिया की मांगों को लेकर और 42 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज पर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। लेकिन बिना बेलआउट मांगे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि किंगफिशर की समस्या पर वो विमानन मंत्री से बात करेंगे। ऐसे में दाल में कुछ काला लगना लाजिमी है।
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