बुधवार, 17 दिसंबर 2008
मंदी की मार दूल्हा लाचार
शनिवार, 13 दिसंबर 2008
भारत में थ्री जी की शुरूआत
काम को मिला ईनाम
रविवार, 30 नवंबर 2008
आखिर वित्त मंत्री को मिल ही गया गृह
शनिवार, 29 नवंबर 2008
कम हुई कैश फिर भी मुकेश की ऐश
बुधवार, 5 नवंबर 2008
व्हाइट + ब्लैक = रेड
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
नैनो का नया ठिकाना
मंगलवार, 30 सितंबर 2008
बेलआउट सीनेट में हुआ ऑलआउट
सोमवार, 29 सितंबर 2008
बेलआउट से पहले निवेशकों का बाउलआउट
बुधवार, 24 सितंबर 2008
अमेरिका में बन चुका है फाइनेंस का बुलबुला
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
रुपए पर भारी पड़ा डॉलर
टाटा की नैनो से पहले एप्पल की नेनो

दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग

दुनिया की सम्मानित कंपनियों में RIL

मंगलवार, 9 सितंबर 2008
भारत नौकरी देने में अव्वल
शनिवार, 6 सितंबर 2008
अरबपति बेटियां
लेबल:
अरबपति,
ईशा अंबानी,
पिया सिंह,
फोर्ब्स,
वनिशा मित्तल
सोमवार, 1 सितंबर 2008
मोबाइल कस्टमर्स को ट्राई की सौगात

शनिवार, 30 अगस्त 2008
स्वर्ग का बिजनेस गर्त की ओर
लेबल:
अमरनाथ श्राइन बोर्ड,
एप्पल,
जम्मू,
टूरिस्ट,
श्रीनगर
भारत में मोबाइल वॉर
एप्पल के आईफोन के लांच होते ही भारतीय मोबाइल बाजार में एक जंग सी छिड़ गई है। अब मोटोरोला, सैमसंग, एचटीसी, ब्लैकबेरी सहित कई मोबाइल कंपनियां अपने प्रोडक्ट लांच को लेकर लाइन में खड़ी है। साथ ही साथ 60 फीसदी भारतीय मोबाइल बाजार पर कब्जा जमाने वाली नोकिया ने तो अफरा-तफरी में आईफोन के लांच से पहले ही एन सीरीज की अपनी नई मोबाइल एन 96 को भारतीय बाजार में लांच कर दी है। ये पहली बार है जब नोकिया ने अपनी किसी प्रोडक्ट को वर्ल्ड लांच से पहले भारत में लांच किया है। जी हां, नोकिया के एन 96 को विश्वभर में अक्टूबर महीने में लांच होना था। आखिर क्या है खास इस आईफोन जिससे घबरा गई हैं मोबाइल की दूसरी कंपनियां हम बताएंगे आपको विस्तार से। साथ ही हम बताएंगे दूसरी कंपनियों ने आईफोन से टक्कर के लिए कौन-कौन से मोबाइल बाजार में उतारे हैं या उतारने की तैयारी में हैं।
आईफोन
सबसे पहले अगर बात करें एप्पल के आईफोन के स्क्रीन का तो ये काफी बड़ा है। स्क्रीन का साइज है 3.5 इंच और इसका रिजॉल्युशन है 480 इनटू 320 पिक्सेल। इस फोन में टचस्क्रीन है। यानी की स्क्रीन को छूकर आप कोई भी कमांड दे सकते हैं। इसमें बहुत पावरफुल सेंसर लगा है जो इस फोन के डिस्प्ले और टच स्क्रीन के फंक्शन को उस समय अपने आप ऑफ कर देता है। जबक इसका यूज नहीं हो रहा होता है। इसमें विजुअल व्वाइस मेल की सुविधा है। आईफोन की स्टोरेज क्षमता है 4 जीबी, 8 जीबी और 16 जीबी। इस फोन का वजन है केवल 133 ग्राम। इसके जो सबसे अहम एप्लिकेशन हैं उसमें शामिल है मेल, वेब ब्राउजर, आईपॉड, एसएमएस, कैलेंडर, फोटो, कैमरा, यूट्यूब,स्टॉक्स,गूगल मैप्स, वेदर, क्लॉक, कैलकुलेटर, नोट्स, सेटिंग्स, आई ट्यून्स। इस फोन में कई एड ऑन एप्लिकेशन भी हैं। जिसमें से कुछ फ्री है और कुछ के लिए अलग से पैसे देने होते हैं। इस फोन में केवल 2 मेगपिक्सेल का कैमरा लगा है। जिसमें ऑप्टिकल जूम नहीं है औऱ ना ही फ्लैश और ऑटोफोकस है। साथ ही आईफोन में वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा भी नहीं है। लेकिन इसमें अलग से सॉफ्टवेयर डालकर वीडियो रिकॉर्डिंग और मैसेज फॉर्वाडिंग जैसी दूसरी सभी सुविधाएं प्राप्त की जा सकती हैं। और इस फोन में एयरटेल, वोडाफोन, रिलायंस यहां तक की एमटीएनएल के सिम का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए इसके कोड को हैक करना होता है। और दिल्ली में इसके लिए हैकर मौजूद हैं। भारत में इसकी मार्केटिंग एयरटेल और वोडाफोन कर रही है। 8 जीबी वाले आईफोन की कीमत है 31000 रुपए और 16 जीबी वाले आईफोन मिलेगा 36100 रुपए में। इसके दो बेहतरीन फीचर्स जिसने दुनियाभर में इसे पॉपुलर बना दिया है वो है फास्टेस्ट इंटरनेट ब्राउजिंग और आईपॉड।
नोकिया एन96
इसके बाद बारी आती है नोकिया के एन 96 की। नोकिया के अतिआधुनिक फोन एन96 का स्क्रीन साइज है 2.8 इंच। और इसका रिजॉल्यूशन है 240 इनटू 320 पिक्सेल। इसमें टच डिस्प्ले स्क्रीन नहीं लगा है। इसे फोटोग्राफर्स के लिए खासकर डिजाइन किया गया है। इससे फोटो खींचने पर ये फोन खुद ब खुद लोकेशन लगा देता है। यानी की फोटे से जुड़ी जगहों को अब आप नहीं भूल पाएंगे। साथ ही किसी भी सीन के लिए आप सेटिंग बदल सकते हैं। साथ ही इसमें लगा है फ्लैश, सिक्वेंस, सेल्फ- टाइमर, कलर, व्हाइट बैलेंस, कंट्रास्ट और एक्सपोजर कंपोजीशन। इस फोन की स्टोरेज क्षमता है 16 जीबी का। वजन है केवल 125 ग्राम। नकिया एन 96 के दूसरे एप्लिकेशन हैं मेल, वेब ब्राउजर, मल्टीमीडिय, एसएमएस, कैलेंडर, फोटो, कैमरा, नोकिया मैप्स, वेदर, क्लॉक, कैलकुलेटर और नोट्स। इसमें कई एप्लिकेशन जोड़े जा सकते हैं। 150 देशों का मैप फ्री है। इसके मल्टीमीडिया सिटी गाइड और नेविगेटर को अपग्रेड किया जा सकता है। इसमें व्वाइस गाइडेड कार नेविगेशन लगा सिस्टम लगा सकते हैं। उसके बाद कार चलाते समय मोबाइल बताएगा आपको सही रास्ता। नोकिया एन 96 में 5 मेगापिक्सेल का कैमरा और वीडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा है। इस फोन की कीमत है करीब 32000 रुपए। इस फोन से आप 40 घंटे की वीडियो रिकॉर्डिंग कर सकते हैं।
सैमसंग इंस्टिंक्ट
एप्पल के आईफोन के टक्कर में है एक और फोन जिसका नाम है सैमसंग इंस्टिंक्ट। इस फोन का स्क्रीन साइज है 3 इंच। इसमें टच स्क्रीन है। इस फोन के कूल फीचर्स में शामिल हैं स्पीकर इंडिपेंडेंट व्वाइस डायलिंग। इस फोन के कांटैक्ट डिटेल को पीसी के साथ सिंक कर सकते हैं। यानी आपके सारे कांटैक्ट्स फीसी में सुरक्षित रहेंगे। साथ ही उसमें कोई अपडेट होने के बाद पीसी खुद ब खुद उसे अपडेट कर लेगा। इस फोन में 30 चैनल्स के म्युजिक को स्ट्रीम कर सकते हैं। इस फोन की स्टोरेज क्षमता है 2 जीबी जिसे 8 जीबी तक बढ़ाया जा सकता है। इस फोन का वजन है 120 ग्राम। सैमसंग इंस्टिंक्ट के मुख्य एप्लिकेशन हैं मेल, वेब ब्राउजर, विंडो लाइव सर्च, मल्टीमीडिया, एसएमएस, कैलेंडर, फोटो, कैमरा, ब्लैकबेरी मैप्स, वेदर, क्लॉक, कैलकुलेटर,नोट्स, बैकग्राउंड म्यूजिक प्लेइंग मोड, टीवी इनेबल्ड, ब्लुटूथ कॉलर आईडी, विजुअल व्वाइस मेल। ये फोन 2 मेगापिक्सेल कैमरा से लैस है। इसमें वीडियो रिकॉर्डिंग की भी सुविधा है। इस साल के अंत तक इस फोन को लांच किया जाएगा। सैमसंग इंस्टिंक्ट की अनुमानित कीमत है लगभग 35 हजार रुपए।
एचटीसी टच प्रो
एप्पल के आईफोन के ही प्रासइ रेंज में आता है एचटीसी का टच प्रो फोन। इस फोन का स्क्रीन साइज है 2.8 इंच। स्क्रीन का रिजॉल्यूशन है 480 इनटू 640 पिक्सेल्स। इस फोन में टचस्क्रीन है। इस फोन में जो कूल फीचर्स हैं उसमें शामिल है कस्टमाइज टचफ्लो थ्री डी। इसके जरिए एलबम, वीडियो, स्टिल और डिजिटल पिक्चर में आर्टवर्क किया जा सकता है। एचटीसी टच प्रो की स्टोरेज क्षमता है 4 जीबी। वजन है 110 ग्राम। इस फोन के प्रमुख एप्लिकेशन हैं मेल, वेब ब्राउजर, मल्टीमीडिया, एसएमएस, कैलेंडर, फोटो, कैमरा, जीपीएस इनेबल डिवाइस, एचटीसी वेदर, घड़ी, कैलकुलेटर, नोट्स और सेटिंग्स। इचटीसी के इस फोन में 3.2 मेगापिक्सेल का कैमरा है। साथ ही वीडियो रिकॉर्डिंग की भी सुविधा है। ये फोन लांच हो चुका है। इस फोन की कीमत है 32990रुपए।
ब्लैकबेरी बोल्ड 9000
आईफोन के कुछ करीब एक और फोन है। जिसका नाम है ब्लैकबेरी बोल्ड 9000...आइए देखते हैं इस ब्लैकबेरी में क्या है खास।ब्लैकबेरी की एक सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसके जरिए भेजा जाने वाला मेल सबसे ज्यादा सुरक्षित है। ब्लैकबेरी बोल्ड 9000 का स्क्रीन साइज है 2 इंच का। जिसका रिजॉल्यूशन है 480 इनटू 640 पिक्सेल्स। इसमें टच स्क्रीन नहीं है। इसके फीचर्स में शामिल है फेसबुक। स्टोरेज है 1 जीबी का। ब्लैकबेरी बोल्ड 9000 का वजन है केवल 110 ग्राम। इस ब्लैकबेरी में जो मुख्य एप्लिकेशन हैं उसमें शामिल है मॉल, वेब ब्राउजर, मल्टीमीडिया, एसएमएस, कैलेंडर, फोटो, कैमरा, ब्लैकबेरी मैप्स, वेदर, क्लॉक, कैलकुलेटर, नोट्स, एप्पल आई ट्यून। इस फोन में एडऑन एप्लिकेशन नहीं है। 2 मेगापिक्सेल का कैमरा है। साथ ही इस फोन में वीडियोरिकॉर्डिंग की भी सुविधा है। ये फोन इस साल के अंत में लांच होगा। इस फोन की कीमत होगी करीब 30 हजार से 35 हजार के बीच।





सोमवार, 30 जून 2008
महंगी हुई पढ़ाई - नहीं मिलेगा भाई
महंगाई ने बिगाड़ कर रख दिया है बच्चों का गणित...पैरेंट्स की कमाई जिस अनुपात से बढ़ रही है उससे कई गुना तेजी से बढ़ रहा बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च। लग जाता है पैरेंट्स की कमाई का 65 फीसदी एक बच्चे की पढ़ाई में। ऐसे में दूसरे बच्चे की नहीं आ रही है बारी। पैरेंट्स कह रहे हैं..बच्चा एक ही अच्छा।
महंगाई की मार इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब लोगों को समय से पहले परिवार नियोजन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। महंगाई की वजह से अब लोग दो बच्चों के बदले एक बच्चा को तरजीह दे रहे हैं। ये बात एसोचैम के एक सर्वे में सामने आई है। अब शायद ही मुन्नी को उसका भाई मिल पाएगा या गुल्लू को बहन। क्योंकि इनके माता पिता इनकी पढ़ाई पर होने वाले खर्चे से इतना परेशान हैं कि घर में दूसरा बच्चा लाने की नहीं सोच रहे।
बच्चों की स्कूली शिक्षा ले लिए माता पिता को परिवार के कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा मुहैया करना पड़ रहा है। जिसकी वजह है लगातार बढ़ती जा रही महंगाई। और इस वजह से लोग एक बच्चे से ज्यादा पैदा नहीं करना चाह रहे हैं। ये बात सामन आई एसोचैम के एक सर्वे में।
एसोचैम ने दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, देहरादून, पुणे, और बैंगलुरू जैसे शहरों में 2000 वर्किंग पैरेन्ट से बात कर इस नतीजे पर पहुंचा है। कि अब माता पिता महंगाई की वजह से बच्चे पैदा करने में कोताही बरतने लगे हैं। क्योंकि महंगाई के इस दौर में आज पैरेन्ट्स अपने टेक होम सैलरी का 65 फीसदी अपने बच्चों पर खर्च कर देते हैं। जिससे उनका फैमिली बजट बिगड़ने लगा है।
पैरेन्ट्स को साल 2000 में एक बच्चे की पढ़ाई पर साल भर 25000 रु खर्च करना पड़ता था जो कि अब बढ़कर 65000 रु पर पहुंच गया है। जबकि इस दौरान पैरेंट्स की कमाई में महज 28 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है। यही वजह है अब पैरेट्स को एक बच्चे से ही संतोष करना पड़ रहा है।
अगर बच्चों के स्कूल खर्चे की बात करें तो उनके जूते का खर्च उनकी किताबों से ज्यादा आता है। जूतों पर हर साल 3500 रु खर्च होते हैं जबकि टैक्स्ट बुक पर केवल 3000 रु खर्च होते हैं। बैग और बोटल्स में हर साल 1500 रुपए खर्च होते हैं। स्पोर्ट्स किट पर 2000 रु और स्कूल ट्रिप्स पर हर साल 2500 रु खर्च होते हैं। स्कूल क्लब पर 1500 और टेक्नोलॉजी पर 1500 रुपए खर्च होते हैं। खर्च का एक बड़ा हिस्सा करीब 32800 रु जाता है पैक लंच, ट्रांसपोर्ट और ट्यूशन पर। बिल्डिंग फंड के लिए हर बच्चे से 1000 रुपए लगते हैं। जबिक दूसरे किरए के लए 3000 रु और स्टेशनरी और न्यूज पेपर के लिए 3000 रुपए खर्च करने होते हैं।
महंगाई की आड़ में महंगाई से दो गुना महंगी होती जा रही पढ़ाई से पैरेंट्स परेशान हैं। 60 फीसदी पैरेंट्स की शिकायत है कि एजुकेशन आज कमर्शियल बिजनेस बन चुका है।
एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में करीब 3 करोड़ बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। और डे स्कूल के हर बच्चे पर हर साल 60000 रु पैरेंट्स को खर्च करना पड़ रहा है। जबकि 3 से 5 साल के बच्चों पर पर पैरेंट्स को हर साल 25000 रु खर्च करना पड़ रहा है। जिसने न्यूक्लियस फैमली की नींव हिला कर रख दी है। ऐसे में अब पैरेंट्स एक बच्चे से आगे परिवार बढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं पर रहे हैं। मजबूरी में ही सही पर कहना पड़ रहा है..एक बच्चा सबसे अच्छा।
शुक्रवार, 27 जून 2008
बिल की विदाई
दुनिया का सबसे अमीर आदमी बिल गेट्स आज माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन का पद छोड़ेंगे। दुनिभर में आईटी क्रांति लाने वाले बिल गेट्स इस पद पर भले ही ना रहें लेकिन उन्हें लोग हमेशा याद करेंगे।
आज दुनिया के 90 फीसदी से भी ज्यादा डेस्कटॉप पर होने वाला काम माइक्रोसॉफ्ट विंडो में होता है। और दुनिया की लगभग सभी वर्ड प्रोसेसिंग डॉक्यूमेंट्स, स्प्रीडशीट्स माइक्रोसॉफ्ट सॉफ्टवेयर पर काम करता है। और इनसब के पीछे जिसका हाथ है उसका नाम है बिल गेट्स।
अपनी कंपनी को बुलंदी पर पहुंचाने वाले बिल गेट्स ने 1975 में माइक्रोसॉफ्ट की शुरूआत अपने दोस्त पाउल ऐलेन के साथ मिलकर की। उस समय बिल गेट्स की उम्र 20 साल थी और वो हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में फेल कर गए थे। इसलिए उन्हें यूनिवर्सिटी से बाहर होना पड़ा था।
बिल गेट्स ने अपने दोस्त पाउल के साथ मिलकर शुरुआती बेसिक प्रोग्रामिंग ऑल्टेयर 8800 माइक्रोकम्प्यूटर के लिए की। बेसिक के साथ दो और प्रोग्रामिंग के जरिए शुरूआती तीन सालों में ही बिल गेट्स ने अपनी पहली मिलियन डॉलर की कमाई की।
1994 तक बिल गेट्स 9 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति के साथ अमेरिका के सबसे अमीर आदमी बन गए। और तब उन्होंने डलास में रहने वाली मिलिंडा से शादी की। और अगले ही साल इनकी संपत्ति में करीब 4 अरब डॉलर का इजाफा हो गया और ये दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए।
बिल गेट्स 2005 में भारत आए औऱ यहां करीब 13 अरब डॉलर की निवेश का ऐलान किया।
आज बिल गेट्स के पास 58 अरब डॉलर की संपत्ति है। लेकिन इसे वो अपने बच्चों को नहीं देकर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए बनाए गए बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन को देने का ऐलान किया है। गेट्स ने कहा कि वो अपनी संपत्ति को फिर से उस सोसाइटी में बांट देना चाहते हैं जहां उसका ज्यादा असर हो पाए।
साल 2006 में बिल गेट्स ने घोषणा की थी कि वो दो साल बाद माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन पद छोड़ देंगे। और आज 52 साल की आयु में वो पद से सदा के लिए दूर हो जाएंगे। उनका स्थान लेंगे स्टीव वाल्मर।
आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट को हर हफ्ते मुनाफा होता है 40 अरब रुपए। जो कि आईटी की सेक्टर की एक बड़ी कंपनी गूगल से चार गुणा ज्यादा है।
दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनाने वाला, दुनिया का सबसे अमीर आदमी और चैरिटी में दुनियाभर में सबसे ज्यादा पैसा देने वाले बिल गेट्स आज भले ही माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन का पद छोड़ देंगे। लेकिन दुनियाभर में लोग शायद उन्हें कभी नहीं भुला पाएंगे। क्योंकि दुनियाभर में छा जाने वाली आईटी क्रांति बिल गेट्स के बगैर संभव नहीं थी।
गुरुवार, 19 जून 2008
होंडा की हाइड्रोजन कार

पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में बढ़ोतरी के बाद आपका कार चलना और महंगा भले ही हो गया हो। लेकिन इससे आपको निजात मिल सकती है। हम बात कर रहे हैं एक ऐसी कार की जो पेट्रोल और डीज़ल से नहीं चलेगी यानी आपकी जेब पर नहीं भारी पड़ेगी। जी हां, होंडा ने नेक्टक्स जेनरेशन कार बनाने में बाजी मार ली है। जापानी कंपनी होंडा ने एक ऐसी कार बनाई है जो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी। क्योंकि इस गाड़ी से कार्बन डायऑक्साइड या कोई ग्रीन हाउस गैस नहीं निकलती है। क्योंकि ये गाड़ी हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिसिटी पर चलती है। इस गाड़ी से पानी का इमिशन होता है। होंडा ने इस गाड़ी का नाम एफसीएक्स क्लेरिटी दिया है। हाइड्रोजन कार की लांच पर होंडा मोटर्स के प्रेसिडेंट ताकियो फुकू ने कहा-

होंडा के इस नेक्सट जेनेरेशन कार एफसीएक्स क्लेरिटी को खरीदने का मौका फिलहाल कुछ ही लोगों को मिला है। जिसमें हॉलीवुड के कई नाम शामिल हैं। और उसी में एक नाम शामिल है अभिनेत्री लॉरा हैरिक की। लॉरा हैरिस ने हाइड्रोजन कार मिलने पर खुशी जताते हुए कहा-

हाइड्रोजन की एक टैंक फुल करा देने पर ये कार 270 मील तक चलेगी। एक गैलन गैस में ये 74 मील की दूरी तक करेगी। होंडा की इस एफसीएक्स क्लेरिटी की स्पीड 100 मील प्रति घंटा है। जापान और अमेरिका में पहले तीन साल तक होंडा अपनी इस 200 कार को लीज पर चलाएगी। और इसके बदले करीब 25 हजार रुपए महीना लेगी।
दुनिया की सबसे बड़ी कार बनाने वाली कंपनी जेनरल मोटर्स को पीछे छोड़ते हुए जापानी कंपनी होंडा ने एक सफल हाइड्रोजन कार बनाने में बाजी मार ली है। हालांकि इस कार को भारत आने में अभी समय लगेगा। क्योंकि होंडा ने अभी हाइड्रोजन कार से कुछ कदम पीछे की हाइब्रिड कार ही भारतीय बाजार में लांच किया है।
बुधवार, 18 जून 2008
हाय ! हाइब्रिड कार...वेलकम टू इंडिया
लगातार महंगी होती जा रही पेट्रोल और डीजल पर से निर्भरता कम करने और ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए कार कंपनियां हाइब्रिड कार बनाने पर जोर दे रही हैं। भारत में आज पहली हाइब्रिड कार लांच हो गई। जिसे लांच किया किया है जापान की कंपनी होंडा ने। इसकी कीमत है साढ़े इक्कीस लाख रुपए।
कार बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी टोयोटा सहित दुनियभर की ज्यादातर कंपनियों में हाइब्रिड कार बनाने की होड़ में लगी हुई है। और कुछ कंपनियों की हाइब्रिड कारें तो दुनियाभर में काफी पॉपुलर हो चुकी हैं। टोयोटा प्रियस के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। जिसकी कीमत है करीब नौ लाख रुपए हैं। ये कीमत विदेशों में है भारत आने पर इसकी कीमत करीब 100 फीसदी बढ़ जाएगी। प्रियस एक सेडान हाइब्रिड कार है। जिसकी माइलेज है 46 मील प्रति गैलन। यानी करीब 20 किलोमीटर प्रति लीटर। इसका स्पीडोमीटर जीरो से 60 किलोमीटर की स्पीड केवल 10 सेकेंड में पकड़ती है।
होंडा सिविक हाइब्रिड कार की भारत से बाहर कीमत है करीब साढ़े नौ लाख। माइलेज है 18 किमी प्रति घंटा। इंजन की ताकत है 110 हॉर्स पॉवर। निसान अल्टीमा के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। ये भी एक सेडान कार है। जिसकी दूसरी देशों में कीमत है करीब सवा दस लाख रुपए। जानकार इसे टोयोटा हाइब्रिड कार की निसान की पैकेजिंग मानते हैं। इसकी माइलेज है 15किमी प्रति लीटर।
फोर्ड स्केप के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। ये एक स्पोर्ट यूटिलिटी व्हेकिल है। जिसकी माइलेज है 14 किलोमीटर प्रति लीटर।
लैक्सस आरएक्स 400 एच के नाम से हाइब्रिड कार बनाती है। जिसकी कीमत है करीब 17 लाख रुपए। भारत में ये कीमत करीब दोगुनी हो जाएगी टैक्स की वजह से। माइलेज है करीब 9 किलोमीटर प्रति लीटर। ये एक एसयूवी है।
कार कंपनियों का मानना है कि आने वाला जमाना हाइब्रिड कारों का है। इसलिए कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। कार कंपनियों की इस होड़ से पेट्रोल और डीजल पर निर्भरता कुछ कम होगी। साथ सड़कों पर धूम मचाते हुए लोग शुद्ध हवा में सांस ले पाएंगे।
अब जानते हैं हाइब्रीड की परिभाषा। आखिर हाइब्रिड है क्या।..दो या दो से अधिक एनर्जी से चलने वाले मोटर्स को हाइब्रीड कहते हैं। हमलोगों ने कहीं न कहीं हाइब्रीड गाड़ी जरूर देखा होगा। याद कीजिए मोपेड को। ये भी एक हाइब्रीड गाड़ी है। मोपेड यानी मोटोराइज्ड पैडल बाइक। जिसमें पेट्रोल और पैडल की एनर्जी का यूज होता है। इसी तरह विदेशों में बड़ी बड़ी कमर्शियल गाड़ियां और बसें हाइब्रीड सिस्टम पर चलती हैं। यानी उसमें डीजल और इलेक्ट्रिक पॉवर साथ साथ रहता है। जहां तक बिजली की तार मिलती है वहां तक बसें बिजली से चलती हैं और जहां बिजली खत्म होती है वहां से डीजल से चलने लगती है। ठीक ऐसे ही अगर कोलकाता के ट्रॉम की इंजन हाइब्रिड कर दी जाए तो उसका दायरा और बढ़ जाएगा। समुद्र में चलने वाली ज्यादातर सबमरीन भी हाइब्रीड इंजन से चलती हैं। क्योंकि उसमें न्यूक्लियर पॉवर और इलेक्ट्रिक पॉवर का यूज होता है।
आखिर क्यों जरूरत हुई हाइब्रिड कार की। प्रति लीटर पेट्रोल भराने के लिए कभी आपको 30 रुपए खर्च करने होते थे। जो अब 35 रुपए 40 रुपए से आगे निकल 50 रुपए पर जा पहुंचा है। साथ ही इससे निकले बाले धूएं से पर्यावण को नुकसान होता है सो अलग। ऐसे में कार बनाने वाली दुनियाभर की कंपनियों ने हाइब्रिड कार की ओर रुख कर लिया है। कुछ कंपनियां केवल इलेक्ट्रिक कार भी बना रही हैं। लेकिन इलेक्ट्रिक कारों को ज्यादा सफलता नहीं मिल पाईं हैं। क्योंकि 80 से 161 किलोमीटर चलने के बाद इलेक्ट्रिक कार को चार्ज करना पड़ता है। और इसकी चार्ज करने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। स्पीड कम होने की वजह से ट्रैफिक में तालमेल बिठाने की समस्या होती है। हालांकि इससे प्रदूषण नहीं फैलता है।
जबकि एक ट्रेडिशनल कार की टैंक एक बार फुल कराने पर करीब 500 किलोमीटर के लिए आप निश्चिंत हो जाते हैं। साथ ही इसकी री फ्युलिंग काफी आसान है। और ट्रैफिक में तालमेल भी अच्छा है। हालांकि ये ज्यादा तेल पीती हैं और धुआं भी उगलती हैं। ऐसे में ऑटो कंपनियों को हाइब्रिड कार में फ्यूचर दिख रहा है। क्योंकि हाइब्रिड इंजन फ्यूल के साथ ही इलेक्ट्रिक से भी चलता है। और एक बार टैंक फुल करने पर 700 किलोमीटर के बाद ही री फ्यूलिंग की जरूरत होती है । साथ ही इससे पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम होगी और पर्यावरण भी कम दूषित होगा। यानी कम पैसे में कम धुआं लेकिन ज्यादा दूर तक सवारी भला किसे पसंद नहीं आएगा।
शनिवार, 14 जून 2008
एमटीएन-आरकॉम के बीच आरआईएल
अनिल अंबानी के रिलायंस कम्युनिकेशंस और दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के बीच करार को लेकर चल रही बातचीत के चलते रिलायंस इंडस्ट्रीज और आरकॉम के बीच तलवारें खिंच गई हैं। अनिल अंबानी की कंपनी आरकॉम ने आरोप लगाया है कि एमटीएन के साथ चल रही उनकी डील में मुकेश अंबानी की कंपनी आरआईएल टांग अड़ा रही है। अफ्रीकी कंपनी एमटीएन और आरकॉम के बीच मर्जर को लेकर एक्सक्लुसिव बात चीत चल रही है। जिसमें एमटीएन आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी लेने पर विचार कर रही है।
लेकिन इस बीच आरआईएल ने एमटीएन को ये जानकारी दी कि आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी बेचने से इंकार करने का पहला अधिकार उनके पास है। आरकॉम ने आरआईएल के इस दावे को बेबुनियाद कहा है। और इसे एमटीएन-आरकॉम डील के बीच रोड़े अटकाने की कोशिश कहा है। अनिल अंबानी के एडीएजी ग्रुप के अनुसार आरकॉम की तरक्की को आरआईएल नहीं पचा पा रही है। इसलिए इस डील को किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहते हैं।
अनिल-मुकेश आमने-सामने
- अनिल ने मुकेश पर लगाया आरकॉम-एमटीएन डील में टांग अड़ाने का आरोप
- आरआईएल ने एमटीएन को कहा वो आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी नहीं ले सकती
- आरआईएल ने कहा कि आरकॉम में बड़ी हिस्सेदारी बेचने से इंकार करने का पहला अधिकार उनके पास है
- आरकॉम ने आरआईएल के दावे को बेबुनियाद करार दिया
- एडीएजी के अनुसार आरकॉम की तरक्की से जल रहे हैं मुकेश अंबानी
- दोनों भाइयों में बंटवारे से पहले आरकॉम आरआईएल के अधीन था
- 12 जनवरी 2006 को मुकेश ने आरकॉम में मालिकाना हक बेचने से इंकार करने का अधिकार अपने पास रख लिया
- हालांकि बांबे हाईकोर्ट ने 15 अक्टूबर 2006 को आरआईएल अधिकार को खारिज कर दिया
- आरकॉम में अनिल अंबानी और प्रोमोटरों की 66 फीसदी हिस्सेदारी
- आरकॉम-एमटीएन मर्जर के बाद दुनिया 6 सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियों में शुमार हो जाएगी
- एमटीएन-आरकॉम के पास 11 करोड़ 60 लाख कस्टमर्स
दोनो भाइयों में बंटवारे से पहले आरकॉम में मालिकाना हिस्सेदारी बेचने या ना बेचने का अधिकार आरआईएल ने अपने पास रख लिया था। और 12 जनवरी 2006 को एक दस्तावेज पर इससे जुड़े लोगों के हस्ताक्षर ले लिए थे। क्योंकि उस समय आरकॉम पर मालिकान हक आरआईएल का हुआ करता था। हालांकि बांबे हाई कोर्ड ने 15 अक्टूबर 2006 को आरआईएल के इस समझौते को गलत करार कर दिया था। फिलहाल आरकॉम में अनिल और प्रोमोटरों की हिस्सेदारी 66 फीसदी है। अगर आरकॉम-एमटीएन मर्ज होती है तो ये दुनिया की छठी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन जाएगी। और इसके कस्टमर्स की संख्यां करीब 12 कोरड़ तक पहुंच जाएगी।
सूत्रों के अनुसार रिलायंस कम्युनिकेशन और एमटीएन के बीच डील पर समझौता लगभग हो चुका है। और बहुत जल्द इसका ऐलान किया जाना था। अनिल अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन को अफ्रीकी टेलीकॉम कंपनी एमटीएन का सब्सिडियरी बनाने पर सहमति दे दी है।
रिलायंस कम्युनिकेशन एमटीएन सौदा तय ?
- सूत्रों के अनुसार अनिल अंबानी ने आरकॉम को एमटीएन की सब्सिडी बनाने पर सहमति दे दी है
- अनिल आरकॉम में अपनी दो तिहाई शेयर एमटीएन को सौपेंगे
- अलग से 5 अरब डॉलर कैश एमटीएन को देने होंगे
- अनिल को एमटीएन की करीब 40 फीसदी शेयर मिलेंग
- रिलायंस कंम्युनिकेशन का करीब 25 फीसदी शेयर भी अनिल अंबानी के पास होगा
- बहुत जल्द इस सौदे का ऐलान हो सकता है
इसके लिए अनिल अंबानी को रिलायंस कम्युनिकेशन में अपनी दो तिहाई हिस्सेदारी एमटीएन को देनी होगी। और इसके अलावे 4 से 5 अरब डॉलर कैश भी एमटीएन को देना होगा। तब अनिल अंबानी एमटीएन में करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी ले पाएंगे। इसके साथ ही अनिल अंबानी के पास रिलायंस कम्युनिकेशन में भी सबसे बड़ी हिस्सेदारी बरकरार रहेगी। लेकिन आरकॉम पर मालिकाना हक एमटीएन का होगा। हालांकि मुकेश अंबानी के इस मर्जर के बीच कूद जाने से आरकॉम-एमटीएन सौदे में काफी मुश्किलें सामने आ सकती हैं।
गुरुवार, 22 मई 2008
ब्रांडेड तेल का खेल
अब भले ही तेल कंपनियों ने सिर्फ ब्रांडेड तेल बेचने के विचार को फिलहाल ठंढे बस्ते में डाल दिया है लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसा सोचने पर वो मजबूर क्यों हैं। अगर पेट्रोल और डीजल की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों देश के सभी मैट्रो सहित बैंगलुरू और पुणे जैसे कुछ 18 शहरों में केवल ब्रांडेड डीजल और पेट्रोल बेचती हैं तो जाहिर तौर पर उनका नुकसान थोड़ा कम होगा।
लेकिन ऐसा होने पर इन शहरों में रहने वाले लोगों को प्रति लीटर पेट्रोल पर तीन से चार रुपए ज्यादा खर्च करने होंगे। जबकि प्रति लीटर डीजल पर दो से सवा दो रुपए ज्यादा खर्च करने होंगे। सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का विचार है कि देश के प्रमुख शहरों में केवल ब्रांडेड पेट्रोल और डीजल पर ही जोर दिया जाए। ये कंपनियां ज्यादा से ज्यादा मात्रा में ब्रांडेड तेलों की सप्लाई इन शहरों में बढ़ा चुकी हैं।
डीजल के भाव (रु/लीटर)
----------साधारण ----------ब्रांडेड
दिल्ली---- 31.76--------- 35.76
कोलकाता- 33.92------ ---37.92
मुंबई- ----36.08--------- 40.08
चेन्नई --- 34.40-------- -38.40
पेट्रोल के भाव (रु/लीटर)
----------साधारण---------ब्रांडेड
दिल्ली- ---45.52---- ---47.52
कोलकाता- 48.95--- ----50.95
मुंबई----- 50.51--------52.51
चेन्नई---- 49.61------- 51.61
इंडियन ऑयल का ब्रांड है प्रीमियम, जबकि भारत पेट्रोलियम के ब्रांडेड तेल स्पीड के नाम से बिकते हैं। वहीं हिंदुस्तान पेट्रोलियम पॉवर ब्रांड के नाम से पेट्रोल और डीजल बेचती है। ऐसे में ब्रैंडेड तेल, जिनकी कीमतों की लगाम कंपनियों के हाथ में होगी, और समय पड़ने पर बिना सरकार को मुंत ताके कंपनियां इनकी दाम बढ़ा पाएंगीउनकी ज्यादा बिक्री से उनका नुकसान कम होगा क्योंकि हर लीटर साधारण पेट्रोल पर उन्हें 24 रुपए और साधारण डीजल पर 17 रुपए प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है।
दुनिया जाए तेल लेने
कच्चे तेल के लिए जल्द मारा मारी शुरू होने वाली है। जिस तरह तेल की कीमतों में आग लगी हुई है उससे तो ऐसा ही लग रहा है। अमेरिका में कच्चे तेल के भंडारण में कमी और यूरो के मुकाबले डॉलर की कमजोरी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 135 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। बढ़ती कीमतों की वजह से अमेरिका ने पिछले पांच महीनों सबसे कम तेल आयात किया है। जिससे उसकी भंडारण क्षमता में 54 लाख बैरल की कमी आई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में केवल इस महीने तेल की कीमतों में 19 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि जनवरी से अबतक तेल की कीमतों में करबी 50 डॉलर का इजाफा हुआ है। 30 जनवरी को एक बैरल कच्चे तेल की कीमत थी 91 डॉलर। 22 फरवरी को कीमत 98 डॉलर पर पहुंच गई। 5 मार्च को सौ का आंकड़ा पार करते हुए प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 104 डॉलर पर पहुंच गई। जबकि 16 अप्रैल को प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत थी 114 डॉलर। जो कल यानी 21 मई को 135 डॉलर प्रति बैरल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई।
बढ़ती तेल की कीमतों की वजह से सरकारी तेल कंपनियों को भारी नुकसान उठान पड़ रहा है। लेकिन केवल एक साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव और सहयोगी वामपंथी दलों के दवाव के कारण सरकार तेल की कीमत नहीं बढ़ा पा रही है। लेकिन दबाव लगातार बना हुआ है। आठ से ऊपर की ग्रोथ रेट वाले चीन और भारत जैसे देशों में सबसे ज्यादा तेल की खपत बढ़ रही है। भारत की तीन प्रमख तेल मार्केटिंग कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन यानी आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को हर दिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। लेकिन अगर सरकार चाहे तो उनकी परेशानी कम हो सकती है और आम लोगों को तेल की बढ़ती कीमतों की मार भी नही सहनी पड़े। इसके लिए कस्टम ड्यूटी को कम करना होगा। वामपंथी पार्टियां भी इसकी मांग कर रही हैं। लेकिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम इस बात से सहमत नहीं हैं। क्योंकि वित्त मंत्रालय को कस्टम डयूटी से बहुत बड़ी रकम मिलती जो कि देश की बजट के लिए अहम है।
दुनिया के कुल तेल जरूरतों की 40 फीसदी तेल ओपेक(तेल उत्पादक देशों के संगठन) स्पलाइ करती है। लेकिन फिलहाल ओपेक ने भी उत्पादन बढ़ाने के कोई संकेत नहीं दिए हैं। दुनियाभर में अफरा तफरी मची है लेकिन ओपेक ने अपना सिड्यूल बैठक समय से ही करने का यानी सितंबर में करने का फैसला किया है। अब उसी बैठक में सप्लाइ पर फैसला हो पाएगा।
एक जमाना था जब तेल के लिए अमेरिका किसी भी देश पर हमला कर देता था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। या हो सकता है अमेरिका अभी चुनावों में बिजी हो। लेकिन इतना तो तय है कि अब पहले वाली बात नहीं रहेगी। आजकल डॉलर अपनी चमक खोती जा रही है। तेल उत्पादक देश पहले जहां डॉलर के मुकाबले किसी दुसरी करेंसी में तेल नहीं बेचना चाहते थे। आज हंसी-खुशी यूरो में तेल बेच रहे हैं।
तेल की समस्या फिलहाल भारत के लिए काफी कस्टकर है। क्योंकि तेल की लगाम थामें बगैर विकास की रफ्तार नहीं पकड़ी जा सकती है। अब जरूरत आ गई है भारत-ईरान तेल पाइप लाईन की। सरकार को जल्द से जल्द इसपर फैसला लेना चाहिए। नहीं तो बैलगाड़ी के सहारे हम विकासशील से विकसित नहीं हो पाएंगे।
बुधवार, 21 मई 2008
ब्लॉग से करें कमाई
ज्यादा से ज्यादा लोंगों तक अगर अपनी बात सीधी पहुंचानी हो तो ब्लॉग से बेहतर कोई और दूसरा जरिया नहीं हो सकता। और तुरंत उसपर फर्स्टहैंड रिएक्शन भी मिल जाता है। आखिर क्या है ब्लॉगिंग?
इक्कीसवीं सदी के महानायक यानी बिग बी अमिताभ बच्चान हों या मिस्टर पर्फेक्शनिस्ट आमिर खान ब्लॉग की जादू से नहीं बच पाए। ब्लॉग कम्युनिकेशन का एक ऐसा जरिया है जिससे अपनी दिल की बात सीधा दूसरों के पास पहुंचाया जा सकता है। साथ ही दुनिया के किसी भी मुददे पर अपनी बेबाक राय रखी जा सकती है। क्योंकि ब्लॉग लिखने वाला खुद ही एडिटर होता है खुद ही मालिक होता है। इसलिए उसे अपनी स्टोरी पर कैंची चलने का डर नहीं सताता है। साथ ही वो दुनिया की किसी बुराई के खिलाफ खुलकर लिख सकता है।
दुनियाभर के फिल्मी हस्तियों के अलावे कई जाने माने पत्रकार अपनी ब्लॉग चलाते हैं। एक अमेरिकी पत्रकार ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के अत्याचार को जब अपने पोस्ट में प्रकाशित करना चाहा। तो उसे एडिटर के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद उसने नौकरी रिजाइन कर अपना ब्लॉग शुरू किया। जहां आज लाखों लोग विजिट करते हैं। यानी ब्लॉग की सच्चाई अब हर किसी को समझ में आने लगी है।

बिग ब्लॉगर
तभी तो सदी के महानायक हर दिन ब्लॉग लिख रहे हैं। और कुछ महीनों में ही बिग बी अमिताभ बच्चन ब्लॉग के भी बादशाह हो गए हैं। आज उनके ब्लॉग, ब्लॉग्स डॉट बिग अड्डा डॉट कॉम पर हर दिन लाखों लोग विजिट करने लगे हैं। 500 से हजार लोगों की तो कमेंट्स उन्हें हर दिन पढ़ने को मिल जाता है।

मल्लिका-ए-ब्लॉग
लेकिन ब्लॉग की मल्लिका कहा जाता है चीनी अभिनेत्री शू चिंगलइ को। शू चिंगलाइ चीनी भाषा में ब्लॉग लिखती हैं। वो मात्र 33 साल की हैं लेकिन अपने अभिनय, गायन,निर्देशन और बलॉगिंग के जरिए लाखों लोगों के दिलों पर राज करती हैं। केवल पौने दो सालों में शू के ब्लॉग को साढे 10 करोड़ लोगों ने पढ़ा है।
आजकल कई कंपनियां ब्लॉग के जरिए अपने उत्पादों को प्रमोट कर रही हैं। और बाकायदा ब्लॉग लिखने वालों को नौकरी पर रख रही हैं। दूसरी नौकरियों में भी ब्लॉग का बहुत अहम स्थान बना गया है। नौकरी की तलाश करने वाला कोई आदमी अगर ब्लॉग लिखता है तो एचआर डिपार्टमेंट ब्लॉग पढ़कर नौकरी पाने वालों की अच्छाई और बुराई को अच्छी तरह से जान लेता है। उसके बाद तय करता है कि नौकरी उसके लायक है या नहीं।
ब्लॉग कमाई का भी एक जरिया बन गया है। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने एड उन ब्लॉग को देते हैं जो ज्यादा से ज्यादा पढ़े जाते हैं। हालांकि कुछ लोग ब्लॉग को स्पॉयल कर भी कमाई कर रहे हैं। इस तरह की कमाई करने वाले लोगों को स्पलॉगर कहते हैं। स्पलॉगर वो होते है जो फर्जी नामों से हजारों ब्लॉग तैयार करते हैं और उनपर कहीं कहीं से चोरी कर अपना पोस्ट डालते रहते हैं। और उनपर आने वाले एड से लाखों की कमाई करते हैं। हालांकि हमलोग भी किसी आर्टिकल को अच्छी तरह लिखने के लिए इधर उधर से जानकारी जुटाते हैं। जैसा कि मैने इस लेख को लिखने के लिए कुछ जानकारी देश-दुनिया डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम से जुटाई है। लेकिन स्पलॉगर केवल कॉपी पेस्ट कर अपना काम चला लेते हैं।
आज ब्लॉग को कई तरह की भाषाओं में एक क्लिक मात्र से ट्रांसलेट किया जा सकता है। जिससे इसकी पहुंच कई गुणा बढ़ गई है। आपके ब्लॉग दुनिया के किस कोने में देखी जा रही है। इसे जानने के लिए भी कई फ्री टूल्स इंटरनेट पर उपलब्ध है। जिससे आपको ये अंदाजा लग जाएगा कि आपका ब्लॉग दुनिया के किस कोने तक पहुंच रखता है।
आज का जमाना पालतू लोगों के लिए बना है। जिसे आप फालतू भी कह सकते हैं। अगर आपको विश्वास न हो तो ऑफिस में अपनी चारों ओर नजर घुमा कर देख लीजिए। आपको लगेगा की हर कुर्सी से चिपका हुआ है एक पालतू आदमी। अपनी अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में। सही को गलत बोल रहा है। हंसी न आने पर भी हंस रहा है। क्योंकि उसका बॉस हंस रहा होता है। ऐसे में ब्लॉग एक क्रांति से कम नहीं है। कम से कम अपनी बात खुलकर यहां रखा तो जा ही सकता है। साथ ही अगर आप अच्छी बातें लिखते हैं तो इतना तय है कि आने वाले दिनों में आपकी कमाई भी होने लगेगी। क्योंकि आपके ब्लॉग पर होने वाली हर क्लिक को कोई देख रहा है। जो वहां अपना एड देने को बेताब है।
गुरुवार, 15 मई 2008
लाल हुआ पिंक सिटी
एक के बाद एक आठ बम धमाकों से राजस्थान की राजधानी जयपुर थर्रा उठा। पच्चास से ज्यादा बेकसूर लोग मारे गए। आतंकियों ने राजस्थान को इसलिए भी चुना क्योंकी दुनिया की ज्यादातर देशों में लोग जयपुर को जानते हैं। वर्ल्ड टूरिज्म में जयपुर की अलग पहचाना है। देश में होने वाली टूरिज्म की कुल कमाई का एक बड़ा हिस्सा जयपुर से आता है। साथ ही जयपुर में ऐसी बहुत सी इंडस्ट्री है जिसके सुस्त पड़ जाने या बंद हो जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ झटका लग सकता है।पहड़ी किलों से घिरा राजस्थान की राजधानी जयपुर का देश के टूरिज्म इंडस्ट्री में अहम स्थान है। इसलिए इसे गोल्डेन ट्रेंगल का हिस्सा बनाया गया है। जहां हर साल लाखों की संख्यां में सैलानी आते हैं। जो राज्य सरकार की कमाई का एक बहुत बड़ा जरिया है। इसके अलावे जयपुर में कई इंडस्ट्री भी हैं।
बड़े और मध्यम स्तर की यहां 48 कंपनियां हैं। जबकि छोटे स्तर की 19544 कंपनियां हैं। जो कि जयपुर की 19 इंडस्ट्रीयल एरिया में फैली हुई हैं। जयपुर में 1300 करोड़ रुपए के महंगे पत्थरों का कारोबार हर साल होता है। केवल पन्ना की कटिंग और पॉलिसिंग से जयपुर को हर साल 300 करोड़ रुपए कीकमाई होती है।
जयपुर के मुख्य इंडस्ट्रीयल प्रोडक्ट हैं
ग्रेनाइट स्लेब्स और टाइल्स, लकड़ी के सामान, पॉटरी, डाइंग और प्रिटिंग, हाथ से बना पेपर, हैंडीक्राफ्ट, हैलोजन ऑटो बल्ब, पर्फ्युम्स, पीवीसी फुटवीयर,कैनवस शूज,पोर्टलैंड सीमेंट, रेडीमेड कपड़े, सिंथेटिक शूटिंग एंड शर्टिंग,रिफाइंड तेल, वनस्पति घी, सूजी, गेहूं का मैदा, सिंथेटिक लेदर।
जयपुर से निर्यात किए जाते हैं
पीतल के समान, जेम्स एंड ज्वैलरी, ग्रेनाइट टाइल्स, हैंडलूम, मार्बल, टेक्सटाइल और प्रिंडेट कपड़े, रेडीमेड कपड़े और वूलेन कार्पेट।
धमाके के बाद कई टूरिस्टों ने अपनी टिकट कैंसिल करा ली। जिससे राज्य के राजस्व पर नाम मात्र का ही असर होगा। धमाके के दो दिन बाद ही आम जिंदगी पटरी आ गयी है। जससे लगता है कि उद्योग धंधों को ज्यादा नुकसान होने की गुंजाइश नहीं है। लेकिन लोगों की अमूल्य जिंदगी की शायद ही भरपाई हो पाएगी। अब सरकार को चाहिए की हर धमाके के बाद किसी संदिग्ध की स्केच बनाकर उनकी लकीरों पर रोटी न सेंकते हुए कोई ठोस कदम उठाए। और एक के बाद एक धमाके के लिए किसी राज्य या किसी खुफिया तंत्र की नाकामी पर कीचर उठाने की बजाए एक अलग पर मजबूत फेडरल सिस्टम की गठन की सोचे।
दवा के रूप में ज़हर
दवा जब काम न करे तो दुआ काम करती है। लेकिन जरा सोचिए अगर दवा ही जहर बन जाए तो क्या दुआ काम करेगी। जी हां यही है हकीकत...भारत में बिकने वाली हर पांच दवाओं में से एक नकली है। जो या तो बेअसर है या एकदम उल्टा असर करता है। एसोचैम की एक सर्वे में ये बात सामने आई है। सबसे ज्यादा नकली दवाओं का करोबार देश की राजधानी दिल्ली से सटे राज्यों में हो रहा है। सर्वे के अनुसार गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव और सोनीपत नकली दवा बनाने का गढ़ बन गया है। यहां बनने वाली दवाओं से न केवल मरीजों को अपनी जीवन से खेलना पड़ रहा है। बल्कि असली दवा कंपनियों की कमाई में भी 25 फसीदी की सेंध लगा रहा है। ज्यादा पॉपुलर और अधिक बिकने वाली दवाएं ही नकली फैक्ट्रियों में तैयार की जा रही हैं। इन दवाओं में क्रोसिन,वोवेरन, बीटाडीन, कैल्सियम की इंजेक्शन, कोसाविल सिरप शामिल हैं। एनसीआर में ड्रग इंस्पेक्टरों की संख्या काफी कम हैं। जबकि वहां करीब 3300 केमिस्ट की दुकानें हैं। जिसमें से 30 फीसदी दुकाने एनसीआर के छोटे-छोटे इलाकों में हैं। जिससे यहां बड़ी तेजी से नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है।
भारत में नकली दवाओं का कारोबार 4000 करोड़ रुपए का है जो हर साल 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि दुनियाभर में जो नकली दवाएं मौजूद हैं उसमें से तीन चौथाई दवाएं भारत में बनी हैं। नौ कैटेगरी में 68 नामी-गिरामी दवाओं का सर्वे करने के बाद ये बातें सामने आई है। ज्यादातर नकली दवाएं ट्यूबरकुलोसिस, एलर्जी, डायबिटीज, दिल से जुडी बीमारी और मलेरिया के हैं। भारत की फार्मा इंडस्ट्री 6 अरब डॉलर की है। जो कि हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। वहीं ग्लोबल फार्मा इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट है केवल 7 फीसदी। लेकिन आश्चर्य इस बात की है कि भारत में 1 फीसदी से भी कम दवाओं को सरकार टेस्ट कर पाती है। 26 सरकारी लैब्स में हर साल केवल 2500 सैम्पल्स को ही चेक किया जाता है। नई दवाओं को चेक कराने के लए 6 से 7 महीनों का लंबा इंतजार करना होता है।
इस आंकड़ों को देखकर ड्रग कंट्रोलर जनरल की ऑफिस में खलबली मच गई। और आनन-फानन में ड्रग कंट्रोलर जनरल ने नकली दवाओं का कितना बड़ा बाजार है इसका पता लगाने के लिए दुनिया में अबतक का सबसे बड़ा सर्वे कराने का फैसला कर लिया है। जो कि जल्द शुरू होगा। और इसमें 50 लाख रुपए खर्च होंगे। और इस सर्वे का नतीजा 6 महीनों बाद सामने आएगा। इस सर्वे के लिए ड्रग इंस्पेक्टर मरीज बनकर दवाएं खरीदेंगे। कुल 31 हजार दवाओं के सैम्पल्स जमा किए जाएंगे। और तब जो रिपोर्ट आएगी उसके ऊपर कार्रवाई की जाएगी।
एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल 200 कंपनियां नकली दवा कारोबार में लगी हैं। जिनमें से कई कंपनियों के मालिकों के सर राजनेताओं का हाथ है। इसलिए दवा के रूप में ज़हर बेचने वालों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। नकली दवाओं पर बनी माशेलकर कमेटी ने तो मौत के सौदागरों के लिए मौत की सजा की बात कही थी। लेकिन इसे अभीतक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।
सोमवार, 12 मई 2008
बुरे समय में किंग ऑफ गुड टाइम !
विजय माल्या जिसे किंग ऑफ गुड टाइम कहा जाता है। जो एक पार्टी में उतने पैसे उड़ा देते हैं जितना कोई जिंदगीभर में नहीं कमा पाता है। लेकिन लक्ष्मी हमेशा से उनपर मेहरवन रही है। वो जितना खर्च करते हैं इससे ज्यादा फायदा उन्हें मिल जाता है। लेकिन फिलहाल उनका बुरा फेज चल रहा है। आईपीएल की उनकी टीम रॉयल चैलेंजर्स को लगातार मुंह की खानी पड़ रही है। एक के एक हार ने उन्हें हिला कर रख दिया है। ठीक ऐसा ही हाल एफ वन रेस में भी उनकी टीम की हो रही है।
लेकिन खेल के बिजनेस के अलावे उनका दूसरा बिजनेस काफी चकाचक चल रहा है। विजय माल्या ने 1983 में यूबी ग्रुप यानी यूनाइटेड ब्रुअरीज की कमान अनपे हाथ में ली। तब से लेकर अबतक कंपनी अपनी विस्तार की बदौलत एक मल्टीनेशनल कंपनी का दर्जा हासिल कर चुकी है। इस ग्रुप के अंदर आज एग्रीकल्चर, लाइफ साइंस,केमिकल, आईटी, इंजीनियरिंग और एविएशन जैसी करीब साठ कंपनियां काम कर रही हैं। जिसका टर्नओवर अरबों डॉलर में है। इसके बाद भी कंपनी का अधिग्रहण नहीं रुका है। पिछले साल मई में ही विजय माल्या ने प्रीमियम व्हिस्की बनाने वाली दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कंपनी स्कॉटलैंड की व्हाइट एंड मैके को करीब 5 हजार करोड़ रुपए में खरीदा है। माल्या ने 2005 में किंगफिशर एयरलाइंस की शुरूआत की। इसके साथ ही यूरोपियन कंपनी एयरबस को एक साथ 50 एयरक्राफ्ट का अबतक का सबसे बड़ा ऑर्डर दिया। जहाजों का बेड़ा बढ़ाने और ज्यादा जगहों पर पहुंच बनाने के लिए माल्या ने लो कॉस्ट एयरलाइंस एयर डेक्कन को करीब 1000करोड़ रुपए में खरीद लिया।
लेकिन खेल की बात ही कुछ अलग है। स्पीड के दीवाने विजय माल्या ने फॉर्मुला वन रेसिंग टीम स्पाइकर की स्टीयरिंग 8.8 करोड़ यूरो देकर अपने हाथ में ले ली। जिसका नाम बाद में बदलकर फोर्स इंडिया कर दिया। यानी अब एफ वन रेस में एक इंडियन टीम भी हवा से बातें करते हुए दिखने लगी हैं। लेकिन बिजनेस के खिलाड़ी विजय माल्या को खेलों में मुंह की खानी पड़ रही है। स्पेन में हुए एफ वन रेस में उनकी टीम शुरूआती झटके खाने के बाद 10 नंबर पर रही। जबकि आईपीएल में उनकी चेन्नई टीम लगातार हिचकोले खा रही है। यानी विजय माल्या को आज ये कहावत बिल्कुल सही लग रही होगी। मनी केन बाइ हैप्पीनेस, लेकिन पैसे से खेल और प्यार को नहीं जीता जा सकता है।
गुरुवार, 8 मई 2008
भारत में 50 लाख की बाइक !
बाइक बनाने वाली दुनियाभर की दिग्गज कंपनियों ने भारतीय बाजार में धूम मचाने की ठान ली है। तेजी से तरक्की की राह पर चलने वाले भारत में स्पीड के दीवानों की संख्यां बढ़ती जा रही है। साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाइक का बाजार है और इसे कंपनियां नजरअंदाज नहीं करना चाहतीं। और यही वजह है कि यमाहा, हार्ले डेविडसन के बाद अब इटली की कंपनी दुकाती ने अपनी पच्चास लाख की बाइक भारतीय बाजार में लांच की है। दुकाती की बाइक की इंजन 200 हॉर्स पॉवर की है । दुकाटी दुनिया भर से साठ देशों में छे सेग्मेंट में अपनी बाइक बेचती है। इसकी पावर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछली 17 वर्ल्ड सुपर बाइक चैंपियनशिप में से 14 इसने जीती है।
आइए अब नजर डालते हैं दुनियाभर की कुछ और महंगी बाइक्स पर। जो महंगी तो हैं पर इनकी तूफानी स्पीड को पकड़ने वाला कोई नहीं है।

सबसे पहले बात जापानी कंपनी सुजुकी की। जिसकी बाइक हायाबुसा ने पूरी दुनिया तूफान उठा दिया। जी हां प्रति घंटे इसकी स्पीड है 319 किलोमीटर। ताकत है 171 हॉर्स पावर की । 2001 में हुए एक टेस्ट में इस बाइक ने दुनिया की सबसे तेज चलनेवाली बाइक का खिताब जीता है। इसमें 1340 सीसी की इंजन है। 16 वाल्व हैं। यूरो थ्री स्टैंडर्ड का प्रमाण इसे मिला हुआ है। इसे 1999 में लांच किया गया। और तब से पिछले साल तक 1 लाख बाइक बिक चुकी है। कीमत मात्र 5 लाख रुपए हैं। लेकिन 100 फीसदी से ज्यादा कस्टम ड्यूटी अलग से देनी होगी।

इसके बाद बारी आती है यामाहा के yzf-r 1 की। जिसमें 998 सीसी की इंजन लगी है। 16 वाल्व इसमें भी हैं। कीमत है साढ़े चार लाख रुपए। कस्टम ड्यूटी अलग से।

तूफान से बातें करने में होंडा की cbr1000 rr भी पीछे नहीं है। इसमें 599 सीसी की इंजन लगा है। 16 वाल्व हैं। ताकत है 124 एचपी। इसे 1992 में लांच किया गया। कीमत साढ़े चार लाख के करीब। कस्टम ड्यूटी अलग से।

कावासाकी की निंजा बाइक भी दुनियाभर में काफी पॉपुलर है। क्योंकि ये थोड़ी इकॉनोमिकल है। इसमें 4 stroke649 सीसी की इंजन लगी है। 8 वाल्व हैं। यानी दूसरी गाड़ियों के चार सिलंडर के मुकाबले इसमें केवल दो सिलंडर लगे हैं। हर सिलंडर में चार वाल्व लगे हैं। गाड़ी को अच्छी तरह कंट्रोल में करने के लिए इसमें ट्रिपल petal डिजाइन ब्रेक डिस्क लगाया गया है। कीमत है करीब 3 लाख रुपए। कस्टम ट्यूटी एक्सट्रा।
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