बुधवार, 7 सितंबर 2011
भूमि अधिग्रहण बिल संसद में पेश
आखिरकार नया जमीन अधिग्रहण बिल संसद में पेश हो गया है। हालांकि बिल के कई प्रावधानों पर पार्टियों के बीच मतभेद है। इन मतभेदों को दूर करने के लिए 15 अक्टूबर को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश बिल पर चर्चा करेंगे।
नया जमीन अधिग्रहण बिल के मसौदे में कुछ बदलाव किए गए हैं। मुआवजे की राशि को छह गुना से कम कर चार गुना कर दी गई है। हालांकि राज्य सरकार चाहे तो इस राशि को बढ़ा सकती है। ये बिल दिसंबर तक जमीन अधिग्रहण कानून की शक्ल अख्तियार कर सकता है।
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने नए जमीन अधिग्रहण बिल के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के प्रयासों की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के प्रयासों से ही ये बिल 55 दिन में तैयार हुआ है। नए जमीन अधिग्रहण बिल में 1 से ज्यादा फसल देने वाली जमीन का सिर्फ 5 फीसदी हिस्से का ही अधिग्रहण करने का प्रस्ताव है। वहीं इस प्रस्ताव में ये बात साफ की गई है कि कोई कंपनी अगर 10 साल तक जमीन इस्तेमाल नहीं करती है तो ये जमीन अपने आप राज्य सरकार के पास चली जाएगी।
साथ ही अधिग्रहण से पहले 80 फीसदी लोगों से सहमति जरूरी होगी। रेलवे, पोर्ट, हाइवे, पावर प्रोजेक्ट के लिए भी सहमति की शर्त लागू की जाएगी। गांवों में जमीन के बाजार भाव का 4 गुना मुआवजे के तौर पर देना होगा। शहरों में जमीन अधिग्रहण के लिए बाजार भाव का 2 गुना मुआवजा देना पड़ेगा। अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के 1 सदस्य को नौकरी देना जरूरी होगा। नौकरी नहीं देने पर 5 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। पहले साल हर महीने 3,000 रुपये और 2 से 20 साल तक हर महीने 2,000 रुपये देने होंगे।
प्रस्तावित नए जमीन अधिग्रहण बिल में अर्जेंसी क्लॉज का इस्तेमाल बहुत कम जगहों पर किया गया है। सुरक्षा से जुड़े मामलों में ही अर्जेंसी क्लॉज का इस्तेमाल किया जाएगा। बाकी मामलों में जमीन के मालिक की सहमति से ही अधिग्रहण किया जा सकता है। अर्जेंसी क्लॉज जुड़ने से सरकार बिना जमीन मालिक की सहमति के भी जमीन अधिग्रहण कर सकती है।
वहीं उद्योग नए बिल के प्रस्तावों से खुश नजर नहीं आ रहा है। उद्योग का कहना है कि 1 से ज्यादा फसल देने वाली जमीन का अधिग्रहण मुश्किल बनाने से औद्योगीकरण में दिक्कतें आ सकती हैं। इसके अलावा निजी और सार्वजनिक उद्देश्य का मतलब साफ नहीं है। 20 साल तक हर महीने 2,000 रुपये देने के प्रावधान पर उद्योग को कड़ा ऐतराज है।
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